छत्तीसगढ़ में उपलब्ध जल संसाधन और कृषि विकास (Available water resources and agricultural development in Chhattisgarh)

Submitted by Hindi on Sun, 08/13/2017 - 13:29
Source
भगीरथ, जनवरी-मार्च, 2010, केन्द्रीय जल आयोग, भारत

जल-चक्र को नियमित बनाये रखने के लिये वन विनाश को रोका जाये और वन क्षेत्र में रोपण किया जाये। पर्यावरण हितैषी प्रयासों से अवृष्टि, अतिवृष्टि और वर्षा जल के अंतराल को नियंत्रित किया जा सकता है। वर्षाजल के संरक्षण हेतु डबरी तकनीक अपनानी चाहिए। नलकूप, कुआँ निर्माण शासन द्वारा विभिन्न योजनायें चलायी जा रही हैं, जिनका लाभ किसानों तक पहुँचाने के लिये छत्तीसगढ़ शासन के कृषि विभाग में पृथक प्रकोष्ठ बनाया जाना चाहिए।

नये इरादों, नये वादों, नयी सोच और नई परिकल्पनाओं के साथ भारत के 26वें राज्य के रूप में छत्तीसगढ़ का निर्माण 1 नवम्बर 2000 को हुआ था। नये जोश, नयी उमंग के साथ आम आदमी का सोचना था कि छत्तीसगढ़ के निर्माण से विकास के मार्ग खुल जायेंगे। छत्तीसगढ़ प्राकृतिक संसाधनों का धनी है, यहाँ महानदी, अरपा, शिवनाथ, इंद्रावती जैसी नदियाँ हैं। गाँवों से लेकर शहरों तक तालाब हैं। कृषि के लिये तरह-तरह की भूमि और जलवायु है, फिर भी एक फसली क्षेत्र की प्रधानता है। महान दार्शनिक टालस्टाय ने लिखा है कि महानदी की रेत में हीरे पाये जाते हैं। हीरा, बाक्साइट, लौह अयस्क, कोयला, चूना, डोलोमाइट, टिन, कोरण्डम तथा क्वार्टजाइट जैसे खनिजों के दोहन से राजस्व की भारी राशि प्राप्त हो रही है। छत्तीसगढ़ में जल है, जंगल है, खनिज है- बस जरूरत है इन संसाधनों के दोहन की।

छत्तीसगढ़ जल संसाधनों का धनी है, सतही जल और भूजल होते हुए उनका समुचित दोहन नहीं किया जा रहा है। माड़म सिल्ली, दुधावा, सोंढूर, रविशंकर सागर जैसे जलाशय स्थित हैं छत्तीसगढ़ में। कुल 1567 सिंचाई जलाशय तथा 45 हजार से अधिक ग्रामीण तालाब हैं। यहाँ नलकूप और कुओं की संख्या हर वर्ष बढ़ती जा रही है, किन्तु समुचित ढंग से प्रबंधन नहीं किया जा रहा है। इस प्रदेश का कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 137 लाख हेक्टेयर है, जिसमें से केवल 47.54 लाख हेक्टेयर में विभिन्न फसलों की खेती की जाती है। छत्तीसगढ़ में सिंचाई का प्रतिशत केवल 23 है, किन्तु यहाँ सिंचाई के क्षेत्र में विसंगति है। जहाँ एक ओर धमतरी जिले में सिंचाई का प्रतिशत 55 से अधिक है, वहाँ दूसरी ओर कोरिया, सरगुजा, कोरबा, जशपुर, बस्तर और दंतेवाड़ा जिलों में सिंचाई का प्रतिशत 5 से भी कम है।

