धातु (Metals)

Submitted by Hindi on Wed, 08/17/2011 - 09:28
धातु (Metals) रासायनिक तत्वों को सर्वप्रथम धातुओं और अधातुओं में विभाजित किया गया, यद्यपि दोनों समूहों को बिल्कुल पृथक्‌ नहीं किया जा सकता था। धातु की परिभाषा करना कठिन कार्य है। मोटे रूप से हम कह सकते हैं कि यदि किसी तत्व में निम्नलिखित संपूर्ण या कुछ गुण हों तो उसे धातु कहेंगे :

(1) चमक, (2) परांधता, (3) साधारण ताप पर ठोस, (4) स्वच्छ सतह द्वारा प्रकाश के परावर्तन (Reflection) का गुण, (5) ऊष्मा एवं विद्युत्‌ की उत्तम चालकता, एवं (6) द्रव अवस्था से ठंड़ा करने पर क्रिस्टल रूप में ठोस पदार्थ का बनना।

हम यह अवश्य कह सकते हैं कि यदि कोई तत्व विशुद्ध अवस्था में चमकदार और विद्युत्‌ का चालक नहीं है, तो वह अधातु है। प्रकृति में असंयुक्त अवस्था में बिरली धातु ही मिलती है। स्वर्ण, रजत, प्लैटिनम और कभी-कभी ताम्र धातुएँ यदा कदा मिल जाती हैं। अधिकांश धातुओं के अयस्क (Ores) मिलते हैं जो अधातुओं (जैसे ऑक्सीजन, कार्बन, गंधक आदि) के साथ धातुओं के यौगिक होते हैं। ये यौगिक भी शुद्ध अवस्था में न होकर अन्य खनिज में मिश्रित रहते हैं। इन अयस्कों से विविध रीतियों द्वारा धातुएँ निकाली जाती हैं।

अधिकतर धातुएँ भूरे श्वेत से लेकर चमकदार श्वेत रंग की होती हैं। स्वर्ण और ताम्र इसके अपवाद हैं। पारद को छोड़कर (गलनांक -38.87 सें.) और सारे धातु साधारण ताप पर ठोस हैं। सीजियम तथा गैलियम धातु का गलनांक क्रमश: 280 सें. तथा 29.780 सें. हैं। दूसरी और टंग्स्टेन धातु 3,3800 सें. पर द्रव बनती है। उच्च ताप पर धातुएँ वाष्प में परिवर्तित हो जाएँगी। पर इसमें भी उनमें कोई समानता नहीं दिखाई देती। पारद का क्वथनांक 3560 सें. है, परंतु टंग्स्टेन का 5,9300 सें.। ऐसा अनुमान है कि टैंटेलम 6,1000 सें. पर वाष्पित होगा।

यदि हम विद्युच्चालकता पर ध्यान दें, तो ज्ञात होगा कि अधातुओं के विपरीत धातुएँ उत्तम चालक हैं। धातुओं में सबसे श्रेष्ठ विद्युच्चालक रजत है। यदि तुलना के लिए उसकी चालकता 100 मान ली जाए तो कुछ अन्य साधारण धातुओं की चालकता निम्नलिखित सारणी के अनुसार होगी।

सारणी

धातु का नाम

चालकता

रजत

100

ताम्र

95

स्वर्ण

73

ऐल्यूमिनियम

60

यशद

27

निकल

23

लौह

16

वंग

14

सीस

8

पारद

1.7



इस माप पर बौरॉन (अधातु) की चालकता 10-10 आएगी। इसी प्रकार धातुएँ उत्तम ऊष्मा चालक भी होती हैं। विशेषकर विशुद्ध धातुओं की दोनों चालकताएँ लगभग एक क्रम में रहती हैं। ताप घटाने पर धातुओं का विद्युत्प्रतिरोध घटता है, अथवा हम यह भी कह सकते हैं कि चालकता बढ़ती है।

धातुओं का ताप बढ़ने पर उनका आकार बढ़ जाता है। इस गुण को तापीय प्रसार (Thermal expansion) कहते हैं। थर्मामीटर में पारद के इसी गुण का लाभ उठाया जाता है। कुछ ऐसी मिश्रधातुएँ भी बनी हैं जिनका ताप के साथ तापीय प्रसार अति सूक्ष्म है।

लौह, निकेल और कोबाल्ट को छोड़कर अन्य धातुओं में चुंबकीय गुण अनुपस्थित है। धातु में अपना आकार रखने की बड़ी क्षमता होती है। इस ओर यह बाहरी दबाव का बहुत प्रतिरोध करता है। मैंगनीज सबसे कठोर धातु है और लीथियम सबसे कोमल। तनावक्षमता में टंग्स्टेन सबसे श्रेष्ठ और सीसा बहुत न्यून है।

अनेक धातुओं में घातुवर्ध्यता (malleability) और तन्यता (ductility) के गुण होते हैं। इन्हें ठोक पीटकर पतली पर्त बनाई जा सकती है (विशेषकर स्वर्ण, रजत और ताम्र की)। तन्यता के फलस्वरूप यदि किसी पतले छिद्र के मध्य से उन्हें खींचा जाए तो उनके पतले तार खिंच आएँगे।

धातु क्रिस्टलीय होती हैं जो अधिकतर धन प्रणाली के होते हैं। धातु के परमाणु धन के आकार में सुसज्जित होने के कारण इसी श्रेणी के क्रिस्टल बनाते हैं। कुछ धातुएँ षड्फलकीय (Hexagonal) प्रणाली के मणिभ बनाती हैं। कभी कभी एक ही धातु के परमाणु एक से अधिक प्रणाली में व्यवस्थित होकर विभिन्न रूप में क्रिस्टल बनाते हैं। इन्हें अपररूपता (Allotropic modification या Allotropy) कहेंगे।

धातु के परमाणु इलेक्ट्रॉनदाता होते हैं। क्रिस्टल में इनके धनायन नियत स्थान में रहेंगे और मुक्त इलेक्ट्रॉन उसके रिक्त स्थानों में। इस प्रकार यह इलेक्ट्रॉन स्वतंत्र और सचल रहेंगे, जिसके कारण धातु में उच्च चालकता, परावर्तकता (reflectivity) आदि गुण आ जाते हैं।

धातुओं के लगभग सभी गुण उनकी परमाणु संख्या के आबर्त फलन (Periodic function) होते हैं। यह आवर्तिता परमाणु आयतन विद्युत्‌ और ऊष्मा चालकता, घातवर्ध्यता, तन्यता, संगलन की गुप्त ऊष्मा (Latent heat of fusion) आदि में उल्लेखनीय हैं। लादेर मायर ने इसी आवर्तिता की ओर वैज्ञानिकों का ध्यान पहले पहल तत्वों की आवर्तसारणी द्वारा आकर्षित किया था। (रमोचंद्र कपूर)

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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