हवाचक्की (Wind mill) तथा पवनशक्ति (Wind power) पवनशक्ति एक सदिश राशि है। पवनशक्ति का मापन अश्वशक्ति की ईकाई में किया जाता है। जिस भौगोलिक दिशा से हवा बहती है उसे वायु की दिशा कहा जाता है। वायु के वेग को सामान्यत: वायु की गति कहा जाता है।
धरती की सतह पर वायु का प्रत्यक्ष प्रभाव भूमिक्षरण, वनस्पति की विशेषता, विभिन्न संरचनाओं में क्षति तथा जल के स्तर पर तरंग उत्पादन के रूप में परिलक्षित होता है। पृथ्वी के उच्च स्तरों पर हवाई यातयात, रैकेट तथा अनेक अन्य कारकों पर वायु का प्रत्यक्ष प्रभाव उत्पन्न होता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वायु की गति से बादल का निर्माण एवं परिवहन, वर्षा और ताप इत्यादि पर स्पष्ट प्रभाव उत्पन्न होता है। वायु के वेग से प्राप्त बल को पवनशक्ति कहा जाता है तथा इस शक्ति का प्रयोग यांत्रिक शक्ति के रूप में किया जाता है। संसार के अनेक भागों में पवनशक्ति का प्रयोग बिजली उत्पादन में, आटे की चक्की चलाने में, पानी खींचने में तथा अनेक अन्य उद्योगों में होता है।
अनुमानत: संसार में जितनी ऊर्जा की 1957 ई. में आवश्यकता थी उसका 15 प्रतिशत भाग पवनशक्ति से पूरा किया जाता था। पवनशक्ति की ऊर्जा गतिज ऊर्जा होती है। इसके अतिरिक्त वायु के वेग से बहुत परिवर्तन होता रहता है अत: कभी तो वायु की गति अत्यंत मंद होती है और कभी वायु के वेग में तीव्रता आ जाती है। अत: जिस हवा चक्की को वायु के अपेक्षाकृत कम वेग की शक्ति से कार्य के लिए बनाया जाता है वह अधिक वायु वेग की व्यवस्था में ठीक ढंग से कार्य नहीं करता है। इसी प्रकार तीव्र वेग के वायु को कार्य में परिणत करनेवाली हवाचक्की को वायु के मंद वेग से काम में नहीं लाया जा सकता है। सामान्यत: यदि वायु की गति 320 किमी प्रति घंटा से कम होती है तो इस वायुशक्ति को सुविधापूर्वक हवाचक्की में कार्य में परिणत करना अव्यावहारिक होता है। इसी प्रकार यदि वायु की गति 48 किमी प्रति घंटा से अधिक होती है तो इस वायु शक्ति के ऊर्जा को हवाचक्की में कार्य रूप में परिणत करना अत्यंत कठिन होता है। परंतु वायु की गति सभी ऋतुओं में तथा सभी समय इस सीमा के भीतर नहीं रहती है इसलिए इसके प्रयोग पर न तो निर्भर रहा जा सकता है और न इसका अधिक प्रचार ही हो सकता है। उपर्युक्त कठिनाईयों के होते हुए भी अनेक देशों में पवनशक्ति के व्यावसायिक विकास पर बहुत ध्यान दिया गया है। एक सम तथा 32 से 48 किमी घंटा वायु की गतिवाले क्षेत्रों में 2000 किलोवाट बिजली का उत्पादन करनेवाली हवाचक्की के सरलता से चलाया जा सकता है जिससे विद्युत् ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
हवा की चक्की में वायु की गति से टरबाइन घूमता है जिससे यांत्रिक अथवा विद्युत् शक्ति प्राप्त होती है। केवल अमरीका में ही 1950 ई. में 3 लाख हवाचक्की का उपयोग पानी खींचने में होता था तथा एक लाख हवाचक्की का उपयोग बिजली के उत्पादन में होता था। हालैंड में आज भी इसका उपयोग होता है परंतु धीरे धीरे विद्युत् तथा भाप इंजनों के कारण अन्य देशों में इसक प्रचलन बंद हो गया है। (अभय सिन्हा)
