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दैनिक प्रसारण, 16 अक्टूबर 2011
शासन से लाखों कराड़ों के प्राजेक्ट लाकर विकास के नाम पर आदिवासी बाहुल्य जिले में आधिकारियों एवं एनजीओ संचालकों ने खुली लूट खसोट मचा रखी है। यह बात किसी से भी नहीं छिपी है। कागजी घोड़े दौड़ाकर शासन को गुमराह करने में लगे संचालकों की मनमानी सारी हदें पार कर चुकी है। क्षेत्र का विकास एवं गंभीर बीमारियों से निपटने के लिए सरकार द्वारा बनाई गई कार्ययोजनाएं पूरी तरह विफल होती नजर आ रही है।
खतरनाक बीमारियों से निपटने के लिए जमीनी स्तर से कार्ययाजना बनाकर केंद्र व राज्य सरकार करोड़ों के प्रोजेक्ट तैयार कर एनजीओ को कार्य सौंपती है ताकि समय पर मरीजों का इलाज होने के साथ ही बीमारियों पर नियंत्रण पाया जा सके। जिले में दर्जनों एनजीओ ऐसे हैं जो वर्तमान में शासन से अनुदान लेकर विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। कुछ एनजीओ संचालकों द्वारा कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं जिसमें जिले के कई नामी अधिकारी व कर्मचारी गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबे हैं। कार्यवाही नहीं करने के एवज में अपना हिस्सा लेने के बाद अनभिज्ञ होकर मौखिक संरक्षण देने लगते हैं।
विकासखंड मेघनगर, थांदला एवं रामा में कुपोषण एवं फ्लोरोसिस से पीड़ित दर्जनों मरीज जिंदगी एवं मौत के बीच लटके हैं। श्रीमती रजनी डावर, जिला महिला बाल विकास विभाग अधिकारी सुश्री नीलू भट्ट एवं पीएचई अधिकारी श्रीकांत पटवा शासकीय नौकरशाह होते हुए भी अपने दायित्वों से भटक चुके हैं।
उचित पोषण आहार एवं मार्गदशन के अभाव में बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे तो कुछ लोग हैंडपंप से निकलने वाले पीने के पानी में फ्लोरोसिस की अधिक मात्रा में होने वाली बीमारी से लड़ रहे हैं। पिछले दिनों अखबारों में फ्लोरोसिस बीमारी के संबंध में समाचार प्रकाशित होने के बाद कलेक्टर जयश्री कियावत द्वारा फ्लोरोसिस के शिविर आयोजित कर पीड़ितों को आवश्यक उपचार के लिए पहुंचाने के निर्देश स्वास्थ्य विभाग को दिए थे।
जन चर्चा है कि प्रशासन को इतनी अधिक मात्रा में फ्लोरोसिस बीमारी के मरीज मिल हैं तो संबंधितों पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई। चर्चा यह भी है कि इरनेम फाउंडेशन झाबुआ द्वारा विगत एक वर्ष से इस दिशा में कार्य कर लाखों रुपए खर्च किए है उसकी सुक्ष्म जांच करवाई जाकर इस पहलू को जानना चाहिए कि जो राशि खर्च की गई वह किस काम के लिए खर्च की गई है।
विगत एक वर्ष पूर्व से विकासखंड थांदला के ग्राम मियाटी एवं रामा के ग्राम जसोदा खुमजी के ग्रामीण क्षेत्रों में फ्लोरोसिस पर लाखों के प्राजेक्ट पर काम कर रही इनरेम फाउंडेशन संस्था इस बीमारी को नियंत्रण करने में असफल साबित हो रही है। संस्था में काम करने वालों के अनुसार गांव में औसतन प्रत्येक तीसरे घर में दो-तीन लोग फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं।
