लाइलाज बैक्टीरिया ‘दिल्ली सुपरबग’ की खोज का दावा करके हलचल मचाने वाले इंग्लैंड के कार्डिफ युनिवर्सिटी के शोधकर्ता मार्क टॉलमैन का कहना है कि यह जानलेवा बैक्टीरिया सिर्फ भारत ही नहीं बल्कि पूरे मध्य एशिया में फैला हो सकता है। ई-मेल के जरिए भास्कर के सवालों के ब्रिटिश वैज्ञानिक ने बेबाकी से जवाब दिए।
आपने लांसेट में ‘दिल्ली सुपरबग’ पर दूसरा लेख लिखा है। अस्पतालों के बाद दिल्ली के पानी में इस बैक्टीरिया की तलाश के क्या कारण थे?
इस शोध के प्रमुख प्रो. टिम वॉल्श हैं। यह नया शोध ‘दिल्ली सुपरबग’ (एनडीएम-1) पर प्रकाशित हमारे दूसरे अध्ययन पर आधारित है जो पिछले सितंबर में लांसेट में प्रकाशित हुआ था। हमारा दूसरा पेपर दरअसल भारत, पाकिस्तान और बांग्लादेश के वैज्ञानिकों के अलावा ब्रिटेन, स्वीडन और आस्ट्रेलिया के लैबोरेटरी के वैज्ञानिकों और हमारे सहयोग से तैयार किया गया है। इसमें स्थानीय वैज्ञानिकों से भी मदद ली गई है। दूसरे पेपर में कहा गया था कि ‘दिल्ली सुपरबग’ बैक्टीरिया लोगों में इसलिए फैला क्योंकि शोध के दायरे में आने वाले कई रोगी जब अस्पताल पहुंचे तो उनमें पहले से इन्फेक्शन था। इसके अलावा, ‘दिल्ली सुपरबग’ के कुछ ऐसे मामले पूर्वी एशिया से यात्रा कर के लौटे लोगों में भी हैं जो वहां अस्पताल में भर्ती नहीं किए गए। एनडीएम-1 के स्रोत के तौर पर पर्यावरण को देखने के पीछे यही तर्क था। यह तीसरा पेपर दरअसल उसी शोध का परिणाम है।
भारतीय अधिकारियों का आरोप है कि कुछ वैज्ञानिक देश की अंतरराष्ट्रीय छवि खराब करने के लिए ही इस तरह के बेवजह शोध कर रहे हैं?
ऐसा नहीं है। हमने सीधे तौर पर ‘पेपर ट्रेल’ को फॉलो किया है जो स्वीडन से शुरू होकर ब्रिटेन और पूर्वी एशिया से सीधे तौर पर जुड़ा था। यह स्टडी मुख्य रूप से उन सैंपलों पर आधारित है जिन्हें हासिल करना आसान था। कॉमनवेल्थ गेम्स को कवर करने के लिए ब्रिटेन के टीवी चैनल- 4 की एक टीम दिल्ली में मौजूद थी। इसी चैनल के कुछ पत्रकारों ने हमे सैंपल इक्ट्ठा करने में मदद किया।
भारत में ‘दिल्ली सुपरबग’ का फैलाव कितना हो सकता है?
हम मानते हैं कि ‘दिल्ली सुपरबग’ का प्रतिरोधी तंत्र एक ‘समुदाय ग्रहित’ प्रतिरोध है जो अस्पतालों में भी आ गया। दोनों स्टडी में यही परिणाम हासिल किए गए कि पानी और खाने में मौजूद ‘दिल्ली सुपरबग’ बैक्टीरिया की मौजूदगी की वजह से यह लोगों में फैला। जिस तरह से यह प्रतिरोधी क्षमता फैली उसके आधार पर हम उम्मीद कर सकते हैं कि देश के 5 से 10 प्रतिशत लोगों में फिलहाल ‘दिल्ली सुपरबग’ मौजूद है। हालांकि हम इस पर और शोध करेंगे कि ये आंकड़े कितने सही हैं।
क्या यह जानलेवा बैक्टीरिया सिर्फ भारत में ही मौजूद है?
नवीनतम स्टडी ने बताया कि एनडीएम-1 पीने के पानी समेत शहर में फैले खुले पानी में किस तरह से मौजूद है। कह सकते हैं कि यह बाकायदा सड़कों पर मौजूद है। मुझे लगता है कि यह बहुत जरूरी है कि इस तरह के प्रयोग विभिन्न शहरों में किए जाएं ताकि पता चले कि यह कितना फैला है। केवल भारत ही नहीं पूरे एशिया पूर्व के देशों में पानी का परीक्षण जरूरी है। इस पर शोध जरूरी है कि यह ह्यूमन कैरिज की वजह से कितना फैल रहा है और ह्यूमन कैरिज के मामले घट रहे हैं या बढ़ रहे हैं।
भारत में अभी भी दवाओं के बेअसर होने की निगरानी रखने की तकनीक नहीं है। ऐसे बैक्टीरिया के पैदा होने पर किसकी जवाबदेही बनती है?
दवा कंपनियों को जिम्मेदार होना पड़ेगा। आप कम समय में ज्यादा से ज्यादा एंटीबायटिक बेचना चाहते हैं लेकिन जब उनका असर ही नहीं रहेगा तो कौन उन दवाओं को खरीदेगा? दवा कंपनियों को एक जिम्मेदार दृष्टिकोण अपनाने से दरअसल फायदा होगा। उन पर नियंत्रण के लिए एक सख्त और प्रभावी कानून की भी जरूरत है।
Source
दैनिक भास्कर, 17 अप्रैल 2011