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दोपहर का सामना, 28 मार्च, 2016
इस बार होली से पहले महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने राज्य में जल संकट को देखते हुये कहा था कि ‘हम सूखी होली खेल सकते हैं। होली खेलें पर कम पानी इस्तेमाल करें।’ यह सुखद ही रहा कि लोगों ने उनके सूखी होली खेलने और पानी बचाने के अनुरोध का सम्मान करते हुये संवेदनशीलता का परिचय दिया। राज्य के जलाशयों के घटते जल स्तर और जल संकट की बढ़ती समस्या को लेकर लोगों ने कोई कुतर्क ना करते हुये पूरे जोश के साथ रंगपर्व मनाया और पानी बचाने की इस पहल को पूरा समर्थन भी दिया। आमतौर पर देखने में आता है कि लोग ऐसी अपील को गम्भीरता से नहीं लेते, लेकिन इस बार यह सकारात्मक बदलाव देखने में आया कि मुंबई की बहुत सी हाऊसिंग सोसायटियों ने सूखी होली खेलकर इस जनसरोकार से जुड़े मामले में सहभागिता का परिचय दिया।
राज्य में पड़े सूखे के चलते पानी की बर्बादी रोकने के लिये लोगों की उत्सवधर्मिता संवेदनाओं का भी रंग दिखा। जल सहेजने के इस अभियान में आम नागरिकों ने बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। गौरतलब है कि इस समय महाराष्ट्र के सभी जलाशयों में केवल 26 फीसदी जल भण्डार शेष रह गया है जिसे मानसून आने तक काम में लेना है। यानी कि जुलाई माह तक पानी की बर्बादी को लेकर हर नागरिक का सचेत रहना जरूरी है। ऐसे में होली के मौके पर जल बचाने की जागरुकता के इस अभियान को यहाँ के लोगों ने बहुत गम्भीरता से लिया और अपनी सराहनीय भूमिका भी निभाई।
हमारे पर्व-त्योहार हमारी संवेदनाओं और परम्पराओं का जीवन्त रूप है जिन्हें मनाना या यूँ कहें की बार-बार मनाना, हर साल मनाना हर भारतीय को अच्छा लगता है। पूरी दुनिया में हिन्दुस्तान ही एक ऐसा देश है जहाँ मौसम के बदलाव की सूचना भी त्योहारों से मिलती है। इन मान्यताओं, परम्पराओं और विचारों में हमारी सभ्यता और संस्कृति के अनगिनत सरोकार छुपे हैं। ये सरोकार प्रकृति को सहेजने से लेकर मानवीय संवेदनाओं को समझने तक, सारे रंग लिये हैं। मेलों और मदनोत्सव के इस देश में होली जैसा उत्सव हमारे मन में संस्कृति बोध उपजता है। ऐसे में जल बचाने की मुहिम का हिस्सा बनकर आमजन ने सही अर्थों में इस त्योहार से जुड़े मानवीय बोध को सामने रखा है।
देखने में आ रहा है कि लोग ना केवल खुद इस सार्थक अभियान का हिस्सा बन रहे हैं बल्कि सोशल मीडिया के कई माध्यमों के जरिये दूसरों को भी जागरूक कर रहे हैं। होली के मौके पर कितने ही ऐसे संदेश सोशल मीडिया के माध्यम से साझा किये गये जिनमें आम लोगों ने ही एक-दूसरे से पानी बचाने की मुहिम में भागीदार बनने की अपील की है। तभी होली इस बार यहाँ नये ही रंग में दिखी। अधिकतर हाउसिंग सोसायटीज में रेन डांस जैसे आयोजन नहीं किये गये। गुलाल के रंग में रंगकर सूखी होली खेली गयी। नतीजतन इंसानियत से जुड़ी संवेदनाओं के रंग खिलते दिखे।
