एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) के संदर्भ में जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की पहचान एवं योजना

Submitted by Editorial Team on Mon, 03/16/2020 - 15:14
Source
राष्ट्रीय जलविज्ञान,संस्थान रुड़की

 स्वच्छ पेयजल स्वच्छ पेयजल

सारांश

भूमि की बाह्य परत एवं आस-पास के वातावरण के कारण जलविज्ञानीय तंत्र काफी जटिल एवं गतिशील प्रकृति का होता है। यद्यपि पृथ्वी पर जल विभिन्न रूपों में विधमान है तथापि बढ़ती जनसंख्या, स्वच्छ जल निकायों में बढ़ते प्रदूषण, शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण बढ़ती जल की मांग के चलते स्वच्छ जल की उपलब्धता में कमी आती जा रही है। इस बढ़ती हुई जल की कमी के कारण वर्तमान में जल की गुणवत्ता का मापन एक आवश्यकता बन गई है। वैश्विक स्तर पर जल की निगरानी व आपूर्ति संगठन व्यापक भौगोलिक क्षेत्र पर जल की गुणवत्ता की सही निगरानी करने के बारे में किन्तित है एवं समय-समय पर अपने निगरानी नेटवर्क को मजबूत करने में प्रयासरत हैं। हाइड्रोमेट्रिक नेटवर्क की अभिकल्पना स्टेशनों की न्यूनतम संख्या के आरम्भ होकर एवं धीरे-धीरे बढ़कर इष्टतम संख्या तक पहुंच जाती है। इष्टतम संख्या, उपलब्ध आंकड़ों की मात्रा एवं गुणवत्ता, उपयोगकर्ताओं की आवश्यकताओं एवं आर्थिक रूप से न्यायसंगतता पर निर्भर करती है। जल विज्ञान के क्षेत्र में, आंकड़ों की निगरानी अधिकतर स्थल विशिष्ट होती है एवं स्थानिक पैमाने पर आंकड़ों के उचित प्रतिनिधित्व के लिए उचित नेटवर्क योजना की आवश्यकता होती है। चूंकि जल की गुणवत्ता के चालक स्थान और समय में भिन्न होते हैं, इसलिए जल की गुणवत्ता भी स्थान और समय के साथ भिन्न होती है। इसलिए विविध स्थान पर निर्भर परिस्थितियों में जल की गुणवत्ता की निगरानी करना अनिवार्य है, जिसके लिए एख विशेष जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क आवश्यक है। प्रस्तुत लेख एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) हेतु आंकड़ों को एकत्र करने के लिए जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की पहचान और योजना के संदर्भ में है।

परिचय

भारत में हाइड्रोलॉजिकल सिस्टम की निगरानी प्राचीन काल से ही ज्ञात है। वर्षा गेज और इसके उपयोग का पहला विवरण चाणक्य द्वारा लिखित अर्थशास्त्र (300 ईसा पूर्व) में निहित है। वराहमिहिर द्वारा लिखित बृहतसंहिता (ई 505-587) में वर्षा मापक, वायु फलक और वर्षा के लिए भविष्यवाणी प्रक्रियाओं का वर्णन है। मिस्रवासियों क 1800 ईसा पूर्व नदियों के चरण माप का महत्व और नील नदी के चरणों का रिकॉर्ड पता था। हाइड्रोलॉजिकल चक्र का ज्ञान यूरोप में बहुत बाद में, लगभग 1500 ई0 में जाना गया (सुब्रमण्य, 2010)। वर्तमान समय में, जल की गुणवत्ता की निगरानी के नेटवर्क की इष्टतम अभिकल्पना और दक्षता में सुधार से सम्बन्धित समस्याएं वर्ष 1970 के बाद से शोध का विषय रही हैं (निंग और चांग, 2002)। विशिष्ट निगरानी स्टेशनों के लिए नेटवर्क डिजाइन और स्थल चयन हेतु मानदंड के लिए बुनियादी सिद्धान्तों का मूल्यांकन किया गया है और कई शोधकर्ताओं (स्काल्स्की एवं मैकेंजी, 1982; लटनमेयर एट अल, 1986; स्मिथ और मैकब्राइड, 1990) द्वारा लागू किया गया है। बाद के अध्ययनों ने विभिन्न प्रकार की सांख्यिकीय और/ या प्रोग्रामिंग तकनीकों का उपयोग करते हुए पानी की गुणवत्ता की निगरानी के नेटवर्क के प्रभावी डिजाइन पर अधिक ध्यान केन्द्रित किया है, जैसे कि पूर्णांक प्रोग्रामिंग, मल्टी ऑब्जेक्टिव प्रोग्रामिंग, क्रिगिंग सिद्धांत और अनुकूलन विश्लेषण (हुडक एट अल, 1995; डिक्सन)।

