Source
स्पैन, मार्च 2010
इस बार सर्दियों के मौसम में उत्तर प्रदेश में इटावा के निकट राष्ट्रीय चम्बल अभयारण्य में चम्बल नदी में घड़ियालों की बड़े पैमाने पर मौत से ग्रामीण दंग रह गए। वर्ल्डवाइड फंड फॉर नेचर-इंडिया के अनुमान के मुताबिक दिसंबर के बाद ढाई महीने के अंतराल में सौ से ज्यादा घड़ियालों की मौत हो गई। क्या ऐसा मौसम का मिजाज बदलने के कारण हो रहा था? या फिर घड़ियाल किसी संक्रामक बीमारी के चपेट में आ रहे थे?
अमेरिका के फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के पशु रोग विशेषज्ञ ब्रायन स्टेसी घड़ियालों की मौत के कारणों की पड़ताल करने के लिए स्थानीय और अंतरराष्ट्रीय विशेशज्ञों का साथ देने के लिए भारत आए। स्विटजरलैंड स्थित वर्ल्ड कंजर्वेशन यूनियन ने घड़ियालों (गैविएलिस गैंजेटिकस) को खतरे में पड़ी प्रजाति से हटाकर बेहद खतरे में पड़ी प्रजाति के वर्ग में डाल दिया। इसके अनुसार दो साल पहले तक 235 से कम घड़ियाल बचे थे जो ज्यादातर भारत और नेपाल की नदियों में मौजूद थे। अपने मुंह के विशेष आकार के लिए जाने जाने वाले ये घड़ियाल छोटी मछलियां खाते हैं।
स्टेसी पहली बार भारत में 1998-1999 में मद्रास क्रोकोडाइल बैंक, चेन्नई में एक विद्यार्थी के रूप में आए थे। उन्होंने इस बार भारत आकर अन्य विशेषज्ञों के साथ मिलकर चम्बल नदी के प्रभावित 40 किलोमीटर इलाके का दौरा किया और जीवित तथा मृत घड़ियालों की जांच की। उन्हें शीघ्र ही इस बात का पता लग गया कि घड़ियालों की मौत का एक कारण चम्बल और यमुना के मिलन स्थल पर पानी का विषाक्त होना था।
स्टेसी कहते हैं, “हमने पाया कि घड़ियालों के गुर्दे खराब होने के साक्ष्य हैं। विभिन्न जांचों से पता चला है किसी विषाक्त चीज का असर है। अभी इस विषाक्त चीज का पता लगाने के लिए और पड़ताल हो रही है।”
लेकिन सवाल यह है कि सिर्फ घड़ियाल ही क्यों मर रहे थे? वह भी बड़े और 1.6 से लेकर 4.1 मीटर तक के? स्टेसी कहते हैं, “एक कारण यह दिया जा रहा है कि जिन मछलियों को वे खा रहे थे, वे ही विष का स्रोत बन गई थीं। लेकिन इसके बारे में अभी और पड़ताल की जरूरत हैं।”