यूं तो पूरा विश्व जल संकट से प्रभावित है, लेकिन एशिया और अफ्रीका के देश जल संकट के सबसे भयानक दौर से गुजर रहे हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार दुनिया भर के करीब 2 बिलियन लोग प्रदूषित पानी पीते हैं, जबकि भारत सहित साउथ-ईस्ट एशिया के देशों के 630 मिलियन लोग प्रदूषित जल स्रोतों से पानी पी रहे हैं। जल प्रदूषण के मामले में भारत की स्थिति काफी खराब है, तो वहीं चीन भी जल प्रदूषण से जूझ रहा है। दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियां भी इंडोनेशिया, भारत और चीन में ही हैं। भारत में फ्लोराइडयुक्त प्रदूषित जल पंजाब और हरियाणा में कैंसर का मुख्य कारण है। तो वहीं उत्तर प्रदेश, बिहार और राजस्थान सहित देश के विभिन्न स्थानों पर आर्सेनिकयुक्त पानी भी विभिन्न बीमारियों का कारण बन रहा है।
सुरक्षा की दृष्टि से विश्व स्वास्थ्य संगठन ने जल में आर्सेनिक की अधिकतम मात्रा निर्धारित की है। डब्ल्यूएचओ ने प्रति लीटर पानी में आर्सेनिक की 10 माइक्रोग्राम सांद्रता निर्धारित की है, लेकिन देश के आर्सेनिक प्रभावित इलाकों में बिहार देश का तीसरा सबसे बड़ा राज्य है। बिहार के 18 जिलों के 61 अंचलों में पानी में आर्सेनिक की मात्रा निर्धारित मानकों से अधिक पाई गई है। वैसे तो आर्सेनिक एक उपधातु है, जो अघुलनशील होती है और प्रचूर मात्रा में पाई जाती है। ये प्रायः विषैले होते हैं। आर्सेनिक प्रदूषित जल के उपयोग से चर्म रोग, चर्म कैंसर, यकृत, फेफड़े, गुर्दे एवं रक्त विकार संबंधी रोगों के अलावा हाइपर केरोटोसिस, काला पांव, मायोकॉर्डियल, स्थानिक अरक्तता (इस्कैमिया) आदि होने का खतरा होता है।
भारत में आर्सेनिक प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर के शोधों में कई बार इसका ज़िक्र भी किया गया है। भारत के एक अध्ययन पेपर ‘‘ग्राउंडवाटर आर्सेनिक कंटैमिनेशन इन इंडियाः वल्नेरेबिलिटी एंड स्कोप फाॅर रेमेडी’’ में भी इस बात का ज़िक्र किया गया है। अध्ययन के अनुसार पश्चिम बंगाल, झारखंड, बिहार, उत्तर प्रदेश, असम और मणिपुर में पानी में आर्सेनिक पाया गया है। इस राज्यों में उन स्थानों पर जहां ब्रह्मपुत्र और इम्फाल नदी के कारण बाढ़ आती है, यानी इन नदियों के बाढ़ वाले मैदानों में, और छत्तीसगढ़ राजनांदगांव में आर्सेनिक से दूषित नलकूप पाए गए थे। स्विस फेडरल इंस्टीट्यूट ऑफ एक्वाटिक साइंस एंड टेक्नोलॉजी के शोधकर्ताओं ने आर्सेनिक के खतरे के स्तर पर प्रकाश डालने वाला एक वैश्विक मानचित्र तैयार किया है। ये अध्ययन साइंस नाम की एक पत्रिका में प्रकाशित भी हुआ है।
इस काम को करने के लिए 80 से अधिक अध्ययनों के आंकड़ों को एकत्रित किया गया। इसके बाद लर्निंग एल्गोरिदम मशीन का उपयोग किया गया। इस मैप को बनाने के लिए आर्सेनिक के खतरे के स्तर को दर्शाने के लिए पूर्वानुमानों का उपयोग किया है। इस पूरे नक्शे से, जो कि आप साइंस पत्रिका में देख सकते हैं, पता चलता है कि एशियाई देशों का 94 प्रतिशत भूजल आर्सेनिक से दूषित है। ये वास्तव में एक बड़े खतरे का संकेत है, जिसके समाधान के शासन, प्रशासन और जनता को युद्धस्तर पर कार्य करने की जरूरत है।
हिमांशु भट्ट (8057170025)
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