भारत के विभिन्न जल निगरानी और जल आपूर्ति संगठन और संस्थान, व्यापक भौगोलिक क्षेत्र हेतु जल संसाधनों की अधिक सटीक निगरानी रखने के लिए अधिक चिंतित हैं, और इस प्रकार समय-समय पर अपने निगरानी नेटवर्क को मजबूत करते हैं। ऐसी एजेंसियां और शोधकर्ता वर्षा (वर्षा और हिमपात के रूप में), धारा प्रवाह (सीपीसीबी, 2009, सरगांवकर और देशपांडे, 2003; समांत्रे एटल, 2009, जिंदल और शर्मा 2011), भूजल (कृष्ण एट अल 2013, 2014), झीलों, जलाशयों इत्यादि विभिन्न जल निकायों की जल गुणवत्ता की निगरानी कर चुके हैं।

हाइड्रोमेट्रिक नेटवर्क का डिजाइन आदर्श रूप से न्यूनतम स्टेशनों के साथ शुरू होता है, और धीरे-धीरे बढ़ता है जब तक कि एक इष्टतम नेटवर्क प्राप्त नहीं होता है जब तक एकत्रित डेटा की मात्रा और गुणवत्ता आर्थिक रूप से उचित होती है और यह विशिष्ट निर्णय लेने के लिए उपयोगकर्ता की जरूरतों को पूरा करती है। नेटवर्क प्लानिंग किसी भी निगरानी प्रणाली की रीढ़ होती है। जल विज्ञान के क्षेत्र में, आंकड़ों की निगरानी के लिए चयनित अधिकतर स्थल विशिष्ट होते हैं, एवं स्थानिक पैमाने पर इन आंकड़ों के उचित प्रतिनिधित्व के लिए उचित नेटवर्क योजना की आवश्यकता होती है। प्रस्तुत अध्ययन एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) के लिए आंकड़ों के अधिग्रहण हेतु जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की पहचान और योजना के संदर्भ में किया गया है।

जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क

जल के नमूनों के संग्रह हेतु नेटवर्क प्रकृति में काफी सामान्य होता है जिसमें विभिन्न प्रकार के नमूनों के संग्रहके लिए एक नेटवर्क स्थापित किया जाता है। इस नेटवर्क के तहत एकत्र किए गए नमूनों का उपयोग विभिन्न हाइड्रोलॉजिकल विश्लेषण यथा पानी की गुणवत्ता, समस्थानिक विश्लेषण, अवसादन आदि के लिए किया जाता है। पानी की गुणवत्ता की निगरानी के लिए कई दृष्टिकोण है। मॉनिटरिंग को रणनीतिक रूप से स्थित दीर्घकालिक स्टेशनों के नेटवर्क के माध्यम से किया जा सकता है, बार-बार अल्पकालिक सर्वेक्षण, या इन दोनों के संयोजन से जल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रम के मूल उद्देश्यों के अतिरिक्त, स्टेशनों के स्थान के चयन हेतु निम्नलिखित कारकों को ध्यान में रखा जाना चाहिए।

  • मौजूदा पानी की समस्याएं और स्थितियां
  • संभावित विकास केन्द्र (औद्योगिक और नगर निगम)
  • जनसंख्या के रुझान
  •  जलवायु, भूगोल और भूविज्ञान
  • पहुंच
  • उपलब्ध जनशक्ति, धन, क्षेत्र और प्रयोगशाला डेटा हैंडलिंग सुविधाएं
  • अंतर-न्यायिक विचार
  • प्रयोगशाला में ले जाने में लगने वाला समय (नमूने के बिगड़ने के लिए), तथा
  • कर्मियों की सुरक्षा

जल गुणवत्ता मानक

जल की गुणवत्ता की विशेषता वाले मापदंडों को कई तरह से वर्गीकृत किया जा सकता है, जिसमें भौतिक गुण (जैसे, तापमान, विद्युत चालकता, रंग, मैलापन), अकार्बनिक रासायनिक घटक (जैसे, घुलित ऑक्सीजन, क्लोराइड, क्षारीयता, फ्लोराइड, फॉस्फोरस, धातु), कार्बनिक शामिल हैं, रासायनिक गुण (जैसे, फेनोल, क्लोरीनयुक्त हाइड्रोकार्बन, पॉलीसाइक्लिक एरोमैटिक हाइड्रोकार्बन और पेस्टीसाइड्स) और जैविक घटक, दोनों सूक्ष्मजीव विज्ञानी, जैसे कि मल के समान, और मैक्रोबायोटिक, जैसे कीड़े, प्लवक और मछली, जो जलीय पर्यावरण के पारिस्थितिक स्वास्थ्य का संकेत कर सकते हैं (WMO, 1994)

एक दूसरा वर्गीकरण पैरामीटर से जुड़े महत्व के अनुसार किया जाता है। यह जल निकाय के प्रकार, जल के इच्छित उपयोग और निगरानी कार्यक्रम के उद्देश्यों के साथ बदलता रहता है।

जल गुणवत्ता चर को कभी-कभी दो श्रेणियों में वर्गीकृत किया जाता हैः 

i.मूल चर (तालिका1 में दिए गए)। 

ii. उपयोग से सम्बन्धित चर

  • पेयजल आपूर्ति
  • सिंचाई और
  • जलीय जीवन की सामान्य गुणवत्ता।

तालिका 1. जल गुणवत्ता मूल चर

क्रमांक

प्राचल

नदी

झील एवं जलाशय

भूजल

सामान्य जल गुणवत्ता

 

 

 

1.

