दहन

Submitted by Hindi on Sat, 08/20/2011 - 11:43
दहन (Combustion) किसी दाह्य पदार्थ के अग्नि या ज्वाला द्वारा जल जाने की क्रिया को दहन कहते हैं। विज्ञान के इतिहास में अग्नि वा ज्वाला सबंधी सिद्धांतों का विशेष महत्व रहा है। मध्यकालीन युग तक लोग अग्नि को एक तत्व मानते रहे। रॉबर्ट बॉयल (Robert Boyle) तथा रॉबर्ट हुक (Robert Hook) ने यह दिखलाया कि यदि किसी बरतन में से हवा निकाल दी जाए तो उसमें गंधक या कोयला नहीं जलेगा और यदि उसमें पुन: हवा प्रविष्ट कर दी जाए तो वह फिर जल उठेगा। उन्होंने यह भी सिद्ध किया कि शोरे (saltpetre) के साथ किसी पदार्थ का मिश्रण शून्य स्थान में भी प्रज्वलित हो जाता है, जिससे यह पता लगता है कि हवा तथा शोरे दोनों में कोई ऐसा पदार्थ है जिसके कारण ज्वलन की क्रिया होती है। बाद में यह भी पता चला कि हवा में किसी पदार्थ के जलने से हवा के आयतन में कमी हो जाती है तथा बची हुई हवा निष्क्रिय होती है, जिसमें दहन संभव नहीं है। यह भी मालूम हुआ कि बंद स्थान में जीवधारियों की श्वासक्रिया से भी वही परिणाम मिलता है। अत: श्वासक्रिया तथा दहन समान क्रियाएँ हैं।

स्टाल (क्र.क. Stahl) ने 18वीं शताब्दी के प्रारंभ में फ्लाजिस्टन सिद्धांत का प्रतिपादन किया, परंतु उसने बॉयल द्वारा ज्ञात तथ्यों की ओर ध्यान नहीं दिया। उसने यह बतलाया कि प्रत्येक दाह्य पदार्थ दो प्रमुख अवयवों से बना होता है। एक फ्लोजिस्टन, जो दहन क्रिया होने पर निकल जाता है तथा दूसरा राख (calx), जो बाद में बच रहती है। यह विचारधारा 1774 ई. तक प्रचलित रही। 1775 ई. में प्रीस्टले (Priestley) तथा शेले (Scheele) ने एक गैस का पता लगाया, जिसका नाम बाद में लाब्वाज़्ये (Lavoisier) ने ऑक्सीजन रखा। सन्‌ 1783 में लाब्वाज़्ये ने सुझाव रखा कि हवा का सक्रिय भाग ऑक्सीजन है, दहन में इसी की आवश्यकता पड़ती है और बिना इसके दहन संभव नहीं है। उसने यह भी बतलाया कि दाह्य पदार्थों के साथ जलते समय ऑक्सीजन रासायनिक संयोग करता है।

लकड़ी तथा कोयले के जलने में सबसे पहले उनमें से वाष्पशील पदार्थ निकलते हैं, जिनमें कुछ गैसों का मिश्रण होता है। इसके बाद बचा हुआ कोयला ऑक्सीजन की सहायता से जलता है और इसकी दहन गति सतह पर ऑक्सीजन के पहुँचने पर निर्भर है। अपूर्ण दहन होने पर कार्बन मोनोक्साइड नामक एक विषैली गैस बनती है। साधारणतया ईधंन के ऊपरी भाग का पर्याप्त आक्सीजन प्राप्त हो जाने से वह जलकर कार्बन डाइक्साइड बनता है, पर यदि हवा निकलने का ठीक प्रबंध नहीं है तो यह कमरों में इकट्ठा होती रहती है और स्वास्थ्य के लिए बहुत ही हानिकारक होती है।

यदि दहनशील पदार्थ अधिक मात्रा में एकत्रित किए जाएँ तो कभी कभी उनमें स्वत: दहन हो जाता है। उनमें मंद ऑक्सीकरण होता है। इससे निकलती उष्मा इतनी अधिक होती है कि उनका ताप बढ़ जाता है, जिससे वे जलने लगते हैं। मृदुकोक़ (soft coke) के छोटे टुकड़ों में स्वत: दहन की संभावना अधिक रहती है, अत: उनको गीला करके सुरक्षित रखा जाता है। द्रव ईधंन वाष्पीकृत होने पर ही हवा या ऑक्सीजन के साथ मिश्रण बनने पर जलते हैं।

गैसीय ईधंनों का दहन -


गैसों के अणु गतिशील होते हैं और एक दूसरे से टकराते रहते हैं। निम्न ताप पर इसका अधिक प्रभाव नहीं पड़ता, परंतु ऊँचे ताप पर टकराने से पर्याप्त ऊर्जा उत्पन्न होती है, जिससे रासायनिक क्रियाएँ संपन्न हो सकती है। ईधंन और ऑक्सीजन के बीच की दहन क्रिया पहले सरल समझी जाती थी, पर अब सिद्ध हो गया है कि ये जटिल श्रृखंलाबद्ध क्रियाएँ हैं। अधिक ऊर्जावाले अणुओं की टक्कर से परमाणु या मुक्तमूलक बनते हैं। ये मंद श्रृंखलाक्रियाएँ या तीव्र श्रृंखलाक्रियाएँ उत्पन्न कर सकते हैं।

सं.ग्रं.- इंटरनैशनल सिंपोज़ियम ऑन कंबस्चन, 1953; पारटिंगृन : इनऑरगैनिक केमिस्ट्री (रामदास तिवारी)

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संदर्भ
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