च्युइंगम का बाजार वैश्विक स्तर पर फैला हुआ है। हम सभी इसे खाते भी हैं और स्वच्छ भारत की बात करते करते सड़क पर फेंक भी देते हैं। कई बच्चे तो अज्ञानता के अभाव में इसे निगल लेते हैं, जबकि कुछ लोग कागज में लपेटकर च्युइंगम को कचरे में फेंक देते हैं, लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि च्युइंगम से घर बनाने के लिए ब्रिक्स भी बनाई जा सकती हैं, तो वहीं पूरे विश्व के सामने परेशानी बने औद्योगिक कचरे का उपयोग भी ब्रिक्स (ईंट) बनाने के लिए किया जा सकता है। गुजरात के वालसाड के रहने वाले बिनिश देसाई ने ऐसा कर दिखाया है। उन्होंने न केवल ऐसा अनोखा और सफल उपयोग कर नई इबारत लिखी, बल्कि 16 वर्ष की उम्र में खुद की कंपनी खोलकर पूरी दुनिया के लिए मिसाल बन गए हैं। वे अभी तक 700 टन से अधिक औद्योगिक कचरे का पुनर्चक्रण कर चुके हैं।
बिनिश देसाई एक समाजसेवी परिवार से ताल्लुक रखते हैं। उनके दादा भी सामाजिक कार्यकर्ता ही थे। उन्हीं के आदर्शों से बिनिश को पर्यावरण और लोगों का भला करने की प्रेरणा मिलती है। साथ ही वे बचपन से ही पर्यावरण संरक्षण के प्रति काफी जागरुक तथा रचनात्मक हैं। इसका अंदाजा बचपन में हुए एक वाक्या से लगाया जा सकता है, जब बिनिश कक्षा छह के छात्र थे। एक दफा वे कक्षा में बैठकर च्युइंगम चबा रहे थे। तभी अचानक अध्यापक आ गए। बिनिश ने च्युइंगम चबाना रोक दिया, हांलाकि उन्हें फेंकने की जगह नहीं मिली। इसी बीच अध्यापक पढ़ाना शुरू कर चुके थे। तभी बिनिश को एक तरकीब सूझी। उन्होंने च्युइंगम को कागज के टुकड़े में लपेटकर इस उद्देश्य से पैंट की जेब में रख लिया कि, बाद में कूड़ेदान में फेंक देंगे, लेकिन उसे फेंकना भूल गए। शाम को घर पहुंचने के बाद च्युइंगम की याद आई। जेब से च्युइंगम बाहर निकाली तो उस पर कागज चिपकने से वो काफी कठोर हो गई थी। ये देखकर बिनिश सोच में पड गए कि आखिर इसका अब क्या करना है। यहां उनके रचनात्मक दिमाग में कुछ अनोखा सूझा और उन्होंने पहली बार पी-ब्लाॅक ईंट का प्रोटोटाइप बनाया। इसके बाद वे कागज और च्युइंगम से बनी ईंटों पर लगातार प्रयोग करते रहे। उन्होंने च्युइंगम को एक ऑर्गेनिक बाइंडर के साथ बदल दिया और इसी पूरी प्रक्रिया को काफी परिष्कृत किया। आखिर में 16 वर्ष की उम्र में अपनी कंपनी की नींव रखी। कंपनी का उद्देश्य था, ठोस व औद्योगिक कचरे से ईंट बनाना।
अपने उद्देश्य को बिनिश ने कई उद्योगपतियों के साथ साझा किया, लेकिन पेपर वेस्ट देने के लिए उद्योगपतियों को मनाना काफी मुश्किल था। बिनिश ने जैसे तैसे उद्योगपतियों को रा़जी किया और फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपने इस काम के साथ ही उन्होंने 12वी की। पर्यावरण इंजीनियरिंग में स्नातकोत्तर की डिग्री तथा पर्यावरण विज्ञान और प्रौद्योगिकी में पीएचडी की मानद उपाधि प्राप्त की। वर्ष 2016 में इको-इलेक्ट्रिक टेक्नोलाॅजी की स्थापना की। इसका उद्देश्य लैंडफिल से औद्योगिक कचरे को मुक्त करना है। बिनिश का मानना है कि उद्योगों से रोजाना सैंकड़ों टन कचरा निकलता है, जिसे लैंडफिल में डाल दिया जाता है। इसलिए भारत सही मायने में तभी स्वच्छ हो सकता है, जब इस कचरे को लैंडफिल में फेंकने के बजाए स्थायी रूप से उपयोग में लाया जाए। इसके लिए वे ऐसी तकनीक बना रहे है जिससे औद्योगिक कचरे को पुनर्चक्रित कर टिकाऊ निर्माण सामग्री बनाई जा सके। सीएसआर के तहत औद्योगिक कचरे से बनी इन ईंटों से वे गुजरात, महराष्ट्र और हैदराबाद के ग्रामीण इलाकों में एक हजार से अधिक शौचालय बनवा चुके हैं। हांलाकि बीच मे ईंटों की मजबती को लेकर भी सवाल खड़े होने लगे थी, लेकिन ये पी-ब्लाॅक्स ईंटे अग्निरोधी, कीट प्रतिरोधी, भूकंप संभावित क्षेत्रों के लिए उपयुक्त, पर्यावरण के अनुकूल तथा कम लागत की हैं। साथ ही इन्हें लकड़ी, सीमेंट और कंक्रीट के विकल्प के रूप में भी उपयोग में लाया जा सकता है। ईंट के बाद बिनिश ने लाइट्स नाम से उत्पाद बाजार में पेश किया।
अपने उद्यम में महिलाओं को कौशल प्रशिक्षण दिया और महिलाओं के लिए रोजगार का रास्ता खोला। उद्योगपतियों और लोगों से मिल रहे सहयोग से उन्होंने लगन से काम किया और रुके नहीं। लाइट्स के बाद भी उन्होंने कई उत्पाद बाजार में उतारे, जो पयौवरण के अनुकूल होने के कारण लोगों को काफी पसंद भी आए। आज उनके उद्यम के करीब 150 उत्पाद बाजार में मौजूद हैं। यहां तक पहुंचने के लिए वे अभी तब करीब 700 टन औद्योगिक कचरे का पुनर्चक्रण कर चुके हैं। इसके अलावा बिनिश ने कचरा पुनर्चक्रण से संबंधी पाठ्यक्रम भी छात्रों के लिए तैयार किया है। साथ ही वे स्कूल और काॅलेजों में आयोजित विभिन्न सेमिनारों के माध्यम से वेस्ट मैनेजमेंट के मुद्दों और समाधान के प्रति जागरुक करते हैं। वर्तमान में उनका एक छात्र इंसान के बाल से फैब्रिक्स बनाने का प्रयास कर रहा है। बिनिश देसाई का नाम पद्श्री के लिए भी नामित किया जा चुका है। उनका ऑफिस इस बात का प्रमाण है कि इंसान यदि चाहे तो दफ्तर, घर आदि पर्यावरण के अनुरूप बनाकर प्रकृति को संरक्षित कर सकता है। बिनिश का मानना है कि स्वच्छ भारत अभियान का मकसद केवल सड़कों को साफ करना और खुले में शौच न करना ही नहीं है, बल्कि कूड़ें को लैंडफिल में फेंकने के बजाए इसका पुनर्चक्रण कर उपयोग में लाया जाना चाहिए। इससे देश को कचरे के भंडार से निजात मिलेगी।
लेखक - हिमांशु भट्ट (8057170025)
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