कूलिंग सिस्टम क्या है, और कैसे बने सस्टेनेबल भारत का कूलिंग सिस्टम

Submitted by Editorial Team on Sun, 06/12/2022 - 09:27
Source
04 Jun 2022, हस्तक्षेप, सहारा समय

कूलिंग सिस्टम ।फोटो -coolcoalition

इस साल जलवायु परिवर्तन के कारण गर्म हवाएं समय से पहले चलने लगीं। हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड तक में गर्म हवाओं की धमक महसूस की गई। नतीजा रहा कि मार्च महीना भारत के लिए 1101 के बाद का सबसे गर्म और 1101 के बाद का सबसे कम बारिश वाला महीना बन गया। इंटर–गवर्मंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) ने अपनी छठी मूल्यांकन रिपोर्ट में चेतावनी दी है कि धरती 1.5 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा गर्म होती है‚ तो पूरी दुनिया में गर्म हवाओं की दर और तीव्रता में इजाफा होगा। ऐसी स्थिति में ज्यादा समय तक गर्मी पड़ने और लोगों की आमदनी बढ़ने जैसे कारणों से भविष्य में कूलिंग उपकरणों खास तौर पर एसी की मांग तेज होने का अनुमान है।  

सवाल उठता है कि क्या कूलिंग उपकरणों की बढ़ती जरूरत ग्लोबल वार्मिगं और उसके कारण गर्म हवाओं जैसी मौसम की चरम घटनाओं को बढ़ा सकती हैॽ कूलिंग सेक्टर को प्रत्यक्ष/अप्रत्यक्ष रूप से हाइड्रोफ्लोरोकार्बन को ग्रीन हाउस गैसों के उत्सर्जन का बड़ा स्रोत माना जाता है। अब अगर भारत में एसी की मांग को देखें तो इसकी संख्या 2050 तक 40 गुना बढ़कर एक अरब हो जाने और एसी से जुड़े कुल वैश्विक उत्सर्जन में इसकी हिस्सेदारी एक–चौथाई पहुंच जाने का अनुमान है। केंद्रीय कैबिनेट ने मॉ्ट्रिरयल प्रोटोकॉल के तहत किगाली संशोधन के अनुमोदन का फैसला किया है। इससे आने वाले वषाç में हाइड्रोफ्लोरोकार्बन के उत्सर्जन में खास तौर पर कूलिंग सेक्टर से चरणबद्ध कटौती अनिवार्य हो गई है। ऐसे में कई उपाय हैं‚ जिन्हें अपना कर ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाए बिना भारत कूलिंग की बढ़ती जरूरतें पूरी कर सकता है। 

एसी के इस्तेमाल का सही तरीका 

पहला उपाय‚ एसी को इस्तेमाल करने का सही तरीका अपनाना। इससे कार्बन फुटप्रिंट और बिजली बिल‚ दोनों घटाए जा सकते हैं। एसी चलाते समय पर्दे डालने‚ दरवाजे–खिड़कियां और गैस स्टोव बंद रखने से उस पर आने वाले भार को घटा सकते हैं। एसी को 24 डिग्री सेल्सियस या इससे ऊपर चलाया जाए तो प्रति एक डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी पर बिजली खर्च ६ प्रतिशत तक बच सकता है। एसी की समय पर सÌवसिंग कराने से इसकी कार्य क्षमता 15 प्रतिशत से ऊपर रखने और खराबी आने की आशंका को 50 प्रतिशत तक घटाने में मदद मिलती है। प्रशिक्षित टेक्नीशियन से एसी की रेग्युलर सर्विसिंग कराते हुए इसके हानिकारक रेफ्रिजरेंट्स के हवा में घुलने का खतरा टाला जा सकता है। एयर फिल्टर को नियमित रूप से साफ करने की आसान सी आदत बिजली खपत में 15 प्रतिशत तक कमी ला सकती है। 

