गंगा नदी की अविरलता एवं निर्मलता पुनर्स्थापित करने के लिये समेकित एवं सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए कारगर योजना के निर्माण के साथ-साथ उसके ठोस क्रियान्वयन की व्यवस्था जरूरी है, ताकि लक्ष्य की प्राप्ति के साथ-साथ सभी राज्यों के हितों का संरक्षण हो सके।
भारत सरकार द्वारा नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत गंगा की निर्मलता और अविरलता को प्राथमिकता दी गई है, परन्तु अधिकांश योजनाएँ गंगा में निर्मलता को सुनिश्चित करने के लिये ही ली गई है। गंगा की अविरलता के बिन्दु पर यथोचित ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण की चौथी बैठक दिनांक 27 अक्टूबर 2014 में गंगा के पर्यावरणीय प्रवाह पर दो समितियों के गठित होने की सूचना दी गई थी, जिसका प्रतिवेदन दिसम्बर 2014 तक प्राप्त होना था।
गंगा नदी का लगभग 16 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र बिहार राज्य में है परन्तु तीन चौथाई जल बिहार की नदियों से गंगा में प्रवाहित होता है। बिहार की सीमा पर मात्र 400 क्यूसेक जलप्रवाह आकलित है जबकि फरक्का समझौते के अनुसार 1500 क्यूसेक जलप्रवाह सुनिश्चित करना है, जो मुख्यत: बिहार की नदियों द्वारा प्राप्त जल से ही हो पाता है।
वस्तुत: 400 क्यूसेक जलप्रवाह भी बिहार की सीमा पर प्राप्त नहीं होता है। इस सन्दर्भ में ऊपरी सह घाटी राज्यों को गंगा के अविरल जल प्रवाह में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने पर भारत सरकार का हस्तक्षेप आवश्यक है ताकि गंगा नदी की पूरी लम्बाई में भी सतत् प्रवाह सुनिश्चित हो एवं फरक्का बैराज में वांछित जल आपूर्ति करने की ज़िम्मेदारी केवल बिहार की न हो। साथ ही बिहार द्वारा गंगा एवं इसमें प्रवाहित होने वाली जल का उपयोग अपने विकास कार्यों के लिये किया जा सके। वर्तमान में जहाँ ऊपरी राज्य अपने हिस्सों से ज्यादा जल का उपयोग करते हैं एवं बिहार के द्वारा गंगा के जल के तनिक उपयोग पर भी आपत्तियाँ लगाई जाती हैं। राजौली नाभीकीय एवं बांका थर्मल विद्युत परियोजनाओं के लिये मात्र 280 क्यूसेक जल हेतु केन्द्रीय जल आयोग की लम्बित अनापत्ति इसका उदाहरण है।
बिहार सरकार द्वारा पिछले कई वर्षों से राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन नीति बनाने का मुद्दा उठाया जाता रहा है। एक तरफ गंगा के जलग्रहण क्षेत्र में वनों की कटाई के कारण आने वाले गाद की मात्रा में वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर फरक्का बैराज के कुप्रभाव के कारण गंगा के तल का ऊपर उठना, इसके जलवाहक क्षमता में कमी होना, प्रवृति उत्पन्न होना एवं परिणामस्वरूप बालू का ढेर बनना बढ़ गया है।
हमें फरक्का बैराज की उपयोगिता का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। दूरगामी दृष्टिकोण से देखा जाए तो फरक्का बैराज के बनने से उत्पन्न हो रही स्थिति के दुष्परिणाम इसके लाभ से अधिक प्रतीत होंगे। भारत सरकार के तत्कालीन जल संसाधन मन्त्री श्री पवन बंसल द्वारा गंगा के सम्पूर्ण बिहार चौसा से फरक्का तक का हवाई सर्वेक्षण करने के पश्चात केन्द्रीय संस्थान द्वारा इस समस्या का अध्ययन कर निराकरण करने की बात कही गई थी, परन्तु अभी तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई भारत के स्तर से नहीं हुई है।
फरक्का बैराज के निर्माण से गंगा आकृति विज्ञान में बदलाव तथा नदी के ऊपर में गाद जमा होने के कारण भी उत्तर बिहार में बाढ़ की प्रवलता बढ़ती है। अत: राष्ट्रीय स्तर एक प्रभावकारी राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन नीति बनाना आवश्यक है, जो न केवल गंगा बल्कि अन्य सभी नदियों के गाद प्रबन्धन में सहायक होगी एवं नदी की अविरलता को बनाए रखेगी।
वर्ष 1986 में भारत सरकार द्वारा नौपरिवहन गंगा नदी के हल्दिया से इलाहाबाद को राष्ट्रीय जल मार्ग एक घोषित किया गया था, जिसमें 45 मीटर रिच में 3 मीटर गहरा जल की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाना था। हाल के दिनों में यह खबर प्रमुखता से छापी गई है कि भारत सरकार नौ-परिवहन हेतु इलाहाबाद से हल्दिया के बीच अनेक बैराज बनाने की योजना बना रही है।
