राज्य जल नियामक आयोग के गठन से कृषि व औद्योगिक क्षेत्र में नियम कायदे लागू करने में आसानी होगी वहीं कैम्पर या बोतलबन्द पानी की बेतरतीब बिक्री पर भी अंकुश लगेगा। एक ओर जहाँ भूजल संसाधनों के संरक्षण पर ठीक प्रकार से कार्य हो सकेगा वहीं उनको प्रदूषण से बचाने के लिये भी प्रयास जारी रखे जा सकेंगे।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा राज्य जल नियामक आयोग के गठन सम्बन्धी फैसले से जल संरक्षण के क्षेत्र में अभूतपूर्व बदलाव देखने को मिल सकते हैं, क्योंकि वर्तमान में जिस तेजी से भूजल संसाधनों का दोहन, कृषि में बढ़ती भूजल की खपत, नदियों का प्रदूषित होना तथा भूजल निकालकर उससे मुनाफा कमाना जारी है उस पर लगाम लगाने हेतु जल नियामक आयोग की आवश्यकता थी।गौतलब है कि नीर फाउंडेशन लगातार पिछले दस वर्षों से तालाबों के संरक्षण हेतु तालाब विकास प्राधिकरण, नदियों को सदानीरा बनाने हेतु उत्तर प्रदेश की भूजल नीति, उत्तर प्रदेश भूजल बिल व जल संसाधनों की एक्यूफर मैपिंग सम्बन्धी मुद्दों को उठाता रहा है।
तालाब विकास प्राधिकरण की माँग को उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा मानकर उसके लिये तालाबों से सम्बन्धित एक प्रस्ताव तैयार किया गया है। उत्तर प्रदेश भूजल विधेयक को पूर्व मुख्यमंत्री सुश्री मायावती की सरकार में ही तैयार कर लिया गया था जबकि पूर्व मुख्यमंत्री श्री अखिलेश यादव को उत्तर प्रदेश की नदी नीति का एक ड्रॉफ्ट नीर फाउंडेशन द्वारा तैयार करके दिया जा चुका था।
राज्य जल नियामक आयोग के गठन से कृषि व औद्योगिक क्षेत्र में नियम कायदे लागू करने में आसानी होगी वहीं कैम्पर या बोतलबन्द पानी की बेतरतीब बिक्री पर भी अंकुश लगेगा। एक ओर जहाँ भूजल संसाधनों के संरक्षण पर ठीक प्रकार से कार्य हो सकेगा वहीं उनको प्रदूषण से बचाने के लिये भी प्रयास जारी रखे जा सकेंगे। राज्य जल नियामक आयोग के गठन से उत्तर प्रदेश के भूजल संसाधनों के रख-रखाव में ही सहायता मिलेगी।
उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विधानसभा में भूजल कानून का मसौदा पेश करके भविष्य के लिये पानी बचाने के लिये एक ठोस कदम उठा दिया गया है। भूजल के अनावश्यक दोहन पर अंकुश लगाने के लिये सरकार ने कानून बनाने का जो निर्णय लिया है, वह एक दूरदर्शी कदम है। इस कानून के बनने से मिनरल वॉटर और शीतल पेय बनाने तथा उनकी सप्लाई करने वाले उद्योगों द्वारा किये जा रहे अनियमित जल दोहन पर लगाम लगेगी।
भारत सरकार की पहल पर राज्य में यह कवायद शुरू की गई थी। इससे पहले केरल, पश्चिम बंगाल, गोवा, आन्ध्र प्रदेश, महाराष्ट्र व तमिलनाडू में भूदल दोहन पर अंकुश लगाने का कानून बनाया जा चुका है। इसके क्रम में राज्य के महकमें ने भूजल के दोहन पर अंकुश लगाने के लिये एक प्रस्ताव इस वर्ष के प्रारम्भ में ही तैयार कर लिया था। जिसमें मिनरल वॉटर और शीतल पेय बनाने वाली कम्पनियों को भूजल के दोहन के लिये अपने क्षेत्र के भूजल विभाग से अनापत्ति प्रमाण पत्र प्राप्त करने का सुझाव दिया गया था। जबकि जिले के जिलाधिकारी को ऐसा न करने वाली कम्पनियों के लाइसेंस को रद्द करके उपलब्ध स्टॉक को जब्त करने का अधिकार देने की सलाह दी गई थी।
