हरियाणा राज्य में जल संसाधनों के प्रबन्धन की समस्याएं एवं जीओइनफोरमेटिक्स तकनीक द्वारा इनका निदान

Submitted by Hindi on Sat, 12/24/2011 - 15:46
Source
राष्ट्रीय जल विज्ञान संस्थान, चतुर्थ राष्ट्रीय जल संगोष्ठी, 16-17 दिसम्बर 2011
जल संसाधनों के सतत विकास व प्रबन्धन के लिए इन संसाधनों की सही मात्रा का पता चलना तथा प्रयोग के स्तर के बारे में जानकारी होना बेहद जरूरी है। बढ़ती आबादी, औद्योगिकीकरण व शहरीकरण के कारण जल संसाधनों की उपलब्धता पर लगातार विपरीत प्रभाव पड़ता जा रहा है। एक तरफ पानी की मांग बढ़ी है और दूसरी तरफ पानी की गुणवत्ता पर लगातार प्रदूषण का प्रकोप जारी है। नयी तकनीकों के प्रयोग से इन संसाधनों की मात्रा तथा प्रयोग के स्तर के बारे में कम समय में तथा सही जानकारी प्राप्त करना बेहद सुगम हो गया है। इस तकनीक का नाम है जीओइनफोरमेटिक्स। जीओइनफोरमेटिक्स तकनीक सुदूर संवेदन, भौगोलिक सूचना तंत्र, ग्लोबल पोजिशनिंग तंत्र तथा सूचना एवं संवाद प्रौद्योगिकी के संयुक्त प्रयोग की कला है। इन तकनीकों के प्रयोग से किसी भी प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति,मात्रा तथा उसके बदलाव के बारे में सुगमता से कम समय में तथा कम खर्चे में तुरंत प्रभाव से जाना जा सकता है।

हरियाणा राज्य गंगा तथा सिंधु नदी के जल विभाजन क्षेत्रों के मध्य स्थित है। समय के साथ राज्य में जल संसाधनों के उपयोग व प्रबन्धन की दृष्टि से दो तरह की समस्याएं उभर कर सामने आयी। राज्य के ऐसे क्षेत्र जहाँ भूजल की गुणवत्ता अच्छे किस्म की है। इन क्षेत्रों में भूजल के अत्यधिक दोहन के कारण पानी का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है । इसका मुख्य कारण गेहूँ तथा चावल की खेती का फसल चक्र भी समझा जाता रहा है । उत्तर तथा दक्षिणी हरियाणा के क्षेत्र इस समस्या से ग्रस्त हैं। इन क्षेत्रों में 1976 से 2010 के बीच कई जगहों पर पानी 15 से 25 मीटर तक नीचे जा चुका है। दूसरी तरफ हरियाणा का मध्य क्षेत्र है। हरियाणा की प्राकृतिक भूआकृति को देखने से पता चलता है कि यह तश्तरीनुमा है। उत्तर में शिवालिक की पहाड़ियां, दक्षिण में अरावली की पहाड़ियां तथा पश्चिम में रेतीला क्षेत्र व बालू के टीले हैं। इन सब की उपस्थिति से भूमिगत जल का प्रवाह केन्द्रीय/मध्य क्षेत्र की तरफ है।

इस कारण इस हिस्से में पानी का स्तर लगातार ऊपर आता जा रहा है। इन क्षेत्रों में भूजल की गुणवत्ता भी खराब है इस कारण इसका उपयोग कृषि तथा अन्य क्षेत्रों में नहीं किया जा सकता। उधर इन क्षेत्रों में सतही जल नहरों द्वारा प्रचुर मात्रा में उपलब्ध है। अतः उसके उपयोग से भी भूजल का स्तर लगातार ऊपर बना रहता है। सिंचाई की विधियाँ भी काफी पुरानी हैं जिनमें पानी एक मुहाने से खोला जाता है तथा पूरा खेत भर दिया जाता है। इस कारण भी काफी पानी वापिस बहाव के जरिये भूजल से जा मिलता है। हरियाणा के मध्य क्षेत्र में पानी की निकासी के लिए कोई सतही ड्रेन भी नहीं है इस कारण भी बरसात का पानी इस क्षेत्र से बाहर नहीं जा सकता। इन सभी कारणों का मिला-जुला असर इस क्षेत्र को सेम की समस्या से ग्रसित कर गया है तथा कई क्षेत्रों में पानी का स्तर जड़ क्षेत्र (0-3 मीटर) तक पहुँच चुका है।

इन समस्याओं से निपटने के लिए प्रदेश में समग्र जल प्रबंधन नीति की आवश्यकता है। इसके तहत उन क्षेत्रों में जहाँ पानी का स्तर लगातार नीचे गिरता जा रहा है वहाँ कृत्रिम जल रिचार्ज की विधियों को अपनाने की जरूरत है तथा ऐसे क्षेत्र जहाँ भूजल की गुणवत्ता खराब है वहाँ ऐसी फसलों की किस्में इजाद करनी पड़ेंगी जो नमकीन पानी को सहन कर सके तथा सही उत्पादन भी दे सकें साथ ही सिंचाई की ऐसी विधियाँ अपनानी पड़ेंगी जिनसे पानी का उचित प्रयोग हो सके। जीओइनफोरमेटिक्स के द्वारा ऐसे क्षेत्रों का पता लगाना, समस्याओं का अध्ययन करना तथा उनसे निजात पाने के लिए उपाय सुझाना आदि बेहतरीन तरीके से तथा जल्द पूरे किये जा सकते हैं। इस तकनीक द्वारा भू आकृति, मृदा, भू-उपयोग, जल विभाजन क्षेत्रों आदि का चित्रण तथा संख्यात्मक अध्ययन, जल विभाजन क्षेत्रों का प्रबन्धन जैसे चैक डैम, मृदा बांध, गल्ली प्लगिंग, संभावित भूजल क्षेत्रों का चित्रण आदि थोड़े समय में ही तैयार किए जा सकते हैं । इन सभी मानचित्रों के एकीकृत अध्ययन से जल तथा भू-संसाधनों के समुचित प्रबन्धन की कार्य विधि तैयार की जा सकती है। इस प्रपत्र में राज्य में जल प्रबंधन की समस्याओं का तथा जीओइनफोरमेटिक्स तकनीक द्वारा उनके निदान को उदाहरणों की सहायता से उद्धृत किया गया है। जीओइनफोरमेटिक्स विधि द्वारा तैयार किये गये मानचित्र तथा उन पर आधारित कार्यों को भी उदाहरण की सहायता से दर्शाया गया है।

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