महाराष्ट्र के नासिक नगर से 30 कि.मी. पश्चिम में ब्रह्मगिरि पर्वत से निकलकर गोदावरी नदी लगभग 1,800 कि.मी. तक प्रवाहित होकर मछलीपत्तनम नरसापुर के उत्तर तथा राजमहेन्द्री से 70 कि.मी. पूर्व ही सात भागों- कौशिकी, वृद्धगौतमी, गौतमी, भारद्वाजी, आत्रेयी तथा तुल्या वसिष्ठा में विभाजित होकर बंगसागर में प्रविष्ट हो जाती है। सात भागों में विभाजित होने से सप्त गोदावरी भी इसका नाम पड़ा है। गंगा, यमुना, सरस्वती, नर्मदा की भांति ही पुराणों में गोदावरी नदी की विस्तृत चर्चाएं हैं। इस नदी के कई स्रोत भी उपलब्ध हैं, बल्कि ब्रह्मपुराण में 130 अध्याय इस नदी की चर्चा करते हैं। गोदावरी को गौतमी की संज्ञा देने का कारण महर्षि गौतम के प्रति आभार व्यक्त करना है जिन्होंने महादेव शंकर की कृपा से इस नदी को पृथ्वी पर अवतरित किया था। ब्रह्म वैवर्त पुराण में तो एक ब्रह्मणी का योगाभ्यास तथा तप के बल पर गोदावरी में प्रवाहित होना वर्णित है।
वराह तीर्थ, नील गंगा, कपोततीर्थ, दशाश्वमेधिक जन स्थान, गोवर्धन, अरूणा-वरूणा संगम, श्वेत तीर्थ, तपस्तीर्थ, चक्रतीर्थ, श्री राम तीर्थ, लक्ष्मी तीर्थ एवं सारस्वत तीर्थ आदि तटवर्ती तीर्थों में स्नान का विशेष महत्व है। ब्रह्मपुराण में तो गोदावरी के उपयुक्त मुख्य तीर्थों में नियत आहार-विहार के निमित्त स्नानार्थियों को महापुण्य की प्राप्ति होने का उल्लेख है। गोदावरी के तट पर अनेक नगर है जिनमें नासिक, देवगिरि, प्रतिष्ठानपुर, निजामाबाद, बैंकटपुरम, गंगाखेड़, भद्राचलम्, राजमहेन्द्री, परभणी आदि मुख्य नगरों में है। नासिक के समीप पंचवटी में तो भगवान राम के 12 वर्ष तक रहने की कथा सर्वविदित है। रामकुण्ड, लक्ष्मणकुण्ड, सीताकुण्ड, धनुषकुण्ड, तीर्थस्थलों के साथ इस नदी के तट पर राम मंदिर, शारदाचन्द्र मौलीश्वर भी दर्शनीय हैं। सरस्वती, गायत्री, अरुणा, वरुणा, सावित्री एवं श्रद्धा आदि कई नदियां गोदावरी में समाहित होती हैं।
यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी है। पैनगंगा तथा मजार इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं।
जनश्रुति है कि सती का वाम कपोल यहां गिरने से 51 शक्ति पीठों में एक देवी मंदिर की स्थापना हुई है। गोदावरी समुद्र संगम का तीर्थ है। यहां गोदावरी स्नान, समुद्र स्नान और शक्ति पीठ तथा कोटितीर्थ के दर्शन और स्नान करके पुण्य प्राप्त होता है।
दक्षिण भारत की गंगा कही जाने वाली गोदावरी भारत की सात पवित्र नदियों में से एक है।
बृहस्पति जब सिंह होते हैं तब प्रति बारह वर्ष के अन्तराल में गोदावरी के तटवर्ती तीर्थ पंचवी में कुम्भ स्नान किया जाता है। इस विराट मेले का आयोजन अर्द्ध कुम्भी स्नान के रूप में प्रति 6 वर्ष बाद ही होता है। कूर्म पुराण के अनुसार गोदावरी तट पर किया गया श्राद्ध बहुत ही पुण्यकारक होता है। गौतम ऋषि जब अपने आश्रम ब्रह्मगिरि में गंगा को ले आये तो गंगा ही गोदावरी कहलायी जाने लगी। कदाचित ब्रह्मपुर में इसे गौतमी कहा गया है। राम अपने बनवास काल में पंचवटी में गोदावरी के तट पर आकर रुके थे, इसलिए भी इसका माहात्म्य बढ़ जाता है।
