धारा, महासागरीय

Submitted by Hindi on Wed, 08/17/2011 - 10:28
धारा, महासागरीय जल के उन बृहत्‌ प्रवाहों को कहते हैं, जो विभिन्न महासागरों में पाए जाते हैं। इन धाराओं की स्थिति साधारणत: अपरिवर्तनीय होती है। पृथ्वी के उत्तरी गोलार्ध में ये प्रवाह दक्षिणावर्त तथा दक्षिणी गोलार्ध में वामावर्त होते हैं। विषुवतरेखीय प्रवाह पश्चिम से पूर्व की ओर होता है। साधारणत: ये धाराएँ महाद्वीपों के पूर्वीय तटों पर सबसे अधिक शक्तिशाली होती हैं।

धाराओं की उत्पत्ति के निम्नलिखित कारण हैं :


1. समुद्रजल के घनत्व में भिन्नता - विभिन्न समुद्रों के जलों का घनत्व निम्नलिखित कारणों से अलग अलग रहा करता है, जिससे पानी में गति आ जाती है :

(अ) ताप में अंतर- जिन क्षेत्रों में जल का ताप नीचा रहता है वहाँ के जल का घनत्व अधिक रहने के कारण जल की सतह ऊँचे ताप वाले जल की अपेक्षा नीची रहती है। इसलिए सतह पर गरम जल ठंडे जल की ओर बहा करता है। संतुलन बनाए रखने के लिए ठंड़ा जल सतह के नीचे गरम जल की ओर बहता है।

(ब) खारेपन में अंतर- पानी के घनत्व में खारेपन की मात्रा के अनुसार अंतर पड़ जाता है। अधिक खारे पानी का घनत्व कम खारे पानी के घनत्व की अपेक्षा अधिक रहता है, इसलिए कम खारे पानी की सतह अधिक खारे पानी की अपेक्षा अधिक ऊँची रहती है। अत: कम खारे पानी की धारा अधिक खारे पानी की ओर बहा करती है। भूमध्यसागर के जल में ऐटलैंटिक सागर के जल की अपेक्षा अधिक खारापन होने के कारण ऐटलैंटिक सागर स एक धारा जिब्राल्टर के पास से भूमध्यसागर में जाती है एवं संतुलन बनाए रखने के लिए सतह के नीचे ही नीचे एक धारा भूमध्य सागर से ऐटलैंटिक सागर की ओर आती है।

2. हवाएँ- पृथ्वी की सनातन हवाएँ धाराओं की उत्पत्ति एवं उनकी दिशा के निर्धारण में प्रमुख स्थान रखती हैं। अयनरेखीय क्षेत्रों में स्थायी व्यापारिक हवाएँ जल को पश्चिम की ओर महाद्वीपों के पूर्वी किनारों पर बहा ले जाती हैं। अत: यह एकत्र किया गया जल विभिन्न धाराओं के रूप में बह निकलता है। इसी प्रकार शीतोष्ण कटिबंध में चलनेवाली पछुवा हवाएँ जल को पूर्व की ओर महाद्वीपों के पश्चिमी किनारों पर बहा ले जाती हैं।

3. तटीय आकार- धाराएँ तटरेखा की बनावट के अनुसार बहा करती हैं। किसी धारा के मध्य में यदि कोई द्वीप या टापू आ जाता है तो वह धारा दो भागों में बँट जाती है।

4. जलमग्न बाधाएँ- धाराओं की उत्पत्ति में जलमग्न बाधाओं का भी प्रमुख स्थान हैं। धाराएँ इन्हीं बाधाओं के कारण अपना मार्ग भी बदल देती हैं।

5. पृथ्वी का आवर्तन- पृथ्वी की दैनिक गति के कारण उत्तरी गोलार्ध में विषुवत्‌ रेखा की ओर आनेवाली धाराएँ अपने दाहिनी ओर तथा विषुवत्‌ रेखा से उत्तरी ध्रुव की ओर जानेवाली धाराएँ भी अपने दाहिनी ओर मुड़ जाती हैं। दक्षिणी गोलार्ध में ठीक इसके विपरीत होता है।

6. पानी के तल में असमानता- कुछ सागरों में नदियों आदि के गिरने के कारण जल का तल असमान हो जाया करता है। अत: ऊँचे तल का पानी निम्न तल की ओर बहा करता है, जैसे काले सागर के पानी का तल ऊँचा होने से जल मारमारा सागर की ओर बहा करता है।

महासागरीय धाराओं के प्रभाव निम्नलिखित हैं :


1. समुद्र के प्राणियों को इनसे बहुत लाभ होता है, क्योंकि पानी गतिशीलता के कारण ऑक्सीजन गैस का पानी में संतुलन बना रहता है।

2. गरम एवं ठंड़ी धाराओं के मिलने से सम्मिलन स्थान पर कोहरा बन जाता है तथा प्लैंक्टन (Plankton) नामक शैवाल विकसित होता है, जिसे मछलियाँ भोजन के रूप में खाकर विकसित होती हैं। इसी कारण न्युफाउंडलैंड के पास के क्षेत्र प्रसिद्ध मछली क्षेत्र हैं।

