बंजर होता भारत

Submitted by Shivendra on Tue, 06/16/2020 - 09:52

फोटो - Down To Earth

17 जून को हर साल ‘वर्ल्ड डे टू काॅम्बेट डेसर्टीफिकेशन और ड्राॅट’ (World Day to combat desertification and drought) का विश्वभर में आयोजन किया जाता है। इसका उद्देश्य लोगों को दुनियाभर में तेजी से बढ़ते मरुस्थलीकरण और सूखे के प्रति जागरुक करना है, ताकि योजनाबद्ध तरीके से इसे रोका जा सके। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठन इस दिशा में प्रयास में जुटे हैं। मरुस्थलीकरण को रोकने की योजना बनाने के लिए पिछले साल संयुक्त राष्ट्र के काॅप-14 का आयोजन भारत में ही किया गया था, लेकिन वास्तव में ये योजनाएं इन कार्यक्रमों और फाइलों से बाहर नहीं निकल पा रही हैं। काॅप-14 में प्रस्तुत ग्लोबल एंवायरमेंट फेसिलिटी (जीईएफ) रिपोर्ट (GEF) में कहा गया था कि "विश्व भर में करीब 23 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण की चपेट में है और हर मिनट करीब 23 हेक्टेयर जमीन मरुस्थल में तब्दील हो रही है। इसी मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए यूएनसीसीडी सदस्य देशों ने बीते दो वर्षों में 6.4 बिलियन डाॅलर यानी करीब 46 हजार करोड़ रुपये खर्च किए जा चुके हैं।" इतना पैसा खर्च करने के बाद भी धरातल पर उत्साहजनक परिणाम नहीं दिखे, जो सभी प्रयासों पर सवाल खड़े करता है।

जुलाई 2017 से जून 2019 तक भूमि क्षरण फोकल क्षेत्र (एलडीएफए) और जीईएफ ट्रस्ट फंड की अन्य संबंधित फंडिंग विंडो से धन के साथ 75 परियोजनाओ और कार्यक्रमों को मंजरी दी गई थी। इन संसाधनों का उपयोग 20 स्टैंड-अलोन एलडीएफए परियोजनाओं के माध्यम से 48.92 मिलियन डाॅलर और 55 मल्टी-फोकल एरिया (एमएफए) परियोजनाओं और कार्यक्रमों के जरिए 808.84 मिलियन डाॅलर के जीईएफ संसाधनों का उपयोग करके किया गया। जीईएफ की रिपोर्ट में बताया गया है कि जुलाई 2017 से जुलाई 2019 के बीच मरुस्थलीकरण, भूमि और सूखे से संबंधी परियोजनाओं पर करीब 6.4 बिलियन डाॅलर खर्च किए गए। जिसमें से जीईएफ के माध्यम से 0.86 बिलियन डाॅलर और सह-वितपोषण के माध्यम से 5.67 बिलियन डाॅलर खर्च किए गए हैं, लेकिन यूएनसीसीडी का मानना है कि अभी आवश्यकता के अनुरूप धन एकत्रित नहीं हो पाया है।

काॅप-14 में ही बताया गया था कि भारत की 30 प्रतिशत भूमि मरुस्थलीकरण की चपेट में आ चुकी है, जबकि वर्ष 2003 से वर्ष 2013 के भारत का मरुस्थलीकरण क्षेत्र 18.7 लाख हेक्टेयर बढ़ा है। जिसमें से 82 प्रतिशत हिस्सा राजस्थान, महाराष्ट्र, गुजरात, जम्मू एवं कश्मीर, कर्नाटक, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश और तेलंगाना राज्यों का है। आंकड़ों पर नजर डालें तो गुजरात में  04 जिले, महाराष्ट्र में 3, तमिलनाडु में 5, पंजाब में 2, हरियाणा में 2, राजस्थान में 4, मध्य प्रदेश में 4, गोवा में 1, कर्नाटक में 2, केरल में 2 जिले, जम्मू कश्मीर में 5 और हिमाचल प्रदेश में 3 जिले मरुस्थलीकरण की चपेट में हैं। नीचे टेबल में राज्यवार भारत में मरुस्थलीकरण की स्थिति बताई गई है। 

