गाँव: स्वच्छ भारत अभियान का मूल

Submitted by Shivendra on Thu, 11/14/2019 - 11:18
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योजना, नवम्बर, 2019

‘हम लोगों पर अपनी बात थोपकर विकास से जुड़ी दीर्घकालिक जीत हासिल नहीं कर सकते। समुदायों द्वारा इसे खुद से सहजता के साथ स्वीकार कर आगे बढ़ते हुए और इसे लोगों की रोजमर्रा की जिन्दगी का स्वाभाविक हिस्सा बनाए जाने पर ही इस दिशा में सफलता सम्भव है।’
- हेनरिएटा एच फोर, यूनीसेफ के कार्यकारी निदेशक की  ‘स्वच्छ भारत आन्दोलन’ पुस्तक से उद्धृत

 स्वच्छता कार्यक्रमों का इतिहास

आजादी के वक्त से ही भारत में व्यापक स्तर पर स्वच्छता की मौजूदगी का अभाव रहा है। यहाँ तक कि जब पोषण और स्वास्थ्य से जुड़े अन्य सूचकांकों में प्रगति देखने को मिल रही थी, उस वक्त भी स्वच्छता का ग्राफ सुस्त गति से बढ़ रहा था। उस वक्त खुले में शौच के बुरे परिणामों को लेकर व्यापक स्तर पर स्वीकार्यता थीं, लेकिन कई लोगों का मानना था कि सामाजिक परम्पराओं, सामाजिक स्तर पर पदानुक्रम और लैंगिक बंदिशों जैसी ढाँचागत चीजों का असर भी स्वच्छता सम्बन्धी आदतों और स्वच्छता से जुड़े निजी निवेश पर पड़ा था। कहने का मतलब यह है कि 1970 और 80 के दशक में जब राष्ट्रीय टीकाकरण अभियान से जुड़ने की रफ्तार तेज थी, उस वक्त स्वच्छता कवरेज की औसत विकास दर 1 प्रतिशत सालाना थी। इस दर के लिहाज से बात करें, तो भारत को सम्पूर्ण स्वच्छता का लक्ष्य हासिल करने में साल 2080 तक का समय लगता। वह भी तब,जब जनसंख्या में और बढ़ोत्तरी नहीं हो।
 
बहरहाल, इसका मतलब यह बिल्कुल नहीं कि भारत सरकार ने स्वच्छता कार्यक्रम को आगे नहीं बढ़ाया। भारत ने 1946 में न्यूयॉर्क में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के संविधान पर हस्ताक्षर किए थे। इसमें विश्व स्वास्थ्य संगठन को अन्य विशेषज्ञ एजेंसियों के सहयोग से पोषण, आवास, स्वच्छता, मनोरंजन, आर्थिक हालात व पर्यावरण स्वच्छता के अन्य पहलुओं को बढ़ावा देने की दिशा में काम करने का अधिकार दिया गया था। भारत में सैद्धान्तिक तौर पर 1977 में हुए संयुक्त राष्ट्र के जल सम्मेलन के प्रस्तावों का भी समर्थन किया था, जिसमें सभी सदस्य देशों को सुझाव दिया गया था कि वे सामुदायिक, जल-आपूर्ति और स्वच्छता अभियान के लिए आवश्यकता और प्रभावित आबादी के अनुपात में फंड का आवंटन करें। भारत ने 2010 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में पानी और स्वच्छता को मानवाधिकार से जोड़ने सम्बन्धी प्रस्ताव पर हस्ताक्षर किए थे। हालांकि, इनमें से कुछ वादों और समझौतों को बाद में संसद ने हरी झंडी नहीं दी, लेकिन इससे स्वच्छता को नियमित विमर्श का हिस्सा बनाने में मदद मिली।
 
स्वच्छता से जुड़ा सहस्त्राब्दी विकास लक्ष्य और सतत विकास के मौजूदा लक्ष्यों ( खास तौर पर एसडीजे 6) का मकसद इसी तरह का महत्वाकांक्षी ढाँचा मुहैया कराना है, जिसे भारत ने अपने राष्ट्रीय प्रयासों में शामिल किया है। गौरतलब है कि एसडीजे 6 का मकसद सबके लिए पानी की आपूर्ति और स्वच्छता सुनिश्चित करना है।
 
