सोन प्रयाग से केदारनाथ के रास्ते में गौरी कुंड नामक छोटी झील मिलती है। यह चट्टी गौरी कुंड चट्टी के नाम से ही जानी जाती है। कहा जाता है कि गौरी माता ने इसी स्थान पर गणेश जी का पुतला बना कर उसमें प्राणों का संचार किया था और उन्हें निर्देश दिया था कि कोई भी व्यक्ति प्रवेश नहीं करे क्योंकि वे स्नान कर रही थीं। उसी समय शिवजी वहां आये, गणेश के रोकने पर क्रोधित शिव ने उनका सिर काट दिया। अपने मानसपुत्र को मृत देख गौरी ने शिवजी से हठ किया कि वे, उसे जीवन-दान दें तब शिवजी ने उनके धड़ पर हाथी के बच्चे का सिर लगाकर जीवन-दान दिया था।
यहां पास ही गौरीकुंड के अलावा दो कुंड और बने हुए हैं, ब्रह्मकुंड और सूर्यकुंड। भागीरथी पहले ब्रह्मकुंड में कूदती है। गंगा के वेग के कारण ये नष्ट हो चले हैं लेकिन गौरीकुंड एक और पुराण कथा का स्मरण कराता है। यहां शिव ने वेगवती गंगा के प्रवाह को जटाओं में समेट लिया था और भगीरथ के तप करने पर ही मुक्ति दी थी। यहां एक विशाल चट्टान ने भगीरथी के तप करने पर ही मुक्ति दी थी। यहां एक विशाल चट्टान ने भगीरथी का रास्ता रोक कुंड का रूप दिया है। कहा जाता है जब शंकरजी ने भागीरथी को अपनी जटाओं में समेटा तो उसेक भार से स्वयं पाताल में धसने लगे। भागीरथी उनकी चुनौती से क्रुद्ध हो उठी और उन्मत वेग धारण कर लिया। गौरी वहीं चट्टान पर बैठी तप कर रही थीं, शिव को रसातल में जाते देख, अपने तप से भागीरथी के वेग को रोक लिया। विशाल चट्टान के झरोखों से वेगवती भागीरथी निरंतर झरती आगे बढ़ती है। गौरी कुंड के पास ही एक शिला पर छोटे से मंदिर की आकृति उत्कीर्ण है। भूरी चट्टान पर श्वेत रेखाओं से निर्मित इस मंदिर की आकृति कभी मिटती नहीं है। गौरी कुंड का जल रामेश्वरम् में चढ़ाया जाता है और रामेश्वरम् से जल लाकर बद्रीनाथ पर चढ़ाते हैं। गौरी कुंड में सेतुबंध की मिट्टी समर्पित की जाती है।
यहां पास ही गौरीकुंड के अलावा दो कुंड और बने हुए हैं, ब्रह्मकुंड और सूर्यकुंड। भागीरथी पहले ब्रह्मकुंड में कूदती है। गंगा के वेग के कारण ये नष्ट हो चले हैं लेकिन गौरीकुंड एक और पुराण कथा का स्मरण कराता है। यहां शिव ने वेगवती गंगा के प्रवाह को जटाओं में समेट लिया था और भगीरथ के तप करने पर ही मुक्ति दी थी। यहां एक विशाल चट्टान ने भगीरथी के तप करने पर ही मुक्ति दी थी। यहां एक विशाल चट्टान ने भगीरथी का रास्ता रोक कुंड का रूप दिया है। कहा जाता है जब शंकरजी ने भागीरथी को अपनी जटाओं में समेटा तो उसेक भार से स्वयं पाताल में धसने लगे। भागीरथी उनकी चुनौती से क्रुद्ध हो उठी और उन्मत वेग धारण कर लिया। गौरी वहीं चट्टान पर बैठी तप कर रही थीं, शिव को रसातल में जाते देख, अपने तप से भागीरथी के वेग को रोक लिया। विशाल चट्टान के झरोखों से वेगवती भागीरथी निरंतर झरती आगे बढ़ती है। गौरी कुंड के पास ही एक शिला पर छोटे से मंदिर की आकृति उत्कीर्ण है। भूरी चट्टान पर श्वेत रेखाओं से निर्मित इस मंदिर की आकृति कभी मिटती नहीं है। गौरी कुंड का जल रामेश्वरम् में चढ़ाया जाता है और रामेश्वरम् से जल लाकर बद्रीनाथ पर चढ़ाते हैं। गौरी कुंड में सेतुबंध की मिट्टी समर्पित की जाती है।
Hindi Title
गौरीकुंड
विकिपीडिया से (Meaning from Wikipedia)
गौरीकुंड
लाइव हिन्गुस्तान
