6.1 प्रस्तावना
- राजस्थान में बरसात और बारहमासी नदियों की कमी को देखते हुए, जलग्रहण विकास पानी की समस्या को हल करने का एक अच्छा साधन माना गया। जलग्रहण विकास का एक प्रमुख नारा ‘खेत का पानी खेत में’ गाँव का पानी गाँव में इस कार्यक्रम का मूल सिद्धांत है।
- जलग्रहण विकास में हालाँकि पानी मुख्य बिंदु है, परन्तु यहाँ से एक पूरी विकास की प्रक्रिया शुरू होती है। इसमें पशु-पालन और कृषि भी शामिल है। एक तरीके से देखें तो जलग्रहण विकास के अंतर्गत पूरे गाँव का एकीकृत विकास हो सकता है। आप किसी नदी नाले पर खड़े हो तो वह पूरा क्षेत्र जिसका पानी बहकर वहाँ से निकलता हो, वह क्षेत्र जलग्रहण क्षेत्र कहलाएगा। जलग्रहण में पहाड़, खेत, चारागाह, रास्ते, छोटे-छोटे नाले आदि सभी आते हैं। अतः जलग्रहण विकास कार्यक्रम पूरे क्षेत्र के विकास का कार्यक्रम है। जो कोई गतिविधि जलग्रहण क्षेत्र के जल, जंगल, जमीन, जानवर और जनमानस के विकास के लिये हो, वह जलग्रहण विकास कार्यक्रम का हिस्सा हो सकती है।
- सामान्यतः भौगोलिक स्थिति के अनुसार जलग्रहण गतिविधियाँ स्पष्ट हो जाती है लेकिन मरुस्थल में यह सम्भव नहीं है। मरुस्थलीय क्षेत्रों में जलग्रहण कार्यक्रम का स्वरूप बदल जाता है। यहाँ पर अक्सर ऐसी गतिविधियाँ ली जाती है जिसमें सूखे का प्रभाव कम किया जा सके।
6.2 जलग्रहण विकास में जनभागीदारी की आवश्यकता
जैसा कि स्पष्ट है जलग्रहण विकास कार्यक्रम स्थानीय जनता के लिये, स्थानीय जनता द्वारा क्रियान्वित एवं प्रबंधित किये जाने वाला कार्यक्रम है, जिसे क्षेत्र के आवश्यकता आधारित समन्वित/सतत विकास का सपना पूर्ण किया जा सकता है। जब तक जलग्रहण क्षेत्र के प्रत्येक परिवार के प्रत्येक सदस्य को क्षेत्र की पारिस्थितिकीय स्थिति, पर्यावरण का ज्ञान, प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति एवं मांग इत्यादि की जानकारी नहीं होगी एवं कार्यक्रम के प्रारम्भिक चरण से लेकर अंतिम चरण एवं परियोजना समाप्ति उपरान्त रख-रखाव हेतु प्रबंधकीय व्यवस्थाओं में स्थानीय परिवारों की सक्रिय भागीदारी नहीं होगी, जब तक जलग्रहण विकास के उद्देश्यों की प्राप्ति किया जाना असम्भव है। लाभार्थियों की जनभागीदारी सुनिश्चित करने के उद्देश्य से लाभार्थी अंशदान की व्यवस्था की गई है, जिससे कि प्रत्येक गतिविधि में उनका जुड़ाव हासिल हो एवं अपनापन विकसित हो।
6.3 समूहगत विकास क्यों?