इसी तरह इसमें बड़े किसानों के नलकूप से होने वाली जल निकासी पर भी नजर रखने की व्यवस्था करने सम्बन्धी सुझाव दिये गए थे। बैल चालित नलकूप से होने वाली जल निकासी को हर तरह के प्रतिबन्ध से मुक्त रखने तथा भूजल को बढ़ाने सम्बन्धी योजना को प्रोत्साहित करने का ढाँचा खड़ा करने की राय भी इसमें दी गई थी। कहा जा रहा है कि खेती, उद्योग, पेयजल एवं शीतल पेय के कारोबार में लिप्त भूजल के दोहन को लेकर इस प्रस्ताव में अलग-अलग लाइसेंस जारी करने तथा इनके लिये ग्राउंड वाटर अथॉरिटी बनाने की सलाह भी दी गई थी।
इस प्रस्ताव पर शासन में हुए विचार-विमर्श में यह पाया गया कि इसमें भूजल के रख-रखाव पर कम व उसके दोहन को लेकर लाइसेंस जारी करने पर ज्यादा जोर दिया गया है। ऐसे में यह तय किया गया कि भूजल दोहन के लिये जो कानून बने उससे राज्य की जनता प्रभावित न हो और जो भी लोग भूजल को ज्यादा-से-ज्यादा दोहन कर धन कमाते हैं उन्हीं को लाइसेंस के दायरे में लिया जाये। इस सहमति के तहत अब सिंचाई विभाग द्वारा बनाए गए ‘वाटर मैनेजमेंट एंड रेगुलेटरी कमीशन बिल’ में जो प्रावधान जोड़े जाएँ उनका भी अध्ययन कर कानून बनाने की राय दी गई थी।
जब उत्तर प्रदेश सरकार ने विधानसभा में ‘उत्तर प्रदेश जल प्रबन्धन व नियामक आयोग विधेयक, 2008’ पेश किया था, तो इसे लगातार गिरते हुए भूजल स्तर की रोकथाम के लिये राज्य सरकार गम्भीर पहल माना जा रहा है। अब एक ऐसा व्यापक कानून अमल में आ जाएगा जिसमें अनियंत्रित एवं अंधाधुंध जलदोहन करने वालों के लिये एक साल की कैद या एक लाख रुपए का अर्थदंड अथवा दोनों का प्रावधान होगा।
अपराध के पश्चात यदि कोई पुनः उसी कार्य में लिप्त पाया जाएगा तो उस पर प्रतिदिन पाँच हजार रुपए के हिसाब से अर्थदंड लगेगा। यदि किसी संस्था पर यह अपराध सिद्ध होता है तो उसमें लिप्त सभी कर्मी भी दंड के भागीदार होंगे। यह प्रावधान उद्योगों के साथ कृषि कार्य अथवा व्यक्तिगत उपयोग की दशा में भी लागू होगा। यदि कोई व्यक्ति साबित करता है कि उसकी गैर-जानकारी में यह कार्य हुआ है तो उसे अर्थदंड से मुक्त रखा जाएगा। आयोग को अधिकार होगा कि जाँच के बाद वह न्यायालय में आरोपी के खिलाफ स्वयं वाद दायर करे।
