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वासो, हरियाणा
ग्राम जलापूर्ति समिति (V.W.S.C.) का मुख्य दायित्व जल गुणवत्ता मानीटरिंग तथा निगरानी है। रोगाणु संक्रमण अस्वच्छता जनित अनेक रोगों जैसे डायरिया (दस्त), पेचिश, हैजा, टायफाईड आदि का कारण है। भूजल स्रोतों में फ्लोराइड एवं आर्सेनिक की अधिकता से फ्लोरोसिस एवं आर्सेनिक डर्मेटायटिस रोग भी उत्पन्न होने लगे हैं। ग्राम जलापूर्ति समिति को सुनिश्चित करना चाहिए कि नियमित रूप से जल के नमूने लिए जाएं एवं क्षेत्र परीक्षण किट द्वारा तथा जिला व उपसंभागीय परीक्षण प्रयोगशालाओं में उनका विश्लेषण किया जाए।
भारत के कई भागों में प्रतिवर्ष 10-15 दिन अथवा उससे भी कम बरसात का मौसम होता है। परिणामस्वरूप कई वर्षों तक सूखे की स्थिति रह सकती है तथा पानी की अत्यधिक कमी, मनुष्य तथा मवेशियों के लिए पानी की गंभीर कठिनाई उत्पन्न कर सकती है। यह अति आवश्यक है कि ऐसी अवधि में शासन द्वारा आपातकालीन उपाय किए जाने के स्थान पर ग्राम पंचायतें स्वयं ही मनुष्यों तथा पशुओं को पर्याप्त मात्रा एवं गणुवत्ता में पेयजल उपलब्ध कराने में समर्थ हो सकें। इसे प्राप्त करने के लिए ग्राम पंचायत/ग्राम जलापूर्ति समिति को यथायोग्य नियोजन कर उचित रोकथाम उपायों को अपनाना चाहिए, जैसे छतीय वर्षाजल संग्रहण, भूजल पुनर्भरण, परंपरागत संग्रहण तालाबों का पुनरोद्धार एवं सतही जल व भूजल का मिश्रित उपयोग आदि।
साथ ही भारत के कई भाग बाढ़ से प्रभावित होते हैं और इस समय पेयजल की बड़ी गंभीर समस्या हो जाती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि शासन द्वारा वृहद स्तर पर आपातकालीन उपाय अपनाए बिना ही मानव एवं पशुओं के लिए पेयजल गुणवत्ता सुनिश्चित कराई जा सके। कुएं में बाढ़ का जल प्रवेश कर जाने पर संदूषण का खतरा रहता है जिससे दस्त, पेचिश, हैजा, टायफाइड जैसे रोग होते हैं। यह अत्याश्यक है कि कुएँ के जल को क्लोरीन द्वारा संक्रमण मुक्त (जीवाणु रहित) किया जाय तथा/अथवा पीने से पूर्व जल को उबाला जाए। कुएँ में रसायनों जैसे कीटनाशकों आदि से भी संदूषण की संभावना बनी रहती है या कुएँ में गाद का जमाव हो सकता है। ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायत/ग्राम जलापूर्ति समिति को PHED से सीधे अथवा BRC/DWSM की सहायता से व्यावसायिक मार्गदर्शन लेना चाहिए। ऐसी सभी परिस्थितियों में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कुएँ को शीघ्र से शीघ्र उपचारित किया जाना चाहिए।
घरेलू उपयोग हेतु जल की पर्याप्त मात्रा व गुणवत्ता सुनिश्चित कराने के साथ-साथ सभी विद्यालयों व आंगनवाड़ियों में जलापूर्ति सुनिश्चित करना भी ग्राम पंचायत/ग्राम जलापूर्ति समिति की ज़िम्मेदारी है। ग्राम पंचायत/ग्राम जलापूर्ति समिति को मवेशियों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखना चाहिए, विशेषकर जल गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों में जहां पशु, रासायनिक संदूषण के अधिक शिकार होते हैं।
अधिक जानकारी के लिए संलग्नक देखें।
भारत के कई भागों में प्रतिवर्ष 10-15 दिन अथवा उससे भी कम बरसात का मौसम होता है। परिणामस्वरूप कई वर्षों तक सूखे की स्थिति रह सकती है तथा पानी की अत्यधिक कमी, मनुष्य तथा मवेशियों के लिए पानी की गंभीर कठिनाई उत्पन्न कर सकती है। यह अति आवश्यक है कि ऐसी अवधि में शासन द्वारा आपातकालीन उपाय किए जाने के स्थान पर ग्राम पंचायतें स्वयं ही मनुष्यों तथा पशुओं को पर्याप्त मात्रा एवं गणुवत्ता में पेयजल उपलब्ध कराने में समर्थ हो सकें। इसे प्राप्त करने के लिए ग्राम पंचायत/ग्राम जलापूर्ति समिति को यथायोग्य नियोजन कर उचित रोकथाम उपायों को अपनाना चाहिए, जैसे छतीय वर्षाजल संग्रहण, भूजल पुनर्भरण, परंपरागत संग्रहण तालाबों का पुनरोद्धार एवं सतही जल व भूजल का मिश्रित उपयोग आदि।
साथ ही भारत के कई भाग बाढ़ से प्रभावित होते हैं और इस समय पेयजल की बड़ी गंभीर समस्या हो जाती है। आज आवश्यकता इस बात की है कि शासन द्वारा वृहद स्तर पर आपातकालीन उपाय अपनाए बिना ही मानव एवं पशुओं के लिए पेयजल गुणवत्ता सुनिश्चित कराई जा सके। कुएं में बाढ़ का जल प्रवेश कर जाने पर संदूषण का खतरा रहता है जिससे दस्त, पेचिश, हैजा, टायफाइड जैसे रोग होते हैं। यह अत्याश्यक है कि कुएँ के जल को क्लोरीन द्वारा संक्रमण मुक्त (जीवाणु रहित) किया जाय तथा/अथवा पीने से पूर्व जल को उबाला जाए। कुएँ में रसायनों जैसे कीटनाशकों आदि से भी संदूषण की संभावना बनी रहती है या कुएँ में गाद का जमाव हो सकता है। ऐसी स्थिति में ग्राम पंचायत/ग्राम जलापूर्ति समिति को PHED से सीधे अथवा BRC/DWSM की सहायता से व्यावसायिक मार्गदर्शन लेना चाहिए। ऐसी सभी परिस्थितियों में जल सुरक्षा सुनिश्चित करने हेतु कुएँ को शीघ्र से शीघ्र उपचारित किया जाना चाहिए।
घरेलू उपयोग हेतु जल की पर्याप्त मात्रा व गुणवत्ता सुनिश्चित कराने के साथ-साथ सभी विद्यालयों व आंगनवाड़ियों में जलापूर्ति सुनिश्चित करना भी ग्राम पंचायत/ग्राम जलापूर्ति समिति की ज़िम्मेदारी है। ग्राम पंचायत/ग्राम जलापूर्ति समिति को मवेशियों की आवश्यकताओं का भी ध्यान रखना चाहिए, विशेषकर जल गुणवत्ता प्रभावित क्षेत्रों में जहां पशु, रासायनिक संदूषण के अधिक शिकार होते हैं।
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