डेयरी

Submitted by Hindi on Wed, 08/17/2011 - 10:33
डेयरी (Dairy) उद्योग भारत में यह उद्योग अभी शैशवावस्था में ही है। भारतीय किसान थोड़ी सी गायों का पालन करता है, जिनसे उसे जमीन जोतने के लिये बैल और अपने परिवार के लिये थोड़ा दूध भी मिल जाता है। बड़े शहरों में कुछ डेयरियाँ हैं, जो दूध के संरक्षण और वितरण का काम करती है। पर घीरे-धीरे इस उद्योग ने बढ़ना आरंभ कर दिया है।

हमारा राष्ट्रीय पशुधन उत्कृष्टता की अपेक्षा संख्या में अधिक है। भारत में लगभग 15.8 करोड़ गायें और करीब 4.4 करोड़ भैंसें हैं, जो मिलकर संसार भर की पशुसंख्या की एक चौथाई से अधिक हैं। भारतीय पशुओं का अधिकांश भाग अनुत्पादक है, जिसके फलस्वरूप संसार के दुग्ध उत्पादन का 1/12 भाग ही हमारे देश में पैदा हो पाता है। प्रत्येक वर्ग मील में पशुसंख्या 1317 हैं। उत्तर प्रदेश में गाय भैंसों की संख्या अन्य सभी राज्यों से कहीं अधिक है, अर्थात्‌ कुल पशु 327 करोड़ हैं। 5.8 करोड़ मन दूध के वार्षिक उत्पादन में 40 प्रतिशत गाय का दूध तथा 55 प्रतिशत भैंस का दूध संमिलित है। उत्तर प्रदेश में सबसे ज्यादा दूध का उत्पादन होते है,

अर्थात्‌ 14.4 करोड़ मन, और असम राज्य में केवल 3.4 लाख मन दूध, जो भारत में सबसे कम है।

प्रति गाय से एक पाउंड प्रति दिन तथा प्रति भैंस से 3 पाउंड दूध प्रति दिन का जो लघु उत्पादन है वह घटिया किस्म के पशु, अपर्याप्त आहार, चारे की कमी तथा अव्यवस्थित प्रबंध प्रणालियों का संमिलित फल है। देश में अब दुग्धोत्पादन में अभिवृद्धि के लिये प्रबल प्रयत्न किए जा रहे हैं।

विभिन्न महत्वपूर्ण नस्लों की गायों का औसत दुग्ध उत्पादन तथा दूध में वसा की प्रति शत मात्रा निम्न प्रकार है:

गाय

औसत दुग्ध उत्पादन वसा की प्रतिशत मात्रा पाउंड में

हरियाना

3,430 4.61

थारपरकर

4,050 4.65

शाहीवाल

5,100 4.65

सिधी

3,950 4.87

गीर

3,730 4.57

आंगोल

3,160 5.04

कांकरेज

3,160 4.56

मुर्रा

4,120 7.30

नीली।रावी

5,950 7.00



शाहीवाल नस्ल (तामीली) के दुग्ध उत्पादन का रेकार्ड 13,000 पाउंड, थारपारकर गाय (कमारी) का 10,400 पाउंड, तथा कांकरेज नस्ल की गाय का 10,200 पाउंड तक पाया गया है। निम्नलिखित तालिका में गाय, भैंस तथा बकरियों के दूध के संघटन का तुलनात्मक विवरण दिया गया है:

विभिन्न जाति के दुधारू पशुओं के दूधों का औसत संघटन


कुल दूध में

विभिन्न तत्वों

का प्रतिशत

जाति

पानी

कुल प्रोटीन

(protein)

वसा

दूधशर्करा

क्षार

कुल ठोस बस्तुएँ

1. गाय

87.27

3.39

3.68

4.94

0.72

12.73

2. भैंस

82.22

4.37

7.65

4.82

0.94

17.78

3. बकरी

86.88

3.76

4.07

4.44

0.85

13.12

4. भेड़

83.57

5.15

6.18

4.17

0.93

16.43



कुल दूध में विभिन्न तत्वों का प्रति शत


टिपपणी -


दूघों की प्रकृति पशु की किस्म पर ही नहीं, बल्कि उनके आहार पर बहुत निर्भर करती है। एक पशु का दूध भी सदैव बिल्कुल एक सा नहीं रहता।

