परिचय
जीवन की गुणवत्ता में योगदान देने वाले तीन प्रमुख कारकों में पहला है उस वायु की शुद्धता जिसमें हम साँस लेते हैं, दूसरा, उस जल की शुद्धता जिसे हम पीने के लिये एवं दैनिक उपयोगों हेतु इस्तेमाल करते हैं तथा तीसरा उस पर्यावरण की शुद्धता जिसमें हम निवास करते हैं। यद्यपि ये तीनों कारक एक-दूसरे पर निर्भर हैं फिर भी जल सम्बन्धी समस्या को बहुत गम्भीर माना जाता है। जल प्रकृति में व्याप्त एक ऐसा अद्भुत पदार्थ है जिसके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। जीवन सम्बन्धी सभी प्रक्रियाओं के लिये जल अतिउपयोगी है और पृथ्वी पर विद्यमान सभी रासायनिक पदार्थों में जल सर्वाधिक मात्रा में मौजूद है। प्रारम्भ में जल को एक तत्व के रूप में माना जाता था। हेनरी कैवेंडिश ने सन 1781 में दो भाग हाइड्रोजन तथा एक भाग ऑक्सीजन के मिश्रण को दहनकर जल की प्रयोगशाला निर्माण विधि की पुष्टि की। तब से यह सत्यापित हो गया कि जल हाइड्रोजन एवं ऑक्सीजन से बना एक यौगिक है जिसे रासायनिक सूत्र H2O द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।
पृथ्वी की सतह करीब 71% जल से ढँकी है परन्तु इसका अधिकतर जल महासागरीय खारे पानी के रूप में है। विश्व की बढ़ती हुई जनसंख्या को देखते हुए पीने एवं दैनिक उपयोग के लिये शुद्ध जल की उपलब्धता एक चिन्ता का विषय है। वर्तमान में भी कई क्षेत्रों में जल की कमी महसूस की जा रही है। कुछ क्षेत्रों में वर्षाऋतु में जल की अत्यधिक मात्रा होती है तो वहीं दूसरी ऋतु में नहीं के बराबर होती है। दूसरे कई क्षेत्रों में उपलब्ध जल प्राकृतिक एवं मानवजनित प्रदूषण के फलस्वरूप उपयोग के काबिल ही नहीं है। पृथ्वी पर उपलब्ध कुल जल का लगभग 97% भाग सागरीय खारे पानी के रूप में है जो सीधे तौर पर मानव के उपयोग में नहीं आता है। शेष करीब 3% जल, जो शुद्ध मीठे जल के रूप में व्याप्त है, का भी मानवोपयोगी कार्यों में सीधे ही उपयोग नहीं किया जा सकता है। ऐसा इसलिये क्योंकि इस जल का लगभग 68.7% भाग बर्फ एवं ग्लेशियर के रूप में, 30.1% भूमिगत जल के रूप में, 0.9% अन्य स्रोतों जैसे कि जलवाष्प आदि के रूप में है। उपलब्ध मीठे जल का मात्र 0.3% भाग ही सतह जल के रूप में है। इस सतह का जल का भी लगभग 87% भाग झीलों के रूप में, 11% भाग तालाब एवं पोखरों के रूप में और 2% भाग नदी जल के रूप में उपलब्ध है। इस प्रकार पृथ्वी पर पीने, स्नानादि एवं कृषिकार्य हेतु उपलब्ध शुद्ध मीठे जल की मात्रा, कुल जल मात्रा के 1% से भी कम है।