जल स्तर/डिस्चार्ज

X

x

x

2.

कुल निलंबित ठोस

X

-

-

3.

तापमान

X

x

x

4.

पी एच

X

x

x

5.

विद्युत चालकता

X

x

x

6.

घुलित आक्सीजन

X

x

x

7.

पारदर्शिता

-

x

-

घुलित लवण

 

 

 

8.

कैल्शियम

X

x

x

9.

मैग्नीशियम

X

x

x

10.

सोडियम

X

x

x

11.

पोटेशियम

X

x

x

12.

क्लोराइड

X

x

x

13.

फ्लोराइड

-

-

x

14.

सल्फेट

X

x

x

15.

क्षारीयता

X

x

x

पोषक तत्व

 

 

 

16.

नाइट्रेट प्लस नाइट्रेट

X

x

x

17.

अमोनिया

X

x

x

18.

कुल फास्फोरस, घुलित

X

x

-

19.

कुल फास्फोरस, कण

X

x

x

20.

कुल फास्फोरस, फ़िल्टर नहीं किए गए

X

x

-

21.

सिलिका प्रतिक्रियाशील

X

x

-

कार्बनिक पदार्थ

 

 

 

22.

क्लोरोफिल ए

X

x

-

नोट x = आवश्यक - = आवश्यक नहीं

यूएसडीए (2007) ने भूजल गुणवत्ता निगरानी कार्यक्रमों के लिए संकेतकों के निम्नलिखित सामान्य समूहों का सुझाव दिया हैः

  • क्षेत्र माप (तापमान, विशिष्ट चालकता, पीएच, ई एच (रेडॉक्स क्षमता), घुलित ऑक्सीजन, क्षारीयता, जल की गहराई)।
  • प्रमुख अकार्बनिक आयन और विघटित पोषक तत्व (कुल घुलित ठोस (TDS) C1-] NO3-SO4-PO4-SiO2, Na+, K+, Ca++, Mg+, NH4+)।
  • कुल जैविक कार्बन (TOC)।
  • कीटनाशक (एल्फा BHC, बीटा BHC, गामा BHC, क्लोरोपायरिफास, एसेटानिलाइड, ट्राईअजीन, फ्थलेट, दाई डाईनाइट्रोफेनोल, कार्बामेट, हैलकार्बन आदि)
  • वाष्पशील कार्बनिक कार्बन (VOC)।
  • धातु और ट्रेस तत्व Fe,Mn,Zn, Cd,Pb, Cu, Cr, Ni, Ag, Hg, As,Sb, Se, Be, B)।
  • जीवाणु (कोलीफॉर्म बैक्टीरिया, ईकोलाई, एंटोकोसी आदि)।
  • रेडियोन्यूक्लाइड्स (रेडियम, रेडोन, यूरेनियम)।
  • पर्यावरण समस्थानिक (H, O,,N,C,S)।

जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क डिजाइन की तकनीक

जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क की योजना के लिए निम्नलिखित तकनीकों का उपयोग किया जा सकता है I

  • बेडरॉक और सतही जलभृतों की निगरानी
  • हाइड्रोलॉजिकल संरचनाओं के आधार पर
  • पानी के उपयोग और साइट की स्थिति के आधार पर
  • पानी के मिश्रण पर आधारित
  • विशिष्ट आवश्यकता के आधार पर
  • नदी की प्रवाह क्षमता के आधार पर
  • झील और जलाशय के जल सतह क्षेत्र पर आधारित
  • समुद्र तट के समानांतर
  • भूमि उपयोग के आधार पर
  • एरियाल एक्स्टेंट पर आधारित

बेडरॉक और सतही जलभृतों की निगरानी

प्रस्तावित नेटवर्क विविध जल-भूवैज्ञानिक, मिट्टी और भूमि उपयोग की स्थितियों को प्रतिबिम्बित करना चाहिए। इसलिए, विभिन्न प्रकार की मृदा की स्थितियों में बेडरॉक और सतही जलभृतों दोनों को निगरानी की जानी चाहिए। नेटवर्क को विभिन्न प्रकार के स्रोतों को शामिल करना जारी रखना चाहिए, हालांकि ऐसे कुओं पर कम जोर दिया जाना चाहिए, जो आमतौर पर खराब निगरानी बिंदु होते हैं। क्योंकि इस प्रकार के जलभृतों में जल की गुणवत्ता की प्रकृति आम तौर पर काफी भिन्न होती है, और इसलिए इनके जल की गुणवत्ता की निगरानी की आवश्यक है।

