भारत के हृदय प्रदेश मध्य प्रदेश के भोपाल नगर में स्थित बड़ी झील और छोटी झील को भोजवेटलैंड के नाम से अन्तरराष्ट्रीय महत्त्व के वेटलैंड के रूप में मान्यता दी गई है।
भोजवेटलैंड का रामसर स्थल क्रमांक 1206 है।
(भोपाल की बड़ी झील एवं छोटी झील) के विशिष्ट आंकड़ेजैव विविधता की दृष्टि से भोजवेटलैंड पर्याप्त समृद्ध है।
- इसके तट पर वन विहार स्थल है जिसमें वन्य जीवों का आवास है।
- देश के विभिन्न प्रदेशों से तथा विदेशों से प्रवासी पक्षी प्रतिवर्ष यहाँ आकर अपना आवास बनाते हैं।
- भोजवेटलैंड में 200 प्रकार की जल वनस्पतियां पाई गई हैं।
- 105 प्रकार के जल-जीवों की यह शरणस्थली है। अन्य जल जीवों के अलावा इसमें 53 प्रकार की मछलियाँ, पाँच प्रकार के कछुए, दस प्रकार के सरीसृप आदि की प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
- लगभग 179 प्रजाति के पक्षियों का यहाँ पर आवास-प्रवास होता है।
सन 1993 में श्रीवास्तव ने अध्ययन के बाद पाया कि भोपाल की बड़ी झील में मछलियों की 43 प्रकार की प्रजातियाँ पाई जाती हैं। सन 2007 में चक्रवर्ती के अध्ययन के अनुसार भोपाल की बड़ी झील में मछलियों की 53 प्रजातियाँ पाई गईं।
भटगाँव, बैरागढ़ और बिट्टन मार्केट में बड़े तालाब की मछलियाँ बिकने जाती हैं, इनमें मुख्य हैं- पटोला, कटला, रोहू, कलोत, खरपाटा, चाल/इंजीरी, केतु, सिंघल, गंगरवार, पाढ़ीन, सिंघी, सूजा, बाम आदि।
लगभग 20000 पक्षी भोजवेटलैंड के प्रावास पर प्रतिवर्ष आते हैं। भोपाल के बड़े तालाब के किनारे पर प्रवासी पक्षियों का आवास स्थानीय मनोरंजन का एक केन्द्र बन गया है। इन पक्षियों में मुख्य हैं- व्हाइट स्टार्क, ब्लैक स्टार्क, बार हैडेड गूज, स्पून, बिला, ब्राह्मणी शेल डक, सारस, बगुले (स्टार्क), बत्तख, बुलबुल, जलमुर्गी, नीलकंठ, मैंना, तोता, बया, दूधराज, तीतर, कठफोड़वा, एशियाई पैराडाइस, फ्लाई कैचर, स्काई लार्क, वुड सेंडपाइपर, कबूतर, गलगल, फड़कुल, हार्नबिल, कौआ, कोयल, खंजन, इत्यादि लगभग 179 प्रकार के पक्षियों की यह शरणस्थली है। जिसमें प्रवासी एवं स्थानीय पक्षी शामिल हैं।
भोपाल की भूगर्भीय जानकारी :
भोपाल नगर विन्ध्या श्रेणी की चट्टानों पर बसा है जो विंध्याचल की भांडेर शृंखला के अन्तर्गत आती हैं। ये रेतीले पत्थरों की लाल रंग की चट्टानें हैं। इन लाल सिकता चट्टानों पर दक्कन ट्रेप (लावा के बहने) का प्रभाव दिखता है। कहीं-कहीं मृदा की बनी हुई हल्की चट्टानें भी हैं। लावा के बहने से बनी बैसाल्ट की चट्टानें भी इस स्थान पर हैं। विंध्या और दक्कन ट्रेप का मिलन भोपाल के पास होता है।
जलवायु एवं वर्षा : भोपाल की जलवायु समशीतोष्ण एवं शुष्क है। सालभर में वर्षा का औसत 100 सेंटीमीटर है।
