जैविक खेती में उपयोगी है वर्मीवाश

Submitted by Hindi on Fri, 10/28/2016 - 12:40
Source
विज्ञान गंगा, जुलाई-अगस्त, 2015

भारत एक कृषि प्रधान देश है जिसकी दो तिहाई आबादी गाँवों में बसती है एवं अपना जीविकोपार्जन करती है। हमारे देश में हरित क्रान्ति सन 1966-67 में शुरू हुई जिसके फलस्वरूप उन्नत किस्मों के बीज एवं रासायनिक उर्वरकों का अंधाधुँध प्रयोग कृषि में उत्पादन बढ़ाने के लिये हुआ। इन रसायनों के लगातार उपयोग से भूमि की भौतिक, रासायनिक एवं जैविक गुणों का ह्रास हुआ है। रसायनों के अधिक उपयोग से अन्न की गुणवत्ता में गिरावट दर्ज की गई यही नहीं, खाद्य पदार्थों में जहरीलापन बढ़ने से मनुष्यों में विभिन्न घातक बीमारियाँ देखी जा रही हैं। विभिन्न वैज्ञानिक रिर्पोटों में यह साबित हो चुका है कि ये रसायन हमारे पर्यावरण को भी प्रदूषित करते हैं।

वर्मीवाशउपरोक्त समस्याओं से निदान पाने के लिये रासायनिक उत्पादों का उपयोग कम करके उनके स्थान पर जैविक उत्पादों का उपयोग एक अच्छा विकल्प है। भारत में कृषि के अन्तर्गत विभिन्न प्रकार के स्रोत जिनका प्रयोग अन्न की गुणवत्ता बढ़ाने एवं किसानों को उनकी फसलों का अधिक दाम प्रदान करने के लिये किया जा सकता है। उदाहरण के लिये गोबर की खाद, कम्पोस्ट, वर्मीकम्पोस्ट, वर्मीवाश इत्यादि इन सभी उत्पादों को कम लागत में किसान स्वयं उत्पादित कर सकते हैं। आज के युग में वर्मीवाश जिसे केंचुआ द्वारा स्रावित किया जाता है, जिसमें विभिन्न हार्मोन्स, पोषक तत्व एवं एंजाइम पाए जाते हैं। यह तरल पदार्थ पर्णीय छिड़काव के लिये प्रयोग होता है।

वर्मीवाश पूर्णत: जैविक उत्पाद है जिसका प्रयोग अनाज एवं दलहनी फसलों में होता है सब्जियों में पुष्पन एवं फलन की प्रक्रिया वर्मीवाश से अधिक होती है एवं इनकी गुणवत्ता भी बढ़ती है। फसलों एवं सब्जियों में विभिन्न रोगों की रोकथाम भी वर्मीवाश से की जाती है क्योंकि यह एक अच्छा रोगरोधी पदार्थ होता है। वर्मीवाश से मृदा की सेहत भी अच्छी होती है क्योंकि इसका कोई भी अवशेष मृदा के लिये हानिकारक नहीं होता। यह सस्ता एवं सुरक्षित होता है। अत: कृषि में वर्मीवाश का उपयोग करना बहुत ही लाभदायक है।

वर्मीवाश क्‍या है ?


वर्मीवाश एक तरल पदार्थ है जो केंचुआ द्वारा स्रावित हार्मोन्स, पोषक तत्वों एवं एंजाइमयुक्त होता है जिसमें रोगरोधक गुण पाए जाते है। दूसरे शब्दों में यह एक भूरे रंग का तरल जैव उर्वरक है जिसमें ऑक्सिन एवं साइटोकाइनिन हार्मोन्स उपस्थित होते हैं और विभिन्न एंजाइम जैसेप्रोटीएज, एमाइलेज, यूरीएज एवं फॉस्फेटेज भी पाए जाते हैं। माइक्रोबॉयोलॉजिकल अध्ययन से ज्ञात हुआ है कि वर्मीवाश में नाइट्रोजन फिक्सिंग बैक्टीरिया जैसे- एजोटोबैक्टर स्पीशीज, एग्रोबैक्टीरियम स्पीशीज एवं फॉस्फोरस घोलक बैक्टीरिया पाए जाते हैं।

वर्मीवाश इकाई


वर्मीवाश इकाई को प्लास्टिक या लोहे की 200 लीटर क्षमता वाली टंकी में तैयार किया जाता है। टंकी के निचले हिस्से में एक छिद्र किया जाता है। अब एक उर्ध्‍वाधर टी आकार की नली जिसका आधा इंच टंकी के अंदर डूबा रहना चाहिए, स्थापित किया जाता है। उर्ध्‍वाधर नली के एक हिस्से को टेप से जोड़कर दूसरी तरफ डमी नट से कस दिया जाता है और इस पूरे सेट को एक उचित चौकी के ऊपर रख दिया जाता है।