राज्य

मरुस्थल की चपेट में भूमि (प्रतिशत में)
पंजाब  2.87 
हरियाणा  7.67 
राजस्थान  62.9 
गुजरात  52.29 
महाराष्ट्र  44.93 
तमिलनाडु  11.87 
मध्य प्रदेश 12.34 
गोवा  52.13 
कर्नाटक  36.24 
केरल  9.77 
उत्तराखंड  12.12 
उत्तर प्रदेश 6.35 
सिक्किम  11.1 
अरुणाचल प्रदेश 1.84 
नागालैंड  47.45 
असम  9.14 
मेघालय  22.06 
मणिपुर  26.96 
त्रिपुरा  41.69 
मिजोरम  8.89 
बिहार  7.38 
झारखंड  66.89
पश्चिम बंगाल  19.54 
ओडिशा  34.06 

भारत में सूखा प्रभावित 78 जिलों में से 21 जिलों की 50 प्रतिशत से अधिक जमीन मरुस्थल में बदल चुकी है, लेकिन देश में बंजर होती भूमि के मामले में झारखंड की स्थिति भयावह है। झारखंड में इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि राज्य का कुल भौगोलिक क्षेत्र 79,714 वर्ग किलोमीटर है, लेकिन 54987.26 वर्ग किलोमीटर यानी 68.98 प्रतिशत हिस्सा मरुस्थलीकरण की जद में है। वहीं राज्य की 38 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से 10 लाख हेक्टेयर भूमि पर खेती नहीं होती है। 80 प्रतिशत खेती वर्षा पर आधारित है, लेकिन जिस वर्ष बारिश कम होती है, तब उत्पादन काफी कम होता है। राज्य की 60 से 70 प्रतिशत जमीन अम्लीय है।

झारखंड के बाद महाराष्ट्र में मरुस्थलीकरण तेजी से बढ़ रहा है। यहां सबसे भयावह स्थिति धुले जिले की है, जहां 64.2 प्रतिशत भूमि निम्नीकरण की चपेट में है। तो वहीं बीते आठ वर्षों में 5200 हेक्टेयर जमीन निम्नीकृत हो गई है। महाराष्ट्र वन विभाग के आंकड़ों के अनुसार धुले जिले का 28 प्रतिशत वन विभाग के अधीन था, लेकिन 2017 में फाॅरेस्ट सर्वे ऑफ इंडिया द्वारा प्रकाशित नवीनतम ‘‘स्टेट ऑफ फाॅरस्ट रिपोर्ट’’ के अनुसार, अब केवल 308 वर्ग किमी यानी 4.2 प्रतिशत क्षेत्र ही वनाच्छादित है। यहां वर्ष 2003 में भैंसों की संख्या करीब 6 हजार थी, जो वर्ष 2011 में बढ़कर एक लाख से अधिक हो गई। अवैध रूप से पेड़ों के कटान के कारण भी वन क्षेत्र कम हो रहा है।

पानी से कटाव, हवा से मिट्टी का कटाव, औद्योगिक कचरा, खनन, वनस्पतियों का विनाश और जलवायु परिवर्तन के कारण मरुस्थलीकरण तेजी से दुनियाभर में बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए रेतीले टीलों का स्थिरीकरण, रक्षक पट्टी वृक्षारोपण, विमानों से बीजों की बुवाई, सिल्विपाश्चर प्रणाली, कृषि-वैज्ञानिक उपायों में न्यूनतम खुदाई, सिंचाई के पानी का सही इस्तेमाल, खनन गतिविधियों पर नियंत्रण करके मरुस्थलीकरण को काफी हद तक रोका जा सकता है। इसके लिए जलवायु परिवर्तन को कम करके भी बंजर होती भूमि को रोकने में सहायता मिलेगी। क्योंकि जलवायु परिवर्तन से धरती लगातार गरम हो रही है, जो मरुस्थलीकरण को बढ़ा रही है। इसके लिए हमें हरियाली बढ़ानी होगी और पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों का उपयोग करना हो। इन सभी के लिए जीवनशैली में बदलाव जरूरी है।


हिमांशु भट्ट (8057170025)