चिंताजनक: घटता भूजल, बढ़ती निर्भरता

Submitted by Shivendra on Wed, 06/10/2020 - 08:55

फोटो -Andhra Pradesh Pollution Control Board

जल और हवा ही मात्र ऐसे तत्व हैं, जिनका महत्व बताने की आवश्यकता नहीं पड़ती। बचपन से ही इंसान इन दोनों तत्वों की उपयोगिता को भलिभांति समझ जाता है। इसके बावजूद भी जब वो बड़ा होता है, तो दोनों ही तत्वों की उपयोगिता का गहराई से पता होने के बाद भी इनके संरक्षण का उद्देश्य कहीं खो जाता है। परिणामतः विकराल होता जल संकट और जल प्रदूषण हमारे सामने हैं। नीति आयोग की ‘कम्पोजिट वाटर मैनेजमेंट इंडेक्स’ रिपोर्ट के मुताबिक देश के 75 प्रतिशत परिवारों के घरों में पानी की सुविधा नहीं है। 2011 की जनगणना के अनुसार महोबा में 7 प्रतिशत, बांदा में 13.3 प्रतिशत, जालौन में 26.6 प्रतिशत, चित्रकूट में 11.4 प्रतिशत, हमीरपुर में 13.2 प्रतिशत, झांसी में 20.1 प्रतिशत और ललितपुर में 10.3 प्रतिशत ग्रामीण परिवारों के घरों में ही पानी की सुविधा है। ऐसा ही कुछ हाल देश के अन्य इलाकों का भी है, लेकिन इसके बावजूद भी भारत के अधिकांश लोग पानी की जरूरत को पूरा करने के लिए भूजल पर निर्भर हैं।  

भारत में सतही जल तेजी से सूखता जा रहा है। जो जल बचा है, वो प्रदूषित हो रहा है। इसमें गंगा और यमुना जैसी देश की तमाम बड़ी और छोटी नदियां शामिल हैं। अतिदोहन के कारण भूजल स्तर इतना चीने चला गया है कि सूखे कुएं और तालाब इंसानों को गर्मिंयों में मुंह चिढ़ा रहे हैं। गांवों में पहले लगाए गए बोरवेल का लेवल पाताल में जाता जा रहा है, जिस कारण सिंचाई के लिए कभी अतिदोहन करने वाले बोरवेल आज वेंटिलेटर पर हैं। कई इलाकों में पानी न मिलने के कारण खेत बंजर होते जा रहे हैं। किसान खेती छोड़ रहे हैं। जल प्रदूषण और जल संकट लोगों की जान ले रहा है, लेकिन इसके बावजूद भी हम इंसानों ने भूजल दोहन कम नहीं किया और न ही जल संग्रहण की ओर ज्यादा ध्यान दिया। इस बात को केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों से जाना जा सकता है।

भारत में आबादी तेजी से बढ़ती जा रही है। आबादी बढ़ने के साथ पानी की मांग भी बढ़ रही है, लेकिन आबादी के बोझ के चलते संसाधन सिमटते जा रहे हैं। भूजल के मामले में सबसे बुरा हाल पंजाब, राजस्थान, दिल्ली और हरियाणा का है। इन राज्यों में भूजल रिचार्ज की वार्षिक दर भूजल दोहन से कम है। यानी हर साल जितना भूजल यहां रिचार्ज होता है, उससे ज्यादा भूजल का दोहन किया जाता है। केंद्रीय भूजल बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2013 में पंजाब ने 149 प्रतिशत भूजल दोहन किया था, जो वर्ष 2017 में बढ़कर 165.77 प्रतिशत हो गया। वहीं, राजस्थान का भूजल दोहन वर्ष 2013 के 140 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2017 में 139.88 प्रतिशत, हरियाणा का वर्ष 2013 के 135 प्रतिशत से बढ़कर वर्ष 2017 में 136.91 प्रतिशत और दिल्ली का भूजल दोहन वर्ष 2013 के 127 प्रतिशत से घटकर वर्ष 2017 में 119.61 प्रतिशत हो गया था। 

आंकड़ों के अनुसार हर साल भूजल की मात्रा घटती जा रही है, जबकि दोहन बढ़ रहा है। वर्ष 2004 में वार्षिक भूजल उपलब्धता 399.25 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) थी, लेकिन भूजल दोहन 58 प्रतिशत (230.62 बीएसएम) किया गया, जबकि वर्ष 2009 में भूजल उपलब्धता घटकर 396.06 बीसीएम हो गई और भूजल दोहन 61 प्रतिशत (243.32 बीसीएम) किया गया। 2011 में भूजल उपलब्धता बढ़कर 398.16 बीसीएम हो गई और दोहन 62 प्रतिशत (245.05 बीसीएम) किया गया। भूजल उपलब्धता में 2013 में काफी इजाफा देखा गया है। इस वर्ष भूजल उपलब्धता 411.3 बीसीएम थी, तो वहीं भूजल दोहन का प्रतिशत 62 प्रतिशत ही रहा, किंतु दोहन की मात्रा 253.06 बीसीएम हो गई। 2017 में भूजल उपलब्धता घटकर 392.70 बीसीएम हो गई, लेकिन दोहन 62.33 प्रतिशत (248.69 बीसीएम) किया गया। वर्ष 2004 में भूजल दोहन 58 प्रतिशत था, लेकिन 2017 में हमने कुल उपलब्ध भूजल का 63 प्रतिशत जमीन की कोख से खींचकर निकाल लिया। इसका नतीजा हम देशभर में गहराते जल संकट के रूप में देख रहे हैं, जिससे उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर जैसे हिमालयी राज्य भी प्रभावित हैं। इसके बावजूद भी हम भूजल को रिचार्ज करने के लिए पर्याप्त उपाय नहीं कर रहे हैं, जिस कारण भूजल पाताल तक जा रहा है। इसलिए वर्षा जल संग्रहण और जल संरक्षण की ओर गंभीरता से ध्यान देने की जरूरत है। यदि ऐसा नहीं किया, तो भविष्य में इसके परिणाम काफी भयावह होंगे। जिसकी झलक हर साल गर्मियों में पूरे देश को देखने को मिलती ही है।


हिमांशु भट्ट (8057170025)