समय के बदलते स्वरूप के साथ साथ-साथ विकासोन्मुख योजनाओं के मापदंड भी बदलते चले गये हैं। पहले ग्रामों अथवा परिवारों को इकाई मानकर विकास कार्य कराए जाते थे। इसके अतिरिक्त व्यक्तिगत कृषक को ध्येय में रखते हुए अनुदान की अनेकों योजनाएँ क्रियान्वित की जा रही थी। कालांतर में यह महसूस किया जाने लगा कि ग्रामीण क्षेत्रों में सामाजिक आर्थिक विकास सुनिश्चित करने के उद्देश्य से सर्वश्रेष्ठ रणनीति यह है कि समान सामाजिक परिवेश एवं आर्थिक पृष्ठभूमि के परिवारों को समूह के रूप में विकास की मुख्य धारा में लाने के उद्देश्य से जोड़ा जाए। समूह की आवाज अधिक दूर तक जाती है एवं परस्पर ज्ञान के आदान प्रदान से निरंतर दक्षता में वृद्धि होती रहती है। आज अनेकानेक राजकीय योजनाओं अथवा अनुदान के कार्यक्रमों में समूह को दृष्टिगत रखा जाता है एवं यह अपेक्षा की जाती है कि समूह आपसी बचत कर लेनदेन करे एवं मितव्ययी गतिविधियाँ अपनाएँ। विकसित समूहों को रोजगारोन्मुखी लघु उद्योग इकाइयों हेतु प्रेरित किया जा सकता है जिससे कि उनकी आय में एक समान रूप से वृद्धि हो। अतः समूहगत विकास आज के युग की महत्ती आवश्यकता है।
6.4 जलग्रहण विकास कार्यक्रम के बारे में कुछ धारणाएँ
1. क्या जलग्रहण केवल पानी रोकने और भूमि सुधार का ही कार्यक्रम है?
यह सच है कि जलग्रहण में अधिक पानी रोकने और भूमि सुधार का ही है परन्तु इसमें कई अन्य गतिविधियाँ भी सम्मिलित हैं जैसे-
- पशु-पालन की गतिविधियाँ
- कृषि क्षेत्र में सुधार
- चारागाह विकास
- महिला समूह बनाना और प्रत्येक समूह के लिये 25000 रूपये का चक्रीय कोष (रिवाल्विंग फण्ड) का प्रावधान
- भूमिहीन और गरीब लोगों को प्राथमिकता से मजदूरी देना
2. परियोजना की गतिविधि कौन तय करता है?
परियोजना की गतिविधियाँ गाँव के लोग, जलग्रहण संस्थान और समिति के साथ मिलकर करते हैं। इस काम में जलग्रहण विकास दल उनकी मदद करता है।
3. गतिविधियों का चुनाव कैसे किया जाता है?
ऐसी गतिविधियाँ चुननी चाहिए जिनसे ज्यादा से ज्यादा लोगों की समस्याओं का हल हो सके। यह भी ध्यान रखना चाहिए कि चुनी गई तकनीक सस्ती, सरल, स्थानीय और टिकाऊ हो। उदाहरण के लिये अगर किसी पुराने एनिकट की मरम्मत से सिंचाई का क्षेत्र बढ़ता है और गाँव के बहुत सारे किसानों को फायदा होता है तो उसे चुनने में समझदारी है। ऐसे कार्यों की मनाही नहीं है। ऐसे कार्यक्रम भी चुनने चाहिए जिनसे भूमिहीन लोगों को रोजगार मिले।
4. प्रवेश बिंदु गति-विधि
प्रवेश बिंदु गतिविधि, परियोजना के पहले 8 महीनों में करवाई जाने वाली वह गतिविधि है जिसमें जलग्रहण समुदाय जलग्रहण कार्यक्रम तथा उसकी क्रियान्वयन संस्था की पहचान एवं साख हो सके।
5. क्या सभी कार्य जलग्रहण समिति द्वारा करवाए जाते हैं?
सभी भौतिक निर्माण कार्यों के लिये जैसे जलस्रोत, वृक्षारोपण, चारागाह विकास, सामूहिक मेड़बन्दी आदि के लिये अलग-अलग उपभोक्ता समूह बनाए जा सकते हैं।
ये कार्य किसी व्यक्ति को मेट की तरह चुनकर नहीं करवाने चाहिए। यह दिशा निर्देशों के विपरीत तो है ही साथ ही ऐसा करने से तैयार ढाँचे/संसाधन की व्यवस्था की जिम्मेदारी भी तय नहीं हो पाती। इसके चलते, उपयोग भी ढंग से नहीं हो पाता। अक्सर यह भी देखा गया है कि ऐसे कार्यों का फायदा अमीर लोगों को मिलता है और गरीब वंचित रह जाता है।
6. क्या महिलाएँ केवल स्वयं उपभोक्ता बचत समूह बना सकती है?