जलविज्ञान संरचनाओं पर निर्भरता

नदी पर नमूना बिंदुओं की संख्या जल विज्ञान और जल के उपयोग पर निर्भर करती है। जल की गुणवत्ता में उतार-चढ़ाव जितना अधिक होगा, माप की आवृत्ति उतनी ही अधिक होगी। नम क्षेत्रों में, जहाँ विलेय पदार्थ की सांद्रता कम होती है की तुलना में शुष्क जलवायु में जहां सांद्रता, विशेष रूप से महत्त्वपूर्ण आयन जैसे सोडियम, उच्च होते हैं, कम अवलोकन की आवश्यकता होती है। कई स्थानों पर, जल गुणवत्ता नमूनाकरण स्टेशनों को धारा गेजिंग स्टेशनों और संरचनाओं जैसे बैराज, बांध आदि के साथ जोड़ा जा सकता है। इसी तरह, बसंत प्रवाह के गेजिंग स्थलों का उपयोग जल नमूनाकरण के उद्देश्य के लिए भी किया जा सकता है।

जल के उपयोग और साइट की स्थिति के आधार पर

जल के उपयोग और साइट की स्थिति पर जल के नमूने हेतु स्टेशन स्थापित करने के लिए क्षेत्रों को विशेष रूप से रॉक संरचनाओं के कारण एंथ्रोपोजेनिक या जियोजेनिक जल की गुणवत्ता प्रदूषण या संदूषण जैसे स्रोतों के आधार पर संदूषण की सीमा और गंभीरता का आकलन करने के लिए नमूना लेने की आवश्यकता होती है। यदि कोई जल आपूर्ति योजना या कोई अपशिष्ट जल निपटान स्थल वहां मौजूद है, तो ऐसी साइटों को गंभीर रूप से मानचित्रण करने की आवश्यकता है।

जल के मिश्रण पर आधारित

नदियां पर, नमूने हेतु स्टेशनों को उन स्थानों पर स्थापित किया जाना चाहिए जहां अपशिष्ट जल पर्याप्त रूप से नदी के जल में अच्छी तरह से मिल गया हो। चूंकि अपशिष्ट जल के पाश्र्व और उर्द्धवाधर मिश्रण या मुख्य नदी के साथ एक सहायक धारा प्रवाह धीमा होता है, विशेष रूप से यदि नदी में प्रवाह पटलीय है और जल अलग-अलग तापमानों पर है तो सहायक नदी और मुख्य धारा के जल का पूरा मिश्रण कई बार संगम की निचली वाहिका में कई बार कई किलोमीटर तक की काफी दूरी तक नहीं हो पाता। इसलिए, पूरा मिश्रण के क्षेत्र को तालिका-2 (UNEP/WHO] 1996) में दिखाए गए मूल्यों से अनुमान लगाया जा सकता है। संदेह की स्थिति में, मिश्रण की सीमा की जांच करने के लिए तापमान की माप या नदी की चौड़ाई के कई बिंदुओं पर किसी अन्य विशेष चर द्वारा की जानी चाहिए। यदि नदी में रैपिड्स या झरने हैं, तो मिश्रण भी तीव्र गति से होगा और प्रतिनिधि नमूने निचली वाहिकाओं से प्राप्त किए जा सकते हैं। हालांकि, घुलित ऑक्सीजन के निर्धारण के लिए नमूनाकरण, रैपिड्स या झरने के ऊपर होना चाहिए क्योंकि अशांति के कारण जल ऑक्सीजन के साथ संतृप्त हो जाएगा। ऐसे मामले में, अपूर्ण मिश्रण की संभावना होने पर कई नमूनों को नदी के लम्बवत लेना चाहिए।

तालिका 2 धाराओं और नदियों में पूर्ण मिश्रण की अनुमानित दूरी

औसत नदी की चौड़ाई (मीटर)

नदी की औसत गहराई (मीटर)

पूर्ण मिश्रण के लिए अनुमानित दूरी (किमी)

 

5

1

0.08-0.7

2

0.05-0.3

3

0.03-0.2

 

 

 

10

1

0.3 - 2.7

2

0.2—1.4

3

 

0.1-0.9

4

0.08-0.7

5

0.07-0.5

 

 

20

1

1.3-11.0

3

0.4-4.0

5

0.3-2.0

7

0.2-1.5

 

 