धरती की सतह पर वायु का प्रत्यक्ष प्रभाव भूमिक्षरण, वनस्पति की विशेषता, विभिन्न संरचनाओं में क्षति तथा जल के स्तर पर तरंग उत्पादन के रूप में परिलक्षित होता है। पृथ्वी के उच्च स्तरों पर हवाई यातयात, रैकेट तथा अनेक अन्य कारकों पर वायु का प्रत्यक्ष प्रभाव उत्पन्न होता है। प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप से वायु की गति से बादल का निर्माण एवं परिवहन, वर्षा और ताप इत्यादि पर स्पष्ट प्रभाव उत्पन्न होता है। वायु के वेग से प्राप्त बल को पवनशक्ति कहा जाता है तथा इस शक्ति का प्रयोग यांत्रिक शक्ति के रूप में किया जाता है। संसार के अनेक भागों में पवनशक्ति का प्रयोग बिजली उत्पादन में, आटे की चक्की चलाने में, पानी खींचने में तथा अनेक अन्य उद्योगों में होता है।
अनुमानत: संसार में जितनी ऊर्जा की 1957 ई. में आवश्यकता थी उसका 15 प्रतिशत भाग पवनशक्ति से पूरा किया जाता था। पवनशक्ति की ऊर्जा गतिज ऊर्जा होती है। इसके अतिरिक्त वायु के वेग से बहुत परिवर्तन होता रहता है अत: कभी तो वायु की गति अत्यंत मंद होती है और कभी वायु के वेग में तीव्रता आ जाती है। अत: जिस हवा चक्की को वायु के अपेक्षाकृत कम वेग की शक्ति से कार्य के लिए बनाया जाता है वह अधिक वायु वेग की व्यवस्था में ठीक ढंग से कार्य नहीं करता है। इसी प्रकार तीव्र वेग के वायु को कार्य में परिणत करनेवाली हवाचक्की को वायु के मंद वेग से काम में नहीं लाया जा सकता है। सामान्यत: यदि वायु की गति 320 किमी प्रति घंटा से कम होती है तो इस वायुशक्ति को सुविधापूर्वक हवाचक्की में कार्य में परिणत करना अव्यावहारिक होता है। इसी प्रकार यदि वायु की गति 48 किमी प्रति घंटा से अधिक होती है तो इस वायु शक्ति के ऊर्जा को हवाचक्की में कार्य रूप में परिणत करना अत्यंत कठिन होता है। परंतु वायु की गति सभी ऋतुओं में तथा सभी समय इस सीमा के भीतर नहीं रहती है इसलिए इसके प्रयोग पर न तो निर्भर रहा जा सकता है और न इसका अधिक प्रचार ही हो सकता है। उपर्युक्त कठिनाईयों के होते हुए भी अनेक देशों में पवनशक्ति के व्यावसायिक विकास पर बहुत ध्यान दिया गया है। एक सम तथा 32 से 48 किमी घंटा वायु की गतिवाले क्षेत्रों में 2000 किलोवाट बिजली का उत्पादन करनेवाली हवाचक्की के सरलता से चलाया जा सकता है जिससे विद्युत् ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है।
हवा की चक्की में वायु की गति से टरबाइन घूमता है जिससे यांत्रिक अथवा विद्युत् शक्ति प्राप्त होती है। केवल अमरीका में ही 1950 ई. में 3 लाख हवाचक्की का उपयोग पानी खींचने में होता था तथा एक लाख हवाचक्की का उपयोग बिजली के उत्पादन में होता था। हालैंड में आज भी इसका उपयोग होता है परंतु धीरे धीरे विद्युत् तथा भाप इंजनों के कारण अन्य देशों में इसक प्रचलन बंद हो गया है। (अभय सिन्हा)
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संदर्भ
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