चूना

Submitted by Hindi on Thu, 08/11/2011 - 15:28
चूना कैलसियम का ऑक्साइड है और प्रकृतिक में असंयुक्त नहीं पाया जाता। इसके लवण, कैलसियम कार्बोनेट और कैलसियम सल्फेट, प्रचुरता से पाए जाते हैं। गृहनिर्माण में जोड़ाई के लिये प्रयुक्त होनेवली वस्तुओं में यह प्राचीनतम है, किंतु अब इसका स्थान पोर्टलैंड सीमेंट लेता जा रहा है। चूने का निम्नलिखित दो प्रमुख भागों में विभक्त किया गया है :

1. साधारण चूना या केवल चूना, 2. जल चूना (Hydrauliclime)।

1.

साधारण चूना 


इस चूने में कैलसियम की मात्रा अधिक और अम्ल में अविलेय पदार्थ छ: प्रतिशत के लगभग रहता है। कैलसियम 71.43 प्रतिशत ओर ऑक्सिजन 28.57 प्रतिशत रहते हैं। चूनापत्थर, खड़िया या सीप को जलाकर यह चूना बनाया जाता है (देखें चूने का भट्ठा) यह पानी से जमता नहीं है। इस प्रकार प्रस्तुत चूना सफेद, अमणिभीय होता है। पानी में बुझाए जाने पर फूटता नहीं, केवल फूलता ओर चूर चूर हो जाता तथा साथ ही पर्याप्त मात्रा में उष्मा देता है। ऐसा बुझा हुआ चूना जलीयित या बुझा चूना कहलाता है। चूने को बुझाने की एक रीति यह है कि एक नाँद में एक फुट ऊँचाई तक चूना भरकर उसमें तीन फुट तक पानी भर देते हैं। 24 घंटे या अधिक समय तक अर्थात्‌ जब तक यह पूरा बुझ न जाए, इसे ऐसे ही छोड़ देते हैं। बुझ जाने के बाद इसे प्रतिवर्ग इंच 12 छिद्रवाली चलनी से छान लेना चाहिए।

शुद्ध चूने के गारे में हवा का कार्बन डाइऑक्साइड संयुक्त होकर कैलसियम कार्बोनेट बनाता है, जिससे यह जमता और कठोर हो जाता है। मोटी दीवार बनाने में इसका उपयोग नहीं किया जा सकता, क्योंकि आंतरिक भागवाले चूने को कैलसियम कार्बोनेट में परिवर्तितहोने के लिये कार्बन डाइऑक्साइड पर्याप्त मात्रा में प्राप्त नहीं होता। इस कारण ऐसा गारा ईटों को ठीक से जोड़ता नहीं। भीतरी दीवारों पर पतला पलस्तर करने और पतली दीवारों की जुड़ाई के लिये ही यह उपयुक्त होता है।

चूने में दानेदार बालू मिला देने से इसके जोड़ने के गुण में वृद्धि हो जाती है। इससे वायु के प्रवेश के लिये पर्याप्त रिक्त स्थान प्राप्त होता है। सीमेंट और चूने का गारा भी काम में लाया जाता है। चूने से संकोचन और दरारें कम होती और चार भाग सीमेंट में एक भाग चूना मिलाने से बिना दृढ़ता कम किए व्यवहार्यता बढ़ जाती है। गारे में 1 भाग सीमेंट, 3 भाग बालू के स्थान पर 1 भाग सीमेंट 1 भाग चूना 6 भाग बालू रहना अच्छा है। चूने में सूर्खी मिलाने और चक्की में पीसने के इसकी जलदृढ़ता (hydraulicity) बढ़ जाती है। ऐसा चूना उत्तर प्रदेश के देहरादून और मध्य प्रदेश के सतना में अधिकांश पाया जाता है।

2.

जल-चूना 


यह चूना बड़ी मात्रा में कंकड़ या मिट्टी युक्त चूनापत्थर का जलाकर बनाया जाता है। 7 से लेकर 30 दिनों तक में पानी के अंदर जमनेवाले चूने का जल-चूना कहते हैं। पानी में जमने के समय के आधार पर इसे मंद जल, मध्यम जल और उत्तम जल चूना कहते हैं। चूने में 5 से 30 प्रतिशत मिट्टी रह सकती है और इसी की मात्रा पर जमना निर्भर करता है। चूने में मिट्टी की मात्रा की वृद्धि से बुझने की क्रिया मंद होती है और जल दृढ़ता गुण बढ़ता है। जल चूने में सिलिका, ऐल्यूमिना और लौहआक्साइड अपद्रव्य के रूप में रहते हैं जो चूने के साथ संयुक्त होकर जल के अंदर जमने और कठोर होनेवाले यौगिक बनाते हैं। जल चूने को उपयोग में लाने से ठीक पहले बुझाना चाहिए, तैयार होने के तुरंत बाद ही नहीं। पानी के अंदर तथा उन स्थानों पर जहाँ दृढ़ता आवश्यक है, ऐसे चूने का उपयोग होता है।जलाकर चूना बनाने के लिये आवश्यक कंकड़ उत्तर भारत के मैदानी भागों में सतह से कुछ फुट नीचे पाए जाते हैं। (जय कृन)

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