लघु दुग्धोत्पादन के कारण देश की अधिकांश जनता को दूध पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है। प्रत्येक भारतीय को केवल 5.27 औंस दूध प्रति दिन मिलता है, जब कि शरीर के उचित पोषण के लिये कम से कम 16 औंस दूध प्रति दिन चाहिए। हॉलैड, डेन्मार्क, अमरीका, ऑस्ट्रेलिया तथा न्यूजीलैंड जैसे दूध पीनेवाले प्रसिद्ध देशों में प्रति दिन पति व्यक्ति दूध की खपत 16 औंस से भी अधिक है। पंजाब प्रदेश में प्रति व्यक्ति दूध का उपयोग 14.75 औंस है, जो हमारे देश में सबसे अधिक है। असम राज्य में प्रति व्यक्ति दूध की खपत न्यूनतम है,

अर्थात्‌ 1.29 औंस और उत्तर प्रदेश में प्रति व्यक्ति दूध की खपत 8.25 औंस हैं।

दूध द्रव रूप में सर्वोत्कृष्ट होता है और इसका उपयोग मिव्ययी ढंग से होता है। हमारे देश में द्रव दूध को लाने ले जाने आदि की समुचित सुविधाएँ उपलब्ध न होने के कारण, इस रूप में उपयोग न कर इससे दूग्धपदार्थ तैयार किए जाते हैं। इनसे लाभ बहुत कम होता है। प्रकाशित आँकड़ों के अनुसार दिल्ली में 80 प्रतिशत दूध द्रव रूप में उपयोग किया जाता है, पश्चिमी बंगाल में 66 प्रतिशत, बिहार, जम्मू, कश्मीर, केरल और मद्रास में लगभग 50 प्रतिशत, बंबई, मध्य प्रदेश, मैसूर, पंजाब, उत्तर प्रदेश और हिमांचल प्रदेश में अनुमानत: 33 प्रतिशत, और आंध्र तथा असम में 25 प्रतिशत दूध द्रव रूप में उपयोग किया जाता है।

सन्‌ 1965 में दूध का उत्पादन 52.8 करोड़ मन था। संपूर्ण देश में द्रव दूध का उपभोग 36.2 प्रतिशत (19.1 करोड़ मन) है। 43.3 प्रतिशत (22.8 करोड़ मन) घी बनाने, 8 प्रतिशत (4.22 करोड़ मन) दही के लिये, 6.3 प्रतिशत (3.32 करोड़ मन) अन्य कार्यो के लिये काम आता है। सामान्यत: एक मन दूध 2.20 सेर घी, या 2.77 सेर मक्खन, या 34.53 सेर दही, या 8.27 सेर खोया, या 45.15 सेर आइस क्रीम या 3.93 सेर क्रीम में परिणत किया जा सकता है।

आनंद (बंबई) में स्थित खेड़ा जिले के सहकारी दुग्ध उत्पादन संघ ने मीठा गाढ़ा दूध (condensed milk) बनाना आरंभ कर दिया है। सन्‌ 1958.59 के लगभग 7,00,000 पाउंड संघनित (Condensed) दूध संघ द्वारा उत्पादित हुआ। डेयरी ने मक्खन, घी, दूध, सूखा दूध और बढ़िया केसीन आदि का उत्पादन किया है। उत्तर प्रदेश, पश्चिमी बंगाल, मद्रास, आंध्र, मैसूर और केरल में सरकारी योजना पर दुग्ध-संकलन-केंद्र कार्य कर रहे हैं।

देश के विभिन्न भागों में दुग्धचूर्ण तथा दुग्धजन्य पदार्थ बनाने के गैरसरकारी कारखानों की स्थापना देश के विभिन्न भागों में की जा रही है। एटा जिले का हिंदुस्तान लीवर लिमिटेड, मुरादाबाद का अरुन लिमिटेड और पंजाब के रोहतक जिले का नेसिल लिमिटेड आदि विशेष महत्व के कारखाने हैं। देश के विभिन्न भागों में गाँवों में क्रीम बनाने के कारखानों की स्थापना की जा रही है। अलीगढ़ के राजकीय सेंट्रल डेयरी फार्म पर क्रीम बनाने के एक महत्वपूर्ण ग्रामीण कारखाने की स्थापना की जा रही है।