50

1

8.0-70.0

3

3.0-20.0

5

2.0-14.0

10

0.8-7.0

20

0.4- 3.0

पुल नमूना स्टेशन स्थापित करने के लिए एक उत्कृष्ट स्थान होता है (बशर्ते कि यह नदी पर एक नमूना स्थल पर स्थित हो)। यह आसानी से सुलभ और स्पष्ट रूप से पहचान योग्य स्थान है। इसके अलावा पुल अक्सर एक हाइड्रोलॉजिकल गेजिंग स्टेशन होता है,यदि ऐसा हो तो ब्रिज पियर्स में से एक पर एक गहरा मापक गेज अंकित किया जा सकता है। इस प्रकार नमूना लेने के समय यह धारा प्रवाह सूचना एकत्रीकरण की अनुमति देता है । आम तौर पर अच्छी तरह से मिश्रित नदी में मध्य-धारा या मध्य चैनल पर एक पुल से लिया गया नमूना पर्याप्त रूप से नदी के सम्पूर्ण जल का प्रतिनिधित्व करेगा।

नमूने स्टेशन पर पूरा मिश्रण को सत्यापित करने के लिए, नदी की चौड़ाई और गहराई के बिंदुओं पर कई नमूने लेना और उनका विश्लेषण करना आवश्यक है। यदि परिणाम एक दूसरे से काफी भिन्न नहीं होते हैं, तो स्टेशन को मध्य-धारा या किसी अन्य सुविधाजनक बिंदु पर स्थापित किया जा सकता है। यदि परिणाम काफी भिन्न होते हैं तो धारा के क्रॉस-सेक्शन में कई बिंदुओं पर लिए गए नमूनों को मिलाकर एक समग्र नमूना प्राप्त करना आवश्यक होगा। आम तौर पर, जितने अधिक बिंदुओं का नमूना लिया जाता है, उतने अधिक प्रतिनिधि समग्र नमूने होंगे। आमतौर पर 3 से 5 बिंदुओं पर नमूना पर्याप्त होता है एवं संकीर्ण और उथली धाराओं के लिए कम बिंदुओं की आवश्यकता होती है। जहां से विभिन्न धाराओं और विभिन्न प्रवाह दरों के साथ नदियों में नमूने प्राप्त किए जाने चाहिए उन बिंदुओं की संख्या के लिए तालिका 3 में सुझाव दिए गए हैं।

विशिष्ट आवश्यकता के आधार पर

जरूरत के आधार पर भी जल की गुणवत्ता के नमूनों हेतु स्टेशन तय किए जा सकते हैं। इस तरह की आवश्यकताएं नीचे दिए गए किसी भी या कुछ कारणों से उत्पन्न हो सकती हैः

  • किसी विशेष क्षेत्र में स्वास्थ्य समस्याओं की घटना
  • पेयजल आपूर्ति योजना
  • अनुसंधान की जरूरत है
  • धारा में अपशिष्ट जल का निपटान
  • अंतरराष्ट्रीय सीमा से ठीक पहले, अगर नदी देश के बाहर जा रही है
  • अंतरराष्ट्रीय सीमा के ठीक बाद, यदि नदी देश में प्रवेश कर रही हो
  • अंतर-राज्य सीमा के ठीक पहले या बाद में, यदि नदी एक से अधिक राज्यों में बह रही हो
  • एक प्रमुख योजना के तहत सिंचाई, या घरेलू, या औद्योगिक उद्देश्य के लिए निकासी के बिंदुओं से ऊपर।
  • झीलों और जलाशयों के आउटलेट पर

नदी की प्रवाह क्षमता के आधार पर

झीलों और जलाशयों को कई प्रभावों के अधीन किया जा सकता है जो जल की गुणवत्ता को एक स्थान से दूसरे स्थान पर और समय-समय पर भिन्न करते हैं। इसलिए, नमूनाकरण स्टेशन वास्तव में जल निकाय के प्रतिनिधि हैं यह सुनिश्चित करने के लिए प्रारंभिक जांच करना विवेकपूर्ण है। जहां फीडर स्ट्रीम या अपशिष्ट जल झीलों या जलाशयों में प्रवेश करते हैं, वहां स्थानीय क्षेत्र हो सकते हैं जहां आने वाला जल केंद्रित है, क्योंकि यह अभी तक मुख्य जल निकाय के साथ मिश्रित नहीं हुआ है। पृथक खाड़ी एवं झीलों के संकीर्ण इनलेट अक्सर खराब मिश्रित होते हैं और इसमें झील के बाकी हिस्सों के साथ एक अलग गुणवत्ता का जल हो सकता है। वायु क्रिया एवं झील के आकार में समरूपता की कमी हो सकती है; उदाहरण के लिए जब एक लंबी, संकरी झील के साथ हवा एक छोर पर शैवाल की एकाग्रता का कारण बनती है। तालिका 3 बहते पानी में मिश्रित नमूनों के लिए नमूनाकरण नियम का सुझाव देती है।

तालिका 3 बहते जल में मिश्रित नमूनों के लिए सुझाए गए नियम (UNEP/WHO, 1996)

औसत नदी निर्वहन (घन मीटर /सेकण्ड)

