छोटा नागपुर

Submitted by Hindi on Thu, 08/11/2011 - 16:52
छोटा नागपुर बिहार राज्य का प्रमुख् अंग, राज्य के दक्षिण और दक्षिण-पूर्व में स्थित है। इसके पूर्व में पश्चिमी बंगाल के मेदिनीपुर बाँकुड़ा और पुरुलिया जिले, दक्षिण में उड़िसा और मध्य प्रदेश के जिले, पश्चिम में उत्तर प्रदेश का मिरजापुर जिला और उत्तर में दक्षिण बिहार का मैदान है। इसका आकार आयाताकार एवं क्षेत्रफल 20,069 वर्ग मील है। इसके समस्त क्षेत्रफल का 38 प्रतिशत अर्थात्‌ 7,600 वर्ग मील जंगलों से भरा हुआ है। इनमें गिरिडीह और धनबाद के क्षुपों (shrubs) के जंगलों से लेकर सिंहभूम के विशाल साल वृक्षों तक के जंगल हैं। यहाँ का साल उत्कृष्ट कोटि का होता है। छोटा नागपुर का समस्त क्षेत्रफल पहाड़ियों, पठारों और घाटियों से भरा पड़ा है। पश्चिमी बंगाल के निकट ऊँचाई 700 फुट से लेकर औसत ऊँचाई 3,500 फुट है। इसकी महत्तम ऊँचाई पर जैनियों का तीर्थस्थान, पारसनाथ या पार्श्वनाथ मंदिर है। पारसनाथ की पहाड़ी समुद्रतल से 4,500 फुट ऊँची है। इस क्षेत्र का पानी उत्तरी कोयल नदी द्वारा उड़ीसा के बैतरणी में तथा सुवर्णरेखा और संजई नदियों द्वारा बर्दवान जिले की हुगली नदी में गिरता है। इसकी घाटियों में अनेक जलप्रपात हैं जिनके सूर्योदय और सूर्यास्त के दृश्य बड़े ही मनोरम होते हैं। इन्हीं को देखकर कैप्टेन फ्रैंक्लिन ने कहा था कि ''सौंदर्य में पंचमढ़ी के दृश्य भी इनकी बराबरी नहीं कर सकते''। छोटा नागपुर होकर ही ग्रैंड ट्रंक रोड जाती है।

छोटा नागपुर के पेड़ पौधों का अनेक वैज्ञानिकों ने, जिनमें क्लार्क (Clark), कैंपबेल (Campbell), रेवरेंड कार्डन (Cordon), सर जे.डी. हूकर (Hooker) और वनसंरक्षक एच.एच. हेनिस (Haenis) के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं, अध्ययन और संग्रह किया था। यहाँ के पेड़ पौधों में कुछ ऐसे पेड़ पौधे मिले हैं जो बहुत विरल जाति के हैं। यहाँ पेड़ पौधों के बाहुल्य से प्राय: सभी प्रभावित हुए थे, यद्यपि पारसनाथ पर पाए जानेवाले पेड़ पौधों से कुछ निराशा हुई थी। पारसनाथ पहाड़ी पर कुछ ऐसी विशिष्ट जातियाँ मिली थीं, जैसे पाइजीनस ऐंडरसोनी (Pygenun andersonie), बरबरिस एशिऐटिका (Berberis asiatica) और कैलैनकोई हेट्रोफाइटा (Kalanchoe heterophyta), जो गंजाम जिले के महेंद्रगिरि पर्वत और प्रायद्वीपीय स्थानों का छोड़कर अन्य कहीं नहीं पाई जातीं। यह आश्चर्यजनक है कि हिमालय पर्वत, नील गिरि और पालनी पहाड़ियों पर 6,000 फुट की ऊँचाई पर पाए जानेवाले पौधे यहाँ 2,500 फुट की ऊँचाई पर ही पाए जाते हैं।

यहाँ के पक्षियों का अध्ययन पहले पहल मेजर फ्रैंक्लिन ने 1831 ई. में और बद में कैप्टन बीवान (Beavan) और कर्नल टिकेल (Tickell) ने किया या। इनका बड़े विस्तार से अध्ययन भारत के भूगर्भ सर्वेक्षण विभाग के वी.बॉल (V. Ball) ने दस वर्षों तक, (1864-1874 ई.) किया था और पता लगाया था कि लगभग 400 जातियों के पक्षी यहाँ पाए जाते हैं, यद्यपि उन्होंने जलपक्षियों का बहुत कुछ अभाव पाया। दामोदर घाटी योजना में बाँधों के बँध जाने और बड़े बड़े जलाशयें के हो जाने से आशा की जाती है कि भविष्य में जलपक्षियों का भी यहाँ बाहुल्य हे जायगा। यहाँ के पक्षियों में मालावॉर श्रृंगालकंठी कस्तूरिका (Malavar thistling thrush), वल्गुली (tit), ककर (sand grouse), शलभास (fly catcher), हरिवर्षश्वेत कोकिल (European cuckoo) तथा मैना (myna or grackle) महत्व के हैं।

स्तनियों में पहाड़ी बकरी यहाँ नहीं पाई जाती। इसके जंगलों में चीता, बाघ, शार्दूल (Leopard), भालू, सियार पहले बहुतायत से देखे जाते थे, पर अब उतने नहीं देखे जाते। संभवत: आबादी बढ़ जाने से ये अब घने जंगलों में छिप गए हैं और बहुत कुछ शिकारियों द्वारा मार दिए गए हैं।