 दूसरा‚ कूलिंग सेक्टर के लिए रिसाइकिलिंग ढांचे को मजबूत बनाना। उपभोक्ता अपने पुराने या खराब एसी और इसके रेफ्रिजरेंट्स को अधिकृत ई–वेस्ट रिसाइकिलर्स को ही सौंपें। ऐसा करना‚ इस सेक्टर के लिए सर्कुलर इकॉनमी बना सकता है। इससे पैदा होने वाले हानिकारक कचरे में कमी आएगी। वास्तव में‚ ई–वेस्ट प्रबंधन के स्पष्ट दिशा–निर्देश लागू होने के बावजूद 80 फीसदी इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नगर पालिकाओं के कचरे के ढेर में पहुंच जाते हैं‚ और इनके घातक रेफ्रिजरेंट्स हवा में घुल जाते हैं। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इसलिए ओजोन सेल के साथ समन्वय करके खराब एसी और रेि£जेरेटर्स के उचित प्रबंधन‚ एकत्रण और दोबारा इस्तेमाल करने पर सख्त नियम बनाने चाहिए। इससे सुनिश्चित होगा कि इस्तेमाल न होने वाले एसी व रेफ्रिजरेंट्स ई–वेस्ट रिसाइकिलिंग की बेहतर सुविधा वाले केंद्रों तक पहुंचें। रेफ्रिजरेंट्स के एकत्रण‚ भंडारण‚ परिवहन और निस्तारण की मुकम्मल ढांचागत संरचना बनाने को ज्यादा निवेश की जरूरत है। 

ऊर्जा–कुशल एसी की खरीदारी बढ़े 

तीसरा‚ उपभोक्ताओं को कर्ज के सरल विकल्प उपलब्ध कराना ताकि वे उन ऊर्जा–कुशल एसी को खरीदने के लिए प्रेरित हो सकें जिन्हें सरकारी उपक्रम एनर्जी एफिशिएंसी सÌवसेज लिमिटेड (ईईएसएल) उपलब्ध कराता है। आपूर्ति के स्तर पर सरकार को ग्रीन प्रोक्योरमेंट प्रोग्राम चलाना चाहिए जिसमें प्राकृतिक रेफ्रिजरेंट्स आधारित ऊर्जा–कुशल एसी की थोक खरीद को प्राथमिकता दी जाए। इसके जरिए सरकार न केवल इनके दाम घटा सकती है‚ बल्कि बाजार को भी सकारात्मक संकेत दे सकती है। सरकार उत्पादन से जुड़े प्रोत्साहन (पीएलआई) के तहत प्राकृतिक रेफ्रिजरेंट्स आधारित एसी निर्माताओं की सहायता बढ़ाकर सस्टेनेबल कूलिंग उपकरण का उत्पादन बढ़ा सकती है। सरकार उजाला मॉडल की तर्ज पर ऊर्जा–कुशल या प्राकृतिक रेफ्रिजेरेंट्स वाले एसी की खरीद पर सब्सिडी देकर उसे उपभोक्ताओं के बिजली बिल में भी जोड़ सकती है।  

अंत में‚ 

उपभोक्ताओं को ऊर्जा–कुशल एसी खरीदने के लिए प्रेरित करना। सीईईडब्ल्यू के अध्ययन के मुताबिक‚ एसी खरीदने के इच्छुक 71 फीसदी से ज्यादा ग्राहक ऊर्जा–कुशल या ज्यादा स्टार वाला एसी खरीदना चाहते हैं‚ लेकिन ऊंची कीमत के कारण उनमें से सिर्फ 14 प्रतिशत ग्राहक ही इन्हें खरीद पाते हैं। इस अंतर को भरने के लिए उपभोक्ताओं को ऊर्जा–कुशल और बेहतर कूलिंग वाले उपकरणों से उनकी संपूर्ण अवधि में होने वाली बचत के बारे में समझाना फायदेमंद होगा। इसमें इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के खुदरा विक्रेता काफी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं। इस दिशा में प्रयास करते हुए ऊर्जा दक्षता ब्यूरो‚ राष्ट्रीय खुदरा विक्रेता कार्यक्रम के तहत 7‚500 से अधिक खुदरा विक्रेताओं को ऊर्जा–कुशल उपकरणों के महत्व और इससे होने वाली बचत के बारे में प्रशिक्षित कर चुका है।  

अब भारत सस्टेनेबल कूलिंग की दिशा में बदलाव के मुहाने पर खड़ा है। सुव्यवस्थित इंतजाम होने पर यह बदलाव न केवल कूलिंग सेक्टर में अवसरों को‚ बल्कि हमारे आर्थिक विकास को भी बढ़ाएगा। हमारे पारिस्थितिकी तंत्र को बचाने में भी मददगार होगा। हालांकि‚ इसके लिए समय–समय पर नीतिगत कदम उठाने जरूरी होंगे। इसी से सुनिश्चित होगा कि बढ़ते तापमान के साथ कूलिंग उपकरणों की आने वाली मांग को जलवायु अनुकूल रेफ्रिजरेंट्स‚ ऊर्जा–कुशल उपकरणों और स्वच्छ बिजली आपूर्ति के जरिए पूरा किया जा सके।

  •  आदित्य गर्ग काउंसिल ऑन एनर्जी‚ एनवायरनमेंट एंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) में रिसर्च एनालिस्ट हैं।