उल्लेखनीय है कि पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बैराज के निर्माण के कुप्रभाव का खामियाजा बिहार को वहन करना पड़ रहा है। इस पृष्ठभूमि में आशंका है कि भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद से हल्दिया के बीच नौ-परिवहन हेतु उपर्युक्त प्रस्तावित बैराज-शृंखलाओं के निर्माण से गंगा की अविरल धारा अवरुद्ध होगी तथा फलस्वरूप यह पावन नदी मात्र बड़े-बड़े तालाबों के रूप में परिणत होकर रह जाएगी जो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी सन्तुलन के दृष्टिकोण से अत्यन्त विनाशकारी होगा।
अत: इस तरह बैराज शृंखला निर्माण की परिकल्पना के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले विस्तृत अध्ययन कराया जाना आवश्यक है और तब तक इस सन्दर्भ में कोई कार्रवाई नहीं किया जाना चाहिए। इलाहाबाद से हल्दिया के राष्ट्रीय जल मार्ग -1 के रूप में विकसित करने हेतु कारगार उपाय के रूप में इस भाग में लगातार ड्रेजिंग की आवश्यकता है, ताकि जहाज के परिवहन हेतु पर्याप्त गहराई रहे न कि बैराज के निर्माण कर इसे बड़े-बड़े तालाब में परिणत कर दिया जाए।
प्रारम्भ से गंगा की निर्मलता सुनिश्चित करने हेतु सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एवं सीवेज नेटवर्क के समेकित विकास की रणनीति अपनाई गई है। उल्लेखनीय है पूर्व में भारत सरकार द्वारा सीवेज नेटवर्क एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की योजना समेकित रूप में मंजूर की जाती रही है।
वर्तमान में भारत सरकार द्वारा अलग-अलग घटकों के रूप में परियोजना प्रस्ताव बनाने हेतु कहा जा रहा है। जिसके अन्तर्गत सीवेज नेटवर्क परियोजना की स्वीकृति एवं वित्त पोषण शहरी विकास मन्त्रालय एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्वीकृति एवं वित्त पोषण जलसंसाधन मन्त्रालय द्वारा किया जाना प्रस्तावित है। ऐसा करने से परियोजना के क्रियान्वयन में जटिलता उत्पन्न होगी। अत: भारत सरकार को पूर्व की भाँति सीवेज नेटवर्क एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की समेकित योजना के रूप में मंजूरी करनी चाहिए और एक ही मन्त्रालय के माध्यम से इस हेतु निधि उपलब्ध करानी चाहिए।
राज्य में पूर्व से पाँच सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मंजूर किए गए थे जिसमें पटना शहर में चार और भागलपुर में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू है। मुंगेर में वैधानिक विवाद के कारण कार्यरत नहीं हो पाया है। राज्य के गंगा के किनारे अवस्थित 26 शहरों में सिवेज आधारभूत ढाँचा का चरणबद्ध तरीके से सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है।
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के अन्तर्गत बिहार के लिये 12 योजनाएँ मंजूर की गई है जिसमें से चार योजनाएँ यथा पटना रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट, बेगूसराय, बक्सर एवं हाजीपुर सीवेज नेटवर्क एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की परियोजनाएँ कार्यान्वयन विभिन्न चरणों में है। पटना रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट तेज गति से कार्यान्वित हो रहा है। मुंगेर शहर की सीवेज परियोजना के पुनर्निर्मित करने हेतु सहमति के लिये भारत सरकार में लम्बित है।
शेष सात परियोजनाएँ निविदा प्रक्रिया विभिन्न चरणों में है, जो मुख्यत: पटना शहर के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एवं सीवेज नेटवर्क से सम्बन्धित है। 15 लम्बित डीपीआर में से 11 शहरों का लम्बित डीपीआर भारत सरकार के स्तर से कुछ पृच्छाओं के साथ वापस आया है, उसका निराकरण करके वापस भेजा जा रहा है। इस सभी डीपीआर की स्वीकृति शीघ्र अपेक्षित है। शेष शहरों का डीपीआर बनाने हेतु एजेंसी चुन ली गई है। डीपीआर बनाने का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है।
