जौ

Submitted by Hindi on Fri, 08/12/2011 - 17:14
जौ इसका उपयोग प्राचीन काल से धार्मिक संस्कारों में होता रहा है। संस्कृत में इसे 'यव' कहते हैं। रूस, अमरीका, जर्मनी, कनाडा और भारत में यह मुख्यत: पैदा होता है सन्‌ 1957-58 में इसकी खेती 7,531 हजार एकड़ और उत्पादन 2,175 हजार टन था। होरडियम डिस्टिन (Hordeum distiehon), जिसकी उत्पत्ति मध्य अफ्रीका, और होरडियम वलगेयर (H. vulgare), जो यूरोप में पैदा हुआ, इसकी दो मुख्य जातियाँ है। इनमें द्वितीय अधिक प्रचलित है। इसे समशीतोष्ण जलवायु चाहिए। यह समुद्रतल से 14,000 फुट की ऊँचाई तक पैदा होता है। यह गेहूँ के मुकाबले अधिक सहनशील पौधा है। इसे विभिन्न प्रकार की भूमियों में बोया जा सकता है, पर मध्यम, दोमट भूमि अधिक उपयुक्त है। खेत समतल और जलनिकास योग्य होना चाहिए। प्रति एकड़ इसे 40 पाउंड नाइट्रोजन की आवश्यकता होती है, जो हरी खाद देने से पूर्ण हो जाती है। अन्यथा नाइट्रोजन की आधी मात्रा कार्बनिक खाद -- गोवर की खाद, कंपोस्ट तथा खली -- और आधी अकार्बनिक खाद -- ऐमोनियम सल्फेट और सोडियम नाइट्रेट -- के रूप मे क्रमश: बोने के एक मास पूर्व और प्रथम सिंचाई पर देनी चाहिए। असिंचित भूमि में खाद की मात्रा कम दी जाती है। आवश्यकतानुसार फॉस्फोरस भी दिया जा सकता है। एक एकड़ बोने के लिये 30-40 सेर बीज की आवश्यकता होता है। बीज बीजवपित्र (seed drill) से, या हल के पीछे कूड़ में, नौ नौ इंच की समान दूरी की पंक्तियों मे अक्टूबर नवंबर में बोया जाता है। पहली सिंचाई तीन चार सप्ताह बाद और दूसरी जब फसल दूधिया अवस्था में हो तब की जाती है। पहली सिंचाई के बाद निराई गुड़ाई करनी चाहिए। जब पौधों का डंठल बिलकुल सूख जाए और झुकाने पर आसानी से टूट जाए, जो मार्च अप्रैल में पकी हुई फसल को काटना चाहिए। फिर गट्ठरों में बाँधकर शीघ्र मड़ाई कर लेनी चाहिए, क्योंकि इन दिनों तूफान एवं वर्षा का अधिक डर रहता है। बीज का संचय बड़ी बड़ी बालियाँ छाँटकर करना चाहिए तथा बीज को खूब सुखाकर घड़ों में बंद करके भूसे में रख दें। एक एकड़ में 20-25 मन उपज होती है। भारत की साधारण उपज 705 पाउंड और इंग्लैंड की 1990 पाउंड है। शस्चक्र की फसलें मुख्यत: चरी, मक्का, कपास एवं बाजरा हैं। उन्नतिशील जातियाँ, सीo एनo 294 हैं। जौ का दाना लावा, सत्तू, आटा, माल्ट और शराब बनाने के काम में आता है। भूसा जानवरों को खिलाया जाता है। जौ के पौधों में कंड्डी (आवृत कालिका) का प्रकोप अधिक होता है, इसलिये ग्रसित पौधों को खेत से निकाल देना चाहिए। किंतु बोने के पूर्व, यदि,, बीजों का उपचार ऐग्रोसन जीo एनo द्वारा कर लिया जाय तो अधिक अच्छा होगा। गिरवी की बीमारी की रोक थाम तथा उपचार अगैती बोवाई से हो सकता है। [दुर्गाशंकर नागर]

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