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डॉ. दिनेश कुमार मिश्र की पुस्तक 'दुइ पाटन के बीच में'
एक बार जब डलवा में तटबन्ध की दरार को पाट दिया गया तब पश्चिमी तटबन्ध पर नदी के हमले डलवा से थोड़ा नीचे भारत-नेपाल सीमा पर कुनौली के पास शुरू हुये। यहाँ कोई दुर्घटना नहीं हुई और परेशानी भी बहुत ज्यादा नहीं हुई क्योंकि कुनौली भारत में अवस्थित है। इस तरह नेपाल प्रकरण से लोग बचे हुये थे। खर्च और दरार पड़ने का दबाव जरूर अपनी जगह पर था।
सांसद एस0 एम0 बनर्जी के दरार से बचाव संबंधी एक प्रश्न के जवाब में लोकसभा में डॉ. के0 एल0 राव ने 12 जुलाई 1967 को एक बयान दिया था कि, ‘‘नदी के सम्बन्ध में कोई भी यह नहीं कह सकता कि दरार पड़ेगी या नहीं। कोसी के बारे में यह बात खास कर कही जा सकती है क्योंकि कोसी हमेशा पश्चिम की ओर खिसकती रही है। कोसी की इस विशिष्टता के कारण ही हमें कोसी परियोजना को हाथ में लेना पड़ा है जिसकी वजह से नदी पर लगाम कसी जा सकी और यह पिछले दस वर्षों से एक जगह बनी हुई है वरना यह दरभंगा जिले में झंझारपुर तक पहुँच गई होती।’
यह बयान उन्हीं डॉ. के0 एल0 राव का है जिन्होंने चीन की ह्नांग हो घाटी की यात्रा के बाद तटबन्धों की पूरी बहस का रुख मोड़ दिया था और वह उस समय चाहते थे कि कोसी पर तटबन्धों का निर्माण बराज के निर्माण से पहले ही कर लिया जाय (अध्याय-2) और उन्होंने 1967 में जो बात कही, वही बात अगर उन्होंने 1954 में कही होती तो कोसी पर तटबन्धों की योजना कब की कूड़ेदान में फेंक दी गई होती।
सांसद एस0 एम0 बनर्जी के दरार से बचाव संबंधी एक प्रश्न के जवाब में लोकसभा में डॉ. के0 एल0 राव ने 12 जुलाई 1967 को एक बयान दिया था कि, ‘‘नदी के सम्बन्ध में कोई भी यह नहीं कह सकता कि दरार पड़ेगी या नहीं। कोसी के बारे में यह बात खास कर कही जा सकती है क्योंकि कोसी हमेशा पश्चिम की ओर खिसकती रही है। कोसी की इस विशिष्टता के कारण ही हमें कोसी परियोजना को हाथ में लेना पड़ा है जिसकी वजह से नदी पर लगाम कसी जा सकी और यह पिछले दस वर्षों से एक जगह बनी हुई है वरना यह दरभंगा जिले में झंझारपुर तक पहुँच गई होती।’
यह बयान उन्हीं डॉ. के0 एल0 राव का है जिन्होंने चीन की ह्नांग हो घाटी की यात्रा के बाद तटबन्धों की पूरी बहस का रुख मोड़ दिया था और वह उस समय चाहते थे कि कोसी पर तटबन्धों का निर्माण बराज के निर्माण से पहले ही कर लिया जाय (अध्याय-2) और उन्होंने 1967 में जो बात कही, वही बात अगर उन्होंने 1954 में कही होती तो कोसी पर तटबन्धों की योजना कब की कूड़ेदान में फेंक दी गई होती।