जहाँ तक राज्य में स्वीकृत योजनाओं की प्रगति में तेजी लाना एवं तकनीकी तथा वित्तीय क्षमता का विकास का प्रश्न है। राज्य सरकार द्वारा शहरी आधारभूत ढाँचा के सुदृढ़ीकरण के लिये बिहार अरवन इनवेस्टमेंट डेपलवमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड वर्ष 2009 में स्थापित किया गया है जिसके द्वारा इन योजनाओं का कार्यान्वयन हो रहा है।
विभाग के स्तर पर नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के आलोक में स्टेट प्रोग्राम मैनेजमेंट ग्रुप का गठन किया गया। वर्तमान में 3 प्रोफेशनल के चयन की प्रक्रिया जारी है। तकनीकी एवं वित्तीय क्षमता बढ़ाने के लिये डिपार्टमेंट फॅार इंटरनेशनल डेवलपमेंट सहायता परियोजना सपोर्ट प्रोग्राम फॉर अरबन रिफार्मस के अन्तर्गत चार कंसल्टेंट का चयन किया गया है, जो कि डीपीआर बनाने में बुडको को सहयोग कर रहे हैं।
मेरा भी मानना है कि मंजूर परियोजनाओं की प्रगति सन्तोषजनक नहीं है। इसका प्रमुख कारण सीवेज नेटवर्क के लिये शहरी क्षेत्रों की निर्विवादित ज़मीन की उपलब्धता में विलम्ब होना है। जब ज़मीन की समस्या दूर हो गई है कार्य का लगातार पर्यवेक्षण किया जा रहा है एवं प्रगति सुनिश्चित की जाएगी।
पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बैराज के निर्माण के कुप्रभाव का खामियाजा बिहार को वहन करना पड़ रहा है। इस पृष्ठभूमि में आशंका है कि भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद से हल्दिया के बीच नौ-परिवहन हेतु उपर्युक्त प्रस्तावित बैराज-शृंखलाओं के निर्माण से गंगा की अविरल धारा अवरुद्ध होगी तथा फलस्वरूप यह पावन नदी मात्र बड़े-बड़े तालाबों के रूप में परिणत होकर रह जाएगी जो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी सन्तुलन के दृष्टिकोण से अत्यन्त विनाशकारी होगा। ज्ञातव्य है कि भारत सरकार द्वारा जिन योजनाओं की स्वीकृति प्रदान की जाती है उनमें प्रशासनिक स्वीकृति की राशि के अनुरूप केन्द्रांश विमुक्त किया जाता है जबकि निकालने पर समान्यत: प्रशासनिक स्वीकृति की राशि से अधिक राशि पर निविदा निष्पादित होती है। निविदित राशि एवं प्रशासनिक स्वीकृति राशि के अन्तर को राज्य सरकार द्वारा वहन करने का निर्देश है। इसके कारण राज्य सरकार पर अत्यधिक वित्तीय बोझ सम्भावित है।
अत: मार्गदर्शिका में संशोघन करके भारत सरकार द्वारा निविदित राशि के विरुद्ध निर्धारित केन्द्रांश दिए जाने का प्रावधान किया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर पटना में पहाड़ी जोन से सीवेज नेटवर्क एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना मे निविदित राशि एवं प्रशासनिक 318 करोड़ रुपए का अन्तर आ रहा है। इतनी बड़ी राशि व्यवस्था राज्य को अपने संसाधनों से करने में होने वाली कठिनाई से इनकार नहीं किया जा सकता है। यह योजनाओं के उद्देश्य को ही विफल करता है। अत: इस सम्बन्ध में नीतिगत निर्णय लिया जाना अपेक्षित है।
इसके अतिरिक्त भारत सरकार के स्तर परियोजनाओं की समीक्षा के उपरान्त लम्बा समय लगता है। उसी प्रकार जिन योजनाओं में पुनर्निविदा की आवश्यकता होती है, उनमें अनापत्ति एवं सहमति हेतु लम्बा समय लगता है। जिसके कारण योजना कार्यान्वयन प्रभावित होता है। अत: स्वीकृति की व्यवस्था एवं प्रक्रिया को सरल एवं युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है ताकि कम-से-कम समय में वांछित स्वीकृति मिल सके।
राज्य सरकार द्वारा अगस्त 2014 में गंगा कार्ययोजना तैयार कर भारत सरकार को उपलब्ध कराया गया है। गंगा कार्ययोजना के आच्छादित जिलों में सघन जागरुकता अभियान प्रारम्भ किया गया तथा 18 से 22 मार्च 2015 को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल एवं स्वच्छता जागरुकता अभियान का आयोजन किया गया। गंगा किनारे के जिलों में विभिन्न गैरसरकारी संस्थानों का सहयोग योजनाओं के प्रचार-प्रसार एवं कार्यान्वयन के लिये लिया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि 582992 परियोजनाओं में 525975 गरीबी रेखा के नीचे एवं एपीएल के चिहिन्त श्रेणी के परिवार हैं, जिन्हें स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अन्तर्गत आच्छादित किया जाएगा तथा अन्य श्रेणी 57017 एपीएल परिवारों को राज्य सम्पोषित लोहिया स्वच्छता योजना से आच्छादित किया जाएगा।