ऋक्ष पर्वत : गजेटियर भोपाल स्टेट (प्रथम संस्करण 1908 प्रकाशक गजेटियर यूनिट डारेक्टरेट ऑफ राजभाषा एवं संस्कृति) के अनुसार भोपाल के पास सिंगारचोली की चोटी 2051 फुट ऊँची है और महलपुर के पास की चोटी 2064 फुट ऊँची। जिस स्थान पर रेलवे की सुरंग है वहाँ की चोटी होशंगाबाद भोपाल के बीच में 2137 फीट है। प्राचीनकाल में इसे विन्ध्यगिरि कहते थे। इसी पर्वत में ऋक्ष पर्वत भी है। बालिसुग्रीव की नगरी पंपापुर भी इसी ऋक्ष पर्वत में थी। इसी ऋक्ष पर्वत में पारियात्र पर्वत माला भी एक अंग के रूप में है।
कहा जाता है कि विंध्याचल पर्वत हिमालय से भी प्राचीन है। अगस्त्य मुनि इसके मार्ग से होकर ही दक्षिण दिशा को गए थे। अन्य ऋषियों के अलावा अगस्त्य जी ने भी राम रावण युद्ध होते हुए अपनी आँखों से देखा था। रावण का वध करने के लिये अगस्त्य जी ने ही श्रीराम को आदित्य हृदय स्रोत का पारायण करने की सलाह दी थी।
ग्राम बाड़ी की पर्वत शृंखला सहित इस पूरी विंध्याचल पर्वत माला का ऐतिहासिक एवं पुरातात्विक शोध होना चाहिए।
भोपाल की मृदा :-
यहाँ की मिट्टी दो प्रकार की है-
भांडेर शृंखला की लाल रेतीली चट्टानों के वर्षा, ताप, वायु के द्वारा किए गए क्षरण से लाल रेतीली काली, भुरभुरी मिट्टी यह प्रायः मैदानी भाग में है।
यह मिट्टी बड़ी और छोटी झील में प्रतिवर्ष जलधाराओं द्वारा लाकर जमा की जाती है।
इस दो प्रकार की मिट्टी (विंध्या एवं डक्कन ट्रेप) को विभाजित करने वाली रेखा के रूप में कलिया स्रोत नदी को माना जा सकता है।
खनिजस्रोत एवं भवन निर्माण सामग्री :
लाल रेतीले पत्थरों के अलावा भोपाल के कुछ स्थानों पर काला बेसाल्ट पत्थर, मुरम भी मिलते हैं जो भवन निर्माण में काम आ सकते हैं।
अच्छी किस्म के पत्थर- सिंगार चोली, नेवरी, चार इमली, शाहपुरा, लहारपुर, बावरियां कलां में पाये जाते हैं।
रोड के लिये काम आने वाला काला बेसाल्ट पत्थर शाहपुरा गाँव, कलियासोत नदी के पास, हथाई खेड़ा, सिंगारचोली में पाया जाता है।
नगर की सौन्दर्य वृद्धि हेतु इन खनिजों के खनन पर रोक लगाना उचित है।
कोलांस नदी- भोपाल के बड़े तालाब में जल की आमद का एक बड़ा स्रोत कोलांस नदी है। यह नदी सीहोर के दक्षिण की पहाड़ी से तथा विलकिसगंज से एक मील पश्चिम की ओर से निकलती है। बामुलिया, अन्टाखेड़ी गाँव से होते हुए यह लगभग पूर्व दिशा की ओर बहती हुई बोरदन गाँव के पास बड़े तालाब में मिलती है। इस नदी की कुल लंबाई 26 मील है। प्रायः वर्षा के समय ही इसका जल अधिक मात्रा में बहकर बड़े तालाब में आता है।
पुल पुख्ता बांध : एक फुट व्यास के पाइप द्वारा सुरंग सन 1794 में बनाई गई थी जिससे कि बड़ी झील का पानी छोटी झील में जाए। अभी हाल ही में इस सुरंग का पुनर्नवीनीकरण किया गया।
भोपाल राजधानी के रूप में- सन 1956 में भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी घोषित किया गया।
मनोरंजन स्थल- झील के किनारे उत्तम मनोरंजन के स्थल हैं-
खेलकूद जैसे- नौका संचालन, मत्स्य पेषण, तैरना, धूप स्नान, विविध खेल आदि।
विश्रामदायक मनोरंजन जैसे-
स्वल्पाहार स्थल, संगीत संध्या, साहित्यिक गोष्ठियां, आकाशवाणी कार्यक्रम, मत्स्यालय वन विहार अवलोकन, वर्ड वाचिंग (पक्षी विहार अवलोकन)।
