चावल पर चौकन्ना होना जरूरी

Submitted by Hindi on Wed, 08/31/2011 - 19:25
दुनिया की आबादी बढ़ेगी तो भूख बढ़ेगी। भूख मिटाने के लिए चावल चाहिए होगा, लेकिन आबादी के हिसाब से चावल का उत्पादन बढ़ेगा क्या? इस सवाल का जवाब अभी खोजना जरूरी है। अगले पांच साल में सिंगापुर चावल के रिसर्च पर 82 लाख डॉलर का निवेश करने की योजना बना रहा है। इस रिसर्च का मकसद भविष्य में सबके लिए अनाज सुनिश्चित करना है। उम्मीद की जा रही है कि यह कदम दूसरे मुल्कों के लिए भी प्रेरणादायक साबित होगा। फ़िलीपींस के इंटरनेशनल राइस इंस्टीट्यूट ने इस निवेश के बारे में ऐलान किया है। नेशनल यूनिवर्सिटी ऑफ़ सिंगापुर और तेमासेक लाइफ़ साइंस लैबोरेट्री मिलकर यह रिसर्च करेंगे। इंस्टीट्यूट के मुताबिक एशिया के किसानों को आने वाले समय में काफ़ी मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है, खासतौर पर चावल उगाने किसानों को बदलते मौसम के हिसाब से खुद को ढालना होगा। रिसर्च का यह कार्यक्रम चावल की ऐसी नयी प्रजातियों के विकास पर केंद्रित होगा जिसमें बीमारियों से बचाव की ताकत होगी।

साथ ही धान की फ़सल को कम से कम चीजों की जरूरत के लिए तैयार किया जायेगा। मसलन, उसे पानी या खाद की जरूरत कम से कम पड़े। विशेषज्ञों का कहना है कि भविष्य में जरूरतें तेजी से बढ़ने वाली हैं। ऐसे में किसानों को ऐसी प्रजातियाँ उपलब्ध करानी होंगी जिनसे कम जगह में कम लागत से ज्यादा उत्पादन संभव हो। इंस्टीट्यूट के उप महानिदेशक ओखम डोबरमान ने बताया, ‘हमें खुशी है कि सिंगापुर चावल पर रिसर्च के लीडर के तौर पर उभर रहा है।’ एफ़एओ के 1995 के आंकड़ों के मुताबिक एशिया में 14 करोड़ हेक्टेयर जमीन पर चावल की खेती होती है। पूरी दुनिया के आधे से ज्यादा लोगों के लिए चावल मुख्य भोजन है। पूरी दुनिया के कुल उत्पादन का 90 फ़ीसदी एशिया पैसिफ़िक क्षेत्र में पैदा होता है। हालांकि, बीते दशक में जिन देशों में मध्य वर्ग का विस्तार हुआ है, वहां चावल के उपभोग में कमी आयी है। आज भी एशिया की एक चौथाई से ज्यादा आबादी गरीब है। चावल ही उसका मुख्य भोजन है। इस जनसंख्या के बीच चावल की मांग भविष्य में तेजी से बढ़ेगी। एशिया की आबादी लगभग दो फ़ीसदी सालाना के हिसाब से बढ़ रही है। विशेषज्ञों का कहना है कि अगली सदी से पहले आबादी स्थिर नहीं होगी। फ़ूड एंड एग्रीकल्चर ऑर्गनाइजेशन की रिपोर्ट के मुताबिक 2025 तक एशिया की आबादी आधे से ज्यादा बढ़ चुकी होगी।

मौसम में हो रहे बदलाव की वजह से चावल उत्पादन पर भारी असर होने की आशंका जाहिर की जा रही है। साथ ही बढ़ती मांग भी एक चुनौती होगी। अमेरिका, फ़िलीपींस और यूएन की संस्था एफ़एओ के शोध में एशिया के छह सबसे अहम चावल पैदा करने वाले देशों के 227 खेतों का अध्ययन किया गया। चीन, भारत, इंडोनेशिया, फ़िलीपींस, थाईलैंड और वियतनाम में हुए इस शोध में पता चला कि पिछले 25 साल में इन देशों में तापमान की बढ़ोतरी की वजह से चावल के उत्पादन में 10 से 20 फ़ीसदी की कमी आयी है।इंटरनेशनल राइस इंस्टीट्यूट के मुताबिक अब दुनिया को हर साल लगभग एक करोड़ टन ज्यादा चावल उत्पादन की जरूरत है, ताकि कम कीमतों पर सभी को चावल उपलब्ध कराया जा सके।

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