3. नाविक लोग धारा के अनुकूल नाव चलाकर ईधंन एवं श्रम की बचत कर लेते हैं तथा गति में वृद्धि हो जाती है।

4. समीपस्थ तटीय भाग की जलवायु पर धारा का प्रभाव अधिक रहता है, जैसे गल्फ स्ट्रीम नामक गरम धारा के प्रभाव से नावें में कृषि संभव है। कूरोशीओ नामक गरम धारा के कारण ही जापान के पूर्वी उष्ण धाराएँ पूरी रेखाओं से तथा ठंढी धाराएँ विंदुओं से दिखाई गई हैं। उष्ण धाराएँ : 1. गल्फ स्ट्रीम, 2. उत्तरी प्रशांत धारा, 3. उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा, 4. भूमध्यरेखीय प्रतिधारा, 5. दक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा, 6. फाकलैंड धारा 7. ब्राजीलियन धारा, 8. दक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा, 9. उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा, 10. गल्फ स्ट्रीम धारा, 11. उत्तरी ऐटलैंटिक धारा, 12. मोज़ैबिक धारा, 13. मॉनसन प्रवाह, 14. भारतीय प्रतिधारा, 15. दक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा, 16. पूर्वी आस्ट्रेलियन धारा, 17. दक्षिणी भूमध्यरेखीय धारा, 18. भूमध्यरेखीय धारा, 19. उत्तरी भूमध्यरेखीय धारा, 20. कूरोशीओ धारा तथा 21. गिनी धारा; ठंढी धाराएँ रू क. कैलिफॉर्निया धारा, ख. पीरू धारा, ग. दक्षिणी प्रशांत धारा, घ. दक्षिणी ऐटलैटिक धारा, ङ. दक्षिणी भारतीय धारा, च. पश्चिम आस्ट्रेयिन धारा, छ. बेंगेला धारा, ज. कैनैरी धारा, झ. लैब्रेडॉर धारा, ञा. कैमचैट्का धारा, तट पर कृषि संभव है। ठंड़ी धारा अपने समीपस्थ भाग को ठंड़ा कर देती है।

5. तटीय वृक्षों के बीज तथा समुद्र जीवजंतुओं को धाराएँ एक स्थान से दूसरे स्थान को बहा ले जाती हैं। अत: इनका वितरण अन्य भूभागों में होता रहता है।

6. गरम धारा के ऊपर से बहनेवाली वायु का ताप बढ़ जाता है एवं उसमें नमी अधिक हो जाती है। ये हवाएँ समीपस्थ भूभाग में जाकर अधिक वर्षा करती है। इसके विपरीत संसार के बड़े बड़े रेगिस्तानों के पास प्राय: ठंड़ी धाराएँ बहती है।

7. ठंड़ी धाराओं के साथ कभी कभी बड़े बड़े हिमशैल, जिनसे जहाजों को हानि पहुँचती है एवं उन्हें विशेष सतर्क रहना पड़ता है, बह कर चले आते हैं।

विभिन्न महासागर में निम्नलिखित प्रसिद्ध धाराएँ हैं।


हिंद महासागर- इसके उत्तरी भाग में पृष्ठधाराएँ मॉनसून के अनुसार परिवर्तित होती रहती है। अन्य महासागरों के विपरीत इस महासागर में विषुवत रेखीय प्रतिकूल धाराएँ विषुवत्‌ रेखा के दक्षिण बहती हैं। विषुवतरेखीय दक्षिण धारा मैडैगैस्कर द्वीप के तट के पास पहुँच कर विभाजित हो जाती है। उत्तरी शाखा मैडैगैस्कर के उत्तरी तट से घूमकर दक्षिण की ओर उत्तमाशाअंतरीप को जाती है। इसे आगुलास (Agulhas) धारा कहते हैं। दक्षिणी शाखा भी आगे इसी से मिल जाती है। इस धारा का अधिक भाग दक्षिणी ध्रुव के चतुर्दिक्‌ प्रवाहित होनेवाली धारा से सम्मिलित हो पूर्व की ओर चला जाता है, किंतु कुछ अंश उत्तमाशांतरीप से घूमकर अंध महासागर में पहुँच जाता है और बेंगेला (Benguela) धारा से मिल जाता है।