स्वच्छता की समस्या से निपटने के लिए विभिन्न सरकारें पिछले 35 साल से कार्यक्रम चला रही हैं। केन्द्रीय ग्रामीण स्वच्छता कार्यक्रम (सीआरएसपी) और इसके पुनर्गठित स्वरूप, समग्र स्वच्छता अभियान (टीएससी) को क्रमशः 1986 और 1999 में लागू किया गया। ये कार्यक्रम केन्द्र सरकार की तरफ से शुरू किए गए थे। हालांकि, ये कार्यक्रम ग्रामीण इलाकों में स्वच्छता की पहुँच बढ़ाने के लिए राज्य स्तर पर अमल पर निर्भर थे। समग्र स्वच्छता अभियान के तहत समुदाय आधारित गोलाबंदी और शौचालय निर्माण के लिए प्रोत्साहन पर फोकस रहा। हालांकि, इन कार्यक्रमों का मूल्यांकन करने के बाद पाया गया कि टीएससी ने काफी बड़े लक्ष्य तय किए और सीमित फंडिंग के कारण ये लक्ष्य बिखर गए। इसके अलावा, केन्द्र और राज्यों के स्तर पर उस वक्त के बाकी सामाजिक कार्यक्रमों की तुलना में इस कार्यक्रम को लेकर राजनीतिक प्रतिबद्धता और सक्रियता कम थी। कार्यक्रमों को जमीन पर उतारने के मकसद से क्षमता में बढ़ोत्तरी के लिए केन्द्रों की स्थापना की गई, लेकिन आखिरकार जरूरी मानव संसाधन उपलब्ध नहीं कराए जा सके।
 
ऐसा ही एक और कार्यक्रम ‘निर्मल ग्राम पुरस्कार 2005’ में शुरू किया गया, लेकिन इसके परिणाम भी काफी अच्छे नहीं रहे। हालांकि, इसमें अच्छा प्रदर्शन करने वाले ग्राम पंचायतों (खुले में शौच से मुक्त होने वाले पंचायत) को वित्तीय पुरस्कार देने का भी ऐलान किया था। इस कार्यक्रम के बाद 2012 में हर घर के लिए बड़ी वित्तीय प्रोत्साहन राशि (10,000 रुपए) के साथ निर्मल भारत अभियान शुरू किया गया। यह कार्यक्रम फंडिंग के साधनों के लिए मनरेगा और सम्बन्धित योजनाओं पर निर्भर था। निर्मल भारत अभियान में जिला स्तर पर संमिलन पर ध्यान केन्द्रित किया गया, लेकिन फंड जुटाने में दिक्कत, राज्य और जिला प्रमुखों की प्राथमिकता सूची में इसका नहीं होना और सुव्यवस्थित सूचना प्रणाली की कमी से यह भी रफ्तार नहीं पकड़ सका।
 
स्वच्छता भारत अभियान तैयार करने में ये सबक रहे कारगर
 
कुछ स्वतंत्र आकलनों के जरिए पता चला कि सरकार द्वारा सिर्फ शौचालयों के निर्माण पर ध्यान केन्द्रित किए जाने से खुले में शौच की समस्या बना रही। यहाँ तक कि जिनके यहाँ शौचालय बने, वे भी खुले में ही शौच कर रहे थे। ऐसा इसलिए हुआ, क्योंकि टीएससी जैसे पुराने अभियान में सूचना, शिक्षा और संचार के लिए बजट का प्रावधान तो किया गया, लेकिन उनका सही ढंग से उपयोग नहीं हुआ। लिहाजा, फोकस सिर्फ शौचालयों के निर्माण पर रहा और लोगों के व्यवहार में बदलाव पर पर्याप्त ध्यान नहीं दिया गया। हालांकि, सामाजिक कार्यक्रमों में व्यवहार सम्बन्धी बदलाव को शामिल करने से सम्बन्धित लोगों तक सीधा संदेश पहुँचता और यह ज्यादा प्रभावकारी होता है। यह बेहतर परिणामों के लिए स्थानीय समुदाय के महत्व को भी रेखांकित करता है। यही वजह है कि प्रधानमंत्री ने 2 अक्टूबर, 2014 को स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत करते हुए इसमें जन आन्दोलन के महत्व पर जोर दिया। यह अभियान आखिर में स्वच्छ भारत अभियान-ग्रामीण बन गया।
 