कृषि जोत एवं सिंचाई


छत्तीसगढ़ अर्थव्यवस्था की रीढ़ कृषि है। वर्ष 2001 की जनगणना के अनुसार छत्तीसगढ़ में किसानों की संख्या 34.88 लाख थी, जबकि भूमिहीन कृषि मजदूरों की संख्या 15.52 लाख थी। छत्तीसगढ़ शासन के भू अभिलेख विभाग से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार राज्य गठन के समय कुल 29.66 लाख कृषि जोतें थीं, जिनमें से 15.22 लाख जोतें (51 प्रतिशत) सीमांत थीं, जिनका औसत आकार केवल 0.22 हेक्टेयर था। लघु जोतों की संख्या 6.22 लाख (21 प्रतिशत) थी, जिनका औसत आकार 1.44 हेक्टेयर था। सीमित संसाधनों के कारण यहाँ के सीमांत किसान वर्ष में केवल एक ही फसल ले पाते हैं, जबकि लघु कृषक इतना खाद्यान्न उत्पादन कर लेते हैं कि उन्हें वर्ष भर के लिये वह पर्याप्त हो जाता है।

कृषि विकास के अपेक्षित लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये सिंचाई का क्षेत्र बढ़ाना आवश्यक है क्योंकि उन्नत कृषि तकनीक के अंगीकरण में सिंचाई महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है।

उपलब्ध जल क्षेत्र


छत्तीसगढ़ तालाबों का प्रदेश कहलाता है, जहाँ जलाशयों और तालाबों में 1.44 लाख हेक्टेयर जल क्षेत्र उपलब्ध रहता है।

सामूहिक उद्वहन योजना


सामूहिक उद्वहन योजना के अंतर्गत छत्तीसगढ़ के रायपुर जिले के चटौद तथा अन्य स्थानों पर अच्छी सफलता मिली है।

मनुष्यों, पशुओं और फसलों का जीवन पानी से जुड़ा है। कृषि उत्पादन वर्षाजल और सिंचाई जल से होता है। जल संसाधनों की उपयोगिता बढ़ाने के लिये निम्नलिखित प्रयास किये जाने चाहिए:-

1. छत्तीसगढ़ में अधिकांश क्षेत्र में नहरों द्वारा सिंचाई की जाती है, जहाँ जल का वितरण और नहरों का रख-रखाव ठीक तरीके से नहीं हो पा रहा है, जिसे तर्कसंगत और सुविधाजनक बनाने के लिये किसानों की भागीदारी सुनिश्चित की जानी चाहिए।
2. जल-चक्र को नियमित बनाये रखने के लिये वन विनाश को रोका जाये और वन क्षेत्र में रोपण किया जाये। पर्यावरण हितैषी प्रयासों से अवृष्टि, अतिवृष्टि और वर्षा जल के अंतराल को नियंत्रित किया जा सकता है।
3. वर्षाजल के संरक्षण हेतु डबरी तकनीक अपनानी चाहिए।
4. नलकूप, कुआँ निर्माण शासन द्वारा विभिन्न योजनायें चलायी जा रही हैं, जिनका लाभ किसानों तक पहुँचाने के लिये छत्तीसगढ़ शासन के कृषि विभाग में पृथक प्रकोष्ठ बनाया जाना चाहिए।

जल ही जीवन है। जल से ही समृद्धि और विकास है:


वन से बादल,
बादल से पानी।
पानी से हम
सबकी जिन्दगानी।।
जल से अन्न,
जल से विकास।
जल से समृद्धि,
जल में देवों का वास।।
जल सीमित है,
अतः बचाओ जल।
सुरक्षित होगा,
जिससे आज और कल।।


छत्तीसगढ़ में सामाजिक-आर्थिक विकास के संकेतकछत्तीसगढ़ में सिंचाई जलाशय, तालाब और उपलब्ध जलक्षेत्र

लेखक परिचय


डॉ. भागचन्द्र जैन
सह प्राध्यापक (कृषि अर्थशास्त्र), प्रचार अधिकारी, इंदिरा गांधी कृषि विश्वविद्यालय, कृषि महाविद्यालय, रायपुर-492006 छत्तीसगढ़