गिरनार

Submitted by Hindi on Wed, 08/10/2011 - 16:20
गिरनार-जूनागढ़ नगर से 10 मील पूर्व भारत के गुजरात प्रदेश के काठियावाड़ क्षेत्र में की पवित्र पहाड़ियाँ (स्थिति : 210 39’ उ. अ. तथा 700 42’ पू. दे.)। इनकी औसत ऊँचाई 3,500 फुट है पर चोटियों की संख्या अधिक है। इनमें अंबामाता, गोरखनाथ, औघड़ सीखर, गुरू दत्तात्रेय और कालका प्रमुख हैं। सर्वोच्च चोटी गोरखनाथ 3,666 फुट ऊँची है। गिरनार का प्राचीन नाम उज्जयंत अथवा गिरिवर था। ये पहाड़ियाँ ऐतिहासिक मंदिरों, राजाओं के शिलालेखों तथा अभिलेखों (जो अब प्राय: ध्वस्तप्राय स्थिति में हैं) के लिए भी प्रसिद्ध हैं। पहाड़ी की तलहटी में एक बृहत चट्टान पर अशोक के मुख्य 14 धर्मलेख उत्कीर्ण हैं। इसी चट्टान पर क्षत्रप रूद्रदामन्‌ का लगभग 120 ई. का प्रसिद्ध संस्कृत अभिलेख है। इसमें सम्राट् चंद्रगुप्त मौर्य तथा परवर्ती राजाओं द्वारा निर्मित तथा जीर्णोद्वारकृत सुदर्शन तड़ाग और विष्णुमंदिर का सुंदर वर्णन है। यह लेख संस्कृत काव्यशैली के विकास के अध्ययन के लिए महत्वपूर्ण समझा जाता है। इस बृहत अभिलेख में रूद्रदामन के नाम और वंश का उल्लेख तथा रूद्रदामन्‌ संवत्‌ 72 में, भयानक आँधी पानी के कारण प्राचीन सुदर्शन झील टूट फूट जाने का काव्यमय वर्णन है। विशेषकर सुवर्णसिकता तथा पलाशिनी नदियों के पानी को रोककर बाँध बनाए जाने तथा महावृष्टि एवं तूफान से छूट जाने का वर्णन तो बहुत ही सुंदर है।

इस अभिलेख की चट्टान पर 458 ई. का एक अन्य अभिलेख गुप्तसम्राट् स्कंदगुप्त के समय का भी है जिसमें सुराष्ट्र के तत्कालीन राष्ट्रिक पर्णदत्त के पुत्र चक्रपालित द्वारा सुदर्शन तड़ाग के सेतु या बाँध का पुन: एक बार जीर्णोद्धार किए जाने का उल्लेख है क्योंकि पुराना बाँध, जिसे रूद्रदामन्‌ ने बनवाया था, स्कंदगुप्त के राज्याभिषेक वर्ष में जल के महावेग से नष्ट भ्रष्ट हो गया था।

अंबामाता का मंदिर अंबामाता चोटी पर स्थित है।

गौमुखी, हनुमानधारा और कमंडल नामक तीन कुंड यहाँ स्थित हैं। प्राचीन काल में ये पहाड़ियाँ अघोरी संतों की क्रीड़ास्थली रहीं। पालिटाना (Palitana) के बाद यह जैनियों का द्वितीय प्रमुख तीर्थ हैं। यहाँ के सिंहों की नस्ल भी अधिक विख्यात है जिनकी संख्या धीरे धीरे कम होती जा रही है।

2. (जिला जूनागढ़, काठियावाड़, गुजरात) प्राचीन नाम गिरिनगर। महाभारत में उल्लिखित रैवतक पर्वत के क्रोड़ में बसा प्राचीन तीर्थस्थल। पहाड़ की चोटी पर कई जैनमंदिर हैं। यहां तक पहुँचने के लिए 7,000 सीढ़ियाँ हैं। इनमें सर्वप्राचीन मंदिर गुजरात नरेश कुमारपाल के समय का बना हुआ है। दूसरा वस्तुपाल और तेजपाल नामक भाइयों ने बनवाया था। इसे तीर्थंकर मल्लिनाथ मंदिर कहते हैं। यह विक्रम संवत्‌ 1288 (1237 ई.) में बना। तीसरा मंदिर नेमिनाथ का है जो लगभग 1277 ई. में तैयार हुआ। यह सबसे अधिक विशाल एवं भव्य है। प्राचीन काल में इन पर्वतों की शोभा अपूर्व थी क्योंकि इनके सभामंडप, स्तंभ, शिखर, गर्भगृह आदि स्वच्छ संगमरमर से निर्मित होने के कारण बहुत चमकदार और सुंदर दिखते थे। अब अनेक बार मरम्मत होने से इनका स्वभाविक सौंदर्य कुछ फीका पड़ गया है। पर्वत पर दत्तात्रेय का मंदिर और गोमुखी गंगा है जो हिंदुओं का तीर्थ है। (विजयेंद्र कुमार माथुर; कैलाशनाथ सिंह.)

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