साल 2014 में तैयार स्वच्छ भारत अभियान ग्रामीण के दिशा-निर्देशों में इस तरह के पिछले प्रयासों से सीखे गए सबक को भी शामिल किया गया। सम्बन्धित मसौदे में ग्राम पंचायतों को अपने स्तर पर खुले में शौच से मुक्ति के लिए योजना बनाने का भी अधिकार दिया गया। ग्राम पंचायतों को व्यवहार सम्बन्धी बदलाव के लिए प्रेरित करने की खातिर भी प्रोत्साहित किया गया। साथ ही, इन सब के लिए खासतौर पर फंड के आवंटन की भी बात कही गई। माँग और आपूर्ति के असंतुलन को दूर करने के लिए ग्राम पंचायतों को स्थानीय प्रशिक्षित राजमिस्त्री के साथ काम करने को कहा गया, ताकि शौचालयों के निर्माण से जुड़ी माँग को पूरा किया जा सके। अनुकूल माहौल उपलब्ध कराने के लिए ग्राम पंचायतों को कोई भी फंड इस्तेमाल करने को कहा गया। इसके तहत सफाई सम्बन्धी सेवाओं के लिए 14वें वित्त आयोग के आवंटन का भी इस्तेमाल करने की अनुमति दी गई।
 
स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण का ढाँचा इस तरह से तैयार किया गया, जिसमें कार्यान्वयन के स्तर पर ज्यादा स्वतंत्रता थी। इसमें कुछ अन्य बातें भी शमिल थीः

  1. पिछले 5 साल में प्रधानमंत्री द्वारा मजबूत सार्वजनिक और राजनीतिक इच्छाशक्ति का प्रदर्शन।
  2. पर्याप्त फंडिंग के जिसके जरिए 10 करोड़ घरों को जरूरी प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया गया (तकरीबन 1,00,000 करोड़ रुपए)।
  3. अभियान का दायरा बढ़ाने के लिए जरूरी गतिविधियों को अंजाम देने के मकसद से जिला स्तर पर सहूलियतें। इसके तहत रचनात्मक और स्थानीय स्तर पर जरूरी पहल की इजाजत दी गई, खास तौर पर समुदायों को बड़े पैमाने पर गोलबंद करने के मकसद से व्यवहार सम्बन्धी बदलाव से जुड़ा अभियान।
  4. हार्डवेयर (शौचालयों के निर्माण आदि) में वित्तीय निवेश का अनुपात बेहतर करना, जबकि सामुदायिक स्तर पर परिणाम हासिल करने के मकसद से सॉफ्टवेयर (व्यवहार सम्बन्धी बदलाव के प्रचार-प्रसार) में जबरदस्त निवेश।
  5. स्वच्छता प्रक्रिया में सामुदायिक तौर-तरीकों का इस्तेमाल करना, इससे भावनात्मक प्रतिक्रियाएँ सामने आई, मसलन खुले में शौच की परम्परा को लेकर घृणा।
  6. कार्यक्रम में महिलाओं की अगुवाई वाले घरों और अनुसूचित जाति और जनजातियों को प्राथमिकता दी गई। उनका विशेष तौर पर जिक्र किया गया और सम्बन्धित दिशा-निर्देशों में प्रोत्साहन का भी प्रावधान किया गया।

इसके साथ ही, पंचायती राज मंत्रालय ने सेवाएँ मुहैया कराने की ग्राम पंचायतों की क्षमता को और मजबूत बनाने में अहम भूमिका निभाई, जिसमें स्वच्छ भारत अभियान-ग्रामीण के लक्ष्य भी शामिल थे। भारतीय संविधान के 73वें संशोधन में पेय जल और स्वच्छता को पंचायत राज संस्थानों (ग्राम पंचायत समेत) की जिम्मेदारी बताई गई है। जिला प्रशासन की तरफ से भी इस मोर्चे पर महत्त्वपूर्ण काम किए गए। पंचायती राज मंत्रालय ने राष्ट्रीय ग्राम पंचायत विकास योजना सम्बन्धी दिशा-निर्देश 2018 के जरिए यह सुनिश्चित करने का प्रयास किया है कि स्वच्छता सम्बन्धी निवेश और अन्य पहल को मौजूदा बजटीय प्रावधानों से जोड़ा जाए।
 