अधिकांश जनसमुदाय पीने के लिये जल या तो सतही जलस्रोतों जैसे कि नदी, झील, पोखर, तालाब या फिर भूमिगत जलस्रोतों जैसे कि कुआँ, नलकूप इत्यादि से प्राप्त करते हैं। चूँकि भूमिगत जल मिट्टी की ऊपरी सतहों से रिसकर सरंध्र चट्टानों में जमा हो जाता है और इस प्रक्रिया के दौरान जल छनकर शुद्ध हो जाता है। अतः भूमिगत जल को मानवोपयोगी शुद्ध जलस्रोत माना जाता है। पृथ्वी में उपलब्ध जल के भौगोलिक वितरण को पिरामिड के माध्यम से चित्र में दर्शाया गया है।
जल के प्राकृतिक संघटक
पृथ्वी की सतह पर पाए जाने वाले जल में विलेय पदार्थों की भारी मात्रा विद्यमान होती है। इन विलेय पदार्थों का मुख्य स्रोत चट्टानों का प्राकृतिक क्षरण है। इसके अलावा इन विलेय पदार्थों के प्राकृतिक जल में उपस्थिति, खनिज उत्खनन या औद्योगिक प्रक्रियाओं अथवा अपशिष्ट जल संयंत्रों का भी प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से योगदान होता है। जल के प्राकृतिक संगठन के रूप में कई तरह के पदार्थ एवं खनिज लवण जल में विद्यमान होते हैं जिनकी आवश्यकता से अधिक मात्रा हानिकारक होती है। साथ ही विभिन्न मानवीय तथा औद्योगिक प्रक्रियाओं द्वारा कई तरह के प्रदूषकों का जल में समावेश हो जाता है। इनमें से कुछ पदार्थ हानिकारक नहीं होते हैं जैसे कि कैल्शियम, मैग्नीशियम, आयरन, आयोडीन आदि और इन पोषक तत्वों से युक्त जल स्वास्थ्य के लिये गुणकारी होता है। अन्य खनिज पदार्थ जैसे कि मैग्नीज, सल्फेट तथा आयरन यद्यपि विषाक्त नहीं होते परन्तु इनकी उपस्थिति जल के स्वाद को प्रभावित करती है। सोडियम क्लोराइड की अधिक मात्रा जल के स्वाद को खारा बनाती है। जल में उपस्थित कैल्शियम एवं मैग्नीशियम के कार्बोनेट, बाईकार्बोनेट तथा सल्फेट यौगिक साबुन से क्रिया करके अवक्षेप (precipitate) उत्पन्न करते हैं।
प्राकृतिक जल में आयनिक पदार्थों जैसे कि नाइट्रेट (NO-3), सल्फेट (SO4-2) इत्यादि की उपस्थिति कोल ऊर्जा संयंत्रों, ऑटोमोबाइल उद्योग एवं अन्य दहन सम्बन्धी क्रियाविधियों से निकलने वाली गैसों (NOx), (SOx) के वर्षाजल में विलेय होकर जल में मिल जाने के फलस्वरूप होती है। सागरीय धाराओं से सोडियम क्लोराइड (Nacl), धूल-मिट्टी तथा विभिन्न प्रकार के खनिज लवणों के जल में विलेय होने से, जल के प्राकृतिक संघटन के रूप में, अन्य पदार्थों की सूक्ष्म मात्रा उपस्थित होती है। जल में व्याप्त प्रमुख प्राकृतिक घटकों तथा जल की गुणवत्ता पर पड़ने वाले इनके प्रभावों को सारणी-1 में प्रदर्शित किया गया है।
सारणी-1 जल में उपस्थित प्रमुख प्राकृतिक संघटक: उनके स्रोतों, सांद्रता एवं उपयोग से होने वाले प्रभाव | |||
घटक | मुख्य स्रोत | प्राकृतिक जल में सान्द्रता | उपयोग से होने वाले प्रभाव |