छोटा नागपुर को भारत की शिल्पशाला (Workshop) कहा जाता है और यथार्थ में यह है भी, क्योंकि शिल्पशाला के लिए बिजली, कोयला और लोहा अत्यावश्यक वस्तुएँ यहाँ हैं। इन तीनों का यहाँ बाहुल्य है। भारत का अधिकांश कोयला यहाँ की खानों से ही निकलता है और वह कोयला उत्कृष्ट कोटि का होता है। जल से अब जलविद्युत्‌ का उत्पादन बहुत बड़े परिमाण में हो रहा है। लोहे के खनिज का विशाल भंडार यहाँ पड़ा है और उससे जमशेदपुर के टाटा के लोहे का कारखाना 50 से अधिक वर्षों से चल रहा है। दूसरा बहुत बड़ा कारखाना बोकारों में रूस के सहयोग से खुल रहा है। लोहे के खनिज के अतिरिक्त यहाँ क्रोमियम, मैंगनीज, ताँबा तथा सीस के खनिज, चूना पत्थर और सीमेंट बनाने के सामान, ऐस्बेस्टस, चीनी मिट्टी (केओलीन) बड़े महत्व के खनिज मिलते हैं। यहाँ का अभ्रक संसार में प्रसिद्ध है। ऐसा उत्कृष्ट अभ्रक अन्य किसी स्थान में नहीं पाया जाता। यहाँ रेडियम और यूरेनियम के रेडियोधर्मी खनिज भी प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। खनिज के भंडार की दृष्टि से छोटा नागपुर बड़ा समृद्धशाली क्षेत्र है। जैसे-जैसे सर्वेक्षण हो रहा है, वैसे वैस अधिकाधिक मात्रा में खनिज पाए जा रहे हैं ओर उन्हें निकालकर काम में लाने का प्रयत्न हो रहा है।

भारत की दो प्रमुख राष्ट्रीय प्रयोगशालाएँ, एक ईधंन अनुसंधान राष्ट्रीय प्रयोगशाला धनबाद के निकट और दूसरी धातुनिर्माण अनुसंधान राष्ट्रीय प्रयोगशाला जमशेदपुर में स्थित है। लाख अनुसंधान की एकमात्रा प्रयोगशाला राँची के निकट नामकुम में स्थित है, जिसमें लाख के संबंध में बड़े महत्व के अनुसंधान हुए और हो रहे हैं। लाख उत्पादन में भारत में छोटा नागपुर का स्थान प्रथम है। यहाँ के जंगलों के पेड़ों पर लाख उपजाया जाता है। यहाँ के जंगलों में बाँस भी बहुत बड़ी मात्रा में उत्पन्न होता है, जिससे लुगदी और कागज का निर्माण डालमियाँ नगर के कारखाने में हो रहा है। जंगलों की लकड़ी से भी यांत्रिक लुगदी बनती है, जो सस्ते कागजों के निर्माण में प्रयुक्त होती है।

छोटा नागपुर में अनेक कारखाने खुले हैं और नए नए खुल रहे हैं, जिनमें लाखों व्यक्ति आज काम कर रहे हैं। ऐसे कारखानों में जमशेदपुर का लोहे का कारखाना, सिंदरी का नाइट्रोजन खाद निर्माण का कारखाना तथा फॉस्फेट खाद के निर्माण का कारखाना, राँची में भारी इंजीनियरी सामान निर्माण का कारखाना, जपला का सीमेंट का कारखाना, गोमिय में विस्फोटक पदार्थों के निर्माण का कारखाना जमशेदपुर में ताँबा निकालने का कारखाना, केओलीन से ऐल्युमिनियम निर्माण का कारखाना, बोकारों में कोयले से बिजली तैयार करने का कारखाना, तथा दामोदर घाटी योजना के अंतर्गत जल से जलविद्युत्‌ तैयार करने का कारखाना विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं।

छोटा नागपुर में हिंदू एवं मुसलमानों के अतिरिक्त पर्याप्त संख्या में आदिवासी बसते हैं। आदिवासियों के कई फिरके हैं, जिनकी अपनी अपनी बोली है और रस्मरिवाजों में पर्याप्त अंतर है। आदिवासियों की अपनी बोली तो है, पर उनकी अपनी कोई लिपि नहीं है। यूरोपीय पादरियों ने उनके लिए रोमन लिपि का प्रचार किया था और इसी लिपि में कुछ प्रारंभिक पुस्तकें लिखी थी, पर अब उनकी पुस्तकें नागरी लिपि में ही लिखी जा रही हैं। पर्याप्त संख्या में आदिवासी ईसाई हो गए हैं, पर अधिकांश अभी अपने रिवाजों और अपने देवी देवताओं को मनते हैं, जो हिंदुओं के रस्मरिवाजों और देवी-देवताओं से बहुत मिलता जुलता है। आदिवासियों में शिक्षितों की संख्या अभी बहुत कम है, यद्यपि स्वतंत्रता मिलने के बाद पाठशालाओं की संख्या बहुत अधिक बढ़ गई है। इनी आर्थिक अवस्था अब भी बहुत गिरी हुई है। (फूलदेवसहाय वर्मा)

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