इस कानून से भूजल का अंधाधुंध दोहन करने वाली शीतल पेय व मिनरल वॉटर कम्पनियों पर भी लगाम लग सकेगी। ये कम्पनियाँ बगैर किसी भूजल टैक्स के भूजल दोहन कर रही हैं तथा प्रतिवर्ष करोड़ों रुपयों का कारोबार कर रही हैं। ये कम्पनियाँ जितना भूजल जमीन के गर्भ से खींचती हैं उसकी भरपाई के लिये कुछ भी कार्य नहीं करती हैं। जिससे इनके स्थापित क्षेत्र का भूजल स्तर बहुत तेज गति से नीचे खिसक रहा है। भूजल के नीचे जाने से वहाँ की आबादी के सामने पेयजल एवं कृषि कार्य के लिये पानी की किल्लत पैदा हो रही है। ऐसे में इस कानून के माध्यम से ये कम्पनियाँ अपनी मनमर्जी नहीं कर सकेंगी।
गन्ना मिल, पेपर मिल, आसवनी व केमिकल्स उद्योगों द्वारा पहले तो जमीन के नीचे से स्वच्छ व निर्मल जल खींचा जाता है तथा बाद में उसको प्रदूषित कर नाले या नदियों में बहा दिया जाता हैै। इन उद्योगों के ऐसा करने से भूजल स्तर तो नीचे खिसकता ही है साथ ही नदियों में बहता स्वच्छ जल भी प्रदूषित होता है। यह क्रम यहीं नहीं रुकता है, क्योंकि नदियों व नालों में बहता हुआ प्रदूषित पानी धीरे-धीरे जमीन के नीचे रिसता रहता है और भूजल में जाकर मिल जाता है। इस कारण भूजल प्रदूषित होता है।
यही कारण है कि कभी नदियों के किनारे बसने वाली सभ्यताएँ आज अपने चरम पर पहुँचकर भूजल प्रदूषण के कारण मिटने के कगार पर हैं। नदियों किनारे बसे गाँवों में भूजल प्रदूषण के कारण कैंसर जैसे रोग पनप रहे हैं। गाहे-बगाहे ये खबरें भी मिलती रहती हैं कि इन उद्योगों द्वारा प्रदूषित जल को बोरवेल के माध्यम से भूजल में छोड़ दिया जाता है। पिछले दिनों मेरठ में चर्चित तिहरे हत्याकांड के आरोपी के कमेलों में छापा मारने के दौरान ऐसा सरेआम देखने को मिला। उद्योगों द्वारा जल प्रदूषण को रोकने में भी यह कानून मददगार साबित होगा।
आज जिस प्रकार से प्रत्येक शहर व कस्बे में पानी की आपूर्ति (पेयजल व अन्य कार्यों) हेतु कैम्पर उद्योग सामने आया है। वर्तमान में कैम्पर कम्पनियों की बाढ़ सी आई हुई है। ये कम्पनियाँ बगैर टैक्स दिये भूजल खींचते हैं तथा उसको ठंडा कर आगे सप्लाई कर देते हैं। इससे ये कम्पनियाँ बड़ा आर्थिक लाभ कमाती हैं। इस पानी की आपूर्ति के दौरान इसकी गुणवत्ता का भी ध्यान नहीं रखा जाता है। आशा है कि इन कम्पनियों पर भी अंकुश लगाने में यह कानून अवश्य सफल होगा। किसानों द्वारा कृषि की सिंचाई में इस्तेमाल किये जाने वाले बेतहाशा जल पर भी कुछ हद तक रोक लगेगी तथा किसान भी अधिक पानी न चाहने वाली फसलों का चयन अपने खेतों के लिये करेंगे।
इस कानून की सफलता इसको पालन कराने व करने के दौरान बरती जाने वाली सौ फीसदी ईमानदारी पर निर्भर करेगी। कहीं ऐसा न हो कि यह भी अन्य कानूनों की तरह एक कानून मात्र ही न बन कर रह जाये। इसकी सफलता आमजन, उद्योगपतियों व सरकार तीनों पर निर्भर होगी। जिस प्रकार से उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछले दिनों गोमती नदी को प्रदूषण मुक्त करने व अब भूजल कानून बनाने के लिये प्रयास किया गया है उससे पर्यावरण के प्रति सरकार की गम्भीरता साफ झलकती है। यह समाज के प्रत्येक वर्ग के लिये शुभ संकेत भी है।