कार्बोनेट (CO3-2) | चूने का पत्थर, डोलोमाइट | सामान्यतः सतह जल में मौजूद नहीं होता। भूमिगत जल में <10 मिग्रा/ली। सोडियम की अधिकता वाले जल में 50 मिग्रा/ली तक हो सकती है। | Ca+2 एवं Mg+2 के साथ संयोग कर कार्बोनेट की परत बनाता है। |
बाईकार्बोनेट (HCO3-) |
| बाईकार्बोनेट की सान्द्रता सामान्यतः <500 मिग्रा/ली लेकिन उच्च कार्बन डाइऑक्साइड युक्त जल में 1000 मिग्रा/ली से भी अधिक। | गरम करने पर बाईकार्बनोट वाष्प, कार्बन डाइऑक्साइड एवं कार्बोनेट में परिवर्तित हो जाते हैं। |
सल्फेट (SO4-2) | सल्फाइड अयस्क के आक्सीकरण, जिप्सम; |
| Ca+2 के संयोग से ऊष्मा रोधी पपड़ी का निर्माण। >500 मिग्रा/ली जल का कड़वा स्वाद |
क्लोराइड (Cl-) | औद्योगिक अपशिष्ट मुख्य स्रोत अवसादी चट्टानें समुद्री धाराएँ; |
| >100 मिग्रा/ली जल में खारापन खाद्य प्रसंस्करण उद्योग, वस्त्र उद्योग, पेपर और संश्लेषित रबर उद्योग में >100 मिग्रा/ली नुकसानदायक |
कैल्शियम (Ca+2) | जिप्सम, कैल्साइट, डोलोमाइट और मृदा खनिज |
| साबुन के साथ झाग उत्पन्न न होना, ऊष्मारोधी परत (Heat retarding scale) का |
मैग्नीशियम (Mg+2) | मैग्नेसाइट डोलोमाइट पायरोक्सेन खनिज | कई सतह जलस्रोतों में 1000 मिग्रा/ली, लवण जल में करीब 57,000 मिग्रा/ली तक। समुद्री जलस्रोतों में 1000 मिग्रा/ली तक लवण जल में करीब 25,000 मिग्रा/ली | नल तथा पाइपों का जाम हो जाना। |
सोडियम (Na+) | हैलाइट (NaCl) मिराबिलाइट (Na2SO4.H2O) और औद्योगिक अपशिष्ट |
| सोडियम और पोटैशियम दोनों की >50 मिग्रा/ली मात्रा जल में फेन बनाती है और ऊष्मा जनित्रों में संक्षारण (Corrosion) उत्पन्न करती है। |
पोटैशियम (K+) | फेल्ड्सपार, कुछ माइका एवं मृदा खनिज | सामान्यतः <10 मिग्रा/ली। गर्म जलस्रोतों में >100 मिग्रा/ली तक और लवण जल में करीब 25,000 | सोडियम की >65 मिग्रा/ली मात्रा से बर्फ निर्माण में समस्या उत्पन्न होती है। |
कठोर जल और इसकी उत्पत्ति का कारण
ऐसा जल जिसमें साबुन के साथ अधिक झाग उत्पन्न नहीं होता है, कठोर जल कहलाता है। जल की कठोरता को जल में घुलित आयनों, मुख्यतः कैल्शियम (Ca+2) एवं मैग्नीशियम (Mg+2) के लवणों की सान्द्रता के रूप में व्यक्त किया जाता है। जल में इन आयनों की उपस्थिति का कारण इनके खनिज हैं जैसे कि डोलोमाइट, मैग्नेसाइट, कैल्साइट इत्यादि। साथ ही वायुमंडलीय कार्बन डाइऑक्साइड भी जल में विलेय होकर कार्बोनिक अम्ल (H2CO3) बनाती है जिसका विघटन बाइकार्बोनेट (HCO3-) एवं कार्बोनेट (CO3-) आयनों में हो जाता है। ये ऋणायन अपने संगत धनायनों के साथ संयोग कर ऐसे लवण बनाते हैं जो जल की कठोरता के लिये उत्तरदायी होते हैं। प्राकृतिक जल में आयनिक पदार्थों जैसे कि नाइट्रेट (NO3-), सल्फेट (SO4-2) इत्यादि की उपस्थिति कोल ऊर्जा संयंत्रों, ऑटोमोबाइल उद्योग एवं अन्य दहन सम्बन्धी क्रियाविधियों से निकलने वाली गैसों (NOx), (SOx) के वर्षाजल में विलेय होकर जल में मिल जाने के फलस्वरूप होती है। 