इसी क्रम में शहरी क्षेत्रों हेतु स्वच्छ भारत के प्रावधानों की ओर ध्यान देना आवश्यक है जिसमें सहायता अनुदान 4 हजार रुपए प्रति परिवार की दर से देय है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह सहायता राशि 12 हजार रुपए है। इस अन्तर को समाप्त करने की आवश्यकता है एवं शहरी क्षेत्रों के लिये भी शौचालय विहीन आवासों में शौचालय निर्माण हेतु 12 हजार रुपए की सहायता राशि अनुमान्य की जानी चाहिए।
बिहार में गंगा नदी की कुल प्रवाह दूरी 445 किलोमीटर है। गण्डक, बुढ़ी गण्डक, घाघरा, बागमती, कमला, बलान, कोशी, कर्मनाशा, सोन एवं पुनपुन नदी गंगा नदी की सहायक नदियाँ हैं। ये सहायक नदियाँ बिहार राज्य के अन्दर गंगा नदी के प्रवाह और इसके नैसर्गिक गुणों (निर्मल धारा एवं अविरल धारा) को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। गंगा नदी में सामान्य प्रदूषण के अलावा सहायक नदियों के माध्यम से भी प्रदूषण फैलता है।
गंगा नदी के संरक्षण एंव पुनरुद्धार से सम्बन्धित कार्यों के अनुश्रवण हेतु पर्यावरण एवं वन विभाग के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में एक राज्यस्तरीय समिति का गठन किया गया है। गंगा एवं इसकी सहायक नदियों के किनारे एवं आसपास अवस्थित उद्योगों से सम्बन्धित एक ड्रेनेज मैप तैयार कर सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय, भारत सरकार की अध्यक्षता में गठित समिति को समर्पित किया गया है।
बिहार राज्य प्रदूषण नियन्त्रण परिषद द्वारा बिहार में पाँच सिक्युरिटी पॉलिटिंग इंड्रस्टीज को चिन्हित किया गया है यथा पाटलिपुत्र औद्योगिक क्षेत्र एवं फतुहा औद्योगिक क्षेत्र, पटना, बरारी औद्योगिक क्षेत्र भागलपुर, हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र, हाजीपुर एवं बेला औद्योगिक क्षेत्र, मुज़फ़्फ़रपुर जिनमें सामूहिक बहिस्राव उपचार संयन्त्र की स्थापना की दिशा में कार्रवाई की जा रही है। राज्य में सीमित दक्षता के कारण इसकी स्थापना हेतु भारत सरकार से उपयुक्त तकनिकी एवं वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। भारत सरकार को इसके लिये उचित पहल करनी चाहिए।
हमारी ही पहल पर वर्ष 2002 में डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलजीव घोषित किया गया। हमारा मानना है कि गंगा नदी के स्वास्थ्य का आकलन डॉल्फिन की संख्या से किया जा सकता है। अत: इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। हर वर्ष बिहार में 5 अक्टूबर, डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बिहार सरकार ने 2011-12 में डॉल्फिन का सर्वेक्षण सम्पन्न कराया था जिसमें 1208 गणना हुई थी। पटना में राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना की जा रही है जिसके लिये 24.90 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी गई है। इसका 30 प्रतिशत भारत सरकार एवं शेष बिहार सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है।
राज्य में स्थानीय मछुआरों एवं स्थानीय नागरिकों की सहभागिता डॉल्फिन के संरक्षण हेतु सुनिश्चित की जा रही है। भारतीय सर्वेक्षण द्वारा डॉल्फिन सेंचुरी की प्रबन्धन योजना तैयार की जा रही है, जिसे 2015 तक करने का लक्ष्य है। राष्ट्रीय स्तर पर डॉल्फिन के सर्वे हेतु एक योजना बनाकर एनएमसीजी को 2014-15 में समर्पित की गई है, जिसकी स्वीकृति अपेक्षित है ताकि अग्रेतर कार्रवाई की जा सके।
अन्त में मैं पुन: दोहराना चाहूँगा कि गंगा की निर्मलता के साथ-साथ अविरलता पर एक समेकित दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है। गंगा के साथ-साथ बिहार में उसकी सहायक नदियों की निर्मलता एवं अविरलता स्थापित करने की एक समग्र रणनीति को अपनाना होगा ताकि गंगा के प्रवाह एवं इसके नैसर्गिक गुणों को पुन: स्थापित किया जा सके।