भोजवेटलैंड (बड़ी झील) एवं कोलांस नदी की घाटी (Basin)
इस घाटी में कोलांस नदी सहित सीहोर से भोपाल के बीच का कैचमेंट क्षेत्र शामिल है। सन 1998 की रिपोर्ट के अनुसार उक्त भूमि का पैटर्न इस प्रकार था-
निर्माण कृत भूमि | 2751 हेक्टेयर |
कृषि भूमि | 10760 है. |
(इसके पूर्व 1988 में यह 21009 हेक्टेयर थी) | |
पड़ती भूमि | 1249 है. |
खुलीझाड़ियां | 5171 है. |
वृक्षारोपण | 120 है. |
बंजर, चट्टान | 273 है. |
खुला वन | 503 है. |
नदी/जल संसाधन | 2435 है. |
दलदली भूमि | 522 है. |
जलीय वनस्पतियाँ | 595 है. |
अन्य वनस्पतियां | 574 है. |
इससे स्पष्ट होता है कि कृषि भूमि का क्षेत्रफल घटता जा रहा है। इस पूरे कैचमेंट एरिया का क्षेत्रफल 361 वर्ग कि.मी. है।
भोपाल का नगरीकरण :
यह नगर मालवा पठार के पूर्व में 23025’ उत्तरी अक्षांश तथा 77035’ पूर्वी देशांश पर स्थित है। भोपाल को मध्य प्रदेश की राजधानी बनने का गौरव सन 1956 में प्राप्त हुआ। वर्तमान में (सन 2014 में) इसकी जनसंख्या 20 लाख हो गई है। इस नगर की जनसंख्या सन 1931 से निरंतर बढ़ रही है जो इस प्रकार है-
वर्ष | नगर की जनसंख्या (लाख) |
1931 | 0.61 |
1941 | 0.75 |
1951 | 1.02 |
1961 | 2.23 |
1971 | 3.85 |
1981 | 6.71 |
1991 | 10.63 |
2007 | 18.40 |
2014 | 20.00 लगभग |
भोपाल तालाब के अनेक उपभोक्ता हैं :
पीएचई, पर्यटन विभाग, वन्य जीव विहार, सामाजिक एवं पर्यावरण वानिकी विभाग, भारतीय रेल, गांधी मेडीकल कॉलेज, शासकीय संस्थाएं, अशासकीय संस्थाएं, गृह निर्माण एवं सिविल संस्थाएं, जन साधारण (जनता), भारत हैवी इले. औद्योगिक क्षेत्र, शैक्षणिक संस्थाएं, शोधकर्ता संस्थाएं, कृषक, मछुआरे आदि।
1958 में भारत हैवी इली. की स्थापना हुई। इससे जल की मांग बढ़ गई। बड़े तालाब की क्षमता 1359 मि.क्यू. फुट पर्याप्त न होने के कारण बड़े तालाब में पानी की संग्रह की क्षमता बढ़ाने के लिये भदभदा में गेट लगाये गए इससे पूरे तालाब के भरने की क्षमता बढ़ गई। भदभदा में गेट लगाने का यह कार्य सन 1963 में पूरा हो गया था।
बढ़ती हुई जनसंख्या को जल की पूर्ति के लिये कोलांस नदी से निर्मित बड़े तालाब पर निर्भर नहीं रहा जा सकता। अतः नर्मदा नदी का जल लाना जरूरी हो गया था। म.प्र. सरकार एवं भोपाल नगर निगम, भोपाल में नर्मदा जल लाने हेतु धन्यवाद के पात्र हैं।
पहले बड़े तालाब से शहर को रोज 28-30 एमजीडी पानी सप्लाई होता था। शेष अन्य स्रोतों से लिया जाता था।
पिछले साल से नर्मदा का पानी सप्लाई होने से बड़े तालाब पर निर्भरता कम हुई। अब रोजाना 18 एमजीडी पानी ही बड़े तालाब से सप्लाई होता है।
वर्षा- सामान्य तौर पर जून में कुल मानसूनी बारिश का दस प्रतिशत पानी ही बरसता है। बाकी तीन महीनों में संग्रहण की 90 फीसदी बारिश होती है। जुलाई में करीब 35, अगस्त में 40 और सितंबर में 15 फीसदी पानी बरसता है।
जल प्रदाय :