1960 में वैज्ञानिक क्रिस गिल्बी ने बताया कि कठोर जल का वर्गीकरण उसमें उपस्थित आयनों के आधार पर किया जा सकता है। जल की कठोरता दो प्रकार की होती है- अस्थायी कठोरता (Temporary Hardness) एवं स्थायी कठोरता (Permanent Hardness)। जल में अस्थायी कठोरता कैल्शियम एवं मैग्नीशियम के बाइकार्बोनेट एवं कार्बोनेट लवणों के कारण होती है जिसे उबालकर दूर किया जा सकता है। जबकि स्थायी कठोरता का कारण जल में मौजूद Ca+2, Mg+2, Mn+2, Cu+2, Fe+3, Al+3 इत्यादि आयनों के सल्फेट (SO4-2), क्लोराइड (Cl-), नाइट्रेट (NO3-), सिलिकेट (SiO3-2) एवं फ्लोराइड (F-) लवणों की उपस्थिति है जिसे उबालकर दूर नहीं किया जा सकता। उबालने से इन लवणों की सान्द्रता और बढ़ जाती है जो जल को विशिष्ट उपयोग हेतु अनुपयोगी बनाती है।
जल की कठोरता के कारण सिर्फ कपड़े धोने की समस्या उत्पन्न नहीं होती है बल्कि इसके द्वारा पाइप लाइनों के अवरुद्ध होने, ऊष्मा विनियामक (Heat Exchanger) एवं बॉयलर (Boiler) की सतह पर पपड़ी जमने जैसी गम्भीर समस्याएँ उत्पन्न होती हैं। स्थायी कठोरता को दूर करने के लिये आयन विनिमय (Ion Exchange), परानिस्यन्दन (Ultra Filtration), प्रतिलोम परासरण (Reverse Osmosis) इत्यादि प्रक्रियाओं का उपयोग किया जाता है।
कठोर जल के विश्लेषण की विधियाँ
गुणात्मक विश्लेषण
कठोर जल की पहचान कई सामान्य अनुभवों से की जा सकती है। जैसे कि जल के स्वाद में खारापन होना, दालों का न पकना, चाय का फटना, जल को गरम करने वाले पात्र में सफेद परत का जमना इत्यादि। कठोर जल के गुणात्मक विश्लेषण की बहुप्रचलित विधि है- साबुन के साथ झाग उत्पन्न न होना। चूँकि साबुन, वसा अम्लों के सोडियम लवण होते हैं (जैसे कि सोडियम स्टरेट, सोडियम पामेट) अतः कठोर जल की साबुन से क्रिया होने पर कठोर जल में मौजूद कैल्शियम तथा मैग्नीशियम आयनों का सोडियम आयन से विनिमय हो जाता है और साबुन से झाग उत्पन्न नहीं होता बल्कि कैल्शियम स्टीयरेट या मैग्नीशियम स्टीयरेट का चिपचिपा अवक्षेप बन जाता है।
परिमाणात्मक विश्लेषण
मात्रात्मक रूप से जल की कठोरता को कैल्शियम कार्बोनेट (CaCo3) की मिग्रा/लीटर में सान्द्रता या पीपीएम (parts per million) भार के हिसाब से जल के प्रति दस लाख भाग यानी लक्षांश में CaCo3 का एक भाग के रूप में व्यक्त किया जाता है। कठोर जल का परिमाणात्मक विश्लेषण विभिन्न विधियों द्वारा किया जा सकता है। सैद्धान्तिक रूप से सभी विधियों में कैल्शियम, मैग्नीशियम तथा अन्य आयनों के