दृढ़ीकृत मिट्टी के मकान

Submitted by Hindi on Tue, 08/16/2011 - 10:51
दृढ़ीकृत मिट्टी के मकान संसार के विभिन्न भागों में प्राचीन काल से ही मिट्टी के मकानों का निर्माण होता चला आ रहा है। दक्षिणी फ्रांस में दो सौ वर्ष पूर्व बने लीऔं (Lyons) नगर का पुराना भाग, जिसमें अधिकतर मिट्टी के मकान दुमंजिले हैं और कुछ तिमंजिले भी हैं, आज भी नया बना सा जान पड़ता है।

मिट्टी की इन पुरानी रचनाओं में दो कमियाँ पाई जाती हैं। एक तो यह कि मिट्टी के मकान उसी स्थान पर बने हैं, जहाँ मिट्टी का प्राकृतिक संघटन संतोषजनक है, और दूसरी यह कि वर्षा से बचाव के लिए इन मकानों पर जो पलस्तर किया जाता है, उसकी बारंबार मरम्मत करनी पड़ती है, क्योंकि मिट्टी की सतह पर एक बार किया हुआ पलस्तर अधिक टिकाऊ नहीं रहता।

यह जानी हुई बात है कि सूखी मिट्टी में दाबसामर्थ्य काफी होता है, जो मिट्टी के जलसंतृप्त होने पर प्रायः पूर्ण रूप से समाप्त हो जाता है। जलाभेद्य लेप के चढ़ाने से ही इस सामर्थ्य की रक्षा हो सकती है, पर ऐसी रचना टिकाऊ नहीं होती, क्योंकि उसका सामर्थ्य पलस्तर की उत्कृष्टता और उसे बारंबार दुहराते रहने पर निर्भर करता है।

मिट्टी को पानी से मृदु होने से बचाने की अनेक विधियाँ ज्ञात हैं। इनमें (1) विटुमनी मसाले और (2) सीमेंट द्वारा दृढ़ीकरण की विधियाँ महत्वपूर्ण हैं।

बिटूमनी दृढ़ीकरण- जलाभेद्य करने के लिए बिटूमनी पदार्थों में सामान्यत: पतला किया हुआ ऐस्फाल्ट (cutback), या उसके पायस, का उपयोग होता है। दृढ़ीकरण के लिए एक प्रकार के ईधंन तेल का भी सफलता से प्रयोग हुआ है, जिसमें थोड़ा सा मोम मिला रहता है। सरल परीक्षणों से मालूम हो सकता है कि मोम किस सांद्रता में अपेक्षित है।

पर्याप्त गीली मिट्टी में, इतनी गीली कि वह शीघ्र मिलाने योग्य हो, अभीष्ट मात्रा में बिटूमनी पदार्थ मिलाकर इतना सुखाते हैं कि उसमें नमी इतनी रह जाए कि उसको ईटों के रूप में ढाला जा सके। ऐसी ईटों से बनी दीवारों पर और किसी जलाभेद्य लेप की आवश्यकता नहीं पड़ती। दृढ़ीकरण की यह विधि उष्ण कटिबंधीय देशों के लिए तो उपयुक्त है, जहाँ मिट्टी के सूख जाने की संभावना रहती है। ठंढे देशों में, जहाँ ताप पर्याप्त ऊँचा नहीं रहता, मिट्टी सूखती नहीं; अत: वहाँ के लिए वह विधि अनुपयुक्त है। पर उष्ण कटिबंधीय देशों मे भी बड़े पैमाने पर बिटूमनी दृढ़ीकरण का उपयोग नहीं हुआ है।

सीमेंट दृढ़ीकरण- पानी द्वारा मृदुकरण के प्रतिरोध करने की क्षमता मिट्टी में बहुत कम होती है। मिट्टी में सीमेंट मिलाकर प्रतिरोध क्षमता बढ़ाई जा सकती है। ऐसे मिश्रण का दाबसामर्थ्य भी बढ़ जाता है। मिट्टी और सीमेंट का सघन बनाया हुआ यह मिश्रण जल की क्रिया का प्रतिरोधक तो होता है, पर जलाभेद्य नहीं होता, क्योंकि पकी हुई ईंट के समान ही इसमें जल के अवशोषण की प्रवृत्ति प्राय: रहती है। अत: उसे 'सील रोक' बनाने के लिए पलस्तर करना आवश्यक होता है।