हरगिज नहीं - महिलाएँ चाहे तो अपना अलग उपभोक्ता समूह बना कर अपनी जरूरत के हिसाब से काम ले सकती है, चाहे वह खेतों की मेड़बन्दी हो या चारागाह विकास या तलाई या बांध बनाना।
7. योगदान क्यों लिया जाता है?
यह स्पष्ट हो चुका है कि सामुदायिक या निजी संपत्तियों का रख-रखाव वहाँ बेहतर होता है जहाँ लोगों ने अपना पैसा लगाया हो अथवा मेहनत की हो। यही कारण है कि लोगों से योगदान लिया जाता है। योगदान का मतलब हरगिज यह नहीं है कि मजदूरों का पैसा काटा जाए, योगदान उनसे लिया जाता है जिनको उस गतिविधि से लाभ हो 1 जैसे चारागाह विकास में सभी से योगदान लिया जाना चाहिए पर छोटे एनीकट में उन्हीं से जिनको एनीकट से लाभ हो।
यहाँ यह जान लेना जरूरी है कि संस्था/कमेटी का चयन जन प्रतिनिधि के रूप में किया जा रहा है। इसलिये यह कोशिश रहती है कि सभी वर्गों का प्रतिनिधित्व हो। यह संस्था परियोजना को प्रजातांत्रिक रूप से चलाने के लिये बनाई गई है। जैसा कि प्रजातंत्र में होता है सबसे ताकतवर जनता होती है- यहाँ भी अगर संस्था/कमेटी ने कोई निर्णय लोगों के भले में नहीं लिया है तो जनता उस पर सवाल कर सकती है और जरूरत या संभव हो तो निर्णय को निरस्त भी कर सकती है। एक अच्छी परियोजना को चलाने के लिये जनता और जन प्रतिनिधियों को काम में रुचि लेनी होगी।
6.5 गरीबों के लिये समूहगत विकास एवं आत्मनिर्भरता
ग्रामीण क्षेत्र में गरीबी के मूल कारण
- व्यक्तिगत आधारित (अशिक्षा, अंधविश्वास, विश्वास की कमी, भागीदारी न होना)
- क्षेत्र आधारित (घनी आबादी, खेती पर निर्भरता, आय के अवसर न होना)
- संसाधन आधारित (प्राकृतिक एवं भौतिक संसाधनों की कमी, विकास का अभाव) गरीब की जरूरत
- उपभोग, आकस्मिक जरूरत तथा उत्पादक कार्यों हेतु
- कम ऋण की बार-बार मांग व किसी भी ब्याज दर पर ऋण लेने को तैयार
- सम्पत्ति गहने आदि गिरवी रखकर ऊँची ब्याज दर पर ऋण प्राप्ति गैर संस्थागत ऋण संसाधन
- साहूकार, दुकानदार, रिश्तेदार अन्य साधन गरीब की बैंक के प्रति सोच
- छोटे-छोटे ऋण का प्रावधान नहीं व उपभोग के लिये ऋण उपलब्ध नहीं
- बैंक में जरूरत अनुरूप ऋण नहीं मिल सकता व अधिक कागजी कार्यवाही
- बैंक में बार-बार चक्कर लगाना व ऋण मिलने में देरी
- बिना गारंटी या प्रतिभूति के ऋण नहीं मिल सकता बैंक की सोच
- गरीब बचत नहीं कर पाता व गरीब से ऋण वसूली मुश्किल
- गरीब गारंटी या प्रतिभूति नहीं दे सकता
- उत्पादन के लिये दिए ऋण का उपभोग कार्य में लगाना
- गरीब में ऋण वापसी की न क्षमता है और न इच्छा शक्ति
- ऋण का एनपीए होने की अधिक सम्भावना
निष्कर्ष
1. गरीब की जरूरत छोटी राशि की और बार-बार होती है।
2. गरीब को उपभोग तथा उत्पादन दोनों ऋणों की आवश्यकता
3. बैंक ऋण प्रसार/नेटवर्क प्रसार के बावजूद गरीब अपनी छोटी-छोटी जरूरतों के लिये अन्य गैर संस्थागत संसाधनों से ऊँचे ब्याज दर पर ऋण लेता है।
4. गरीबों के लिये लागू की गई अनेक योजनाओं के बावजूद उसकी स्थिति में सुधार संभव नहीं हो पाया
5. गरीब सिर्फ छोटी बचत (किफायत) कर सकता है
6. पूर्व अनुभवों के आधार पर बैंच और गरीब के बीच विश्वास की कमी
7. समूह के माध्यम से बचत एवं ऋण प्रक्रिया अपनाकर गरीब अपनी जरूरत पूरी कर सकता है।
8. गरीब को बैंक ऋण स्वयं सहायता समूह के माध्यम से उपलब्ध हो सकता है।
6.5.1 स्वयं सहायता समूह क्या है?