टेप को खुला रखकर बाल्टी में छोटे-छोटे र्इंट के टुकड़े एवं कंकड़ लगभग 25-30 सेन्टीमीटर तक भरते हैं, फिर इसके ऊपर 20-30 सेमी. मोटी बालू भरते हैं।

अब इस मूल इकाई के ऊपर गोबर भरकर केचुओं को भरा जाता है, फिर मिट्टी की परत डालने के बाद धान की पुआल ऊपर चढ़ाकर छायादार स्थान में रख दिया जाता है। इसपर प्रतिदिन पानी का छिड़काव किया जाता है।

वर्मीवाश तैयार करने हेतु आवश्‍यक सामग्री


वर्मीवाश तैयार करने के लिये 20 लीटर क्षमता वाली बाल्टी, र्इंट की गिट्टी, मोटी बालू 1 से 1.5 किलोग्राम, मिट्टी 2 किलोग्राम, गोबर 7 किलोग्राम, केचुआ 60 से 80, पुआल, मिट्टी का घड़ा और एक बाल्टी पानी की आवश्यकता पड़ती है।

वर्मीवाश तैयार करने की विधि


वर्मीवाश तैयार करने के लिये उचित छायादार स्थान का चुनाव किया जाता है क्योंकि सूर्य प्रकाश का प्रभाव केचुओं पर विपरीत होता है, साथ ही बारिश से भी केचुओं को बचाया जाता है। वर्मीवाश तैयार करते समय हम सर्वप्रथम एक बाल्टी (20 लीटर) एवं जग लेते हैं बाल्टी के निचले हिस्से में एक स्टॉप कार्क लगा होना चाहिए जिससे बाल्टी के तल में एकत्रित वर्मीवाश को निकालने में आसानी रहे। अब बाल्टी में टूटे हुए र्इंट एवं पत्थर के टुकड़ों की सहायता से 10-15 सेमी. की मोटी परत भरते हैं इसके ऊपर 10-15 सेमी. की दूसरी परत मोटी बालू की भरते हैं, इसके पश्चात गाय के आंशिक विघटित गोबर की 30-40 सेमी. एक परत चढ़ाते हैं। इस गोबर की परत पर 2-3 सेमी. मोटी नम मिट्टी की एक परत चढ़ा दी जाती है।

जब सभी सामग्री बाल्टी में ले लेते हैं, उसके बाद 60-80 की संख्या में केचुए बाल्टी में भरते हैं, फिर बाल्टी के ऊपरी हिस्से में 6 सेमी. मोटाई की धान की पुआल भरते हैं अब स्टॉप कार्क खुला रखके 7-8 दिनों तक प्रतिदिन पानी का हल्का छिड़काव करते हैं जिससे केचुओं के लिये उपयुक्त नमी बनी रहे। अब 10 दिनों के पश्चात तरल वर्मीवाश बाल्टी के तल में इकट्ठा होता जाता है। अब प्रत्येक सप्ताह 5-6 लीटर वर्मीवाश तैयार हो जाता है इसको हम स्टॉप कार्क की सहायता से किसी बर्तन व बोतल में निकाल लेते हैं एवं फसलों में छिड़काव करने से पूर्व पानी से द्रवित करते हैं जिससे इसकी अधिक सांद्रता से पौधों को नुकसान न होवे। इस प्रकार किसान स्वयं ही वर्मीवाश का उत्पादन एवं गुणवत्ता प्राप्त कर सकते हैं।

वर्मीवाश

वर्मीवाश एकत्रण


टैप बंद करके बर्तन के ऊपर पानी का छिड़काव करते हैं। पानी धीरे-धीरे कम्पोस्ट से प्रवाहित होते हुए सूक्ष्म पोषक तत्वों के साथ फिल्टर होता है। अगले दिन टैप से वर्मीवाश को एकत्रित करते हैं जिसका उपयोग पौधों में पर्णीय छिड़काव के लिये किया जाता है। वर्मीवाश को पानी के साथ 1:1 अनुपात में मिलाया जाता है या इसे 10% गोमूत्र से द्रवित किया जाता है। यह एक प्रभावी रोगनाशक की तरह उपयोग किया जाता है। वर्मीवाश तैयार होते ही इकाई से पुराने अवशिष्ट को समय-समय पर हटा दिया जाता है। अब एकत्रित वर्मीवाश का उचित संग्रहण किया जाता है एवं उपयोग के पहले द्रवित किया जाता है।

वर्मीवाश में पोषक तत्‍वों की मांग


 

पी. एच.

