जई

Submitted by Hindi on Thu, 08/11/2011 - 17:10
जई भारत में जई की जातियाँ मुख्यत: ऐवना सटाइवा (Avena sativa) तथा ऐवना स्टेरिलिस (A. sterilis) वंश की हैं। यह भारत के उत्तरी भागों में उत्पन्न होती हैं। इसका उपयोग पशुओं के दाने तथा हरे चारे के लिए होता है।

जई की खेती के लिये शीघ्र पकनेवाली खरीफ की फसल काटने के बाद चार-पाँच जोताइयाँ करके, 125-150 मन गोबर की खाद प्रति एकड़ देनी चाहिए। अक्टूबर-नवंबर में 40 सेर प्रति एकड़ की दर से बीज बोना चाहिए। इसकी दो बार सिंचाई की जाती है। हरे चारे के लिये दो बार कटाई, जनवरी के आंरभ तथा फरवरी में, की जाती है। दूसरी सिंचाई प्रथम चारे की कटाई के बाद करनी चाहिए। हरे चारे की उपज 200-250 मन तथा दाने की 15-20 मन प्रति एकड़ होती है। ( यशवंत राम मेहता.)

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संदर्भ
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