स्वयं सहायता समूह 10 से 20 ग्रामीण गरीबों का समूह है जिनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी है जो अपनी इच्छा व सहमति से तय की गई छोटी राशियों की बचत के लिये स्वैच्छिक रूप से बनाया जाता है तथा इससे समूह की सामान्य निधि निर्मित होती है। जिसमें से सदस्यों को उनकी उत्पादन व आकस्मिक ऋण जरूरतों की पूर्ति के लिये ऋण दिया जाता है। हर सप्ताह या 15 दिन या हर माह समूह की नियमित बैठक होती है जिसमें बचत की राशि सदस्यों द्वारा जमा की जाती है तथा ऋण का लेन-देन किया जाता है। समूह में 20 से अधिक सदस्य नहीं होने चाहिए। समूह स्त्रियों के या पुरूष के या मिश्रित भी हो सकते हैं। समूह के पंजीकरण की आवश्यकता नहीं।
समूह प्लेटफॉर्म का गैर सरकारी संगठनों द्वारा प्रयोग
- शिक्षा, सामाजिक चेतना, स्वास्थ्य, साक्षरता, पोषाहार, पर्यावरण, आयजनक गतिविधियों के क्षेत्र में
6.5.2 समूह अवधारणा
- बचत ही विकास का पहला कदम है तथा सामूहिक बचत राशि से गरीबों की आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति
- समान सामाजिक आर्थिक स्तर एवं पृष्ठभूमि
- ऐच्छिक जुड़ाव एवं प्रजातांत्रिक कार्य पद्धति
- अपने बनाए हुए नियम एवं पालन तथा सभी को समान अवसर
- नियमित बैठक करना तथा आंतरिक ऋण की आदत विकसित करना
- न्यूनतम मानक रिकॉर्ड एवं लेखा बही का रख-रखाव
- धर्म, जाति एवं राजनीति से परे
- खुली चर्चा एवं निर्णयों में पारदर्शिता
- शत प्रतिशत चुकौती करना तथा बैंक ऋण का उपयोग सीखना
- जीवन स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि
- माइक्रो क्रेडिट से माईक्रो एन्टरप्राइजेज बनने में अग्रसर
- स्वयं विकास/समूह विकास/परिवार विकास/ग्राम विकास/समाज विकास के क्रमिक सिद्धांत पर चलना
6.5.3 स्वयं सहायता समूह बैंक लिंकेज कार्यक्रम परिचय
- 1992 में देश में पायलेट प्रोजेक्ट के रूप में शुरुआत
- अप्रैल 1996 से भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा इसे बैंकों की सामान्य ऋण वितरण योजना तथा प्राथमिक क्षेत्रों के ऋणों में रखने के निर्देश
- गतिविधि जिला ऋण योजना के अंतर्गत शामिल तथा स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम को रिजर्व बैंक 7 नाबार्ड भारत सरकार 7 राज्य सरकार द्वारा मान्यता
6.5.4 गरीब एवं बैंको के बीच अभिनव प्रयोग - स्वयं सहायता समूह
- स्वयं सहायता समूह कार्यक्रम में उल्लेखनीय सफलता व विस्तार
- गरीब समूह के माध्यम से अपनी ऋण आवश्यकताओं की पूर्ति करते हैं
- सामाजिक आर्थिक विकास एवं सशक्तिकरण
- समूह के कार्य (बचत, ऋण) में कई गुना वृद्धि
- समूह के आय स्तर में वृद्धि, पहले उपभोग व फिर उत्पादन की ओर अग्रसर
- परिवार एवं गाँव में समरसता का माहौल
- बैंकों की परिचालन लागत (प्रति ग्राहक खर्च) में कमी
- बैंकों की ऋण की वसूली करीब-करीब शत प्रतिशत जिससे एनपीए में कमी
- अनेक पुराने एवं संदिग्ध ऋणों की वसूली समूह के सहयोग से
- गरीबों के समूहों के प्रति बैंकों की सोच में आश्चर्यजनक परिवर्तन
- महिलाओं की भागीदारी से उनका सशक्तिकरण
- करीब 65 प्रतिशत समूह महिलाओं के, लेकिन लाभ पूरे परिवार को