7.480 + 0.03

इलेक्ट्रो कंडक्टिविटी (डेसी साइमन/मीटर)

0.25 + 0.03

ऑर्गेनिक कार्बन (प्रतिशत)

0.008 + 0.001

कुल जेलडाल नाइट्रोजन (प्रतिशत)

0.01 + 0.005

उपस्थित फॉस्फेट (प्रतिशत)

1.69 + 0.05

पोटैशियम (पी पी एम)

25 + 2

कैल्शियम (पी पी एम)

3 + 1

कॉपर (पी पी एम)

0.01 + 0.001

फेरस (पी पी एम)

0.06 + 0.001

मैग्नीशियम (पी पी एम)

158.44 + 0.03

मैग्नीज (पी पी एम)

0.58 + 0.040

जिंक (पी पी एम)

0.02 + 0. 001

कुल हेटेरोट्रॉप्स (सी एफ यू / मिली.)

1.79 X 103

नाइट्रोसोमोनास (सी एफ यू / मिली.)

1.01 X 103

कुल फंजाई (सी एफ यू / मिली.)

1.46 X 103

स्रोत : रामस्वामी, 2004 (पी पी एम)

 

 

 

वर्मीवाश का उपयोग


वर्तमान कृषि परिवेश में अधिक लाभ प्राप्त करने एवं फसलों की गुणवत्ता बढ़ाने के लिये धान्य फसलों जैसे - चावल एवं मक्का आदि में वर्मीवाश का छिड़काव किया जा सकता है। वर्मीवाश का प्रयोग सब्जियों जैसे मुख्य रूप से भिण्डी, पालक, बैंगन, प्याज एवं आलू में इनकी गुणवत्ता एवं स्वाद बढ़ाने के लिये हो रहा है। वर्मीवाश के द्वारा इन फसलों में पौधों की लम्बाई, पत्तियों का आकार एवं फलों का आकार बढ़ता है एवं बाजार में वर्मीवाश से उत्पादित सब्जियों का दाम किसानों को अधिक प्राप्त होता है।

वर्मीवाश का फसल उत्‍पादकता पर प्रभाव


कृषि वैज्ञानिकों द्वारा अध्ययन में यह पाया गया है कि वर्मीवाश के छिड़काव से पालक में 5 से 5.5 टन/हेक्टेयर, प्याज में 6 से 6.5 टन/हेक्टेयर एवं आलू में 7 से 7.5 टन/हेक्टेयर उपज प्राप्त की जा सकती है जोकि सामान्य उत्पादन से 15-20 प्रतिशत अधिक हुई। मिर्च पर किये गये अध्ययन में पाया गया कि जैसे थ्रिप्स एवं माइट्स के नियन्त्रण हेतु वर्मीवाश का छिड़काव करके उचित प्रबन्धन किया जा सकता है। यह एक अच्छा रोगरोधी एवं कीटनाशक की भाँति कार्य करता है साथ ही इसमें उपस्थित विभिन्न हार्मोन्स पौधों में वृद्धि बढ़ाकर इसका उत्पादन बढ़ाते हैं।

वर्मीवाश का अनुप्रयोग


1. एक लीटर वर्मीवाश को 7-10 लीटर पानी में मिलाकर पत्तियों पर शाम के समय छिड़काव करते हैं।

2. एक लीटर वर्मीवाश को एक लीटर गोमूत्र में मिलाकर उसमें 10 लीटर पानी मिलाया जाता है फिर इसे रातभर के लिये रखकर ऐसे 50-60 लीटर वर्मीवाश का छिड़काव एक हेक्टेयर क्षेत्र में फसलों में विभिन्न बीमारियों के रोकथाम हेतु करते हैं।

3. ग्रीष्मकालीन सब्जियों में शीघ्र पुष्पन एवं फलन के लिये पर्णीय छिड़काव किया जाता है जिससे उनके उत्पादन में वृद्धि होती है।

वर्मीवाश छिड़काव के समय सावधानियाँ


वर्मीवाश का छिड़काव शाम के समय करना चाहिए। वर्मीवाश एवं पानी का उचित अनुपात में घोल तैयार करना चाहिए। गोमूत्र के साथ वर्मीवाश का उपयोग रोगनाशी के रूप में उचित अनुपात में करना चाहिए। 4. छिड़काव करते समय हवा के विपरीत छिड़काव नहीं करना चाहिए। वर्षा के मौसम में यह ध्यान रखें कि बारिश होने की सम्भावना न हो।

वर्मीवाश तैयार करते समय सावधानियाँ


वर्मीवाश तैयार करने हेतु कभी भी ताजा गोबर का उपयोग नहीं करना चाहिए, इससे केंचुए मर जाते हैं। वर्मीवाश इकाई हमेशा छायादार स्थान पर होना चाहिए जिससे केंचुए धूप से बच सकें। केंचुओं को साँप, मेंढ़क एवं छिपकली से बचाव का उचित प्रबन्ध करना चाहिए। स्वच्छ पानी का प्रयोग 20 दिनों तक नमी बनाए रखने हेतु करना चाहिए। वर्मीवाश इकाई को उचित स्टैण्ड पर रखना चाहिए जिससे वर्मीवाश एकत्र करने में आसानी हो। केंचुओं की उचित प्रजातियों का उपयोग करना चाहिए जैसे- आइसीनिया फोटिडा।