इस बार होली पर परम्परा के निर्वहन के साथ ही यह संदेश भी जन-जन तक पहुँचा कि जल बचत में आम नागरिक भी अपनी महत्त्वपूर्ण जिम्मेदारी निभा सकता है। पानी को बूँद-बूँद बचाना समय की माँग है। विश्वभर के विचारकों का मानना है कि आने वाले समय में जल संकट दुनिया के सामने आने वाला सबसे बड़ा संकट होगा। इसीलिये पानी के अपव्यय को रोकने के लिये आमजन का विचारशील होना यकीनन एक सराहनीय कदम है।
दरअसल, बीते कुछ बरसों में भूजल स्तर में गिरावट और बरसात की कमी के साथ ही हमारी जीवन शैली में भी परिवर्तन आया है। मौजूदा दौर की जीवन शैली में जल की खपत और कुप्रबंधन दोनों ही बढ़े हैं। होली के अवसर पर भी जल की बर्बादी को लेकर अक्सर बात होती रही है। ऐसे में यह सार्थक बदलाव ध्यान देने योग्य है। आज देश के करीब 70 फीसदी खेती और 80 फीसदी घरों में इस्तेमाल होने वाला जल भूगर्भ जल ही है, जो तेजी से घट रहा है। भूमिगत जल के घटने के अनुपात जल के घटने के अनुपात में ही पेयजल संकट भी बढ़ रहा है।
भण्डारण और संसाधनों की कमी के चलते हमारे यहाँ वर्षा की भी कुल 18 फीसदी जल का ही उपयोग हो पाता है। देखने में आ रहा है कि मौजूदा परिस्थितियों में ना केवल पानी का उपभोग बढ़ता जा रहा है, बल्कि समुचित प्रबंधन कमी और लापरवाही से हम पानी व्यर्थ भी बहा रहे हैं। जल संकट को लेकर कुछ ही समय पहले जानी-मानी परामर्शदाता कम्पनी ईए वाटर के एक अध्ययन का खुलासा भी सचेत करने वाला है। इसके मुताबिक बीते कुछ बरसों में देश में पानी की खपत और आपूर्ति का अंतर तेजी से बढ़ा है। इसीलिये यदि समय रहते नहीं सोचा गया तो हमें आने वाले दस सालों में पानी के लिये तरसना होगा। अध्ययन में पुख्ता तौर पर कहा गया है कि इस बढ़ते अंतर की वजह से हिन्दुस्तान का वर्ष 2025 तक पानी की कमी वाला देश बनना तय है। आमतौर पर घरेलू, कृषि और औद्योगिक क्षेत्रों में जल की माँग में 40 फीसदी के इजाफे का अनुमान है।
आज हमारे देश में 97 प्रतिशत लोग शुद्ध पेयजल पाने में असमर्थ है। यह देश की लगभग पूरी आबादी है। इसी कड़ी में आज हिन्दुस्तान चीन के बाद दूसरा ऐसा देश है जहाँ जनसंख्या के हवाले से पानी की ये किल्लत सबसे ज्यादा है। अनुमान ये भी है कि वर्तमान में दूसरा सर्वाधिक आबादी वाला देश हिन्दुस्तान 2050 तक चीन को पछाड़ते हुये पहले पायदान पर पहुँच सकता है। तब 1.6 अरब लोगों के लिये जल संकट कितना विकराल रूप ले लेगा? इस बात को समय रहते समझना और सम्भालना दोनों जरूरी है। इतना ही नहीं यूएन ने अपनी वार्षिक वर्ल्ड वॉटर डवलपमेंट रिपोर्ट में कहा है कि अगले डेढ़ दशक में साफ पानी की उपलब्धता 40 फीसद तक घट सकती है।
इसीलिये हमें त्योहार के मौके पर ही नहीं दैनिक जीवन में भी हमें जल सहेजने की आवश्यकता है। जिसके लिये हर नागरिक को अपनी सार्थक भूमिका निभानी होगी। क्योंकि हर संकट का हल सरकार नीतियाँ और योजनाएँ नहीं खोज सकतीं। जन-सहभागीता के बिना कोई कार्य नहीं किया जा सकता। ऐसे में महाराष्ट्र में होली के अवसर पर पानी सहेजने की अपील को जन समर्थन मिलना वाकई सराहनीय है। साथ ही यह भाव इस बात को भी पुख्ता करता है कि हमारे त्योहार और उत्सवधर्मिता संवेदनाओं और सरोकारों से भरी हैं जिन्हें बनाये रखना हम सबकी जिम्मेदारी है।