इस पूरे प्रयास में नागरिकों की जागरुकता के साथ-साथ भागीदारी सुनिश्चित करने की योजना को भी कार्य योजना में सम्मिलित करना होगा ताकि किए गए बदलाव स्थाई एवं संस्थागत हो। कई मायने में गंगा नदी पूरे उत्तर भारत के साथ-साथ देश की भी जीवनरेखा है, इसकी स्वच्छता, सरंक्षण एवं संवर्धन के लिये जो भी प्रयास किए जाएँगे, वो दीर्घकाल में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाने में सिद्ध होंगे और बिहार सरकार ऐसे सभी प्रयासों में पूर्ण सहयोग करेगी। आशा है जो मुद्दे हमारे तरफ से उठाए गए हैं, उन पर सकारात्मक रूप से विचार कर यथोचित निर्णय लिया जाएगा।
लेखक बिहार के मुख्यमन्त्री हैं
भारत सरकार द्वारा नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत गंगा की निर्मलता और अविरलता को प्राथमिकता दी गई है, परन्तु अधिकांश योजनाएँ गंगा में निर्मलता को सुनिश्चित करने के लिये ही ली गई है। गंगा की अविरलता के बिन्दु पर यथोचित ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। राष्ट्रीय गंगा नदी प्राधिकरण की चौथी बैठक दिनांक 27 अक्टूबर 2014 में गंगा के पर्यावरणीय प्रवाह पर दो समितियों के गठित होने की सूचना दी गई थी, जिसका प्रतिवेदन दिसम्बर 2014 तक प्राप्त होना था।
गंगा नदी का लगभग 16 प्रतिशत जलग्रहण क्षेत्र बिहार राज्य में है परन्तु तीन चौथाई जल बिहार की नदियों से गंगा में प्रवाहित होता है। बिहार की सीमा पर मात्र 400 क्यूसेक जलप्रवाह आकलित है जबकि फरक्का समझौते के अनुसार 1500 क्यूसेक जलप्रवाह सुनिश्चित करना है, जो मुख्यत: बिहार की नदियों द्वारा प्राप्त जल से ही हो पाता है।
वस्तुत: 400 क्यूसेक जलप्रवाह भी बिहार की सीमा पर प्राप्त नहीं होता है। इस सन्दर्भ में ऊपरी सह घाटी राज्यों को गंगा के अविरल जल प्रवाह में हिस्सेदारी सुनिश्चित करने पर भारत सरकार का हस्तक्षेप आवश्यक है ताकि गंगा नदी की पूरी लम्बाई में भी सतत् प्रवाह सुनिश्चित हो एवं फरक्का बैराज में वांछित जल आपूर्ति करने की ज़िम्मेदारी केवल बिहार की न हो। साथ ही बिहार द्वारा गंगा एवं इसमें प्रवाहित होने वाली जल का उपयोग अपने विकास कार्यों के लिये किया जा सके। वर्तमान में जहाँ ऊपरी राज्य अपने हिस्सों से ज्यादा जल का उपयोग करते हैं एवं बिहार के द्वारा गंगा के जल के तनिक उपयोग पर भी आपत्तियाँ लगाई जाती हैं। राजौली नाभीकीय एवं बांका थर्मल विद्युत परियोजनाओं के लिये मात्र 280 क्यूसेक जल हेतु केन्द्रीय जल आयोग की लम्बित अनापत्ति इसका उदाहरण है।
बिहार सरकार द्वारा पिछले कई वर्षों से राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन नीति बनाने का मुद्दा उठाया जाता रहा है। एक तरफ गंगा के जलग्रहण क्षेत्र में वनों की कटाई के कारण आने वाले गाद की मात्रा में वृद्धि हुई है, वहीं दूसरी ओर फरक्का बैराज के कुप्रभाव के कारण गंगा के तल का ऊपर उठना, इसके जलवाहक क्षमता में कमी होना, प्रवृति उत्पन्न होना एवं परिणामस्वरूप बालू का ढेर बनना बढ़ गया है।
हमें फरक्का बैराज की उपयोगिता का पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है। दूरगामी दृष्टिकोण से देखा जाए तो फरक्का बैराज के बनने से उत्पन्न हो रही स्थिति के दुष्परिणाम इसके लाभ से अधिक प्रतीत होंगे। भारत सरकार के तत्कालीन जल संसाधन मन्त्री श्री पवन बंसल द्वारा गंगा के सम्पूर्ण बिहार चौसा से फरक्का तक का हवाई सर्वेक्षण करने के पश्चात केन्द्रीय संस्थान द्वारा इस समस्या का अध्ययन कर निराकरण करने की बात कही गई थी, परन्तु अभी तक इस पर कोई ठोस कार्रवाई भारत के स्तर से नहीं हुई है।
फरक्का बैराज के निर्माण से गंगा आकृति विज्ञान में बदलाव तथा नदी के ऊपर में गाद जमा होने के कारण भी उत्तर बिहार में बाढ़ की प्रवलता बढ़ती है। अत: राष्ट्रीय स्तर एक प्रभावकारी राष्ट्रीय गाद प्रबन्धन नीति बनाना आवश्यक है, जो न केवल गंगा बल्कि अन्य सभी नदियों के गाद प्रबन्धन में सहायक होगी एवं नदी की अविरलता को बनाए रखेगी।
वर्ष 1986 में भारत सरकार द्वारा नौपरिवहन गंगा नदी के हल्दिया से इलाहाबाद को राष्ट्रीय जल मार्ग एक घोषित किया गया था, जिसमें 45 मीटर रिच में 3 मीटर गहरा जल की उपलब्धता सुनिश्चित किया जाना था। हाल के दिनों में यह खबर प्रमुखता से छापी गई है कि भारत सरकार नौ-परिवहन हेतु इलाहाबाद से हल्दिया के बीच अनेक बैराज बनाने की योजना बना रही है।