गौरीकुंड में वासुकी गंगा केदारनाथ से वासुकी ताल होते हुए मंदाकिनी में मिलती है, यह कस्बा केदारनाथ के लिए मोटरवाहन शीर्ष है। गौरीकुंड १९८१ मी. ऊँचाई पर है।[१] यहाँ से केदारनाथ की दूरी १४ किमी. है, जो पैदल अथवा घोड़े, डाँडी या कंडी में तय करते हैं। यहीं से केदारनाथ के लिए पैदल रास्ता प्रारंभ होता है। गौरीकुंड में, केदारनाथ से १३ किलोमीटर नीचे, मंदाकिनी के दाहिने तट पर, गर्म पानी के दो सोते हैं (५३°C और २३°C)। एक दूसरा गर्म सोता ठीक बद्रीनाथ मंदिर के नीचे है जिसका तापमान ४९०°से. है। ऐतिहासिक दृष्टि से गौरीकुंड प्राचीन काल से विद्यमान है। लेकिन एच.जी. वाल्टन ने ब्रिटिश गढ़वाल अ गजटियर में लिखा है कि गौरीकुंड मंदाकिनी के तट पर एक चट्टी थी। यहां गौरा माई – गौरी को समर्पित – का सुंदर एवं प्राचीन मंदिर देखने योग्य है। यहां अत्यधिक समर्पण भाव के साथ संध्याकालीन आरती की जाती है। पावन मंदिरगर्भ में शिव और पार्वती की धात्विक प्रतिमाएं विराजमान हैं। यहां एक पार्वतीशिला भी विद्यमान है जिसके बारे में माना जाता है कि पार्वती ने यहां बैठकर ध्यान लगाया था।
अन्य स्रोतों से
3 -केदारनाथ : गौरीकुंड मिटाए थकान
यमुनोत्री और गंगोत्री दोनों ही धाम उत्तरकाशी जिले में पड़ते हैं और काफी आगे तक (धरासू तक) रास्ता एक ही है, लेकिन तीसरे धाम केदारनाथ के लिए आपको रुद्रप्रयाग जिले की ओर बढ़ना होगा। मंदाकिनी नदी के पास बना केदारनाथ धाम 11,740 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। इसके लिए आपको पहाड़ों की श्रृंखलाओं के अद्भुत नजारों के बीच सर्पीली सड़क से गौरीकुंड तक पहुंचना होगा। यहां हर बजट के लोगों को लिए ठहरने की सुविधा है। यहां से आगे 14 किलोमीटर का रास्ता पैदल ही तय करना पड़ता है। वैसे खच्चर और डोली की सुविधा भी उपलब्ध रहती है। अगर आप हैलीकॉप्टर से जाना चाहें तो गौरीकुंड से पहले ही फाटा से इसकी सेवा भी उपलब्ध है। इससे आप सुबह जाकर शाम को आराम से लौट सकते हैं, पर यात्रा का यह हिस्सा बहुत रोमांचक और खुशी देने वाला होता है। रास्ते भर खाने-पीने के लिए तरह-तरह के ढाबे मिलते हैं। और जब केदारनाथ के पास पहुंचते हैं तो पहाड़ों से उतरती मंदाकिनी को देख कर सहसा यह विश्वास नहीं होता कि यह पानी की नदी है। लगता है जो नीचे आ रहा है, वह पूरी तरह सफेद दूध ही है। एक बाजार से गुजर कर जब आप पत्थरों से बने केदारनाथ मंदिर पर पंहुचते हैं तो इसका नजारा हैरत में डाल देता है। इसकी पृष्ठभूमि के बर्फीले पहाड़ इसके माहौल में एक तरह की आध्यात्मिकता घोल देते हैं। अगर आप एक दिन का समय और निकालें तो पांच किलोमीटर की पैदल या खच्चर की चढ़ाई करके चोरबाड़ी भी जा सकते हैं, जिसे गांधी सरोवर भी कहा जाता है। निर्मल जल और उस पर तैरते बर्फ के टुकड़े, यह नजारा अनुपम होता है। सरोवर के उस पार चोरबाड़ी ग्लेशियर है, जो देश के महत्त्वपूर्ण ग्लेशियर्स में से एक है। यहां आप ठहर नहीं सकते, उसी दिन लौटना होता है। न ठहरने की कोई व्यवस्था है और न ही मौसम इसकी अनुमति देता है। और हां लौटते वक्त गौरीकुंड के गरम पानी में स्नान करना न भूलें, यह आपकी सारी थकान मिटा देगा।
संदर्भ
1 - प्रकाशन विभाग की पुस्तक - हमारी झीलें और नदियां - लेखक - राजेन्द्र मिलन - पृष्ठ -
3- http://www.livehindustan.com/