वैसे तो संसार के अनेक भागों में मिट्टी-सीमेंट-योग के मकान बने हैं, पर भारत के स्वतंत्र होने के बाद एक बृहद् योजना के रूप में ऐसे 4,000 मकान यहाँ बनवाए गए। ये मकान पूर्वी पंजाब के 12 नगरों में, पश्चिम पंजाब से आए हुए शरणार्थियों के लिए थे। इस योजना के वैज्ञानिक और संरचनात्मक पहलू संक्षेप में इस प्रकार हैं :

सीमेंट दृढ़ीकरण का वैज्ञानिक पक्ष


मिट्टी का दाबसामर्थ्य- सघन (compact) होने पर मिट्टी का दाबसामर्थ्य बढ़ता है। यह सामर्थ्य सूखी मिट्टी के स्थूल घनत्व का अनुलोमानुपाती है। मिट्टी में विशेष नमी होने पर अधिकतम घनत्व प्राप्त होता है। इसे अनुकूलतम नमी कहते हैं। सुक्रमिक (well graded) मिट्टी का घनत्व अक्रमिक (ungraded) मिट्टी के घनत्व से अधिक होता है, अत: अधिक दाबसामर्थ्य के लिए मिट्टियों के सुसंमिश्रण की आवश्यकता पड़ती है।

पानी का प्रतिरोधक- अच्छी कुटाई की गई मिट्टी के पिंड को बिना कुटाई की गई मिट्टी के पिंड की अपेक्षा, पानी में डुबाकर रखने से उसका वियोजन देर से होता है। कुटाई जितनी ही अधिक होगी, पिंड पानी की मृदुकरण क्रिया का उतना ही अधिक प्रतिरोधक होगा।

अधिक घनता से कुटाई किए गए पिंड कम घनता से कुटाई किए पिंडों की अपेक्षा अधिक जल प्रतिरोधक होते हैं। फिर भी अंतर इनमें इतना सुस्पष्ट नहीं है कि ईटों के स्थान पर इनका उपयोग किया जा सके। कुटाई के बाद सीमेंट सदृश कुछ जलप्रतिरोधक पदार्थ का पिंड में डालना आवश्यक होता है।

मिट्टी पर सीमेंट का प्रभाव- एक से दो प्रति शत तक सीमेंट मिलाने और कुटाई करने से मिट्टी के बने पिंड का दाबसामर्थ्य कम होता है, पर इससे अधिक सीमेंट की मात्रा सामर्थ्य को अधिकाधिक बढ़ाती है। क्रमिक मिट्टी में 10-12 प्रति शत सीमेंट मिलाने से उसका सामर्थ्य प्रति वर्ग इंच 500-600 पाउंड के लगभग हो जाता है। पिंड के सीमेंट सांद्रण की वृद्धि से जलप्रतिरोध की वृद्धि होती है। एक प्रति शत सीमेंट से भी पर्याप्त प्रतिरोध हो जाता है और दो महीने तक मृदुकरण प्रभाव को सहन कर सकता है। दो से लेकर पाँच प्रति शत तक सीमेंट से मौसमी प्रभाव का भी प्रतिरोध होता है। सीमेंट की मात्रा कुटाई के अंश पर निर्भर करती है। कुटाई अधिक होने से सीमेंट कम लगता है और कम होने से अधिक।

यदि दो इंच व्यास का चार इंच ऊँचा बेलनाकार पिंड सात दिन तक जल में रखे जाने पर प्रति वर्ग इंच 250 पाउंड दाबसामर्थ्य का हो जाए, तो उसे मौसमी अपक्षय का पूरा प्रतिरोधक माना जाता है।

सीमेंट की मात्रा एक निश्चित सीमा से अधिक नहीं बढ़ाई जा सकती है, क्योंकि इससे पिंड का संकुचनगुण बढ़ता एवं ऊष्मीय विसंवाहन (thermal insulation) घट जाता है। ऐसे पिंड से मकान बनाने में विशेष क्रियाविधि का सहारा लेना पड़ता है। इससे मकान की लागत भी बढ़ जाती है। साधारणतया सामान्य कुटाई की गई मिट्टी के पिंड पर सीमेंट बालू का पलस्तर नहीं चढ़ता, पर यदि उसमें सीमेंट विद्यमान है तो उसपर पलस्तर ठहरता है। सीमेंट पर पलस्तर अधिक चिपका रहे इसके लिए आवश्यक है कि पलस्तर लगाने के पूर्व उसपर सीमेंट घोल का लेप कर दिया जाए।