हालांकि, कई प्रयास तय लक्ष्यों से पीछे छूट जाते हैं। केन्द्रिय मंत्रालयों (खास तौर पर पेयजल और स्वच्छता मंत्रालय) द्वारा कई सलाह जारी की गई, लेकिन ग्राम पंचायतों की सक्रियता इस बात पर निर्भर करती है कि किन-किन राज्यों ने कार्यक्रमों में मिली सहूलियतों का इस्तेमाल किया गया। ग्राम पंचायत शुरू में परिवारों के प्रतिनिधि के तौर पर काम कर रहे थे और पंचायतों के जरिए शौचलायों के निर्माण के लिए कच्चा माल प्राप्त किया जा रहा था। हालांकि, धीरे-धीरे पंचायतों की भूमिका कम होती गई और राज्यों के स्तर पर विभागों को सीधा परिवारों से सम्पर्क करना ज्यादा आसान लगा। लिहाजा, आमतौर पर ग्राम पंचायतों को कार्यक्रम के कार्यान्वयन के प्रत्यक्ष दायरे में नहीं रखा गया।
 
ग्राम पंचायतों की भूमिका

पिछले कार्यक्रमों के मुकाबले स्वच्छ भारत अभियान के तहत ग्राम पंचायतों में निवेश का फायदा देखने को मिला। इसके अलावा, ग्रामीण परिवारों के लिए अपने स्थानीय नेताओं द्वारा जारी निर्देशों को समझना ज्यादा आसान था। देश को बदलने से जुड़े प्रयासों में इस पहलू को शामिल किया गया है। हाल में 10 करोड़ परिवारों तक स्वच्छता को पहुँचाने के लक्ष्य से लेकर कार्यक्रम के अगले चरण की अवधि के दौरान स्थानीय पंचायत की भूमिका पर जोर दिया गया। नए चरण में न सिर्फ उन घरों तक पहुँचने की जरूरत है, जहाँ शौचालय नहीं हैं, बल्कि इसमें मौजूदा शौचालयों के रखरखाव और उसे सुरक्षित बनाए रखने और परिवार के सभी सदस्यों द्वारा इसके इस्तेमाल पर भी जोर दिया गया है। इसके लिए व्यवहार सम्बन्धी बदलाव के लिए अनुकूल माहौल बनाने की खातिर निवेश जारी रखने और स्वच्छता के अगले चरण में निवेश में बढ़ोत्तरी की आवश्यकता है। अतः साल 2018 में सरकार ने ग्राम पंचायत विकास योजना सम्बन्धी दिशा-निर्देश 2018 में संशोधन किया। इसमें विशेष तौर पर कहा गया कि ‘स्वच्छता, ठोस कचरा प्रबंधन, पेयजल को राज्य स्तर पर संशोधित ग्राम पंचायत विकास योजना सम्बन्धी दिशा-निर्देश में प्राथमिकता देने की जरूरत है।’
 
नया चरण शुरू करने के मकसद से सरकार ने सितम्बर 2019 में 10 साल के लिए ग्रामीण स्वच्छता रणनीति का मसौदा जारी किया। इसमें स्वच्छता का बेहतर स्तर बनाए रखने और इसमें और बढ़ोत्तरी के लिए 2029 तक उठाए जाने वाले कदमों के बारे में बताया गया है। उस रणनीति का मकसद खुले में शौच से मुक्ति के सिलसिले को बनाए रखने के लिए केन्द्र, राज्य और स्थानीय सरकारों, नीति निर्माताओं और अन्य सम्बन्धित पक्षों को नियोजन के लिए दिशा-निर्देश मुहैया कराना है। रणनीति के मुताबिक, खुले में शौच से मुक्ति के सिलसिले को बनाए रखना और हर गाँव के पास ठोस और तरल कचरे के प्रबंधन की सुविधा सुनिश्चित करना है। भारत इस दीर्घकालिक लक्ष्य को पूरा करने की दिशा में काम कर रहा है। सतत विकास लक्ष्य (एसडीजे)-6, खासतौर पर 6.2 का लक्ष्य हासिल करने के लिए यह जरूरी है। एसडीजे 6.2 के लक्ष्य के मुताबिक, साल 2030 तक सबको पर्याप्त और बराबर स्वच्छता की सुविधा उपलब्ध कराना, खुले में शौच के चलन को खत्म करना, महिलाओं, लड़कियों और अन्य वंचितों पर विशेष ध्यान देना शामिल हैं।
 
