भूमध्य सागर या रूम सागर (Mediterrajean sea)

Submitted by Hindi on Sat, 07/23/2011 - 15:06
आनंदस्वरूप जौहरी
स्थल से घिरे हुए सागरों में सबसे महत्वपूर्ण एवं सबसे बड़ा सागर है। यह दक्षिण में अफ्रीका, उत्तर में यूरोप एवं पूर्व में एशिया महाद्वीपों से घिरा हुआ है। इसका क्षेत्रफल 10,07,221 वर्ग मील है। इसकी लंबाई जिब्रॉल्टर से लेकर सिरिया तट तक 2,200 मील तथा उत्तर से दक्षिण की चौड़ाई 1,200 मील है। यह पश्चिम में लगभग नौ मील चौड़े जिब्रॉल्टर, उत्तर-पूर्व में एक मील चौड़े मारमरा जलडमरूमध्यों से तथा दक्षिण-पूर्व में 103 मील लंबी स्वेज नहर द्वारा लाल सागर से जुड़ा है। ऐसा कहा जाता है कि किसी समय में मोरॉको, स्पेन तथा यूरोप और एशिया में स्थित टर्की के दोनों भाग आपस में जुड़े थे, जो किसी कारण से अब एक दूसरे से अलग अलग हो गए हैं। सागर के पश्चिमी भाग की औसत गहराई 4,692 फुट है। अधिकतम गहराई मॉल्टा एवं क्रीट द्वीपों के मध्य 14,400 फुट तथा कम से कम गहराई ऐड्रिऐटिक सागर में 794 फुट है।

भूगर्भ विद्या के विशेषज्ञों के अनुसार यह प्राचीन टीथीज सागर का ही एक अंग है। भारत और मध्य पूर्व की सभ्यता इसी सागर द्वारा यूरोप महाद्वीप में फैली। इस सागर में अनेक द्वीप हैं, जिनमें पूर्व से पश्चिम साइप्रस, रोड्ज, क्रीट, कार्फू, मॉल्टा, सिसिली, सार्डिनिया, कॉर्सिका, और बैलिएरिक द्वीप प्रमुख हैं। इसमें द्वीपों एवं प्रायद्वीपों के मध्य भिन्न-भिन्न नाम के सागर साथ हैं जैसे सार्डिनिया और इटली के मध्य टिरहेनियन सागर, इटली एवं बॉल्कन प्रायद्वीप के मध्य ऐड्रिऐटिक सागर एवं यूनान तथा टर्की के मध्य इजिऐन सागर। इसी प्रकार इसमें कई खाड़ियाँ भी हैं। इस सागर की उत्पत्ति तृतीय महाकल्प (Tertiary era) में हुई थी, जबकि दक्षिण यूरोप की नवीन पर्वतश्रेणियों का निर्माण हुआ। इस कारण समुद्रतटीय भागों में भूकंप आया करते हैं। ज्वालामुखी पर्वतों की पेटी पूर्व से पश्चिम को चली गई है। सागर के पश्चिम का जल पूर्व के जल से कुछ ठंडा तथा स्वच्छ रहता है, एवं पूर्व का जल पश्चिम की अपेक्षा अधिक क्षारीय है। पश्चिमी भाग के जल की सतह का ऊपरी ताप लगभग 11.70 सें. तथा पूर्वी भाग के जल की सतह का ताप फरवरी में 170 सें. से अगस्त में लगभग 270 सें0. के बीच रहता हैं। काला सागर के मीठे पानी के कारण निकटवर्ती समुद्र का खारापन कम है। इसमें गिरने वाली नदियों में एब्रों, रोन, सोन, डूरांस, आर्नो, टाइबर, बेल्टूर्नी, पो, वारडार, स्ट्रूमा एवं नील आदि प्रमुख हैं। इसके समीपवर्ती भागों में लंब, गरम, शुष्क तथा स्वच्छ गरमियाँ एवं छोटी, ठंडी तथा नम सर्दियाँ रहती हैं। यद्यपि भूपध्यसागर प्राचीन काल से ही व्यापारिक महत्व का रहा है, तथापि 1868 ई. में स्वेज नहर के खुल जाने के कारण यह एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय व्यापारिक मार्ग बन गया है।

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