- शिक्षा स्वास्थ्य, सामाजिक चेतना, पोषाहार, पर्यावरण, सरकारी कार्यक्रमों, राष्ट्र विकास कार्यक्रमों में अभूतपूर्व सहयोग
- स्थानीय प्रशासन, पंचायती कार्यों, विकास कार्यों में सहभागिता एवं सहयोग
6.5.5 स्वयं सहायता समूह की आंतरिक/ऋण प्रक्रिया में गैर संस्थागत, संस्थागत व प्रणालियों की उत्तम विशेषताओं का समावेश
- उपभोग, आकस्मिक जरूरत तथा उत्पादन कार्य हेतु
- कम राशि का ऋण व बार-बार ऋण प्राप्ति
- स्वयं सदस्यों द्वारा निर्धारित ब्याज दर व वापसी की किस्तें
- बिना किसी जमानत व गारंटी के ऋण
- गाँव से बाहर जाने की आवश्यकता नहीं
- ऋण मिलने में देरी नहीं तथा किसी भी समय ऋण उपलब्ध
- समय और जरूरत के अनुरूप ऋण उपलब्ध
- बैंक अथवा साहूकार के चक्कर लगाने की आवश्यकता नहीं
- कागजी कार्रवाई नहीं। सरल प्रक्रिया पारदर्शिता व सही रिकॉर्ड इसके साथ-साथ ऋण से प्राप्त ब्याज का लाभ सभी सदस्यों को समान रूप से मिलता है।
- अतः स्वयं सहायता समूह गरीब लोगों का अपना छोटा बैंक है जिसका संचालन वे मिल-जुलकर करते हैं।
6.5.6 समूह अवधारणा के लाभ
- सदस्य को नियमित बचत की आदत का विकास। बचत ही विकास का पहला कदम है।
- उपभोग तथा उत्पादन दोनों कार्यों हेतु आवश्यक पूँजी की भूमि
- समय पर धन उपलब्धता। बिना प्रतिभूति ऋण उपलब्धता
- अपने निर्णय अपने आप लेने की क्षमता का विकास
- आय एवं रोजगार के अवसर। संस्थाओं व बैंक से जुड़ाव
- शोषण से बचाव व साहूकारों पर निर्भरता समाप्त
- सर्वांगीण विकास में सहायक
- बैंकिंग सुविधाओं से परिचय
- आर्थिक स्तर में सुधार तथा स्वावलम्बी बनना
- नेतृत्व विकास, महिला उत्थान व सशक्तिकरण
- विशेषज्ञों/सरकारी विभागों/गैर सरकारी संगठनों से प्रशिक्षण व जानकारी प्राप्त करना
- उद्यमिता विकास व सहयोग की भावना परिवार को
- परिवार की आर्थिक व सामाजिक सुरक्षा
- परिवार के सदस्य खास तौर से महिला के सम्मान में वृद्धि
- परिवार के सदस्यों की आवश्यकताओं की प्रति-पूर्ति
- बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य तथा बेहतर जीवन स्तर गाँव को
- सामुदायिक ढाँचागत कार्य व ग्राम विकास में सहभागिता
- समरसता का माहौल, ग्राम आत्मनिर्भरता की ओर अग्रसर
- गाँव में महिलाओं, अनुसूचित जाति, जनजाति तथा पिछड़े वर्ग का प्रतिनिधित्व
- सामाजिक व आधारभूत क्षेत्र (शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, स्वच्छता, महिला एवं बाल विकास) की जानकारी एवं उपलब्धता समाज को
- समूह में संगठित होकर एक अच्छे समाज का निर्माण जिससे निर्धनों को क्षमता, पूँजी व आवश्यक जानकारी प्राप्ति
- सामाजिक शोषण से मुक्ति व सामाजिक सुरक्षा का विकास
- सामाजिक कुरीतियों में कमी तथा महिलाओं की विकास में भागीदारी
- पिछले 13 वर्षों का अनुभव बताता है कि ‘स्वयं सहायता समूह’ कार्यक्रम गरीबों के सामाजिक आर्थिक उत्थान, आय बढ़ाने तथा जीवन स्तर को सुधारने का सशक्त माध्यम है।
गरीबों की आशा व विश्वास का प्रतीत : स्वयं सहायता समूह
गरीबों का अपना बनाया हुआ छोटा बैंक : स्वयं सहायता समूह
गरीबों के सर्वांगीण विकास का मार्ग : स्वयं सहायता समूह
6.5.7 स्वयं सहायता समूह कैसे बनाएँ?