इस बीमारी को रोकने के लिए प्रभावित घरों में संस्था द्वारा जो वाटर फिल्टर लगाया वह ग्रामीणों के उपयोग में नहीं आ रहा है कारण समय-समय पर उन्हें दी जाने वाली आवश्यक जानकारियों का अभाव है। संस्था में मैनेजर का पद संभाल रहे तीनों कर्मचारी चार पहिया वाहन में बैठकर घूमने का लुत्फ उठा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पीड़ित लोगों के बीच जाने के बजाए जिला मुख्यालय पर स्थित कार्यालय पर बैठकर समय पास करते नजर आते हैं।
खतरनाक बीमारियों से निपटने के लिए जमीनी स्तर से कार्ययाजना बनाकर केंद्र व राज्य सरकार करोड़ों के प्रोजेक्ट तैयार कर एनजीओ को कार्य सौंपती है ताकि समय पर मरीजों का इलाज होने के साथ ही बीमारियों पर नियंत्रण पाया जा सके। जिले में दर्जनों एनजीओ ऐसे हैं जो वर्तमान में शासन से अनुदान लेकर विभिन्न क्षेत्रों में कार्य कर रहे हैं। कुछ एनजीओ संचालकों द्वारा कागजी घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं जिसमें जिले के कई नामी अधिकारी व कर्मचारी गले-गले तक भ्रष्टाचार में डूबे हैं। कार्यवाही नहीं करने के एवज में अपना हिस्सा लेने के बाद अनभिज्ञ होकर मौखिक संरक्षण देने लगते हैं।
विकासखंड मेघनगर, थांदला एवं रामा में कुपोषण एवं फ्लोरोसिस से पीड़ित दर्जनों मरीज जिंदगी एवं मौत के बीच लटके हैं। श्रीमती रजनी डावर, जिला महिला बाल विकास विभाग अधिकारी सुश्री नीलू भट्ट एवं पीएचई अधिकारी श्रीकांत पटवा शासकीय नौकरशाह होते हुए भी अपने दायित्वों से भटक चुके हैं।
उचित पोषण आहार एवं मार्गदशन के अभाव में बच्चे कुपोषण के शिकार हो रहे तो कुछ लोग हैंडपंप से निकलने वाले पीने के पानी में फ्लोरोसिस की अधिक मात्रा में होने वाली बीमारी से लड़ रहे हैं। पिछले दिनों अखबारों में फ्लोरोसिस बीमारी के संबंध में समाचार प्रकाशित होने के बाद कलेक्टर जयश्री कियावत द्वारा फ्लोरोसिस के शिविर आयोजित कर पीड़ितों को आवश्यक उपचार के लिए पहुंचाने के निर्देश स्वास्थ्य विभाग को दिए थे।
जन चर्चा है कि प्रशासन को इतनी अधिक मात्रा में फ्लोरोसिस बीमारी के मरीज मिल हैं तो संबंधितों पर कार्यवाही क्यों नहीं की गई। चर्चा यह भी है कि इरनेम फाउंडेशन झाबुआ द्वारा विगत एक वर्ष से इस दिशा में कार्य कर लाखों रुपए खर्च किए है उसकी सुक्ष्म जांच करवाई जाकर इस पहलू को जानना चाहिए कि जो राशि खर्च की गई वह किस काम के लिए खर्च की गई है।
लाखों खर्च नतीजा सिफर
विगत एक वर्ष पूर्व से विकासखंड थांदला के ग्राम मियाटी एवं रामा के ग्राम जसोदा खुमजी के ग्रामीण क्षेत्रों में फ्लोरोसिस पर लाखों के प्राजेक्ट पर काम कर रही इनरेम फाउंडेशन संस्था इस बीमारी को नियंत्रण करने में असफल साबित हो रही है। संस्था में काम करने वालों के अनुसार गांव में औसतन प्रत्येक तीसरे घर में दो-तीन लोग फ्लोरोसिस से प्रभावित हैं।
इस बीमारी को रोकने के लिए प्रभावित घरों में संस्था द्वारा जो वाटर फिल्टर लगाया वह ग्रामीणों के उपयोग में नहीं आ रहा है कारण समय-समय पर उन्हें दी जाने वाली आवश्यक जानकारियों का अभाव है। संस्था में मैनेजर का पद संभाल रहे तीनों कर्मचारी चार पहिया वाहन में बैठकर घूमने का लुत्फ उठा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में पीड़ित लोगों के बीच जाने के बजाए जिला मुख्यालय पर स्थित कार्यालय पर बैठकर समय पास करते नजर आते हैं।