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राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान
खनन, भूस्खलन एवं नदी कटाव द्वारा हिमालय के संवेदनशील क्षेत्र में अत्यधिक भूक्षरण एवं पर्यावरण क्षति हुई है, केंद्रीय भूमि एवं जल संरक्षण संस्थान देहरादून ने अपनी प्रयोगात्मक परियोजनाओं द्वारा इन भूमियों के पुर्नस्थापन हेतु जलागम प्रबंध तकनीकी पर आधारित भू एवं जल संरक्षण उपायों का विकास किया है। जिससे न केवल मलबे व भूक्षरण को रोका गया बल्कि घास, चारा लकड़ी व रेशा प्रदान करने वाले वृक्षों व घासों से इन बंजर व उजाड़ धरतियों को भी उपजाऊ बनाया गया, संरक्षण उपायों से स्वच्छ जल की आपूर्ति में भी पर्याप्त वृद्धि हुई ।
भारत के लगभग 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में स्थित उत्तर पश्चिम में उत्तर पूर्व तक लगभग 2500 कि.मी. लम्बाई व 250-300 कि.मी. चौड़ाई में फैली हिमालय की पर्वत श्रृंखलायें न केवल अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए विख्यात है, वरन प्राकृतिक संसाधनों – जल, वनस्पति, वन्यजीव, खनिज, जड़ी बूटियों आदि का भी विशाल भंडार है। देश में होने वाली वर्षा व मौसम को नियमित करने में भी हिमालय क्षेत्र की अहम भूमिका है।
हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर हिमालय क्षेत्र में सड़क निर्माण, खनन व अन्य विकास कार्यों को किया गया जिसके फलस्वरूप भूक्षरण व भूस्खलनों में तीव्र वृद्धि हुई है। इस प्रकार के अत्यंत अपरदित क्षेत्रों में मृदा क्षरण की दर अत्यधिक 300-550 टन प्रति हेक्टे. तक मापी गयी है, जबकि किसी सुप्रबंधित वन क्षेत्रों से यह मात्र लगभग 3 टन प्रति हेक्टे. की होती है, हिमालय के जल स्रोत भी इन कार्यों से प्रभावित हुए हैं। उदाहरणार्थ खनन के कारण इन घाटी में लगभग 50% जल स्रोत सूख गये, (अज्ञात, 1988)। खनन व सड़क निर्माण के लिये भूमि को कवच प्रदान करने वाले जंगलों को काटा गया और साथ ही विस्फोटकों का अत्यधिक प्रयोग किया, जिसके फलस्वरूप पहले से ही संवेदनशील यह इलाका हिल सा गया। नंगी ढलानों पर अत्यधिक वेग से बहता हुआ बारिश का पानी अपने साथ बड़ी मात्रा में मिट्टी, गाद-पत्थर, मलबा आदि बहा ले जाता है, इससे नीचे के क्षेत्रों में स्थित किसान के उपजाऊ खेत, घर, सिंचाई गूले आदि नष्ट हो जाती है और जन धन का भी नुकसान हो जाता है। यही अनियंत्रित पानी जब नदी नालों में आता है तो किनारों को काटता हुआ आस-पास के खेत व भूमि को तबाह कर देता है, देश में लगभग 27 लाख हेक्टे. भूमि नाला कटान की समस्या से ग्रसित है (अज्ञात, 1985)।
अतः जान माल व पर्यावरण नुकसान को बचाने के लिए खनन, भूस्खलन व नदियों के कटाव को रोकने के लिए संरक्षण अति आवश्यक है। केंद्रीय भूमि एवं जल संरक्षण अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान देहरादून ने भूस्खलन, खनन व नदी नाला कटाव की समस्याओं पर अनुसंधान कार्य किया है व उनके पर्यावरणीय पुर्नस्थापना हेतु एकीकृत जलागम प्रबंध की मृदा एवं जल संरक्षण तकनीकों का विकास किया है इनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है।
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भारत के लगभग 5 लाख वर्ग कि.मी. क्षेत्रफल में स्थित उत्तर पश्चिम में उत्तर पूर्व तक लगभग 2500 कि.मी. लम्बाई व 250-300 कि.मी. चौड़ाई में फैली हिमालय की पर्वत श्रृंखलायें न केवल अपनी प्राकृतिक सुषमा के लिए विख्यात है, वरन प्राकृतिक संसाधनों – जल, वनस्पति, वन्यजीव, खनिज, जड़ी बूटियों आदि का भी विशाल भंडार है। देश में होने वाली वर्षा व मौसम को नियमित करने में भी हिमालय क्षेत्र की अहम भूमिका है।
हाल के वर्षों में बड़े पैमाने पर हिमालय क्षेत्र में सड़क निर्माण, खनन व अन्य विकास कार्यों को किया गया जिसके फलस्वरूप भूक्षरण व भूस्खलनों में तीव्र वृद्धि हुई है। इस प्रकार के अत्यंत अपरदित क्षेत्रों में मृदा क्षरण की दर अत्यधिक 300-550 टन प्रति हेक्टे. तक मापी गयी है, जबकि किसी सुप्रबंधित वन क्षेत्रों से यह मात्र लगभग 3 टन प्रति हेक्टे. की होती है, हिमालय के जल स्रोत भी इन कार्यों से प्रभावित हुए हैं। उदाहरणार्थ खनन के कारण इन घाटी में लगभग 50% जल स्रोत सूख गये, (अज्ञात, 1988)। खनन व सड़क निर्माण के लिये भूमि को कवच प्रदान करने वाले जंगलों को काटा गया और साथ ही विस्फोटकों का अत्यधिक प्रयोग किया, जिसके फलस्वरूप पहले से ही संवेदनशील यह इलाका हिल सा गया। नंगी ढलानों पर अत्यधिक वेग से बहता हुआ बारिश का पानी अपने साथ बड़ी मात्रा में मिट्टी, गाद-पत्थर, मलबा आदि बहा ले जाता है, इससे नीचे के क्षेत्रों में स्थित किसान के उपजाऊ खेत, घर, सिंचाई गूले आदि नष्ट हो जाती है और जन धन का भी नुकसान हो जाता है। यही अनियंत्रित पानी जब नदी नालों में आता है तो किनारों को काटता हुआ आस-पास के खेत व भूमि को तबाह कर देता है, देश में लगभग 27 लाख हेक्टे. भूमि नाला कटान की समस्या से ग्रसित है (अज्ञात, 1985)।
अतः जान माल व पर्यावरण नुकसान को बचाने के लिए खनन, भूस्खलन व नदियों के कटाव को रोकने के लिए संरक्षण अति आवश्यक है। केंद्रीय भूमि एवं जल संरक्षण अनुसंधान एवं प्रशिक्षण संस्थान देहरादून ने भूस्खलन, खनन व नदी नाला कटाव की समस्याओं पर अनुसंधान कार्य किया है व उनके पर्यावरणीय पुर्नस्थापना हेतु एकीकृत जलागम प्रबंध की मृदा एवं जल संरक्षण तकनीकों का विकास किया है इनका संक्षिप्त विवरण निम्न प्रकार है।
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