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जनसत्ता (रविवारी), 21 जुलाई 2013

पर्यावरण के मुताबिक विभिन्न उत्पादों को इकोमार्क देने की संकल्पना विकसित देशों में भी अपनाई जा रही है। इसके तहत, जो उत्पाद पर्यावरण के हितकारी हैं, उन्हें इकोमार्क दिया जा सकता है। पर्यावरण के अनुकूल उत्पादों के लेबल लगाने का अर्थ है उत्पादों का चयन करते समय विवेकपूर्ण निर्णय लेने के लिए उपभोक्ताओं को जानकारी उपलब्ध कराकर पर्यावरणीय समस्याओं को कम करना। पर्यावरण की गुणवत्ता में सुधार करना और संसाधनों के चिरस्थायी प्रबंधन को बढ़ावा देना ही इस इकोमार्क का उद्देश्य है।
इकोमार्क के चिन्ह को मिट्टी के घड़े के रूप में चित्रित किया गया है, जो हमारी भारतीय सभ्यता जितना ही प्राचीन है। सदियों से घड़े के आकार में परिवर्तन हुए हैं, लेकिन उसके मूलभूत तत्वों और बनाने की प्रक्रिया आज भी वही है। चिकनी मिट्टी के घड़े का उपयोग पानी भरने या खाद्यान्न वगैरह रखने के लिए किया जाता है। इसकी छिद्रिल दीवारें, मृदा, जल और वायु पारस्परिक प्रभाव के उदाहरण हैं। घड़ा विशुद्ध भारतीय होने के नाते देश के विभिन्न भागों में इसके उपयोग के आधार पर इसकी आकृति बदलती रहती है। इसके ठोस और आकर्षक रूप से इसकी मजबूती और भंगुरता दोनों ही प्रदर्शित होती है। वर्तमान परिस्थितियों में नि:संदेह इकोमार्क पर्यावरण संरक्षण में उपयोगी सिद्ध हो रहा है।