उल्लेखनीय है कि पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बैराज के निर्माण के कुप्रभाव का खामियाजा बिहार को वहन करना पड़ रहा है। इस पृष्ठभूमि में आशंका है कि भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद से हल्दिया के बीच नौ-परिवहन हेतु उपर्युक्त प्रस्तावित बैराज-शृंखलाओं के निर्माण से गंगा की अविरल धारा अवरुद्ध होगी तथा फलस्वरूप यह पावन नदी मात्र बड़े-बड़े तालाबों के रूप में परिणत होकर रह जाएगी जो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी सन्तुलन के दृष्टिकोण से अत्यन्त विनाशकारी होगा।
अत: इस तरह बैराज शृंखला निर्माण की परिकल्पना के कारण पर्यावरण पर पड़ने वाले विस्तृत अध्ययन कराया जाना आवश्यक है और तब तक इस सन्दर्भ में कोई कार्रवाई नहीं किया जाना चाहिए। इलाहाबाद से हल्दिया के राष्ट्रीय जल मार्ग -1 के रूप में विकसित करने हेतु कारगार उपाय के रूप में इस भाग में लगातार ड्रेजिंग की आवश्यकता है, ताकि जहाज के परिवहन हेतु पर्याप्त गहराई रहे न कि बैराज के निर्माण कर इसे बड़े-बड़े तालाब में परिणत कर दिया जाए।
प्रारम्भ से गंगा की निर्मलता सुनिश्चित करने हेतु सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एवं सीवेज नेटवर्क के समेकित विकास की रणनीति अपनाई गई है। उल्लेखनीय है पूर्व में भारत सरकार द्वारा सीवेज नेटवर्क एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की योजना समेकित रूप में मंजूर की जाती रही है।
वर्तमान में भारत सरकार द्वारा अलग-अलग घटकों के रूप में परियोजना प्रस्ताव बनाने हेतु कहा जा रहा है। जिसके अन्तर्गत सीवेज नेटवर्क परियोजना की स्वीकृति एवं वित्त पोषण शहरी विकास मन्त्रालय एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की स्वीकृति एवं वित्त पोषण जलसंसाधन मन्त्रालय द्वारा किया जाना प्रस्तावित है। ऐसा करने से परियोजना के क्रियान्वयन में जटिलता उत्पन्न होगी। अत: भारत सरकार को पूर्व की भाँति सीवेज नेटवर्क एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की समेकित योजना के रूप में मंजूरी करनी चाहिए और एक ही मन्त्रालय के माध्यम से इस हेतु निधि उपलब्ध करानी चाहिए।
राज्य में पूर्व से पाँच सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट मंजूर किए गए थे जिसमें पटना शहर में चार और भागलपुर में एक सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट चालू है। मुंगेर में वैधानिक विवाद के कारण कार्यरत नहीं हो पाया है। राज्य के गंगा के किनारे अवस्थित 26 शहरों में सिवेज आधारभूत ढाँचा का चरणबद्ध तरीके से सुदृढ़ीकरण किया जा रहा है।
नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के अन्तर्गत बिहार के लिये 12 योजनाएँ मंजूर की गई है जिसमें से चार योजनाएँ यथा पटना रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट, बेगूसराय, बक्सर एवं हाजीपुर सीवेज नेटवर्क एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट की परियोजनाएँ कार्यान्वयन विभिन्न चरणों में है। पटना रिवर फ्रंट डेवलपमेंट प्रोजेक्ट तेज गति से कार्यान्वित हो रहा है। मुंगेर शहर की सीवेज परियोजना के पुनर्निर्मित करने हेतु सहमति के लिये भारत सरकार में लम्बित है।
शेष सात परियोजनाएँ निविदा प्रक्रिया विभिन्न चरणों में है, जो मुख्यत: पटना शहर के सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट एवं सीवेज नेटवर्क से सम्बन्धित है। 15 लम्बित डीपीआर में से 11 शहरों का लम्बित डीपीआर भारत सरकार के स्तर से कुछ पृच्छाओं के साथ वापस आया है, उसका निराकरण करके वापस भेजा जा रहा है। इस सभी डीपीआर की स्वीकृति शीघ्र अपेक्षित है। शेष शहरों का डीपीआर बनाने हेतु एजेंसी चुन ली गई है। डीपीआर बनाने का कार्य युद्ध स्तर पर जारी है।
जहाँ तक राज्य में स्वीकृत योजनाओं की प्रगति में तेजी लाना एवं तकनीकी तथा वित्तीय क्षमता का विकास का प्रश्न है। राज्य सरकार द्वारा शहरी आधारभूत ढाँचा के सुदृढ़ीकरण के लिये बिहार अरवन इनवेस्टमेंट डेपलवमेंट कॉरपोरेशन लिमिटेड वर्ष 2009 में स्थापित किया गया है जिसके द्वारा इन योजनाओं का कार्यान्वयन हो रहा है।
