यमुना नदी दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में शुमार है, लेकिन लाॅकडाउन के दौरान अप्रैल में कई दशकों बाद दिल्ली में यमुना का पानी आश्चर्यजनक तरीके से साफ हो गया था। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की टीम ने 6 अप्रैल को यमुना में पल्ला गांव, निजामुद्दीन पुल और ओखला बैराज से पानी के सैंपल लिए थे। रिपोर्ट के अनुसार पल्ला गांव में पीएच लेवल 8.7 से घटकर 7.8 हो गया था, जबकि डीओ लेवल 17.1 मिलीग्राम प्रति लीटर से 8.3 मिलीग्राम प्रति लीटर, बीओडी 7.9 मिलीग्राम प्रति लीटर से 2.0 मिलीग्राम प्रति लीटर और सीओडी 28 मिलीग्राम प्रति लीटर से 6 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया था। निजामुद्दीन पुल के पास पीएच का स्तर 7.3 से 7.2, डीओ 2.4, बीओडी 57 मिलीग्राम प्रति लीटर से 5.6 मिलीग्राम प्रति लीटर और सीओडी 90 मिलीग्राम प्रति लीटर से 16 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया था। पल्ला गांव से लेकर वजीराबाद बैराज तक पानी अपेक्षाकृत साफ रहता था, लेकिन निजामुद्दीन पुल और ओखला बैराज तक यमुना में सैंकड़ों नाले गिरते हैं।
रिपोर्ट के मुताबिक ओखला बैराज पर यमुना में पीएच स्तर 7.2 से घटकर 7.1 हो गया था, जबकि डीओ 1.2 मिलीग्राम प्रति लीटर, बीओडी 27 मिलीग्राम प्रति लीटर से घटकर 6.1 मिलीग्राम प्रति लीटर और सीओडी 95 मिलीग्राम प्रति लीटर से 18 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गई थी। नजफगढ़ और शाहदरा नालों से भी सैंपल दिए गए थे, जिनके बीओडी लेवल में 45 प्रतिशत तक का सुधार देखने को मिला था। नजफगढ़ ड्रेन से यमुना में 1938 एलएलडी वेस्ट गिरता है, इस नाले में पीएच स्तर में कोई सुधार नहीं आया और वो 7.2 ही था, लेकिन एसएस 152 मिलीग्राम प्रति लीटर से घटकर 106 मिलीग्राम प्रति लीटर, बीओडी स्तर 78 मिलीग्राम प्रति लीटर से 55 मिलीग्राम प्रति लीटर और सीओडी 271 मिलीग्राम प्रति लीटर से 150 मिलीग्राम प्रति लीटर हो गया था, जबकि शाहदरा ड्रेन में पीएच स्तर 7.1 से 7.2 हो गया था, जबकि एसएस 464 मिलीग्राम प्रति लीटर से 305 मिलीग्राम प्रति लीटर, बीओडी 163 मिलीग्राम प्रति लीटर से 89 मिलीग्राम प्रति लीटर और सीओडी 574 मिलीग्राम प्रति लीटर से घटकर 383 हो गया था। रिपोर्ट में कहा गया था कि यमुना के जल में ऑक्सीजन की मात्रा 33 प्रतिशत तक बढ़ गई है। यमुना के साफ होने की चर्चा पूरी दुनिया में हुई थी। हर कोई तारीफ कर रहा था और सरकार से यमुना को फिर से प्रदूषित न होने देने की अपील भी कर रहा था, लेकिन सुर्खियों से दिल्ली का पुराना नाता है। इस बार दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में शुमार ‘यमुना’ की वहज से सुर्खियों ने फिर से दिल्ली के दरवाजे पर फिर दस्तक दे दी है।
दरअसल, लाॅकडाउन हटने के कुछ समय बाद ही यमुना में बढ़ता प्रदूषण दिखने लगा था। जुलाई के अंतिम सप्ताह में यमुना नदी में अचानक से जहरीला झाग दिखाई देने लगा था। एनजीटी द्वारा नियुक्त यमुना निगरानी समिति (वाईएससी) ने मामले को लेकर केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी), दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति (डीपीसीसी) एवं उद्योग आयुक्त से रिपोर्ट मांगी थी। एनजीटी के सेवानिवृत्त विशेषज्ञ बीएस साजवान और दिल्ली