लवणों की सान्द्रता का आकलन करके उन्हें CaCo3 की सान्द्रता के रूप में परिवर्तित कर जल की कठोरता ज्ञात की जाती है। उदाहरणस्वरूप यदि जल के एक नमूने में कुछ लवणों की सान्द्रता इस प्रकार है- कैल्शियम बाइकार्बोनेट (Ca(HCo3)2) = 20 ppm, मैग्नीशियम बाइकार्बोनेट (Mg(HCo3)2) = 8 ppm तथा मैग्नीशियम सल्फेट (MgSO4) = 12 ppm तो उस जल की कठोरता क्या होगी? इसे ज्ञात करने के लिये सभी लवणों की सान्द्रता को कैल्शियम कार्बोनेट की सान्द्रता के समतुल्य व्यक्त कर उनका योग करना होगा।
जल की कठोरता को कैल्शियम कार्बोनेट की सान्द्रता के समतुल्य व्यक्त करने के दो प्रमुख कारण हैं। पहला यह कि कैल्शियम कार्बोनेट पानी में पूर्णतया अघुलनशील है और आसानी से अवक्षेपित हो जाता है जिससे भारात्मक अनुमापन में त्रुटि की सम्भावना नहीं रहती। और दूसरा, चूँकि कैल्शियम कार्बोनेट का अणुभार है 100 है अतः परिकलन में आसानी होती है।
EDTA संकुलमिति अनुमापन द्वारा जल की कठोरता ज्ञात करना-
यह जल की कठोरता ज्ञात करने की प्रमुख प्रयोगशाला विधि है। यह विधि जल में मौजूद कैल्शियम तथा मैग्नीशियम आयनों की एथलीनडाईऐमीन टेट्राएसीटिक अम्ल (EDTA) के मानक विलयन (standard solution) द्वारा आयतनमापी विश्लेषण (volumetric analysis) पर आधारित है। इस विधि में द्रव अमोनिया का बफर विलयन और इरियोक्रोम ब्लैक-टी का संसूचक (indicator) के रूप में उपयोग होता है। अनुमापन के दौरान परीक्षण विलयन का pH मान 10 के आस-पास होना चाहिए। pH मान 10 से कम होने पर EDTA से हाइड्रोजन आयन का विलगन (deprotonation) आसानी से नहीं होता। साथ ही इरियोक्रोम ब्लैक-टी संसूचक भी, pH मान 10 से कम होने पर कैल्शियम तथा मैग्नीशियम आयनों के साथ दुर्बल संकुल (weak complex) बनाता है और अनुमापन में सटीक अन्तिम बिन्दु नहीं देता। pH मान 10 से अधिक होने पर कैल्शियम तथा मैग्नीशियम आयन अपने संगत हाइड्राक्साइड के रूप में अवक्षेपित हो जाते हैं। अतः बफर विलयन का उपयोग करना अनिवार्य होता है। EDTA डाइहाइड्रोजन एनायन (H2EDTA-2) के रूप में Ca+2 और Mg+2 के साथ उच्चबन्धुता रखता है। pH 10 पर EDTA का आयनिक रूप इस प्रकार होता है-
प्रयोगशाला में जल की कठोरता ज्ञात करने की प्रायोगिक विधि इस प्रकार है :
1. 240 ml के कोनिकल फ्लास्क में पिपेट द्वारा 25 ml जल के नमूने को लीजिये।
2. 5 ml pH 10 का अमोनिया बफर मिलाइए,
3. 2 बूँद इरियोक्रोम ब्लैक टी संसूचक की डालें
4. ब्युरेट में ज्ञात सान्द्रता वाला EDTA लेकर अनुमापन करें।
5. धीरे-धीरे EDTA तब तक डालें जब तक कि विलयन का रंग नीला न हो जाये। अन्तिम बिन्दु के नजदीक पहुँचने पर विलयन का रंग पहले बैगनी होगा और अन्तिम बिन्दु पर स्थायी नीला रंग प्राप्त होगा।
