गुरूदासपुर

Submitted by Hindi on Wed, 08/10/2011 - 16:50
गुरूदासपुर 1. पंजाब का एक सीमांत जिला जिसका क्षेत्रफल 3,560 वर्ग किलोमीटर तथा जनसंख्या 12,29,249 (1971) है। इसके उत्तर में जम्मू-कश्मीर तथा हिमालय प्रदेश के क्षेत्र, दक्षिण में अमृतसर जिला, पूर्व में काँगडा तथा होशियारपुर जिले हैं जहाँ चक्की और व्यास नदियाँ सीमा बनाती हैं और पश्चिम में अमृतसर जिला तथा स्यालकोट (पाकिस्तान) हैं।

जनपद की दक्षिणी तहसीलें बटाला एवं गुरूदासपुर बारी दोआब (व्यास तथा रावी नदियों के मध्य) में पंजाब के उपपर्वतीय मैदानी तलहटी में पड़ती है। पठान कोट तहसील का अधिकांश व्यास की सहायक चक्की नदी तथा रावी के मध्य पड़ता है तथा शेष चक अंधर क्षेत्र रावीपार क्षेत्र में रावी तथा उसकी सहायक ऊझ नदी के मध्य स्थित है। पठानकोट का चक अंधर तथा निचला भाग तराई है और तर, मलेरिया ग्रस्त तथा वनाच्छादित है किंतु ऊपरी भाग शुष्क चट्टानी तथा ऊबड़ खाबड़ है जिसके बीच बीच में उपजाऊ घाटियाँ तथा उच्चतर ढालों पर चीड़ के वन मिलते हैं।

मुख्य नदियों-व्यास तथा रावी के अतिरिक्त यहाँ चक्की, ऊझ तथा अन्य छोटी नदियाँ और नाले हैं। पर्वतों के पास होने के कारण पंजाब के अन्य जिलों की अपेक्षा यहाँ की जलवायु सम है। ऊपर से नीचे मैदानों की ओर वर्षा की मात्रा घटती जाती है; 1940-50 की औसत वार्षिक वर्षा पठानकोट में 48.67', गुरूदासपुर में 39.83', तथा बटाला में मात्र 27.45' थी। नहर सिंचित तराई क्षेत्र अस्वास्थ्यकर है। कभी कभी रावी तथा व्यास में भयंकर बाढ़ आ जाती है।

यहाँ धारीवाल तथा सुजानपुर का ऊनी कपड़े का उद्योग, औद्योगिक एवं कृषि संबंधी यंत्रादि खंलकूद एवं मनोरंजन के सामान से लेकर लकड़ी के उद्योग एवं मोटर आदि के कल पुर्जे बनाने एवं मरम्मत करने तक के उद्योग विकसित हुए हैं।

ऐतिहासिक स्थलों में रावी तट स्थित मुक्तेश्वर का प्रस्तरमंदिर, गुरूदासपुर की ‘हिलती दीवार’ बटाला के अंचल में तालाब के बीच स्थित शिवमंदिर, डेराबाबा का सिक्खों का स्वर्णमंदिर, तथा शाहपुर कांडी के ऐतिहासिक खंडहर प्रसिद्ध हैं। पठानकोट से होकर जम्मू कश्मीर को जानेवाला बनिहाल सुरंग का रास्ता यहाँ से होकर जाता है। यहाँ डलहौजी प्रसिद्ध शैलावास है।

2. पंजाब के गुरूदासपुर जिले का प्रशासनिक केंद्र तथा ऐतिहासिक नगर (स्थिति: 320 3’ उ. अ. तथा 750 25’ पू. दे.)। अधिक स्वास्थ्यकर तथा जनपदीय भूभाग में केंद्रीय स्थिति होने के कारण इसे 1852 ई. में जनपद का प्रशासनिक केंद्र बनाया गया। सन्‌ 1867 में यहाँ नगरपालिका स्थापित हुई, किंतु नगर की तीव्र प्रगति स्वतंत्रताप्राप्ति के बाद हुई है, जब पाकिस्तान के विस्थापित हिंदुओं ने न केवल संख्यावृद्धि की प्रत्युत विभिन्न उद्योग स्थापित किए। फलस्वरूप नए आवासमंडल (residential colonies) बनने के कारण नगर की क्षेत्रीय वृद्धि भी हुई है।

रावी तथा व्यास की जलविभाजक उच्चतर भूमि पर स्थित होने के कारण यह नगर स्वास्थ्यकर है तथा बाढ़ोंसे सुरक्षित रहता है। सिक्खों के धार्मिक तथा राजनीतिक उत्थान में इस नगर का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। दिल्ली के मुगल सम्राट बहादुर शाह की मृत्यु (1712) के बाद स्वातंत्रयविद्रोह की अग्नि भड़की। इसी काल में सिक्खों के 11वें गुरू बंदा ने यहाँ एक किला निर्मित कराया जहाँ वे अपने शिष्यों के साथ विद्रोह के अंतिम काल में रहे। मुगलों ने घेराबंदी करके उन्हें कैदी बना लिया और दिल्ली ले गए। इस किले में संप्रति सारस्वत ब्राह्मणों का एक विशाल मठ है। (काशीनाथ सिंह)

गुरूमुखी पंजाबी भाषा की लिपि


जिसका प्रचलन 16वीं-17वीं शती में सिक्ख गुरूओं ने किया। अक्षर पहले से विद्यमान थे, और गुरू नानक साहब की आसा राग में की पट्टी के आदिम अक्षरों के नाम भी वहीं हैं जो इस समय प्रचलित हैं, यद्यपि उनका क्रम भिन्न है। ये अक्षर कश्मीर की शारदा, काँगड़ा की टाकरी या ठाकुरी और मध्यदेश की नागरी के मेल से संगठित हुए प्रतीत होते हैं। 34 वर्ण उक्त लिपियों से लेकर और ड में थोड़ा परिवर्तन करके 35 अक्षरों की इस मिश्रित लिपि का विशेष प्रचार गुरू अंगद ने किया। पाँचवे सिक्ख गुरू अर्जुन देव ने इस लिपि में आदिग्रंथ का संग्रह करके एवं इसे ‘गुरूमुखी’ नाम देकर इसको सिक्खों की विशिष्ट धार्मिक लिपि बना दिया।

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