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नंदन, जुलाई 2010
कभी गरजते बादल जी,
कभी बरसते बादल जी।
बंदर, हाथी, घोडे बन,
सुंदर दिखते बादल जी।
दौड़-धूप दिन-रात, मगर
तनिक न थकते बादल जी।
बूंदा-बांदी और झड़ी,
रस्ते-रस्ते बादल जी।
धरती पर हरियाली की,
रचना रचते बादल जी।
इंध्रधनुष के देते हैं,
प्रिय गुलदस्ते बादल जी।
बिन पानी सब सून रहे,
खूब समझते बादल जी।
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