जब हम किसी एक इलाके में रहने वाले गरीब परिवारों से बातें करते हैं तो पाते हैं कि इन लोगों में आपस में कुछ समानता है जो उन्हें एक दूसरे से जोड़े रखती है, इसी आपसी समानता और जुड़े रहने के कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि ?
- सभी लोग गरीबी की एक जैसी समस्या का सामना कर रहे हैं
- सब के हालात एक ही प्रकार के होते हैं
- सब को एक ही तरह की रोजी-रोटी मिलती है
- इलाके के सभी परिवार किसी एक ही जाति या जनजाति के हो सकते हैं
- उनका मूल स्थान भी एक हो सकता है
- इन सब बातों का पता होने पर आप यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि इसमें से कौन से ऐसे परिवार हैं जो एक समूह के रूप में अच्छे से संगठित हो सकते हैं।
6.5.8 हम स्वयं सहायता समूह बनाने के लिये किस प्रकार के परिवारों से मिलें?
1. क्या परिवार में केवल एक ही कमाऊ सदस्य है?
2. क्या आस-पास पीने लायक साफ पानी भी नहीं है और परिवार को लम्बी दूरी से पीने का पानी लाना पड़ता है?
3. क्या शौचालयों के अभाव के कारण परिवार की महिलाओं को बड़ी असुविधा हो रही है और उन्हें बहुत दूर जाना पड़ता है?
4. क्या परिवार में वयस्क अशिक्षित सदस्य है?
5. क्या परिवार में कोई लम्बी बीमारी से पीड़ित सदस्य है?
6. क्या परिवार में ऐसे बच्चे हैं जो स्कूल नहीं जाते हैं?
7. क्या परिवार में कोई ऐसा सदस्य है जो शराब पीने या नशे का आदी है?
8. क्या परिवार कच्चे घर में रहता है?
9. क्या परिवार के लोग बार-बार साहूकार से कर्ज लेते हैं?
10. क्या आमतौर पर उन्हें रोज दो वक्त का खाना भी नहीं मिल पाता है?
11. क्या परिवार के सदस्य अनुसूचित जाति या जनजाति के हैं?
6.5.9 स्वयं सहायता समूह बनाने के लिये बैठकों का आयोजन कैसे किया जाता है?
स्वयं सहायता समूह संगठित करने से पहले गाँव के मुखिया और अनुभवी बुजुर्गों की एक सभा बुलाएँ, इस सभा में स्वयं सहायता समूहों के बारे में उन्हें समझाएँ और उनका समर्थन प्राप्त करें, गाँव वालों का यह समर्थन महत्त्वपूर्ण है।
- इसे कहते हैं सामुदायिक सहभागिता
- इससे आपके कार्य को गाँव वालों की सहमति मिलेगी और गाँव वाले उसे अपनाएँगे, आपका विरोध नहीं करेंगे।
यही समय है उन्हें यह बताने का समूह की बैठकें उन्हें कुछ देने के लिये नहीं बल्कि गरीब परिवारों को एक साथ मिलकर एक दूसरे की सहायता करने के लिये आयोजित की जाती हैं। बेहतर होगा कि यदि आप इसी बैठक में उन सबको स्वयं सहायता समूहों की मूल संकल्पना के बारे में अवगत करा दें।
6.5.10 स्वयं सहायता समूह कैसे बनते हैं?