प्रशांत महासागर- 100 तथा 250 उत्तरी अक्षांश के मध्य, व्यापारिक हवाओं (trade winds) के कारण, विषुवतरेखीय उत्तरी धारा बनी रहती है। इस धारा का अधिकांश फिलिपीन द्वीपों के उत्तर तथा फारमोसा के पूर्वी तट से होते हुए, जापान के पूर्वी सागरतट के किनारे किनारे 350 उत्तरी अक्षांश तक चला जाता है। फारमोसा के उत्तर में गल्फ स्ट्रीम (Gulf Stream) के समान उष्ण जल की यह धारा कूरोशीओ या जापानी धारा कहलाती है। जब यह धारा जापान के तट को छोड़ती है तो पूर्व की ओर बहकर क्यूरील द्वीपो के किनारे दक्षिण की ओर बहनेवाली, ठंड़े जल की ओयाशियो धारा से संयुक्त हो जाती है। उष्ण जल का अधिकांश हवाई द्वीपों तक पहुँचने के पूर्व दक्षिण की ओर घूम जाता है, जिसके कारण पश्चिमी प्रशांत महासागर में दक्षिणावर्त एक भँवर पड़ जाता है। शेष जल हवाई द्वीपों के उत्तर से होता हुआ, अमरीका के पश्चिमी तट से पांच छ: सौ मील की दूरी तक पहुँच जाता है। यहाँ से यह दक्षिण की ओर घूमता है और इससे पूर्वी प्रशांत महासागर में एक दक्षिणावर्त भँवर बनता है। अधिक उत्तर में पश्चिम से पूर्व बहनेवाली आलूशाँ (Aleutian) धारा है। इस धारा के एक भाग से आलैस्का (Alaska) की खाड़ी में एक भँवर बनता है तथा दूसरा भाग दक्षिण को घूमकर निम्न कैलिफॉर्निया के दक्षिण तक जानेवाली ठंड़ी कैलिफॉर्निया धारा को जन्म देता है।

दक्षिणी प्रशांत महासागर की धाराओं के संबंध का ज्ञान इतना अधिक नहीं है। ये धाराएँ दो बृहत्‌ वामावर्त भँवरों से उत्पन्न होती हैं। इन भँवरों में से एक पश्चिमी तथा अन्य पूर्वी प्रशांत महासागर में हैं। दक्षिणी अमरीका के पश्चिमी किनारे पर ठंड़ी हंबोल्ट (Humboldt) धारा उत्तर की ओर बहती है।

अंध महासागर- प्रशांत महासागर के सदृश उत्तरी अंध महासागर के निम्न अंक्षाशों में भी व्यापारिक हवाओं से निरंतर बहनेवाली उत्तरी विषुवतरेखीय धारा उत्पन्न होती जिसका प्रवाह पूर्व से पश्चिम की ओर होता है। इस धारा का अधिकांश कैरीबियन समुद्र तक चला जाता है और यूकाटान जलांतराल से होता हुआ मेक्सिको की खाड़ी में पहुँच जाता है। यहाँ से यह धारा फ्लोरिडा की जलसंधि (straits) द्वारा बाहर निकलती है तथा गल्फ स्ट्रीम नामक शक्तिशाली, उष्ण जलधारा के रूप में अमरीका के तट का अनुसरण कर उत्तर की ओर बहती है। धीरे धीरे यह धारा दक्षिण की ओर घूमती है और 40 उत्तर अक्षांश के निकट पूर्व की ओर बहने लगती है। यूरोप के तट के निकट पहुँच कर यह विभाजित हो जाती है। एक शाखा उत्तर पश्चिम घूमकर, आइसलैंड के दक्षिण-पूर्वी तट से बहती हुई ग्रीनलैंड के दक्षिण अंतरीप को पार कर जाती है। दूसरी शाखा स्कॉटलैंड के उत्तर नार्वीजियन सागर में प्रवेश करती है। तीसरी प्रसृत शाखा दक्षिण की ओर घूम जाती है तथा उत्तरी अफ्रीका के पश्चिमी तट से बहती हुई अंत में विषुवतरेखीय उत्तरी धारा से संयुक्त हो जाती है।

दक्षिणी अंधमहासागर में धाराओं का प्रतिरूप उत्तरी अंधमहासागर की धाराओं के दर्पणप्रतिबिंब सदृश है। विषुवत्रेरेखीय दक्षिणी धारा दक्षिण अमरीका के पूर्वी तट की ओर पश्चिम दिशा को बहती है। यहाँ पहुँच कर यह दो शाखाओं में विभाजित हो जाती है। एक तो उत्तरी गोलार्ध को जाती है तथा अन्य से ब्राजील धारा नामक यथेष्ट शाक्तिशाली उष्ण धारा उत्पन्न होती है। 40 दक्षिणी अक्षांश पर ब्राजील धारा का उत्तर की ओर बहनेवाली फाकलैंड धारा से सम्मिलन होता है। तब यह धारा पूर्व की ओर घूम जाती है और अफ्रीका के तट के पास पहुँचकर, जहाँ इसे बेंगेला धारा कहते हैं, यह ठंढे जल की धारा हो जाती है और विषुवत्‌ रेखा की ओर लौट पड़ती है। इससे भी दक्षिण में, पृथ्वी के चतुर्दिक्‌ परिभ्रमण करनेवाली ऐंटार्कंटिक (दक्षिण ध्रुवीय) धारा ड्रेकमार्ग (Drake passage) से दक्षिणी अंध महासागर में प्रवेश करती है और पूर्व की ओर घूमकर हिंद महासागर में पहुँच जाती है।

Hindi Title


विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)




अन्य स्रोतों से




संदर्भ
1 -

2 -

बाहरी कड़ियाँ
1 -
2 -
3 -