ग्रैफाइट

Submitted by Hindi on Thu, 08/11/2011 - 12:59
ग्रैफाइट (Graphite) खनिज को रासायनिक प्रकृति सन्‌ 1779 में के. डब्लू शोले ने ज्ञात की, पर इस खनिज पर नामकरण सन्‌ 1789 में ए. जी. वर्नर ने किया। ग्रैफाइट नामक ग्रीक शब्द 'ग्रेफी' से लिया गया है, जिसका अर्थ है 'मैं लिखता हूँ'। हमारी पेंसिलों में लिखनेवाला पदार्थ ग्रैफाइट ही है, जिसके साथ थोड़ी सी अच्छी मिट्टी मिली होती है।

प्राचीन काल में सुरमा (आँखों का अंजन) के रूप में इसका उपयोग होता रहा है, क्योंकि यह खनिज 'स्टिबनाइट' (Stibnite) से बहुत अधिक मिलता जुलता है। साथ ही इसका उपयोग मिट्टी के बर्तनों पर पालिश आदि करने के लिये भी किया जाता था। आजकल इसका मुख्य उपयोग ढलाई तथा तापसह्य मूषों के निर्माण में होता है। इसके अतिरिक्त यह मशीनों को चिकनाने, विद्युतदग्र (electrodes) बनाने तथा परमाणु पुंज (atomic pile) में भी प्रयुक्त होता है।

गुण- यह कार्बन का खनिज है और षड्भुजीय निकाय समुदाय में मणिभ देता है। यह अधिकतर परतदार आकृति में मिलता है। इसकी चमक धातु की तरह होती है, पर यह छूने पर चिकना तथा नरम प्रतीत होता है। यह नाखून से आसानी से खुरच जाता है। इसका आपेक्षिक घनत्व 2 से 2.2 तक है।

आक्सीजन रहित वातावरण में 2,0000 सें. ताप का भी इसपर कोई प्रभाव नहीं पड़ता, पर आक्सीजन के संपर्क में यह 6200 सें. पर ही जलने लगता है और 3,000 सें. पर पिघल जाता है यह विद्युत्‌ और उष्मा दोनों का अच्छा चालक है।

प्राप्ति- ग्रैफाइट मुख्यत: शिराओं (venis) तथा छोटे छोटे जमावों के रूप में पाया जाता है। विश्व में ग्रैफाइट का सबसे बड़ा उत्पादक देश रूस है। कोरिया, जर्मनी, मैडागास्कर, तथा लंका अन्य मुख्य उत्पादक देश हैं। भारत में ग्रैफाइट खनिज के निक्षेप उड़ीसा, मध्य प्रदेश, मद्रास केरल, बिहार, राजस्थान तथ कश्मीर प्रदेशों में है। सन्‌ 1955 में भारत में ग्रैफाइट का उत्पादन लगभग 1,613 टन था। (महाराज नारायण मेहरोत्रा)

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संदर्भ
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बाहरी कड़ियाँ
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