गाँव के मुखिया तथा अनुभवी बुजुर्गों से भेंट-वार्ता होने के बाद जब आप स्वयं सहायता समूह के सदस्यों की बैठक बुलाने के लिये तैयार हैं, कौन से परिवार समान से हैं और एकजुट हो सकते हैं, आप पहले ही जान चुके हैं। ऐसे प्रत्येक परिवार से एक-एक सदस्य को बैठक में बुलाएँ। अच्छा होगा यदि इन परिवारों से सिर्फ महिला सदस्यों को ही बुलाएँ। सबकी सुविधानुसार किसी एक दिन यह प्रारम्भिक बैठक बुलायी जा सकती है।
इस बैठक के दौरान आपसे बहुत सारे प्रश्न पूछे जाएँगे। आपको उत्तरों से उनकी सारी शंकाओं का समाधान होगा और धीरे-धीरे स्वयं सहायता समूह की संकल्पना से परिचित होंगे।
आप सदस्यों को पर्याप्त समय जरूर दें ताकि वह स्वयं सहायता समूह बनाने की प्रक्रिया से सम्बन्धित सारे पहलुओं को अच्छी तरह से समझ जाएँ। जल्दबाजी कतई न करें।
- स्वयं सहायता समूहों को गठित करने की इस प्रक्रिया को आम तौर पर 5 से 6 महीने का समय लगता है
- इस बीच उन्हें नियमित रूप से मिटिंग में मिल बैठकर अपनी शंकाएँ दूर करते रहना होगा
- एक बार स्वयं सहायता समूह तैयार होने के बाद उसे सुचारु रूप से चलने में 12 से 18 महीने का समय लग सकता है।
6.5.11 स्वयं सहायता समूह की सदस्यता
शुरू-शुरू में स्वयं सहायता समूह की मीटिंगों में ऐसा भी हो सकता है-
- कुछ सदस्य समूह छोड़ जाते हैं।
- कुछ नये सदस्य आते हैं।
- धीरे-धीरे सदस्य खुद ही यह तय करने लगते हैं कि मीटिंग में किन बातों पर चर्चा की जाए
- वे मीटिंग करना सीख जाते हैं।
- रजिस्टरों का रख-रखाव एवं दस्तावेजों का महत्त्व भी अब उनकी समझ में आने लगता है।
- वे एक साथ मिलकर एक-दूसरे की सहायता करना चाहते हैं।
- आमतौर पर एक उभरता हुआ स्वयं सहायता समूह इन अवस्थाओं में से गुजरता है जिसे देखकर आपको भी विश्वास होने लगता है कि आप सही दिशा में आगे बढ़ रहे हैं
समूह के किसी एक सदस्य को नेतृत्व की बागडोर संभालनी होगी।
इस व्यक्ति का चयन कैसे किया जाए?
सही-सही तरीका यह है कि आप नीचे दिये कुछ सवालों पर समूह में चर्चा करें।
प्रश्न- समूह के सम्बन्ध में सारे निर्णय किसे करने चाहिए?
उत्तर- समूह के सभी सदस्य एक साथ मिलकर सारे निर्णय करेंगे, कोई एक या दो सदस्य नहीं।
प्रश्न- स्वयं सहायता समूह में किसे लाभ मिलता है?
उत्तर- सभी सदस्यों को लाभ मिलता है।
प्रश्न- समूह का काम किसे करना चाहिए?
उत्तर- काम सभी सदस्यों में बांट लेना चाहिए।
प्रश्न- काम/जिम्मेदारी कैसे बाँटेंगे?