निर्माणविधि


प्रारंभिक मिट्टी सर्वेक्षण और विश्लेषण- मिट्टी लेने के लिए उपयुक्त क्षेत्र चुनने के लिए स्थल के आसपास की मिट्टी का मोटे तौर पर रेत का अंश, सुघट्यता सूचक (plasticity index) और सल्फेट अंश निर्धारित करना चाहिए। सल्फेट के निर्धारण में विशेष सावधानी रखनी चाहिए, क्योंकि इसकी 0.1 प्रति शत से अधिक मात्रा हानिकारक होती है। इन परीक्षणों से यह निश्चय किया जाता है कि किन किन स्थलों से कितनी मिट्टी का अंश लिया जाए कि इच्छित विशेषता की मिट्टी तैयार की जा सके।

मिट्टी संग्रह और भिगोना- प्रत्येक घर के लिए जो स्थल निश्चित हो उसके चारों ओर की विभिन्न मिट्टियों को एकत्र करके फावड़े से अच्छी तरह मिलाकर सुखा लिया जाता है। मिट्टी के इस औसत नमूने के रेतांश और सुघट्यतासूचकांक की जाँच के बाद मिट्टियों के ऊपरी भाग को सावधानी से समतल करके, जल मिलाने के लिए सुविधानुसार खंडों में बाँट दिया जाता है। पर्याप्त पानी डालकर उसे अनुकूलतम आर्द्रता का बना लिया जाता है। उद्वाष्पन से जो कमी होगी उसका भी ध्यान रख जाता है। प्रत्येक खंड में पानी डालकर एक सा सोखने के लिए रात भर छोड़ दिया जाता है। दूसरे दिन प्रात: वहाँ पर सीमेंट के बोरे रख दिए जाते हैं। एक बार में एक ही बोरा सीमेंट मिट्टी का आवश्यक मात्रा में मिलाकर कुटाई के लिए भेज दिया जाता है।

तख्ताबंदी (shuttering)- यह काठ के बने कम से कम दो इंच मोटे तख्तों में की जाती है और सरकवाँ किस्म की होती है। तख्ताबंदी तीन फुट ऊँची होती है। कुटाई के तुरंत बाद अंतरक चटखनी (spacer bolts) को हटाकर तख्ताबंदी को इतना ऊपर सरका दिया जाता है कि यह नौ इंच ऊँचाई की ताजी कूटी गई दीवार पर रहे। प्रारंभ में पूरी लंबाई पर तख्ताबंदी की जाती थी पर बाद में छह फुट की लंबाई में करना सुविधाजनक पाया गया।

कुटाई- यह दुरमठों द्वारा हाथ से की जाती है। दुरमुठ तीन इंच वर्ग का तथा 16 पाउंड भार का होता है और कुटाई तीन तीन इंच की तह में की जाती है।

जोड़- खड़े जोड़ छह फुट से अधिक दूरी पर नहीं रखे जाते। क्षैतिज जोड़ दिन का काम समाप्त होने पर छोड़ दिया जाता है।

पकाई- काम को जल्दी सूखने से बचाने के लिए उसे 10 से लेकर 24 दिनों तक मौसम के अनुसार पानी छिड़कर गीला रखा जाता है।

प्रयोगशाला नियंत्रण- पूर्वी पंजाब में मकान बनाने के समय मिट्टी के विश्लेषण और अनुकूलतम जलांश आदि का प्रति दिन निर्धारण करने के लिए अलग अलग स्थानों पर 17 क्षेत्रीय प्रयोगशालाएँ स्थापित की गई थीं। करनाल की केंद्रीय प्रयोगशाला में भिन्न भिन्न स्थलों पर एकत्र मिट्टी की जाँच होने के कारण क्षेत्रीय प्रयोगशलाओं में सतर्कता से काम होता था।

प्रयोगशाला आदि सारे खर्च लेकर भी यह योजना सीमेंट के मसाले से पक्की ईंट की चिनाई के काम की केवल आधी लागत से पूरी हो गई।

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अन्य स्रोतों से




संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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