की पूर्व मुख्य सचिव शैलजा चंद्रा की दो सदस्य समिति ने सीपीसीबी, डीपीसीसी के अध्यक्ष रंजीव खीरवार और उद्योग आयुक्त विकास आनंद को नदी के जल में झाग के स्रोत का पता लगाने के लिए त्वरित कार्रवाई करने के अलावा इसके लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ भी कार्रवाई करने को कहा था। समिति ने प्रदूषणरोधी संस्थाओं से मामले में उसे जानकारी देते रहने के लिए भी कहा था। बोर्ड के आदेश पर दिल्ली प्रदूषण नियंत्रण समिति ने एनजीटी के दो सदस्य टीम के समक्ष जानकारी देते हुए कहा है कि ‘‘डिटर्जेंटयुक्त सीवर की गंदगी की वजह से नदी में जहरीले झाग देखे गए थे।’’
डीपीसीसी ने कहा है धोबी घाट, फाॅस्फेट डिटर्जेंटयुक्त सीवर के गंदे पानी, उद्योगों का कचरा और बैराज के समीप पानी के वेग को नदी में झाग बनने के लिए जिम्मेदार पाया गया है। दो सदस्य समिति ने डीपीसीसी को एक हफ्ते के भीतर विस्तृत रिपोर्ट देने के लिए कहा है। साथ ही उसने डीपीसीसी से दोषी उद्योगों, नालों की सफाई के लिए जिम्मेदार एजेंसियों और प्रदूषण फैला रहे व्यक्तियों के खिलाफ दंडात्मक कार्रवाई करने का भी आदेश दिया है। इसके अलावा निगरानी समिति ने इस मामले की विस्तृत अनुपालन रिपोर्ट 10 अगस्त तक देने के लिए कहा है।
बीते सप्ताह भी एनजीटी द्वारा गठित यमुना निगरानी समिति ने कहा था कि ‘हथिनी कुंड बैराज में अनुशंसित ई-प्रवाह की अनुमति देने के लिए जल शक्ति मंत्रालय, अपर यमुना रिवर बोर्ड और उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश और दिल्ली 1994 के जल समझौते पर दोबारा काम करें।’
दरअसल, इस समझौते पर राजस्थान एवं पांच राज्यों द्वारा 1994 में हस्ताक्षर किए गए थे। समझौते के अनुसार हरियाणाा के लिए 5.7 अरब क्यूबिक मीटर (बीसीएम) वार्षित पानी आंवटित किया गया था, जबकि उत्तर प्रदेश (तब उत्तराखंड तब यूपी का हिस्सा था) के लिए 4.03 बीसीएम, राजस्थान के लिए 1.11 बीसीएम, हिमाचल प्रदेश के लिए 0.37 बीसीएम और दिल्ली के लिए 0.72 बीसीएम वार्षिक पानी आवंटित किया गया था। लेकिन अभी तक पानी के प्राकृतिक प्रवाह को बनाए रखने को लेकर दिल्ली और हरियाणा के बीच विवाद चल रहा है। विवाद को लेकर दोनों राज्यों के बीच आरोप-प्रत्यारोप चलता रहता है। दिल्ली द्वारा कभी हरियाणा पर पर्याप्त पानी न छोड़ने का आरोप लगाया जाता है, तो कभी हरियाणा से आने वाले यमुना के पानी में अमोनिया (प्रदूषण) की मात्रा बढ़ने से दिल्ली में पानी का संकट खड़ा हो जाता है।
आधिकारिक उदासीनता से पार पाना बड़ी चुनौती
दो सदस्य समिति ने अपनी अंतिम रिपोर्ट सौंप कर पिछले 23 महीनों का अनुभव साझा किया है। समिति ने कहा है कि ‘आधिकारिक उदासीनता पर काबू पाना सबसे बड़ी चुनौती है। जल प्रदूषण तमाम वैधानिक प्रावधानों और उपदेशों के बावजूद प्राथमिकता में नहीं है।’ रखरखाव के काम को राजनीतिक स्तर पर नई आधारभूत परियोजनाओं या योजनाओं के मुकाबले कम महत्व दिया जाता है। नागरिकों को प्रभावित करने वाले जीवन की गुणवत्ता संबंधी मुद्दे अकसर पीछे छूट जाते हैं और दैनिक रखरखाव के मामलों को निपटाने के लिए कनिष्ठ लोगों पर छोड़ दिया जाता है।