इन कार्यक्रमों का मकसद स्वच्छ भारत ग्रामीण की उपलब्धियों को बरकरार रखना, देश के सभी गाँवासियों के लिए स्वच्छता का सुरक्षित प्रबंधन और ठोस कचरा प्रबंधन के जरिए साफ-सुथरा पर्यावरण का लक्ष्य हासिल करना है।
 
नई प्रणाली में ग्राम पंचायतों को रणनीतिक तौर पर गाँवों में हो रहे ठोस और तरल कचरा प्रबंधन सम्बन्धी प्रयासों के केन्द्र में रखा गया है। इसमें कहा गया है कि निर्मय हमेशा यथासम्भव निचले स्तर पर लिए जाने चाहिए, जहाँ वे ज्यादा प्रभावी होंगे। ‘विकेन्द्रीकृत शासन प्रणाली और संस्थागत ढांचा’ अध्याय में ग्राम पंचायतों की अहम भूमिका और जिम्मेदारी के बारे में कहा गया है। इसमें स्वच्छाग्रहियों के उन्नयन और प्रशिक्षण की भी बात कही गई है, ताकि वे पानी और स्वच्छता को लेकर अपनी भूमिका और जिम्मेदारी के बारे में जान सकें और जरूरी सेवाओं के लिए प्रबंधन प्रणाली तैयार कर सकें। इसमें यह भी बताया गया है कि किस तरह से सभी सम्बन्धित पक्ष अलग-अलग मंत्रालयों और विभागों को थोड़ी-थोड़ी जिम्मेदारी बांटकर निवेश और काम को रफ्तार दे सकते हैं। सभी पक्षों को नियमित रूप से एक-दूसरे के सम्पर्क में रहना चाहिए और उन्हें विकास की प्रक्रिया से जुड़े साझीदारों मसलन निजी क्षेत्र, सिविल सोसायटी संगठनों और अकादमिक संस्थानों को जरूरत के हिसाब से शामिल करना चाहिए।
 
शहरी क्षेत्र भले कचरा ट्रीटमेंट प्लांट तैयार करने और उसका इस्तेमाल करने में सक्षम हैं, लेकिन ग्रामीण समुदायों को स्थानीय स्तर पर टिकाऊ विकल्पों को पेश करना होगा, जो ग्राम पंचायत स्तर पर बेहतर ढंग से काम कर सकें। कचरा प्रबंधन और संसाधनों की रिसाइक्लिंग सम्बन्धी कोशिशों के लिए यही बात लागू होती है। इसमें ठोस कचरा प्रबंधन का मामला भी शामिल है। इसके अलावा, प्रधान/सरपंच, स्वच्छाग्रही और जमीनी स्तर अन्य अहम लोगों की भूमिका और उनके प्रभाव को देखते हुए यह कहा जा सकता है कि सेवाओं को प्रासंगिक, असरदार और टिकाऊ बनाने के लिए उनसे जुड़ी सम्भावनाओं का इस्तेमाल किया जाए। साथ ही, यह समुदाय से जुड़े नेताओं की पूरी तरह से जवाबदेही सुनिश्चित करने की भी जरूरत है।
 
इसके अलावा, जल जीवन मिशन की शुरुआत की गई है, जिसका मकसद 2024 तक सभी घरों में पीने का पानी मुहैया कराना है। स्वच्छता कार्यक्रम से जल आपूर्ति अभियान को जोड़ना आवश्यक है। इससे पानी के संसाधन सुरक्षित रह सकेंगे और स्वच्छता सेवाएँ भी जारी रहेंगी। जिला और राज्य स्तर के नेता मौखिक रूप से संमिलन की वकालत कर सकते हैं, लेकिन असली कोशिश ग्राम पंचायतों को ही करनी होगी, जिन्हें विभिन्न कार्यक्रमों के तहत फंड और बाकी चीजें मुहैया कराई जाती है।
 