स्ट्रीम नदी का प्रकार

नमूना बिदुओं की संख्या

नमूनाकरण गहराई की संख्या

<5

छोटी वाहिका

2

1

5-140

वाहिका

4

2

150-1000

नदी

6

3

>=1000

बड़ी नदी

>=6

4

भारत में, एक विशाल नदी गुणवत्ता निगरानी डेटा पिछले कुछ वर्षों में जमा तो हुआ है, लेकिन इसे आम आदमी तक इसकी उपलब्धता सीमित होने के कारण ठीक से उपयोग नहीं किया गया। कुछ शोधकर्ताओं ने नदी के गुणवत्ता के सूचकांकों को सीमित सफलता के साथ उपयोग करने की कोशिश की है (सरगांवकर और देशपांडे, 2003; सैमरेयर एट अल, 2009; जिंदल और शर्मा, 2011)।

झील और जलाशय के जलीय सतह क्षेत्र पर आधारित

नमूना स्थानों की संख्या किसी भी जल निकाय के आकार और गहराई के साथ भिन्न होती है। यदि झील या जलाशय का जल सतह क्षेत्र काफी बड़ा है, तो कई नमूने स्थल आवश्यक हैं। बड़ी झील के लिए वर्ष 1996 में UNEP/WHO, ने सुझाव दिया कि नमूना स्टेशनों की संख्या झील के वर्ग किमी क्षेत्रफल के लॉग 10 के पूरी संख्या के निकटतम होनी चाहिए। इस प्रकार, 10 वर्ग किमी क्षेत्रफल की झील को एक नमूना स्टेशन की आवश्यकता होती है, जबकि 100 वर्ग किमी क्षेत्रफल की झील को दो स्टेशनों की आवश्यकता होती है। अनियमित सीमाओं वाली झीलों के लिए स्टेशनों की संख्या स्थापित करने के लिए निर्णय लेने से पहले यह निर्धारित करलें कि क्या और कहाँ पानी की गुणवत्ता में अंतर है? इसके लिए प्रारंभिक जांच करने की सलाह दी जाती है।

झीलों और जलाशयों में जल की सबसे महत्त्वपूर्ण विशेषता, विशेष रूप से समशीतोष्ण क्षेत्रों में, उर्द्धवाधर स्तरीकरण है, जिसके परिणामस्वरूप विभिन्न गहराई में जल की गुणवत्ता में अंतर होता है (यूएनईपी/डब्ल्यूएचओ, 1996)। नमूना स्टेशन पर स्तरीकरण का पता सतह के नीचे 1 मीटर और तली से 1 मीटर ऊपर तापमान को ज्ञात कर लगाकर लगाया जा सकता है। यदि सतही एवं तली की रीडिंग के बीच अधिक अंतर (जैसे, 30 C) है, तो एक थर्मोकलाइन (एक परत जहां तापमान गहराई के साथ तेजी से बदलता है) है एवं झील या जलाशय स्तरीकृत है और यह संभावना है कि थर्मोकलाइन के ऊपर और नीचे कुछ जल गुणवत्ता चर में महत्त्वपूर्ण अंतर होंगे। नतीजतन, स्तरीकृत झीलों में पानी की गुणवत्ता का वर्णन करने के लिए एक से अधिक नमूने आवश्यक हैं। 10 मीटर एवं इससे अधिक की गहराई वाली झीलों या जलाशयों के लिए, यह आवश्यक है कि थर्मोकलाइन की स्थिति की जांच की जाए। यह जांच सबसे पहले पानी के स्तंभ (जैसे, मीटर अंतराल) के माध्यम से नियमित रूप से अंतरित तापमान रीडिंग के माध्यम से की जाती है। इसके लिए जल गुणवत्ता विश्लेषण के नमूने थर्मोकलाइन की स्थिति और सीमा (गहराई) के अनुसार लिए जाने चाहिए। सामान्यतः मार्गदर्शक के रूप में, न्यूनतम नमूनों में निम्नलिखित नमूने शामिल होने चाहिएः

  • जल की सतह के नीचे,
  • थर्मोकलाइन की निर्धारित गहराई के ठीक ऊपर
  • थर्मोकलाइन की निर्धारित गहराई के ठीक नीचे और
  • तलछट के ऊपर (या करीब अगर यह तलछट क¨ विक्षुब्ध किए बिना प्राप्त किया जा सकता है)।

यदि थर्मोकलाइन कई मीटर गहराई में फैली है, तो गहराई के साथ पूरी तरह से पानी की गुणवत्ता भिन्नता को चिह्नित करने के लिए थर्मोकलाइन के भीतर से अतिरिक्त नमूने आवश्यक हैं। जब तक थर्मोकलाइन की स्थिति स्थिर होती है, किसी दिए गए स्टेशन के लिए जल की गुणवत्ता को कम नमूनों द्वारा मॉनिटर किया जा सकता है लेकिन, व्यवहार में, आंतरिक सेशेस (पानी के द्रव्यमान के आवधिक दोलन) और मिश्रण प्रभाव के कारण थर्मोकलाइन की स्थिति शॉर्ट-(घंटे) या दीर्घकालिक (दिनों) होने के कारण भिन्न हो सकती है। सामान्य तौर पर, उष्णकटिबंधीय जलवायु में जहां नमूना स्थल पर पानी की गहराई 10 मीटर है, न्यूनतम नमूने में जल की सतह के 1 मीटर नीचे और तलछट से 1 मीटर ऊपर लिया गया एक अन्य नमूना होना चाहिए।

