आज कई भारतीय नदियों के दुर्भाग्य का कोई जिम्मेदार है तो वो सीवेज है। क्योकि साल 2019 में नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने स्वेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने और सभी नालों को सीवेज से जोड़कर शत प्रतिशत इसका उपचार करने का जो निर्देश दिया था। उसको आज भी हम पूरा नहीं करा पाए है। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट्स की नेशनल इन्वेंटरी 2021सीपीसीबी की रिपोर्ट के अनुसार भारत में सामान्यत: 72.368 एमएलडी सीवेज निकलता है। लेकिन उसके उपचार की क्षमता केवल 26,069 एमएलडी तक ही सिमित है।ये केवल आंकड़े नहीं हैं, यह नदियों के खराब स्वास्थ्य का संकेत दे रहे है। यहाँ बड़ी मात्रा में निकलने वाला सीवेज सीधे नदियों में प्रवाहित हो जाते है।जो नदियों को प्रदूषित करने का सबसे बड़े कारक है नदियों के प्रदूषण के लिए सरकारी कार्य योजना नदियों के कायाकल्प तक ही सिमित है। लेकिन केवल सीवेज का उपचार से ही नदी को स्वस्थ नहीं किया जा सकता, इसके लिए न्यूनतम जल प्रवाह की आवश्यकता होती है, जो फिलहालकार्य योजना में गायब नज़र आ रही है।
ये भी पढ़े :- "बांधों के कैचमेंट में प्राकृतिक न्याय का मुद्दा "
दूसरी बड़ी समस्या औद्योगिक और खतरनाक कचरे का डंपिंग है।औद्योगिक जहरीला कचरा सीधे नदियों में प्रवाहित होता है और साफ पानी को प्रदूषित करता है। अवैध डंपिंग पानी की गुणवत्ता के साथ-साथ जलीय जीव और नदी पारिस्थितिकी तंत्र को भी प्रभावित करती है। विभिन्न रिपोर्टों के अनुसार शहरी कचरे को नदी में अनियंत्रित रूप से डंप करने से एंटीबायोटिक प्रतिरोध फैल रहा है।
विशेषज्ञों की राय
शहरी कचरे को अवैध रूप से नदियों में डंपिंग कर दिया जाता है जिससे उसके प्राकृतिक स्वरुप और गुणवत्ता प्रभावित होती है।हमने अपने अध्ययन के दौरान यह पाया कि भारत की लगभग सभी नदियाँ इसी चुनौतियों का सामना कर रही हैं,लेकिन हमने सिर्फ 2 नदियों पर गहराई से प्रकाश डाला है।
हिंडन नदी : - यमुना नदी की एक सहायक नदी, हिंडन नदी, निचली हिमालय श्रृंखला में ऊपरी शिवालिक से सहारनपुर जिले में निकलती है। नदी और उसकी सहायक नदियाँ, काली और कृष्णा नदी, उत्तर प्रदेश के सात जिलों के माध्यम से लगभग 400 किलोमीटर (250 मील) तक फैली हुई हैं। हिंडन नदी पश्चिमी उत्तर प्रदेश की महत्वपूर्ण नदियों में से एक है जिसका बेसिन क्षेत्र लगभग 7000 किमी है। यह बहुत चिंता का विषय है कि हिंडन नदी और उसकी सहायक नदियाँ अब अत्यधिक प्रदूषित हो चुकी हैं और नालों में बदल गई हैं। इस स्थिति के कई कारण हैं।औद्योगिक उद्यमिता ने मानव सभ्यता के प्रारंभिक चरणों का स्थान ले लिया है।
हिंडन नदी का दूषित होने का सबसे बड़ा कारण काली और कृष्णा नदी का उससे मिलना है जो अपने साथ जल-प्रदूषणकारी उद्योगों और नगरनिगम के बिना उपचार किये गए कचरे को साथ लेकर आते है। सहारनपुर से गाजियाबाद तक हिंडन नदी के इस प्रायोरिटी-1 प्रदूषित हिस्से के तट पर 90 गाँव स्थित हैं। इन गांवों की कुल आबादी 3,80,155 है जो 41.057 एमएलडी सीवेज उत्पन्न करते हैं। इस समय 453 से अधिक प्रदूषणकारी उद्योग (चीनी, लुगदी और कागज, डिस्टिलरी, कपड़ा, स्लॉटर हाउस, टेनरी आदि) हिंडन नदी के जलग्रहण क्षेत्र में स्थित है। नगर निगम (पालिका ) और उद्योगों के उपचारहित्त कचरे के बहाव से हिंडन नदी हर स्थिति में प्रदूषित रही जिसकी पुष्टि जल गुणवत्ता सूचकांक के आकलन भी हो जाती है।