मई 2012 में जल प्रदाय की स्थिति इस प्रकार थी- भोपाल में कुल 73 मिलियन गैलन पानी की सप्लाई प्रतिदिन होती थी- इसके स्रोत इस प्रकार थे-
बड़े तालाब से | 25 मिलि. गैलन प्रतिदिन |
कोलार बांध से | 33 मिलि. गैलन प्रतिदिन |
नर्मदा से | 10 मिलि. गैलन प्रतिदिन |
बोरिंग (ट्यूबवेल से) | 05 मि.लि. गैलन प्रतिदिन |
पानी के लिये त्राहि-त्राहि :
कम बारिश और अधिक बोर होने से सन 2009 अप्रैल के महीने में भूजल स्तर इतना गिर गया कि आधे हैंडपंप सूख गए। जिन कॉलोनियों में कोलार या बड़े तालाब का पानी नहीं आता वहाँ त्राहि-त्राहि मच गई। नलकूपों, बोरवेल ने भी दम तोड़ दिया।
मई 2009 में तालाब के गहरीकरण का काम चालू हुआ। बोट क्लब पर गहरीकरण के लिये शासन के अलावा, अन्य संगठन भी आगे आए। प्रेमपुरा घाट पर 13 हजार ट्रक गाद/मिट्टी निकाली जा चुकी थी। बोट क्लब पर 18 हजार ट्रक गाद/मिट्टी निकालने की कार्यवाही की गई। बड़ी झील से 50 हजार क्यूबिक मीटर गाद निकालने का काम जल संसाधन विभाग ने हाथ में लिया। कोलार की पाइप लाइन टूटने से पानी की समस्या पैदा होती रही। बिना पानी के 3 दिन तक त्राहि-त्राहि मची रही। 12 मई 2009 के महीने में जल संकट के कारण कानून व्यवस्था भी चरमरा गई।
पानी के लिये विवाद :
मई 2009 में जहाँगीराबाद में पानी के विवाद में एक महिला ने दूसरी महिला के सिर पर बाल्टी दे मारी। एक अन्य स्थान पर पानी के विवाद में एक महिला ने चाकू मारकर दूसरी को घायल कर दिया।
भारत सरकार के सेन्ट्रल पब्लिक हेल्थ एवं पर्यावरणीय इंजीनियरिंग के जल प्रदाय एवं उपचार मैनुअल (मई 1999) के अनुसार सीवरेज सिस्टम (जल मल निकास प्रणाली) विहीन शहरों में एक आदमी को एक दिन में अधिक से अधिक 70 लीटर पानी और जल मल निकास प्रणाली (सीवरेज सिस्टम) वाले शहरों में एक आदमी को एक दिन में अधिक से अधिक 130 लीटर पानी दिये जाने की अनुशंसा है।
इंडियन वाटर रिसोर्सेज सोसाइटी के अवधारणा पत्र (Integrated water resources development and managment 2002 page 32 & 33) के अनुसार नगरों की महापालिकाओं द्वारा प्रत्येक नागरिक को प्रतिदिन नीचे लिखी मात्रा में पानी प्रदाय किया जाता है-
अहमदाबाद | 142 (लीटर प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन) |
बंगलुरु | 153 |
दिल्ली | 253 |
मुंबई | 272 |
हैदराबाद | 171 |
कोलकाता | 179 |
चेन्नई | 107 |
भोपाल | 188 |
पूना | 297 |
अन्तरराष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन पर गठित पीठ (International Penal on Climate Change) के अनुसार सन 2050 तक प्रतिव्यक्ति पानी की उपलब्धता में 30 प्रतिशत की कमी होने की संभावना है। उस समय कृषि भी पानी के अभाव में बुरी तरह प्रभावित होगी।
अतः राष्ट्रीय जलनीति की समीक्षा करने की जरूरत है।
भोजवेटलैंड : भोपाल ताल, 2015 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) | |
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