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यू-ट्युब, 20 सितंबर 2012
पतित पावनी, गंगा मइया।
जगत जननी तु गंगा मइया।।
सुरसरि मां, गंगा मइया।
जगत जननी तु गंगा मइया।।
पुण्यदायिनी, गंगा मइया।
जगत जननी तु गंगा मइया।।
पतित पावनी, गंगा मइया।
जगत जननी तु गंगा मइया।।
युगों-युगों से भारत के आध्यात्म और वैराग्य को सींचने वाली हमारी प्यारी नदी गंगा है। गंगा पवित्रता और निर्मलता की स्रोत है। इनके संस्मरण मात्र से ही मानव मन शुद्धता के धवल रंग में रंग जाता है और कण-कण में निर्मलता, नव ऊर्जा और उल्लास का संचार होता है। मानव के लिए पंच प्राणों में से एक हैं गंगा। ये शिव रूपा हैं, विष्णु अंश हैं, ब्रह्म पोषिका हैं। यानि सृष्टि रचना, पालन-पोषण और सृष्टि की अंश हैं। गंगा का अविरल निर्मल प्रवाह चरैवेति, चरैवेति, चरैवेति यानि दुख-सुख में सदा गतिमान रहने की प्रेरणा देता है। गंगा देवी है लेकिन प्यार से भारतवासी इन्हें गंगा मां कहते हैं और अपनी इसी गंगा मां के आंचल में लिपटा हुआ है भारतीयों का जीवन। गंगा मानव के लिए ही नहीं बल्कि देवताओं के लिए भी बहुत महत्वपूर्ण है। मृत्युंजय, महाकाल, महासत्य और महादेव शिव की प्रिया हैं गंगा।