अनुमापन की प्रक्रिया में पहले इरियोक्रोम ब्लैक टी संसूचक, कैल्शियम आयन के साथ संयोग कर गुलाबी रंग देता है –
अनुमापन के दौरान ईडीटीए, कैल्शियम आयन के साथ संकुल बनाता है और अन्तिम बिन्दु पर नीले रंग के संसूचक को मुक्त करता है।
ध्यान रखें :
1. अमोनिया बफर को फ्यूमहुड में रखना चाहिए।
2. इरियोक्रोम ब्लैक-टी संसूचक से त्वचा और कपड़े में दाग पड़ सकता है।
3. अनुमापन के पश्चात सभी अपशिष्ट पदार्थों को सुरक्षित सिंक में बहाना चाहिए।
गणना एवं मापन इकाई
मान लीजिये आपको दिए गए अज्ञात जल के नमूने में जल की कठोरता ज्ञात करनी है। आपने जल के नमूने का 25 ml विलयन लेकर 0.01 मोलर की सान्द्रता वाले EDTA से उपरोक्त प्रायोगिक विधि के अनुसार अनुमापन किया। अन्तिम बिन्दु पर ब्यूटेट का मापांक 1.25 ml है। तो जल की कठोरता क्या होगी?
जल की कुल कठोरता (CaCO3 mg/L) | वर्गीकरण |
0-17 | मृदु जल |
17-60 | मामूली कठोर जल |
60-120 | मध्यम कठोर जल |
120-180 | कठोर जल |
> 180 | अति कठोर जल |
अन्य मापन इकाइयाँ
अमेरिकन डिग्री (आधुनिक प्रणाली) : CaCo3 मिग्रा/ली. अथवा ppm CaCO3 ग्रेन्स प्रति गैलन (gpg) : 1 ग्रेन = 64.8 mg CaCO3 ; 1 U.S. गैलन = 3.79 लीटर; अतः 1 ग्रेन्स प्रति गैलन (gpg) = 17.1 ppm CaCO3 क्लार्क डिग्री : ब्रिटिश प्रणाली, 1 ग्रेन प्रति इम्पीरियल गैलन (4.55 लीटर); अतः 14.25 ppm CaCO3
फ्रेंच डिग्री : 10 मिग्रा/ली CaCO3 अथवा 10 ppm CaCO3
इकाई रूपान्तरण : 1 ppm = 0.1 फ्रेंच डिग्री = 0.07 क्लार्क डिग्री
कठोर जल के उपयोग से उत्पन्न समस्याएँ घरेलू समस्या
1. साबुन से झाग उत्पन्न न होना
2. बाथटब, टाइल्स में साबुन के मैल की परत जमना
3. कपड़े और बर्तनों की चमक में कमी
4. चाय, कॉफी, दाल आदि के पकने की समस्या
औद्योगिक समस्या
1. नल के पाइपों में पपड़ी जमना
2. वाष्प जनित्र में संक्षारण
3. क्षारीय भंगुरता (Caustic Embrittlement)
4. प्राइमिंग (Priming) और झाग उत्पन्न करना
5. वाष्प जनित्र की दक्षता में कमी
6. कार्बोनेट, सिलिकेट एवं सल्फेट की परत और आपंक (Sludge) निर्माण
स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्या
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार पीने के लिये कठोर जल का इस्तेमाल करने से मानव स्वास्थ्य पर कोई विपरीत प्रभाव नहीं पड़ता है। परन्तु कठोर जल के उपयोग से कुछ त्वचा सम्बन्धी विकार तथा बालों के झड़ने की समस्या उत्पन्न होती है।
आयन विनिमय प्रक्रिया द्वारा जल का विखनिजीकरण
