गंगानदी में डॉल्फिन मछली को बचाने में जुटे प्रो.पार्थंकर चौधरी

Submitted by Shivendra on Fri, 03/04/2022 - 16:11

नदियों में बढ़ते प्रदूषण, बांधों के निर्माण व शिकार के कारण मीठे पानी में रहने वाली डॉल्फिन की प्रजाति गंगा डॉल्फिन के अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। पांच अक्टूबर, 2009 को केंद्र सरकार ने इसको भारत का राष्ट्रीय जलीय जीव घोषित किया था।  2018 के संसद के  शीतकालीन सत्र के दौरान केंद्रीय पर्यावरण, वन व जलवायु परिवर्तन मंत्री ने इनकी संख्या के बारे में जानकारी दी थी। 

पर्यावरण मंत्रालय को उत्तर प्रदेश और असम की राज्य सरकारों द्वारा दी गई जानकारी के मुताबिक  उत्तर प्रदेश में साल 2015 में डॉल्फिन की संख्या 1,272 थी, जबकि 2012 में  यह महज 671 थी।   वही असम की 3 नदियों में गंगा डॉल्फिन कि कुल संख्या  लगभग 962 पाए गई थी  अकेले ब्रह्मपुत्र नदी में इनकी संख्या लगभग  877 के करीब थी।

गंगा डॉल्फिन की कम होती संख्या को देखते हुए समय समय पर  इनके संरक्षण के लिये सरकारों द्वारा  कई कदम उठाए गए है। 

  • भारतीय वन्यजीव (संरक्षण) अधिनियम, 1972 की अनुसूची-एक के तहत गंगा डॉल्फिन का शिकार करना प्रतिबंधित किया गया ।
  • गंगा डॉल्फिन को IUCN की रेड लिस्ट में संकटग्रस्त की श्रेणी में रखा गया है।
  •  पीएम मोदी  ने स्वतंत्रता दिवस-2020 पर दिये गए अपने भाषण में प्रोजेक्ट डॉल्फिन को लॉन्च करने की घोषणा की थी । यह प्रोजेक्ट टाइगर की तर्ज पर है, जिसने बाघों की आबादी बढ़ाने में मदद की थी। 
  • बिहार के भागलपुर ज़िले में विक्रमशिला गंगा डॉल्फिन अभयारण्य की स्थापना की गई है।
  • ‘गंगा डॉल्फिन संरक्षण कार्य योजना 2010-2020’ गंगा डॉल्फिन के संरक्षण के प्रयासों में से एक है, इसके तहत गंगा डॉल्फिन और उनकी आबादी के लिये प्रमुख खतरों के रूप में नदी में यातायात, सिंचाई नहरों और शिकार की कमी आदि की पहचान की गई है।.
  • राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन द्वारा प्रतिवर्ष 5 अक्तूबर को गंगा डॉल्फिन दिवस के रूप में मनाया जाता है।
  • वही असम सरकार ने भी इसे राज्य जलीय जीव घोषित किया है। राज्य में इनकी आबादी को कम होने से बचाने के लिए नदियों से सिल्टिंग और रेत उठाने से रोक दी गई है। 

इसके साथ ही हालहि में इसके  संरक्षण को लेकर असम के कछार कॉलेज में एक जागरूकता अभियान के तहत संवाद कार्यक्रम का आयोजन किया गया। जिसमें राज्य भर से करीब लगभग 150 लोगों ने भाग लिया।  इस दौरान असम विश्वविद्यालय सिलचर के परिस्थितिकी और पर्यावरण विज्ञान विभाग  के   प्रो पार्थंकर चौधरी ने असम की बराक और कुलसी नदियों में किए गए रिसर्च पर जानकारी देते हुए कहा कि इन नदियों में मछली पकड़ने के दौरान नदियों में पाई जाने वाली कई प्रजातियों की अंधाधुंध हत्या हुई है।  आज भले ही भारतीय वन्य जीव अधिनियम 1972 के तहत डॉल्फिन को नदियों में  संरक्षण दिया है  लेकिन स्थानीय माछुआरा समुदायों को इसके बारे कम जागरूकता के कारण इनका जीवन में भी संकट मंडरा रहा है । 

प्रो पार्थंकर चौधरी   ने राज्य वन मंत्रालय को बराक नदी में डॉल्फिन अभयारण्य का प्रस्ताव रखा है।ताकि लोग  डॉल्फिन को लेकर जागरूक हो सके ।