समिति ने कहा कि अधिकारियों और अभियंताओं के दिमाग में बैठ गया है कि जिस मानक पर उनके प्रदर्शन को आंका जाएगा, वह मुख्य रूप से अधिकारी की नई परियोजनाओं को मंजूरी दिलाने, उसके लिए कोष हासिल करने और समय पर सामान व सेवाएं हासिल करने की उसकी क्षमता पर निर्भर करता है। समिति ने कहा कि ‘दिल्ली जल बोर्ड के सीईओ को समिति को स्थान और लाॅजिस्टिक सहायता प्रदान करने का काम सौंपा गया था, लेकिन यमुना निगरानी समिति के साथ अपनी पहली बातचीत पर तत्कालीन सीईओ ने असहायता व्यक्त की और अनुरोध किया कि सदस्य खुद सुझाव दें कि कैसे आगे बढ़ना है।’ ऐसे में एनजीटी ने दिल्ली के मुख्य सचिव को एक हफ्ते के अंदर यमुना निगरानी समिति को क्रियाशील बनाने का आदेश दिया है।
यमुना के 40 फीसदी प्रदूषण के लिए कच्ची काॅलोनियां जिम्मेदार
पिछले साल सुप्रीम कोर्ट ने आदेश देते हुए कहा था कि जो भी खुले में सीवेज कचरे का निपटान करता है, उससे सीवरेज शुल्क लिया जाए। ऐसा ही आदेश 2015 में एनजीटी ने भी दिया था। इसी आदेश को बाद में सुप्रीम कोर्ट ने कायम रखा था और दो महीने के भीतर सभी घरों से सीवेज शुल्क वसूलने का आदेश दिया था, लेकिन हमेशा की तरह सरकार और प्रशासन आदेश को धरातल पर लागू कराने में विफल रहे थे। यमुना निगरानी समिति ने ट्रिब्यूनल को बताया था कि यमुना नदी के 40 फीसदी प्रदूषण के लिए दिल्ली की कच्ची काॅलोनियां और झुग्गी बस्तियां जिम्मेदार हैं। समिति ने ट्रिब्यूनल में पेश अंतिम रिपोर्ट में इसका खुलासा किया था। यमुना प्रदूषण के लिए अधिकांश कच्ची काॅलोनियों और झुग्गी बस्तियों में सीवर लाइन नहीं होने को प्रमुख वजह बताया था। समिति ने सीवर होने के बाद कनेक्शन नहीं लेने वालों पर जुर्माने के तौर पर मोटी रकम वसूलने के लिए सिफारिश की थी।
आंकड़ों के मुताबिक राजधानी दिल्ली की कुल 1799 अनाधिकृत काॅलोनियों में लगभग 12 लाख 43 हजार घर हैं। इनें से महज 3 लाख 47 हजार घरों में सीवर कनेक्शन हैं। दिल्ली में कुल 1799 अनाधिकृत काॅलोनियां हैं, इनमें से सिर्फ 561 कॉलोनियों में ही सीवर लाइनें बिछी हुई हैं। 467 काॅलोनियों में सीवर लाइन बिछाने का काम दिसंबर 2022 तक पूरा होने की उम्मीद है, जबकि 115 काॅलोनियों में सीवर लाइन डालने के लिए इस साल अगस्त में टेंडर जारी होने की उम्मीद है। 154 काॅलोनियों में सीवर लाइन डालने के लिए डीडीए और एएसआई से मंजूरी का इंतजार है। तो वहीं 502 अनाधिकृत काॅलोनियों में सीवर की योजना का पता नहीं है।
वास्तव में दिल्ली में यमुना को साफ करने के लिए करोड़ों रुपयों की योजनाओं की जरूरत नही है। लाॅकडाउन ने सरकार को प्रत्यक्ष तौर पर बता दिया था कि उद्योगों का कैमिकल वेस्ट और घरों से निकलने वाले सीवरेज का प्रबंधन करना ही एकमात्र उपाय है। साथ ही इस पानी को खेती व सिंचाई के लिए उपयोग में लाया जा सकता है। इसके अतिरिक्त यमुना किनारे से गरीब लोगों की झोंपड़ियों को हटाने पर बहुत जोर दिया जाता रहा था। बार बार इन्हीं को यमुना में प्रदूषण के लिए दोषी भी ठहराते थे, जबकि प्रदूषण का मुख्य स्रोत वे कभी नहीं रहे और एक वैकल्पिक सोच सरकार अपनाती तो उन्हें यमुना की सफाई में भागीदार भी बनाया जा सकता था। इसके स्थान पर जरूरी यह है कि नदी के आसपास रहने वाले लोगों की भागीदारी को प्राप्त किया जाए। यमुना की समग्र रूप से रक्षा के लिए इसे एक बहुत व्यापक जन-अभियान के रूप में चलाया जाए।
यहां देखें यमुना निगरानी समिति की अंतिम रिपोर्ट - Rejuvenation of the River Yamuna
हिमांशु भट्ट (8057170025)