छत्रपति शिवाजी के श्रद्धेय समर्थ गुरू रामदास ने भी बारह वर्ष तक इसी स्थान पर घोर साधना की थी। सिखों के दशम गुरू गोबिन्दसिंह की समाधि भी गोदावरी के किनारे नांदेड़ में विद्यमान है।
हिमालय के उत्तुंग शिखर गंगा द्वार से प्रवाहित हो गोदावरी धरती पर आती है। वह गंगा द्वारा उत्तुंग शिखर के मध्य कंठ पर दूर से ही दिखायी पड़ता है वहां पहुंचने के लिए साढ़े सात सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। उसके दूसरी ओर ही गोदावरी का मूल स्रोत है। यहां से निकलकर तीन स्थानों में अन्तर्लीन हुई है। गोदावरी जाह्नवी गंगा है जिसे गौतम ऋषि हिमालय से सह्याद्री लेकर आये थे। पुराणों के अनुसार गोदावरी की लम्बाई 200 योजन और तटवर्ती तीर्थों व उपतीर्थों की संख्या साढ़े तीन करोड़ बतायी गयी है। एक पौराणिक संदर्भ के अनुसार जब गोदावरी पश्चिमी समुद्र में विलीन होने के लिए हठ करने लगी तो गौतम ऋषि जनकल्याणात्मक उद्देश्य को विफल होता देख व्याकुल होकर शिव की स्तुति करने लगे। गंगा की इस हठधर्मिता से क्रोधित होकर शिव ने अपनी जटाओं के प्रहार से गंगा के होश ठिकाने लगा दिये। जटाओं के प्रहार के चिन्ह शिलाओं पर देखे जा सकते हैं। हिमाद्री से सह्याद्री तक के आख्यानों से पुराणों में बहुत कुछ कहा गया है। नासिक के पास तपोवन में गोदावरी के तट पर ही शूप्रणखा की नाक काटी गई थी। रामनवमी के दिन यहां विराट मेला लगता है। 1450 किलोमीटर लम्बी यात्रा के बाद गोदावरी अनेक सहायक नदियों के साथ बहकर बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है।
वराह तीर्थ, नील गंगा, कपोततीर्थ, दशाश्वमेधिक जन स्थान, गोवर्धन, अरूणा-वरूणा संगम, श्वेत तीर्थ, तपस्तीर्थ, चक्रतीर्थ, श्री राम तीर्थ, लक्ष्मी तीर्थ एवं सारस्वत तीर्थ आदि तटवर्ती तीर्थों में स्नान का विशेष महत्व है। ब्रह्मपुराण में तो गोदावरी के उपयुक्त मुख्य तीर्थों में नियत आहार-विहार के निमित्त स्नानार्थियों को महापुण्य की प्राप्ति होने का उल्लेख है। गोदावरी के तट पर अनेक नगर है जिनमें नासिक, देवगिरि, प्रतिष्ठानपुर, निजामाबाद, बैंकटपुरम, गंगाखेड़, भद्राचलम्, राजमहेन्द्री, परभणी आदि मुख्य नगरों में है। नासिक के समीप पंचवटी में तो भगवान राम के 12 वर्ष तक रहने की कथा सर्वविदित है। रामकुण्ड, लक्ष्मणकुण्ड, सीताकुण्ड, धनुषकुण्ड, तीर्थस्थलों के साथ इस नदी के तट पर राम मंदिर, शारदाचन्द्र मौलीश्वर भी दर्शनीय हैं। सरस्वती, गायत्री, अरुणा, वरुणा, सावित्री एवं श्रद्धा आदि कई नदियां गोदावरी में समाहित होती हैं।