वनस्पति की हानि, पर्यावरणीय संकट और प्रदूषण बिना प्लानिंग के किये गए विकास कार्यों परिणाम है। भूजल का अत्यधिक दोहन और कृषि में रसायनों और उर्वरकों का उपयोग नदी की बिगड़ती स्थिति में योगदान दे रहे है। जहरीले प्रदूषक अंततः भूजल तक पहुंच जाते हैं और खाद्य श्रृंखला में प्रवेश करते हैं, इस प्रकार मानव स्वास्थ्य के लिए खतरा पैदा करते हैं, इसके कारण नदी अब मौत के कगार पर पहुंच गई है क्योंकि नदी के पानी में जहरीलापन चरम पर पहुंच गया है।
ये भी पढ़े :- वेंटिलेटर पर सांसें गिनती ‘नारायणपुर वाली’ गुमनाम नदी
तवी नदी :- सबसे पवित्र नदियों में से एक, जिसे "सूर्य पुत्री" के नाम से भी जाना जाता है। तवी जम्मू और कश्मीर के भद्रवाह में कैलाश कुंड से निकलती है। कचरे का लगातार डंपिंग, जहरीला कचरा और बिना उपचार किये गए सीवेज ने केवल नदी के प्राकृतिक प्रवाह को नुकसान नहीं पहुंचाया बल्कि इसके सुंदर पारिस्थितिकी तंत्र और जैव विविधता को भी नष्ट कर रहे हैं। नदी में 2mg/l से ऊपर बीओडी (BOD) हानिकारक है, हमारे निष्कर्ष में तवी नदी की एक बहुत ही भयावह डरावनी तस्वीर समाने आयी है , जिसका औसत BOD 5.5 mg/l से अधिक है। जम्मू शहर के 6.5 लाख से अधिक लोग अपने पीने की जरूरतों के लिए नदियों पर निर्भर हैं। लेकिन अब तवी नदी का जहरीलापन होने का स्तर बड़ा खतरा साबित हो गया है और इसके साथ कई स्वास्थ्य समस्याएं भी जुड़ी हुई हैं।
2009 में सरकार ने इसके सौंदर्यीकरण के लिए तवी में "कृत्रिम झील" की एक परियोजना शुरू की थी। 13 साल बाद भी प्रोजेक्ट अभी तक पूरा नहीं हुआ है। नदी के सौंदर्यीकरण को बढ़ाने के बजाय इससे नदी के प्राकृतिक प्रवाह बाधित हुई है और तवी को नुकसान पहुँचा है। तवी के प्रायोरिटी-1 क्षेत्र में लगभग 368 खतरनाक कचरा उत्पन्न करने वाली इकाइयाँ मौजूद हैं। उपर्युक्त उल्लेख से ये साफ़ हो जाता है कि, तवी नदी जो कभी जम्मू शहर की जीवन रेखा थी,आज धीरे-धीरे मौत्त के कगार पर पहुंच रही है।
ये भी पढ़े :-क्यों होती है पीने के पानी की बोतलों में एक्सपायरी डेट
मुख्य रूप से तीन प्रक्रियाएं हैं जो नदियाँ को मैकेनिकली, प्रकृति आधारित समाधान और हइब्रिड से कायाकल्प करने में मदद करती हैं नदियों के भाग्य को कैसे बदला जा सकता है, यह दिखाने के लिए हमारे पास कई बेहतरीन उदाहरण हैं। लेकिन हमने उनमें से दो नदियों पर गहराई से अध्ययन कर नदियों की वास्तविक स्थितियों को सामने लाने की कोशिश की है।
दुनिया में किसी भी नदी प्रणाली में राइन नदी की तुलना में औद्योगिक समूह का घनत्व नहीं है। यूरोप के छह भारी औद्योगिक देशों को जोड़ने वाली रीन को लगभग 40 साल पहले सीवेज में बदल दिया गया था।लेकिन निरंतर निगरानी, बेहतर प्रबंधन और सर्वोत्तम सीवेज उपचार सुविधाओं ने राइन को सबसे स्वच्छ नदी में बदल दिया है। कुछ एक ऐसा ही उदाहरण प्रकृति आधारित है जैसे वृक्षारोपण, मैनुअल सफाई और सामुदायिक भागीदारी जो उपरोक्त समस्याओं का एक बड़ा समाधान हो सकता है जैसे सेगे नदी एक बड़ा उदहारण है।
इस अध्यनन से यह निष्कर्ष निकलता है कि प्रदूषित करने वाले सभी स्रोतों को नदियों में कचरे को छोड़ने से पहले उपचारित किया जाना चाहिए और नदी की गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए नदी के विभिन्न हिस्सों में ऊपरी नहर के निकास के माध्यम से ताजे पानी का उपयोग करके नियमित रूप से प्रवाह वृद्धि की जानी चाहिए जो कि नदी के किनारे रहने वाली बड़ी आबादी की जीवन रेखा है। सरकार और समाजों को वनीकरण, जैविक खेती, अपशिष्ट प्रबंधन, तालाबों की बहाली और शासन और नदी बेसिन में भागीदारी के लिए पहल करनी चाहिए। अपने अध्ययन के दौरान हमने पाया कि, यदि हम हाइब्रिड समाधान और प्रकृति आधारित समाधान का सर्वोत्तम तरीके से पालन करते हैं, तो हम भारतीय नदी के भाग्य को बदल सकते हैं।