जल इंजीनियरी

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सन् १७२८ के विश्वकोश में जलयुक्तियों (Hydraulics and Hydrostatics) की सूची जल इंजीनियरी अथवा द्रव इंजीनियरी (Hydraulics) के अंतर्गत इंजीनियरी के उपतत्वों का विचार आ जाता है जिनके अंतर्गत जल, वायु तथा तैल और अन्य रासायनिक विलयनों का उपयोग प्राकृतिक दशा में या दबाव के अंदर होता है। इन द्रवों के प्राकृतिक गुणों का, जैसे धनत्व, श्यानता, प्रत्यास्थता और तलतनाव आदि, के ऊपर इंजीनियरी के समस्त अभिकल्प निर्भर होते हैं, क्योंकि सारे द्रवों का आधारभूत व्यवहार एक सा ही होता है।

जल इंजीनियरी के और भी बहुत से विशेष अंग हैं जिनका विवरण उन विशेष अंगों के अंतर्गत मिल सकता है। जल इंजीनियरी में मुख्यत: जल का स्थिर दबाव, उसकी गति तथा उसका प्रभाव, उसके द्वारा चालित यंत्र जल का मापन आदि विषयों का विचार आ जाता है।

जल इंजीनियरी अथवा द्रव इंजीनियरी (Hydraulics) की तरीकों की सूचीजल इंजीनियरी अथवा द्रव इंजीनियरी (Hydraulics) की तरीकों की सूची

परिचय


जल इंजीनियरी के संबंध में सर्वप्रथम जल के स्थायी दबाव का अध्ययन आवश्यक होता है। यह स्थायी दबाव का विषय द्रवस्थिति विज्ञान (Hydrostatics) कहलाता है। जब जल में किसी प्रकार की गति आ जाती है, तो समस्या जटिल हो जाती है। अन्यान्य द्रवों की भाँति जल की भी यह विशेषता होती है कि वह पृथ्वी के गुरुत्व के कारण स्वयं चालक हो जाता है और यह गुण स्थिति के अनुकूल घटता बढ़ता रहता है। इंजीनियर की विचारतुलना गणितज्ञ की विचारतुलना से इस संबंध में भिन्न हो जाती है। गणितज्ञ बहुत सी बातों का निदान काल्पनिक परिस्थितियों पर निर्भर रहकर करते हैं। इंजीनियरों के विचार में वास्तविक स्थितियों पर निर्भर रहकर करते हैं। इंजीनियरों के विचार में वास्तविक स्थितियों का जल संबंधी समस्याओं पर बड़ा प्रभाव पड़ता है। इन समस्याओं को सुलझानेमें बहुत से ऐसे आधारभूत तथ्यों की गणना की जाती है, जैसे ऊर्जा अविनाशिता, सामग्री का संरक्षण, परिवलन का संरक्षण इत्यादि। जल इंजीनियरी का कोई भी प्रश्न हो, वह इनमें से दो आधारभूत तथ्यों पर अवश्य ही निर्भर होगा।

स्विस इंजीनियर, डेनियल बर्नुली (Daniel Bernoulli) ने 18वीं शताब्दी में यह प्रतिपादित किया था कि गति मार्ग में किसी भी द्रव के कणों में ऊर्जा समान रहती है अथवा गति ऊर्जा (Kinetic energy) और स्थितिज ऊर्जा (Potential energy) का योग एक ही होता है।

इस सिद्धान्त से बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाता है। उदाहरण के लिये एक पपं एक घनफुट पानी प्रति सेंकड निकालता है। उसके एक सिरे पर पानी का वेग 10 फुट प्रति सेकंड है और दूसरी ओर पानी का वेग 20 फुट प्रति सेकंड है, पहले सिरे पर वेग का दबाव 1.56 फुट है और दूसरे सिरे पर 6.24 फुट है। अत: पंप द्वारा पानी के ऊपर अतिरिक्त दबाव 50.68 फुट डाला गया। माप 46 फुट ही दिखाई पड़ती है, क्योंकि बाकी का दबाव वेग दबाव में परिवर्तित हो गया। बर्नुली के तथ्य से बहुत सी समस्याओं का समाधान हो जाता है।

पानी के बहाव में और भी बहुत सी बातों का निदान करना पड़ता है, जैसे छोटे-बड़े निकासों से पानी का विरतण, निकास मार्ग के संकुचित होने से बहाव की स्थिति में घटाव-बढ़ाव, निकास मार्ग की बनावट तथा उसके आकार का जलनिस्सरण पर प्रभाव, निकसा मार्ग में छोटे बड़े भँवर पैदा हो जाना, इन सब बातों का लगाव नहरों के लिये, या जल-प्रसादन-केंद्रों में जलवितरण के लिये किए गए साधनों पर होता है। नहरों में इन बातों पर विचार करके ही बड़े बड़े कार्यों के अभिकल्प बनाए जाते हैं।

वास्तव में जल इंजीनियरी में ऐसी बहुत सी बातों का समन्वय होता है जिनका गणित के द्वारा समाधान होना संभव नहीं। अत: बहुत सी समस्याओं का समाधान छोटे प्रतिरूप (model) अर्थात् छोटे आकार के नमूने बनाकर किया जाता है। इन नमूनों या मॉडलों में पानी प्रवेश कराकर और उसकी चाल को मापकर यह बात निर्धारित की जाती है कि विभिन्न अभिकल्पों से बनाए कार्यों पर पानी के व्यावहारिक बहाव से क्या प्रभाव पड़ेगा। इन प्रयोगों से यही अनुमान किया जा सकता है कि कितने पानी के दबाव से अथवा कितनी मात्रा में पानी के बहावसे, किसी विशेष अभिकल्प से बनाया गया कार्य स्थिरता से डिगने लगता है अथवा स्थिर हो जाता है। वैसे तो जल संबंधित कार्यों का निर्माण द्रव इंजीनियरी के मूल सिद्धांतों पर ही निर्भर होता हे, किंतु उन कार्यों की व्यावहारिक सुचारुता एवं संपन्नता और स्थिरता का ठीक अनुमान मॉडल के प्रयोग द्वारा किया जाता है। नाविक कार्य में जहाँ बड़े-बड़े जहाज बनाए जाते हैं, छोटे-छोटे मॉडलों द्वारा जहाजों की कार्यक्षमता एवं यातायात योग्यता का अनुमान किया जाता है।