यह दक्षिण भारत की सबसे बड़ी नदी है। पैनगंगा तथा मजार इसकी प्रमुख सहायक नदियां हैं।
जनश्रुति है कि सती का वाम कपोल यहां गिरने से 51 शक्ति पीठों में एक देवी मंदिर की स्थापना हुई है। गोदावरी समुद्र संगम का तीर्थ है। यहां गोदावरी स्नान, समुद्र स्नान और शक्ति पीठ तथा कोटितीर्थ के दर्शन और स्नान करके पुण्य प्राप्त होता है।
दक्षिण भारत की गंगा कही जाने वाली गोदावरी भारत की सात पवित्र नदियों में से एक है।
बृहस्पति जब सिंह होते हैं तब प्रति बारह वर्ष के अन्तराल में गोदावरी के तटवर्ती तीर्थ पंचवी में कुम्भ स्नान किया जाता है। इस विराट मेले का आयोजन अर्द्ध कुम्भी स्नान के रूप में प्रति 6 वर्ष बाद ही होता है। कूर्म पुराण के अनुसार गोदावरी तट पर किया गया श्राद्ध बहुत ही पुण्यकारक होता है। गौतम ऋषि जब अपने आश्रम ब्रह्मगिरि में गंगा को ले आये तो गंगा ही गोदावरी कहलायी जाने लगी। कदाचित ब्रह्मपुर में इसे गौतमी कहा गया है। राम अपने बनवास काल में पंचवटी में गोदावरी के तट पर आकर रुके थे, इसलिए भी इसका माहात्म्य बढ़ जाता है।
छत्रपति शिवाजी के श्रद्धेय समर्थ गुरू रामदास ने भी बारह वर्ष तक इसी स्थान पर घोर साधना की थी। सिखों के दशम गुरू गोबिन्दसिंह की समाधि भी गोदावरी के किनारे नांदेड़ में विद्यमान है।
हिमालय के उत्तुंग शिखर गंगा द्वार से प्रवाहित हो गोदावरी धरती पर आती है। वह गंगा द्वारा उत्तुंग शिखर के मध्य कंठ पर दूर से ही दिखायी पड़ता है वहां पहुंचने के लिए साढ़े सात सौ सीढ़ियां चढ़नी पड़ती है। उसके दूसरी ओर ही गोदावरी का मूल स्रोत है। यहां से निकलकर तीन स्थानों में अन्तर्लीन हुई है। गोदावरी जाह्नवी गंगा है जिसे गौतम ऋषि हिमालय से सह्याद्री लेकर आये थे। पुराणों के अनुसार गोदावरी की लम्बाई 200 योजन और तटवर्ती तीर्थों व उपतीर्थों की संख्या साढ़े तीन करोड़ बतायी गयी है। एक पौराणिक संदर्भ के अनुसार जब गोदावरी पश्चिमी समुद्र में विलीन होने के लिए हठ करने लगी तो गौतम ऋषि जनकल्याणात्मक उद्देश्य को विफल होता देख व्याकुल होकर शिव की स्तुति करने लगे। गंगा की इस हठधर्मिता से क्रोधित होकर शिव ने अपनी जटाओं के प्रहार से गंगा के होश ठिकाने लगा दिये। जटाओं के प्रहार के चिन्ह शिलाओं पर देखे जा सकते हैं। हिमाद्री से सह्याद्री तक के आख्यानों से पुराणों में बहुत कुछ कहा गया है। नासिक के पास तपोवन में गोदावरी के तट पर ही शूप्रणखा की नाक काटी गई थी। रामनवमी के दिन यहां विराट मेला लगता है। 1450 किलोमीटर लम्बी यात्रा के बाद गोदावरी अनेक सहायक नदियों के साथ बहकर बंगाल की खाड़ी में समाहित हो जाती है।
Hindi Title
गोदावरी
अन्य स्रोतों से
संदर्भ
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