तटरेखा के समानांतर

समुद्री जल की घुसपैठ तटीय जलवाहकों में आम समस्या है। तटीय जलभृतों में भूजल की लवणता की निगरानी के बिना, समुद्री जल घुसपैठ पर निर्णय लेना असंभव है। अतः विशेष रूप से समुद्र तट के समानांतर तटीय जलभृतों में अवलोकन कुओं का एक अच्छा नेटवर्क होना अनिवार्य है। भूजल स्तर (वाटर टेबल) तट के पास बहुत उथली होता है और तट से दूर जाने पर भूमि की सतह से नीचे चला जाता है। खारे और ताजे पानी के घुसपैठ की गतिशीलता की निगरानी के लिए, कम से कम 03 अवलोकन कुओं को नियमित अंतराल पर समुद्र तट के लंबवत रखा जाना चाहिए, यह संख्या या तो निश्चित होती है या समुद्र के पानी के प्रवेश के लिए अतिसंवेदनशील रॉक संरचनाओं पर या जलमार्ग में निकासी पैटर्न आदि पर निर्भर करती है। इसके लिए 03 अवलोकन कुओं को लवणता की निगरानी के लिए समुद्र तट से 2, 4 और 6 किमी दूर रखा जाता है।

भूमि उपयोग के आधार पर

घरेलू, औद्योगिक और कृषि गतिविधियों के प्रवाह आसपास के क्षेत्रों में सतह और भूजल संसाधनों पर बड़ा प्रभाव डालते हैं। कई बार, कृषि योग्य भूमि में भू-उपयोग का नाइट्रेट की सांद्रता पर काफी प्रभाव पड़ता है ऐसे क्षेत्र जहां डेयरी, सूअर और मुर्गी पालन होता है, में सबसे अधिक नाइट्रेट सांद्रता पाई जाती है। इस प्रकार, ऐसे नाइट्रेट दबाव वाले क्षेत्रों के तहत उचित निगरानी नेटवर्क की आवश्यकता होती है। इस प्रकार एक नमूना स्थल प्रत्येक लैंडयूज़ वर्ग में स्थित होनी चाहिए जो उस क्षेत्र के लिए उस वर्ग का प्रतिनिधि करे। अन्य औद्योगिक क्षेत्रों के लिए भी इसी तरह के निगरानी नेटवर्क की आवश्यकता होती है, जहां उद्यौगिक की प्रकृति के आधार पर औद्योगिक अपशिष्ट जल संसाधनों को प्रभावित कर सकते हैं।

क्षेत्रीय विस्तार पर आधारित

छोटी धाराओं के लिए, नमूनाकरण प्रक्रिया आवश्यक हो जाती है क्योंकि उन सभी पर गेजिंग स्टेशन स्थापित करना अव्यावहारिक है। छोटी नदियों का निर्वहन स्थानीय कारकों से बहुत प्रभावित होता है। अत्यधिक विकसित क्षेत्रों में, जहां सबसे छोटे जलकुंड भी आर्थिक रूप से महत्त्वपूर्ण हैं, नेटवर्क की कमी 10 वर्ग किमी क्षेत्रफल वाली छोटी जल निकासी तंत्र में भी महसूस की जाती है। WMO (1994) ने जल गुणवत्ता स्टेशनों के न्यूनतम घनत्व की सिफारिश की है जैसा कि तालिका 4 में नीचे दिया गया है।

तालिका 4. जल गुणवत्ता स्टेशनों की न्यूनतम घनत्व की सिफारिश (WMO, 1994)

क्रमांक

फिजियोग्राफिक यूनिट

प्रति स्टेशन न्यूनतम घनत्व (वर्ग किमी/स्टेशन)

1

                तटीय  

55000

2

                पर्वतीय 

20000

3

                आंतरिक मैदान 

37500

4

                पहाड़ी/उदीयमान                 क्षेत्र     

47500

5

                छोटे द्वीप     

6000

6

                ध्रुवीय शुष्क क्षेत्र

200000

निष्कर्ष

सतही और भूजल की मात्रा और गुणवत्ता कई रूपात्मक और जल-भूवैज्ञानिक कारकों के आधार पर जगह-जगह बदलती रहती है। जल की गुणवत्ता विभिन्न मानवजनित गतिविधियों और प्रदूषकों के परिवहन के कारण सीमा और समय दोनों में भिन्न होती है। इस तरह की घटनाओं की उचित निगरानी के लिए एक संगठित और अनुकूलित निगरानी नेटवर्क की आवश्यकता होती है जो कि उस क्षेत्र के पानी की गुणवत्ता का सही प्रतिनिधित्व करता है। अतः निगरानी नेटवर्क के इच्छित उपयोग सहित मानवजनित स्रोतों के लिए उचित निगरानी नेटवर्क स्थानिक हाइड्रोजियोलॉजिकल कारकों पर निर्भर होना चाहिए। इस प्रकार एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन (IWRM) के लिए एक सुनियोजित जल गुणवत्ता निगरानी नेटवर्क तभी प्राप्त किया जा सकता है जबः 

