जल अमृत ही नहीं, औषधि भी (Water not only nectar but also medicine)

Submitted by Hindi on Sat, 08/05/2017 - 11:08
Source
भगीरथ - जुलाई-सितम्बर 2011, केन्द्रीय जल आयोग, भारत

.रेगिस्तान में प्राचीन परंपरात जल संग्रहण पद्धतियों की बेशुमार थाती उपलब्ध है। इन्हीं थातियों से जलते रेगिस्तान में ठंडक बरसती थी आज भी ये कारगर हैं। कभी कुएँ, बावड़ी, तालाब और जोहड़ आदि बनवाना पुण्य का कार्य माना जाता था। राजस्थान में सेठ-साहूकार चाहे मातृभूमि में रहें या ना रहें, कुएँ, तालाब और बावड़ियाँ बनवाना नहीं भूलते थे।

अपने पूर्वजों की स्मृतियों को अक्षुण्ण बनाए रखने के लिये जल संग्रह स्रोत बनाने की परंपरा रही है। कई गाँवों में आज भी ये स्रोत जीवंत हैं। अगर कहीं इन्हें भुला दिया गया हो तो, भी आज इनका जीर्णोद्धार करवाकर जन-साधारण को सुलभ करवाना प्राथमिकता में रखा गया है।

हमारे यहाँ गाँवो के नाम के आगे ‘सर’ जुड़ा हुआ है- सर यानी तालाब। राजस्थान में राज्य सरकार अपनी तरफ से पूरे राज्य में गाँव-गाँव, ढाणी-ढाणी शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाने की दृष्टि से कुँओं पर पेयजल उपलब्ध कराने की कोशिश में लगी हुई है। वेद, पुराण तथा अन्य सभी धार्मिक ग्रंथों ने जल को देव रूप में स्थापित किया है।

हमारे यहाँ जल को अमृत, औषधि और ‘माता’ का स्थान दिया गया है। जल धर्म, संस्कार और नीति से जोड़ने की परंपरा केवल भारत में ही मिलती है। इस पुरातन परंपरा और संस्कारों को जीवन में उतारकर हम जल-संकट से उबर सकते हैं।

भावी पीढ़ी किस प्रकार जल-संरक्षण व मितव्ययिता से जल प्रयोग करे, यह बतलाने की आवश्यकता है। प्रकृति और जीवन दोनों को बचाने के लिये व संस्कृति को पुनः स्थापित करने की आज महती आवश्यकता है।

आज बिगड़ते पर्यावरणीय संतुलन के बीच जल प्रदूषण, जल का अभाव तथा भावी उपलब्धता की आशंका से सभी चिंतित हैं कहीं बाढ़, कहीं सूखा- क्या हो रामबाण औषधि? कैसे हल निकले? जल उपलब्धता की स्थिति भी कम चिंताजनक नहीं है।

हममें से अधिकांश यह भी जानते हैं कि ज्यादातर पेट की गड़बड़ियाँ ‘पानी’ से होती है। पानी जनित संक्रमित बीमारियों, अतिसार, पेट की गड़बड़ से पानी को फिल्टर कर प्रयोग करने से बचा जा सकता है।

मरुभूमि के निवासी जल की बूँद-बूंद को संचित करते हैं। आज यह स्थापित हो चुका है कि हमारे प्राचीन काल के ऋषि-मुनि तथा वेद-पुराण तथा धर्मग्रंथ कितना वैज्ञानिक दृष्टिकोण रखते थे। उनके द्वारा धार्मिक महत्व बतलाते हुए सांस्कृतिक, संवेदनशीलता दूरदर्शिता एवं जल का औषधीय महत्व बतलाते हुए ‘अमृत’ बतलाना कितना प्रासंगिक था।

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