आगे की राह

नई रणनीति के तहत तय फॉर्मूले को लागू करने के लिए सरकार (जल शक्ति मंत्रालय) पहले ही व्यावहारिक कदम उठा चुका है। ये कदम स्वच्छ भारत मिशन की मौजूदा रणनीति से ओडीएफ प्लस की तरफ बढ़ने के दौरान उठाए गए हैं। यूनिसेफ की मदद से इस साल सितम्बर से केन्द्र सरकार देश के सभी ग्रामीण इलाकों में पानी की आपूर्ति और स्वच्छता प्रशिक्षण कार्यक्रम लागू कर रही है। इसके तहत हर ग्राम पंचायत के प्रधान समेत पंचायत के उच्च स्तरीय प्रतिनिधियों की अहम भूमिका पर जोर दिया गया है। इस अभियान का मकसद प्रशिक्षकों के प्रशिक्षण मॉडल का इस्तेमाल कर तकरीबन अगले साल 2,58,000 ग्राम  पंचायतों तक (तकरीबन 7,74,000 व्यक्ति) पहुँचना है। केन्द्र सरकार और यूनिसेफ राज्य और जिला स्तर पर बेहतर प्रशिक्षक तैयार करने के लिए मिलकर काम कर रहे हैं। ये प्रशिक्षक तमाम राज्यों में ग्राम पंचायतों के प्रतिनिधियों के साथ संवाद करेंगे।
 
प्रशिक्षण में रणनीतिक ढाँचे को वास्तविक स्वरूप प्रदान करने के लिए व्यावहारिक गतिविधियों पर जोर दिया गया है। प्रतिनिधियों को हर तरह के सत्र में बुलाए जाने की बात है, मसलन मौजूदा जल संसाधनों के प्रबंधन से लेकर कचरा प्रबंधन से जुड़ी जानकारी वाले व्याख्यानों तक, तमाम आयोजकों में उन्हें बुलाया जाता है। साथ ही, यह भी बताया जाता है कि स्वच्छाग्रहियों, राजमिस्त्री और अन्य स्थानीय समूहों को जोड़कर किस तरह से स्वच्छता चक्र के अगले अभियान को कैसे बढ़ावा दिया जाए। सफाई के संदेश को भी प्रमुखता से प्रसारित किया जाता है (साबुन से हाथ धोना आदि)। कम खर्च वाली यह आदत काफी हद तक डायरिया जैसी बीमारियों का बोझ कम कर सकती है।
 
हमें इन प्रयासों के परिणाम के इंतजार है और इससे यह भी पता चलेगा कि भारत सरकार के अगले चरण के अभियान में ये प्रयास किस तरह से योगदान करेंगे। हालांकि, अभी भी कई चीजें सीखना बाकी है, मसलन मासिक धर्म से जुड़े कचरे का प्रबंधन, बच्चों के मल का सुरक्षित निपटान और गड्ढे वाले शौचालयों को टिकाऊ और काम के लायक बनाने के लिए उनमें कई सुविधाएँ जोड़ना। इन समस्याओं से असरदार ढंग से तभी निपटा जा सकता है, जब ग्राम पंचायतों को पर्याप्त अधिकार दिए जाएँ और उस स्तर पर नेतृत्व को सक्रिय किया जाए। दरअसल, लोगों की जिंदगी में दीर्घकालिक बदलाव लाने की ताकत उनके पास ही है।
 
सन्दर्भ

  1. https://www.who.int/governance/eb/who_constitution_en_pdf
  2. https://www.ircwash.org/sites/default/files/71UN77&161.6.pdf
  3. https://www.centreforpublicimpact-org/case&study/total&sanitation&cam-paign&india/
  4. https://link.springer.com/article/10.1186/s12889&017&4382&9
  5. https://www.povertyactionlab.org/evaluation/effect&defecation&behave-iors&child&health&rural
  6. Ibid](2)
  7. http://www.cbgaindia.org/wp&content/up-loads/2011/04/TSC.pdf
  8. https://dictionary.cambridge.org/diction-arh/english/subsidiarity
     

 

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