गलनीय धातु

Submitted by Hindi on Wed, 08/10/2011 - 15:58
गलनीय धातु कुछ मिश्रधातुएँ, जो सरलता से निम्न ताप पर ही पिघल जाती हैं। गलनीय धातु कही जाती हैं। ऐसी मिश्रधातुओं में साधारणतया बिस्मथ बंग, सीस, कैडमियम या पारा रहते हैं। वंग, सीस अथवा इनसे प्राप्त मिश्रधातुओं में विशेष अनुपात में विस्मथ मिलाने से गलनांक कम हो जाता है। ऐसी कुछ तृतीयक (Ternary) धातुओं का गलनांक पानी के उबलने के ताप से भी कम है। न्यूटन की धातु (Newton s metal), जिसमें 50% विस्मथ के साथ 31.25 % सीस तथा 18.75% वंग रहता है, 98 से 0 पर पिघलती है। इन्हीं धातुओं से प्राप्त रोज़ (Rose) दार्सेट (D Arcet) तथा लिचेनबर्ग (Lichtenberg) की धातुएँ भी कम ताप पर गलनीय हैं। इनमें 50 भाग बिस्मथ के साथ विविध मात्रा में वंग और सीस रहते हैं। इनमें कैडमियम मिलाने पर और भी कम ताप पर पिघलनेवाली चतुर्थक (qwarternary) धातुएँ प्राप्त होती हैं। सारा मिलाने से भी गलनांक कम हो जाता है।

बुड की धातु (Wood s metal) में जो 71 सें. पर पिघलता है, 50 भाग बिस्मथ, 25 भाग सीस, 12.5 भाग कैडमियम और 12.5 भाग वंग रहते हैं। इन्हीं चारों धातुओं से लिपोविट्ज (Lipowitz) धातु भी प्राप्त होती है।

ये मिश्रधातुएँ बायलर के सुरक्षाडाट, (safety plug) स्वाचालित छिड़काव करने वाले (automatic sprinkler) तथा अग्नि से बचाव के अन्य उपकरणों में प्रयुक्त होती हैं। ताप की निश्चित सीमा से ऊँचा होने पर इन धातुओं से निर्मित डाट गल जाते हैं। जैसे आग लगने पर, अथवा विशेष ऊंचा ताप होने पर पानी के नल में लगे ऐसे डाट के गलने से पानी का प्रवाह स्वयं ही आरंभ हो जाता है। अन्य महत्वपूर्ण कार्यो में, जैसे विद्युत्‌ का फ्यूज़, सोल्डर तथा गैसप्रवाह के रोक बनाने और पतली नली को मोड़ने में भी इन धातुओं का उपयोग होता है। पारेवाली ऐसी मिश्र धातुएँ शरीर के विभिन्न अंगों के साँचे बनाने में काम आती हैं।

सं. ग्रं.- जे. एफ. थॉर्प और एम. ए. ह्वाइटले: थॉर्प्स डिक्शनरी ऑव ऐप्लाइड केमिस्ट्री ; चार्ल्स डी0 हॉजमैन : हैंडबुक ऑव केमिस्ट्री ऐंड फ़िजिक्स।( विंध्यावासिनी प्रसाद.)

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