केंद्रीय और राज्य सरकार के फार्मो पर उन्नत के नस्ल पशु रखे जा रहे है और उनका उन्नत ढंग से विकास किया जा रहा है। शाही वाल नस्ल के लिये राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधानशाला, करनाल, भारतीय कृषि अनुसंधानशाला, नई दिल्ली, सैनिक डेयरी फार्म, चक गंजरिया, लखनऊ, तथा कृषि महाविद्यालय, कानपुर, मुख्य है। सिंघी नस्ल के लिये राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधानशाल, करनाल, कृषि संस्थान, नैनी (इलाहाबाद), राजकीय पशुधन अनुसंधान केंद्र हसूर; कृषि विद्यालय डेयरी, पूना; तथा पशु प्रजनन डेयरी फार्म (कालसी), देहरादून, हैं। थारपारकर नस्ल के लिये राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधान केंद्र करनाल; सरकारी पशु प्रजनन और डेयरी फार्म जामनगर; सरकारी पशु प्रजनन और डेयरी फार्म, जूनागढ़ तथा बी0 एच0 एल0 गौशाला, काडीबिल्ली, बंबई, हैं। हरियाना नस्ल के लिए सरकारी पशुप्रजनन फार्म, हिसार; राजकीय यांत्रिक फार्म, बाबूगढ़ और हस्तिनापुर (मेरठ), जिला डेयरी प्रदर्शन फार्म और राजकीय यांत्रिक फार्म, माधुरीकुंड, मथुरा, आदि हैं। कांकरेज नस्ल के लिये कृषि इंस्टिट्यूट, आनंद; सरकारी पशुप्रजनन फार्म, कापोगाँव, तथा आंगोल नस्ल के लिये सरकारी पशु अनुसंधानशाला, लाम (गुंटूर) कांगायम नस्ल के लिये सरकारी पशुधन अनुसंधान केंद्र, हसूर (सलेम), और पशु प्रजनन फार्म, पिलयाकोटी, प्रमुख हैं। अमृतमहाल नस्ल के लिये सरकारी पशु-प्रजनन-केंद्र, अजमपुर (मैसुर), और केंद्रीय पशु प्रजनन फार्म , बाँकापुर (धारवार), हैं। मुर्रा भैसें अन्य पशुओं के साथ साथ अधिकांश फार्मो पर रखी जाती है। इन फार्मो में से विशेष उल्लेखनीय हैं: भारतीय वेटरिनरी अनुसंधानशाला, आइज़ैटनगर, बरेली, राजकीय यांत्रिक फार्म, बाबूगढ़, हस्तिनापुर (मेरठ); राजकीय यांत्रिक फार्म, माधुरीकुंड, डेयरी प्रदर्शन फार्म, मथुरा; लाइवस्टाक फार्म, चक गंजरिया (लखनऊ); तराई डेयरी फार्म, नागला (नैनीताल); कालसी डेयरी फार्म, देहरादून; सत्गुरू प्रताप सिंह फार्म, मैनी (हिसार) तथा आरे कालोनी (बबंई), जहाँ 15 हजार से अधिक भैसें रखी जाती हैं। जफराबादी के लिये सरकारी पशु प्रजनन और डेयरी फार्म, नूरवी है। मेहसना नस्ल के लिये राजकीय कृषि विद्यालय एवं डेयरी फार्म, पूना, है।

अखिल भारतीय पशु प्रदर्शनी समिति ने, जिसका नाम अब राष्ट्रीय पशुधन समिति हो गया है, सन्‌ 1955 से दूध देनेवाली प्रमुख जातियों की गायों और भैंसों का निर्यात सुदूर पूर्व, सीलोन और पूर्वी अफ्रीका जैसे देशों को किया है। अभी तक भेजे गए 1,100 पशुओं में मुर्रा, नीली और रावी भैंसे तथा शाहीवाल, लाल सिंधी, थारपारकर, हरियाना तथा कांकरेज गाएँ हैं। इसके अतिरिक्त लगभग 60 जोड़ी हालीकार भैंसे भी भेजी गई। समिति प्रति वर्ष तीन क्षेत्रीय प्रदर्शनियाँ तथा एक अखिल भारीय पशु एवं कुक्कुट प्रदर्शनी का आयोजन करती है। देश के पशुपालकों में अभिरूचि जाग्रत करने में निस्संदेह इन प्रदशर्नियों ने काफी सहयोग दिया है।

