भूटान

Submitted by Hindi on Sat, 07/23/2011 - 12:15
राधिकानारायण माथुर
भूटान स्थिति : 26 45’ से 28 30’ उ. अ. तथा 88 45’ से 92 15’ पू. दे.। हिमालय पर्वत प्रदेश में स्थित स्वतंत्र राष्ट्र है जिसके उत्तर में तिब्बत तथा दक्षिण एवं पूर्व में भारत स्थित है। सन्‌ 1946 की भारत-भूटान संधि द्वारा भूटान भारत से संबंधित है। इसका क्षेत्रफल 50,000 वर्ग किमी. (18,000 वर्ग मील) है।

प्राकृतिक बनावट - यह अत्यंत उँचे एवं उबड़ खाबड़ क्षेत्र में स्थित है। भूमि की ढाल मुख्यत: उत्तर से दक्षिण को है। उत्तर दक्षिण को फैली हुई पर्वतश्रेणियाँ नदी घाटियों द्वारा एक दूसरे से पृथक होती है। आमो नदी चुंबी घाटी में, बुंग नदी पारो जोंग घाटी में तथा मो नदी पुनाखा घाटी में बहती है। देश की सबसे बड़ी नदी मानस है।

जनसंख्या - पारो नगर शीतकालीन तथा थिंपू ग्रीष्मकालीन राजधानियाँ हैं। अधिकांश निवासी बौद्ध धर्मावलंबी हैं। यहाँ के लोगों को भोटिया या भूटानी कहते हैं जो मंगोलकल्प प्रजाति के हैं। यहाँ तिब्बती भाषा बोली जाती है।

जलवायु - देश की जलवायु में स्थान-स्थान पर अंतर मिलता है। दक्षिण के निचले पर्वतीय पादप्रदेश में औसत वार्षिक वर्षा 500 से 635 सेंमी. होती है। इस भाग के सघन वनों में वर्षाकालीन ताप अत्यंत ऊँचा रहता है। देश के मध्यवर्ती भाग में वर्षा साधारण है जबकि उत्तर के अधिक ऊँचे भागों में अति ठंडी एवं सूखी जलवायु मिलती है।

वनस्पति एवं जीवजंतु - भूटान का लगभग एक तिहाई भाग वनाच्छादित है। 1,500 मीटर तक की ऊँचाई पर चौड़ी पत्ती वाले वन मिलते है, जब कि इससे ऊपर चीड़, स्प्रूस, लार्च, बांज, बीच, भूर्ज, ऐश, मैपिल, साईप्रस, फर इत्यादि वृक्ष उगते हैं। देश में जीव जंतुओं की भी भरमार है, जैसे, निचले भागों में हाथी, तेंदुआ, बाघ, चीता, सांभर, गेंडा, हरिण तथा रीछ और ऊँचे भागों में हिम मृग तथा कस्तूरी मृग आदि। यहाँ घोड़े भी मिलते हैं। निवासियों की अहिंसक प्रकृति भी जीव जंतुओं की वृद्धि में सहायक है।

कृषि - समतल भूमि के अभाव में कृषि सीढ़ीनुमा खेत बनाकर की जाती है। नदियों की उपजाऊ घाटियों में यह उद्यम अधिक महत्वपूर्ण है और यहाँ सिंचाई के कृत्रिम साधनों का भी समुचित प्रबंध है। धान मक्का, गेहूँ, जौ, शाक, इलायची, अखरोट एवं संतरे की उपजें महत्वपूर्ण है।

खनिज संपत्ति - कुछ समय पूर्व से ही भारतीय भूगर्भवेत्ताओं के अन्वेषणों के फलस्वरूप देश में कोयला, ताँबा, डोलामाईट, जिप्सम, कच्चा लोहा, ग्रेफाइट एवं अभ्रक के भंडारों की उपस्थिति का पता चला है और इनको खोदकर निकालने का कार्य आरंभ हो गया है। वैसे कई शताब्दियों से ही यहाँ प्राप्त चाँदी एवं लोहा खनिजों का उपयोग कलात्मक वस्तुओं के निर्माण में होता रहा है।

आर्थिक स्थिति एवं उद्योग धंधे - भूटान की अर्थव्यवस्था अभी तक प्रारंभिक स्तर पर ही है। अधिकांश निवासी कृषि एवं पशुपालन द्वारा जीवन निर्वाह करते हैं। कुछ लोग शिल्पकला में भी संलग्न हैं और चाँदी, पीतल, काँसा, ताँबा, तथा लोहे की कलात्मक वस्तुएँ, तलवार इत्यादि बनाते हैं। सूती, ऊनी, एवं रेशमी वस्त्रों की बुनाई तथा कढ़ाई लकड़ी पर नकाशी, काष्ठ एवं चमड़े का सामान, बेंत की टोकरियाँ, चटाइयाँ इत्यादि बनाने का काम भी महत्वपूर्ण है। चावल, जौ एवं बाजरे से चौंग नामक मदिरा तथा डफनी नामक जंगली पौधे से कागज बनता है। व्यापार में मुद्रा के स्थान पर अदल बदल की प्रथा अधिक प्रचलित है

यातायात के साधन - अब तक पर्यटन पैदल अथवा खच्चरों पर होता था तथा सामान कुली, खच्चर अथवा याक ले जाते थे, परंतु 1962 ई0 में भारत सरकार द्वारा निर्मित सड़क मार्ग पारो नगर एवं भारत के मध्य आधुनिक यातायात की सुविधा प्रदान करती है। देश में तार एवं टेलीफोन लगाने का प्रबंध हो गया है।

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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