औद्योगिक स्तर पर जल की कठोरता को दूर करने तथा जल के विखनिजीकरण की प्रक्रिया को चित्र में दर्शाया गया है। इस प्रक्रिया में सामान्य जल को कुछ प्राथमिक उपचार के पश्चात आयन विनिमय रेजिन से प्रवाहित किया जाता है। सबसे पहले जल को सैंड फिल्टर से गुजारा जाता है जिससे जल में घुलित कणीय पदार्थों (particulate matters) की अशुद्धियाँ छन जाती हैं। फिर इसे चारकोल फिल्टर से गुजारा जाता है जहाँ जल में विलेय कार्बनिक पदार्थों (organic matters) की अशुद्धियाँ निकल जाती है। तत्पश्चात जल को क्रमशः धनायन रेजिन, ऋणायन रेजिन तथा धनायन एवं ऋणायन से मिश्रित रेजिन के कालमों से प्रवाहित किया जाता है जिससे जल में उपस्थित केटायनिक तथा एनायनिक अशुद्धियाँ पूर्णरूपेण अलग हो जाती है। साथ ही जल का pH मान उदासीन बना रहता है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है कि जल को पहले धनायन रेजिन से ही प्रवाहित करना चाहिए। यदि पहले ऋणायन रेजिन से प्रवाहित किया गया तो ऋणायन जैसे कि HCO-3, CO-3, Cl-, NO-3 इत्यादि रेजिन में रह जायेंगे जबकि धनायन जैसे कि Ca2+, Mg2+ आदि जल में रहकर संगत हाइड्राक्साइड के रूप में अवक्षेपित हो जायेंगे तथा रेजिन कालम को शीघ्र ही अवरुद्ध कर देंगे।
लाभ :
1. लगभग सभी धनायन एवं ऋणायन अशुद्धियों का निष्कासन
2. अधिक दक्षता, कई बार उपयोग
3. पुनःप्रापन (Regenaration) सम्भव
4. प्रचालन की कम लागत
दोष :1. रेजिन कालम का अवरुद्ध होना
2. रेजिन के सुरक्षित निपटान की समस्या
संक्षिप्त सारांश
1. जल की कठोरता जल का ही एक गुणधर्म है।
2. जल की कठोरता को CaCO3 की सान्द्रता के आधार पर वर्गीकृत किया जाता है।
3. EDTA अनुमापन द्वारा जल की कठोरता का सटीक मापन किया जाता है।
4. जल की कठोरता औद्योगिक इकाइयों के लिये अधिक चिन्ता का विषय है।
5. बृहद स्तर पर जल की कठोरता दूर करने हेतु आयन विनिमय तकनीक का उपयोग किया जाता है।
जल सभी जीवधारियों के लिये अतिआवश्यक है। साथ ही जल विभिन्न औद्योगिक प्रक्रियाओं के लिये आधारभूत पदार्थ है। अतः इसकी वांछित परिशुद्धता का आकलन अतिमहत्त्वपूर्ण हो जाता है। हालाँकि जल की उपयोगिता के आधार पर इसके विभिन्न मापदंडों के विश्लेषण की प्रक्रिया अपनायी जाती है फिर भी सामान्यतः जिन मापदंडों का विश्लेषण जल के सभी उपयोगों में आवश्यक होता है- वह है जल की कठोरता। प्रस्तुत लेख में जल की कठोरता से सम्बन्धित विभिन्न तथ्यों- जैसे कि कठोर जल के कारण, इसके उपयोग से उत्पन्न समस्याएँ, इसके विश्लेषण की तकनीक तथा जल की कठोरता को दूर करने के लिये अपनाई जाने वाली प्रक्रियाओं पर विस्तृत चर्चा की गई है। |
वैज्ञानिक अधिकारी ‘डी’ नियंत्रण प्रयोगशाला ईंधन पुनर्संसाधन प्रभाग भाभा परमाणु अनुसन्धान केन्द्र मुम्बई-400085, ई-मेल : pathaksk2004@gmail.com