इसके अलावा अन्य पशुओं का सुधार करने के लिये प्रमुख दुधारू जातियों के उन पशुओं के, जो विशेष न्यूनतम मात्रा तक दूध देते हैं, पंजीकरण का प्रयत्न किया जा रहा है। पशुओं के पंजीकरण के लिये पशु पुस्तिकाएँ खोल दी गई हैं और सन्‌ 1941 से, जब योजना कार्यान्वित की गई थी, आज तक 1,000 पशुओं का पंजीकरण हुआ है। पंजीकरण के लिये उपयुक्त नस्लों में अधिक महत्वपूर्ण शाहीवाल, हरियाना, लाल सिंधी, गिर, थारपरकर, आंगोल, कांकरेज, कंगयाम और मुर्रा हैं।

भारतीय पशुओं के दुधारूपन को सुधारने का काम कई वर्ष से चल रहा है। विकासकार्य का सबसे महत्वपूर्ण अंग गोसंवर्धन योजना रही है। पशुप्रजनन के लिये, काफी संख्या में शुद्ध तथा उन्नत नस्ल के साँड़ प्राप्त करने के उद्देश्य से सन्‌ 1951 में इस योजना का आरंभ हुआ था। कार्यक्रम के अंतर्गत कृषक पशुपालकों के लिये विभिन्न सुविधाएँ, जैसे पशुचिकित्सा सहायता, सहकारी क्रय विक्रय (Cooperative marketing), छुट्टा और अनुपयोगी साँड़ो को बधिया करने (castfation), चारे की उपज में सहायता देने तथा दुग्ध अभिलेख आदि रखने का भी विचार किया जा रहा है। इस समय देश के विभिन्न साँड़ों के प्रजनन और ग्रामीण पशुओं के वर्गीकरण मे ऐसे पशुओं का उपयोग कर रहे हैं। देश में 7.7 लाख साँड़ और तीन लाख प्रजनन योग्य नर भैंसे हैं। फिर भी भारी कमी को पूरा करना है।

देश के लगभग सभी राज्यों में बहु संख्या में पिंजरापोल और गौशालाएँ फैली हैं। अभी हाल ही के सर्वेक्षण से यह पता लगा है कि 1,27,100 बड़ी संस्थाएँ हैं, जिनके पास उन्नत पशुओं के प्रजनन तथा दुग्ध उत्पादन बढ़ाने की क्षमता तथा साधन हैं।

देश में डेयरी प्रदर्शन फार्मों के लिये डेयरी अनुसंधान प्राथमिक आवश्यकता है। अत: इसी उद्देश्य से राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधानशाला की स्थापना करनाल में हुई और बंगलौर केंद्र को दक्षिणी क्षेत्रीय केंद्र में परिवर्तित कर दिया गया। दो और क्षेत्रीय केंद्रों की स्थापना का भी प्रस्ताव है।

राष्ट्रीय डेयरी अनुसंधानशाला तथा उसके क्षेत्रिय केंद्रों का मुख्य कार्य निम्न है:
1. दुग्धशाला उद्योग के विभिन्न पक्षों पर अनुसंधानकार्य चलाना।
2. उद्योग के सभी स्तरों पर प्रशिक्षित कर्मचारियों की बढ़ती हुई माँग को पूरा करना।

अनुसंधान संबंधी कुछ समस्याएँ-


विभिन्न जाति के पशुओं के दूध की संरचना का अध्ययन, दूध तथा दुग्धजन्य पदार्थो की पौष्टिकता का अध्ययन तथा भारत में उपलब्ध ऐनेटो के बीज में से ऐनेटो रंग का निकलना, जिससे क्रीम तथा पनीर को रँगने की सुविधा हो, पनीर उत्पादन के लिये वेजिटेबल रेनेट का उत्पादन, तथा दूरस्थ दुग्ध परिवहन से संबंधित समस्याओं के अध्ययन आदि की ओर विशेष ध्यान दिया गया है।