विभाग के स्तर पर नेशनल मिशन फॉर क्लीन गंगा के आलोक में स्टेट प्रोग्राम मैनेजमेंट ग्रुप का गठन किया गया। वर्तमान में 3 प्रोफेशनल के चयन की प्रक्रिया जारी है। तकनीकी एवं वित्तीय क्षमता बढ़ाने के लिये डिपार्टमेंट फॅार इंटरनेशनल डेवलपमेंट सहायता परियोजना सपोर्ट प्रोग्राम फॉर अरबन रिफार्मस के अन्तर्गत चार कंसल्टेंट का चयन किया गया है, जो कि डीपीआर बनाने में बुडको को सहयोग कर रहे हैं।
मेरा भी मानना है कि मंजूर परियोजनाओं की प्रगति सन्तोषजनक नहीं है। इसका प्रमुख कारण सीवेज नेटवर्क के लिये शहरी क्षेत्रों की निर्विवादित ज़मीन की उपलब्धता में विलम्ब होना है। जब ज़मीन की समस्या दूर हो गई है कार्य का लगातार पर्यवेक्षण किया जा रहा है एवं प्रगति सुनिश्चित की जाएगी।
पश्चिमी बंगाल में गंगा नदी पर फरक्का बैराज के निर्माण के कुप्रभाव का खामियाजा बिहार को वहन करना पड़ रहा है। इस पृष्ठभूमि में आशंका है कि भारत सरकार द्वारा इलाहाबाद से हल्दिया के बीच नौ-परिवहन हेतु उपर्युक्त प्रस्तावित बैराज-शृंखलाओं के निर्माण से गंगा की अविरल धारा अवरुद्ध होगी तथा फलस्वरूप यह पावन नदी मात्र बड़े-बड़े तालाबों के रूप में परिणत होकर रह जाएगी जो पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी सन्तुलन के दृष्टिकोण से अत्यन्त विनाशकारी होगा। ज्ञातव्य है कि भारत सरकार द्वारा जिन योजनाओं की स्वीकृति प्रदान की जाती है उनमें प्रशासनिक स्वीकृति की राशि के अनुरूप केन्द्रांश विमुक्त किया जाता है जबकि निकालने पर समान्यत: प्रशासनिक स्वीकृति की राशि से अधिक राशि पर निविदा निष्पादित होती है। निविदित राशि एवं प्रशासनिक स्वीकृति राशि के अन्तर को राज्य सरकार द्वारा वहन करने का निर्देश है। इसके कारण राज्य सरकार पर अत्यधिक वित्तीय बोझ सम्भावित है।
अत: मार्गदर्शिका में संशोघन करके भारत सरकार द्वारा निविदित राशि के विरुद्ध निर्धारित केन्द्रांश दिए जाने का प्रावधान किया जाना चाहिए। उदाहरण के तौर पर पटना में पहाड़ी जोन से सीवेज नेटवर्क एवं सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट योजना मे निविदित राशि एवं प्रशासनिक 318 करोड़ रुपए का अन्तर आ रहा है। इतनी बड़ी राशि व्यवस्था राज्य को अपने संसाधनों से करने में होने वाली कठिनाई से इनकार नहीं किया जा सकता है। यह योजनाओं के उद्देश्य को ही विफल करता है। अत: इस सम्बन्ध में नीतिगत निर्णय लिया जाना अपेक्षित है।
इसके अतिरिक्त भारत सरकार के स्तर परियोजनाओं की समीक्षा के उपरान्त लम्बा समय लगता है। उसी प्रकार जिन योजनाओं में पुनर्निविदा की आवश्यकता होती है, उनमें अनापत्ति एवं सहमति हेतु लम्बा समय लगता है। जिसके कारण योजना कार्यान्वयन प्रभावित होता है। अत: स्वीकृति की व्यवस्था एवं प्रक्रिया को सरल एवं युक्तिसंगत बनाने की आवश्यकता है ताकि कम-से-कम समय में वांछित स्वीकृति मिल सके।
राज्य सरकार द्वारा अगस्त 2014 में गंगा कार्ययोजना तैयार कर भारत सरकार को उपलब्ध कराया गया है। गंगा कार्ययोजना के आच्छादित जिलों में सघन जागरुकता अभियान प्रारम्भ किया गया तथा 18 से 22 मार्च 2015 को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल एवं स्वच्छता जागरुकता अभियान का आयोजन किया गया। गंगा किनारे के जिलों में विभिन्न गैरसरकारी संस्थानों का सहयोग योजनाओं के प्रचार-प्रसार एवं कार्यान्वयन के लिये लिया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि 582992 परियोजनाओं में 525975 गरीबी रेखा के नीचे एवं एपीएल के चिहिन्त श्रेणी के परिवार हैं, जिन्हें स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के अन्तर्गत आच्छादित किया जाएगा तथा अन्य श्रेणी 57017 एपीएल परिवारों को राज्य सम्पोषित लोहिया स्वच्छता योजना से आच्छादित किया जाएगा।