  • यदि लक्ष्य स्पष्ट हैं, परिभाषित और अच्छी तरह से विकसित हैं।
  •  वह जल-भूविज्ञान और जलीय विज्ञान के भूविज्ञान को अच्छी तरह से समझ लेता है और
  • बजटीय बाधाओं को ध्यान में रखा जाता है ।

नेटवर्क के अनुकूलन के लिए कुछ सांख्यिकीय तकनीकों का प्रयोग किया गया हो। निगरानी बिंदुओं और शामिल किए जाने वाले जल गुणवत्ता मानकों की योजना और पहचान के लिए विभिन्न तकनीकों की इस लेख में विस्तृत चर्चा की गई है।

 

References

  • CPCB, Central Pollution Control Board. (2009). “National Water Quality Monitoring Programme”. http://www.cpcb.nic.in/divisionsofheadoffice/pams/NWMP.pdf
  • Dixon, W., Chiswell, B. (1996). “Review of aquatic monitoring program design”. Water Res. 30, 1935–1948
  • Hudak, P.F., Loaiciga, H.A., Marino, M.A. (1995). “Regional-scale ground water quality monitoring via integer programming”. J. Hydrol. 164, 153–170.
  • Jindal R. and Sharma C. (2011). “Studies on water quality of Satluj river around Ludhiana with reference to physic-chemical parameters”. Environ. Monit. Assess., 174(2), 417-425.
  • Krishan, Gopal, Lohani, A.K., Rao, M.S. and Kumar, C.P. (2013). “Optimization of groundwater monitoring network in Bist-Doab, Punjab”. In: Proceedings of an International conference “India Water Week 2013-Efficient Water Management: Challenges and Opportunities" (IWW-2013), 08-12 April 2013 at New Delhi, India. Pp. 274.
  • Krishan, Gopal, Lohani, A.K., Rao, M.S. and Kumar, C.P. (2014). “Prioritization of groundwater monitoring sites using cross-correlation analysis”. NDC-WWC J. 3 (1), 28-31.
  • Lettenmaier, D.P., Anderson, D.E., Brenner, R.N. (1986). “Consolidation of a stream quality monitoring network”. Water Resour. Bull. 22, 1049–1051.
  • Ning, S.K., Chang, N.B. (2002). “Multi-objective, decision-based assessment of a water quality monitoring network in a river system”. J. Environ. Manage. 4, 121–126.
  • Samantray P., Mishra B.K., Panda C.R. and Rout S.P. (2009). “Assessment of water quality index in Mahanadi and Atharabanki rivers and Taldanda Canal in Paradip area, India”. J.Hum. Ecol., 26(3), 153-161.
  • Sargaonkar A. and Deshpande V. (2003). “Development of an overall index of pollution for surface water based on a general classification scheme in Indian context”. Environ. Monit. Assess., 89(1), 43- 67.
  • Skalski, J.R., Mackenzie, D.H. (1982). “A design for aquatic monitoring programs”. J. Environ. Manage. 14, 237–251
  • Smith, D.G., McBride, G.B. (1990). “New Zealand’s national water quality monitoring network—design and first year’s operation”. Water Resour. Bull. 26, 767–775.
  • Subramanya, K. (2010). Engineering Hydrology, 3rd Edition, Tata McGraw Hill Publishers, New Delhi.
  • Timmerman, J.G., Adriaanse, M., Breukel, R.M.A., Van Oirschot, M.C.M., Ottens, J.J. (1997). “Guidelines for water quality monitoring and assessment of transboundary rivers”. Euro. Water Pollut. Control 7, 21–30.
  • UNEP/WHO, (1996). “Water Quality Monitoring - A Practical Guide to the Design and Implementation of Freshwater Quality Studies and Monitoring Programmes”, Jamie Bartram and Richard Balance, eds, Published on behalf of United Nations Environment Programme and the World Health Organization, ISBN 0 419 22320 7 (Hbk) 0 419 21730 4 (Pbk).
  • USDA, (2007). United States Department of Agriculture, Technical Guide to Managing Ground Water Resources, FS-881.
  • World Meteorological Organization (WMO), (1994). Guide to Hydrological Practices. WMO-164 (5th ed.), WMO-No. 168, Geneva, Switzerland.