विभिन्न प्रमुख देशों में दुग्धजन्य पदार्थो, जैसे घी, खोआ, मक्खन, छेना आदि की उत्पादन और संरक्षण विधियों में एक मानक लाने के लिये नियमित अध्ययन किया गया।

देश के विभिन्न भागों में बननेवाले दही में से निकाले गए लैक्टिक (lactic) अम्ल जीवाणुओं (bacteria) युद्ध संवर्धनों (cultures) के विस्तृत अध्ययन करने के बाद दही, खट्टा दूध, मक्खन और पनीर आदि बनाने के लिये चुने हुए जीवाणुओं के मिश्रण के जामन बनाए गए।

विभिन्न प्रकार के दूधों का परीक्षण करने के लिये एक तीव्र प्लेटफार्म टेस्ट (platform test) का नया तरीका ढूँढा गया है। निकृष्ट श्रेणी के दूध में जीवाणुओं की संख्या अधिक होती है, रिसाजुरिन पीले रंग की अवस्था में आ जाता है और दो तीन मिनट में रंगविहीन हो जाती है।

डेयरी अनुसंधानशाला तथा भारतीय कृषि अनुसंधान शाला और भारतीय पशु-चिकित्सा-अनुसंधानशाला में पशुप्रजनन पर, जिसमें कृत्रिम गर्भाधान, पशु-आहार-पोषण, खनिजसंमिश्रण आदि संमिलित हैं, कार्य किया गया है।

प्रथम योजनावधि में 24.13 लाख रूपये का तथा द्वितीय योजनावधि में 112.69 लाख रूपये का प्रविधान किया गया था। तृतीय पंच-वर्षीय योजनाएँ जो चालू की जाएँगी, उनमें शहरी क्षेत्रों में सहकारी, या सरकारी, दुग्धसंघों की स्थापना, गाँवं में क्रीम बनाने के कारखाने तथा पनीर और मिल्क पाउछर के कारखानों की स्थापना विशेष है।

डेयरी उद्योग का सफल विकास तो प्रचुर मात्रा में दूध के वितरण पर ही निर्भर करता है। राजकीय एवं व्यक्तिगत फार्मो में रखे गए पशुओं के प्रदर्शन से ही स्पष्टतया सिद्ध है कि भारतीय पशुओं में दूध देने की क्षमता है। यह आशा की जाती है कि देश में पशु-सुधार-कार्य- क्रम से देश में दूध काउत्पादन बढ़ेगा और डेयरी उद्योग को लाभ पहुँचेगा।

बकरी का दूध भी गरीब जनता के लिये महत्वपूर्ण आहार है और विशेषत: दक्षिण भारत के कुछ क्षेत्रों में विभिन्न जातियों की बकरियों ने दूध उत्पादन में महत्वपूर्ण योग दिया है। संसार के अन्य भागों में बकरियों की डेरियाँ हैं, जहाँ बकरी का दूध गाय के दूध से भी अधिक मूल्य पर बिकता है, क्योंकि उसके दूध का औषधीय मूल्य अधिक है।

विभिन्न राज्यों में स्थानीय बकरियों को चुनाव प्रजनन द्वारा सुधारने का प्रयत्न किया जा रहा है, पद कुछ जगहों पर विदेशी नस्ल की बकरियों, जैसे सेनन (Sanon)बकरियों के वर्णसंकर द्वारा, प्रजनन कार्य कराया जा रहा है। भारतीय बकरियों में जमुनापारी, बिहारी, बीटल, मलाहरी और सरती प्रमुख हैं। (ह0क0ला0)

डेरा गाजी खाँ पश्चिम पाकिस्तान में बहावलपुर खंड के अंतर्गत जिला तथा उसका मुख्य नगर है। जिले का क्षेत्रफल 27,500 वर्ग किमी0 तथा जनसंख्या 6,55,965(1951) है। सिंध नदी के दाहिने तट पर स्थित यह जिला इस नदी तथा सुलेमान पर्वत के मध्य सँकरा और समतल दोमट क्षेत्र है।

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अन्य स्रोतों से




संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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