इसी क्रम में शहरी क्षेत्रों हेतु स्वच्छ भारत के प्रावधानों की ओर ध्यान देना आवश्यक है जिसमें सहायता अनुदान 4 हजार रुपए प्रति परिवार की दर से देय है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह सहायता राशि 12 हजार रुपए है। इस अन्तर को समाप्त करने की आवश्यकता है एवं शहरी क्षेत्रों के लिये भी शौचालय विहीन आवासों में शौचालय निर्माण हेतु 12 हजार रुपए की सहायता राशि अनुमान्य की जानी चाहिए।
बिहार में गंगा नदी की कुल प्रवाह दूरी 445 किलोमीटर है। गण्डक, बुढ़ी गण्डक, घाघरा, बागमती, कमला, बलान, कोशी, कर्मनाशा, सोन एवं पुनपुन नदी गंगा नदी की सहायक नदियाँ हैं। ये सहायक नदियाँ बिहार राज्य के अन्दर गंगा नदी के प्रवाह और इसके नैसर्गिक गुणों (निर्मल धारा एवं अविरल धारा) को बनाए रखने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करती है। गंगा नदी में सामान्य प्रदूषण के अलावा सहायक नदियों के माध्यम से भी प्रदूषण फैलता है।
गंगा नदी के संरक्षण एंव पुनरुद्धार से सम्बन्धित कार्यों के अनुश्रवण हेतु पर्यावरण एवं वन विभाग के प्रधान सचिव की अध्यक्षता में एक राज्यस्तरीय समिति का गठन किया गया है। गंगा एवं इसकी सहायक नदियों के किनारे एवं आसपास अवस्थित उद्योगों से सम्बन्धित एक ड्रेनेज मैप तैयार कर सचिव पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मन्त्रालय, भारत सरकार की अध्यक्षता में गठित समिति को समर्पित किया गया है।
बिहार राज्य प्रदूषण नियन्त्रण परिषद द्वारा बिहार में पाँच सिक्युरिटी पॉलिटिंग इंड्रस्टीज को चिन्हित किया गया है यथा पाटलिपुत्र औद्योगिक क्षेत्र एवं फतुहा औद्योगिक क्षेत्र, पटना, बरारी औद्योगिक क्षेत्र भागलपुर, हाजीपुर औद्योगिक क्षेत्र, हाजीपुर एवं बेला औद्योगिक क्षेत्र, मुज़फ़्फ़रपुर जिनमें सामूहिक बहिस्राव उपचार संयन्त्र की स्थापना की दिशा में कार्रवाई की जा रही है। राज्य में सीमित दक्षता के कारण इसकी स्थापना हेतु भारत सरकार से उपयुक्त तकनिकी एवं वित्तीय सहायता की आवश्यकता है। भारत सरकार को इसके लिये उचित पहल करनी चाहिए।
हमारी ही पहल पर वर्ष 2002 में डॉल्फिन को राष्ट्रीय जलजीव घोषित किया गया। हमारा मानना है कि गंगा नदी के स्वास्थ्य का आकलन डॉल्फिन की संख्या से किया जा सकता है। अत: इस पर भी ध्यान देने की आवश्यकता है। हर वर्ष बिहार में 5 अक्टूबर, डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
बिहार सरकार ने 2011-12 में डॉल्फिन का सर्वेक्षण सम्पन्न कराया था जिसमें 1208 गणना हुई थी। पटना में राष्ट्रीय डॉल्फिन अनुसन्धान केन्द्र की स्थापना की जा रही है जिसके लिये 24.90 करोड़ रुपए की स्वीकृति दी गई है। इसका 30 प्रतिशत भारत सरकार एवं शेष बिहार सरकार द्वारा वहन किया जा रहा है।
राज्य में स्थानीय मछुआरों एवं स्थानीय नागरिकों की सहभागिता डॉल्फिन के संरक्षण हेतु सुनिश्चित की जा रही है। भारतीय सर्वेक्षण द्वारा डॉल्फिन सेंचुरी की प्रबन्धन योजना तैयार की जा रही है, जिसे 2015 तक करने का लक्ष्य है। राष्ट्रीय स्तर पर डॉल्फिन के सर्वे हेतु एक योजना बनाकर एनएमसीजी को 2014-15 में समर्पित की गई है, जिसकी स्वीकृति अपेक्षित है ताकि अग्रेतर कार्रवाई की जा सके।
अन्त में मैं पुन: दोहराना चाहूँगा कि गंगा की निर्मलता के साथ-साथ अविरलता पर एक समेकित दृष्टिकोण रखने की आवश्यकता है। गंगा के साथ-साथ बिहार में उसकी सहायक नदियों की निर्मलता एवं अविरलता स्थापित करने की एक समग्र रणनीति को अपनाना होगा ताकि गंगा के प्रवाह एवं इसके नैसर्गिक गुणों को पुन: स्थापित किया जा सके।
इस पूरे प्रयास में नागरिकों की जागरुकता के साथ-साथ भागीदारी सुनिश्चित करने की योजना को भी कार्य योजना में सम्मिलित करना होगा ताकि किए गए बदलाव स्थाई एवं संस्थागत हो। कई मायने में गंगा नदी पूरे उत्तर भारत के साथ-साथ देश की भी जीवनरेखा है, इसकी स्वच्छता, सरंक्षण एवं संवर्धन के लिये जो भी प्रयास किए जाएँगे, वो दीर्घकाल में पर्यावरण एवं पारिस्थितिकी सन्तुलन बनाने में सिद्ध होंगे और बिहार सरकार ऐसे सभी प्रयासों में पूर्ण सहयोग करेगी। आशा है जो मुद्दे हमारे तरफ से उठाए गए हैं, उन पर सकारात्मक रूप से विचार कर यथोचित निर्णय लिया जाएगा।
लेखक बिहार के मुख्यमन्त्री हैं