उत्तर- सभी सदस्यों की सहमति से किसी एक सदस्य को नेतृत्व की जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। कुछ महीने बाद यह जिम्मेदारी किसी दूसरे सदस्य को दी जाएगी। यह सभी निर्णय सर्वसम्मति से होंगे।
ऐसी चर्चा से समूह की जिम्मेदारियाँ एक-एक कर सभी को देने का महत्त्व समझ जाएँगे। नीचे दी गई कुछ महत्त्वपूर्ण गतिविधियों की जिम्मेदारी भी अब सर्वसम्मति से किन्हीं दो सदस्यों को आसानी से सौंपी जा सकती हैं।
लेखा-जोखा, किताबों का रख-रखाव
नियमित बैठकों का आयोजन और मीटिंग का रिकॉर्ड
6.6.12 समूह की नियमावली
समूह को अपने परिचालन के लिये एक नियमावली बनाना आवश्यक है। समूह के गठन के तुरंत पश्चात नियमावली बना लेनी चाहिए। निम्नलिखित बिंदु केवल उदाहरणार्थ हैं तथा इस बारे में अंतिम निर्णय समूह द्वारा ही लिया जाना है।
(क) समूह की संरचना
- समूह का नाम
- समूह के सदस्यों की संख्या। सदस्यता शुल्क।
- समूह के कौन-कौन सदस्य समूह सकते है?
- 18 वर्ष से कम आयु का सदस्य नहीं होना चाहिए।
- डिफॉल्टर को बैंक ऋण में से ऋण नहीं देना चाहिए।
- सदस्यता प्राप्त करने तथा सदस्य समाप्त करने के नियम।
(ख) बैठक
- समूह की नियमित बैठकें-साप्ताहिक/पाक्षिक/मासिक
- आकस्मिक बैठक किन स्थितियों में बुलाई जाए?
- बैठक का कोरम
- बैठक का दिन, समय व स्थान
- समूह की बैठकों में सभी सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होनी चाहिए
- बैठक में अनुपस्थित सदस्यों को दण्ड राशि
(ग) बचत
- बचत की राशि व उसकी समयबद्धता
- समूह की नकद बचत राशि का संदूक किसके पास रहेगा व संदूक की चाबी किसके पास रहेगी?
- बचत समय पर जमा न करने पर दंड की राशि
(घ) ऋण का लेन-देन
- ऋण राशि कितनी व किस उद्देश्य के लिये दी जाए? सदस्य को उसकी आवश्यकता की प्राथमिकता के अनुसार तथा ऋण वापसी की क्षमता के आधार पर ऋण वापसी दे
- वापसी का समय व वापसी किश्तों की संख्या तथा राशि
- किश्त न आने पर जुर्माना
(ङ) पदाधिकारी व बैंक में खाता
- प्रबन्धकीय समिति (अध्यक्ष, सचिव, कोषाध्यक्ष) का चयन आम सहमति द्वारा तथा उनका कार्यकाल
- पदाधिकारी डिफॉल्ट नहीं होना चाहिए
- पदाधिकारी बदलाव की प्रक्रिया
- बैंक के खाते के संचालन के लिये दो पदाधिकारियों (अध्यक्ष/सचिव/कोषाध्यक्ष) को अधिकार देना
- बैंक खाता समूह के नाम से खुलना चाहिए न कि सदस्यों के व्यक्तिगत नाम से
- बचत खाते के संचालन में स्वैच्छिक संगठन के प्रतिनिधि का नाम सम्मिलित नहीं होना चाहिए
(च) समूह पदाधिकारियों के दायित्व
- समूह को आगे बढ़ाने के लिये सभी सदस्यों की बराबर जिम्मेदारी होती है, लेकिन फिर भी सर्वसम्मति से चुने गये पदाधिकारियों को निम्नलिखित बिंदुओं के प्रति गंभीर रहना चाहिए। इन बिंदुओं पर अंतिम निर्णय समूह द्वारा ही लिया जाना चाहिए।
अध्यक्ष के कर्तव्य
- बैठकों की अध्यक्षता करना
- समूह को प्रभावी निर्णय लेने में मदद करना
- सदस्यों को कर्ज देने में पारदर्शिता का माहौल बनाना
सचिव के कर्तव्य
- बैठक आयोजित करना
- बैठक की कार्यवाही लिखना
- बैंक से सम्बन्धित कार्य व बचत एवं ऋण सम्बन्धित रिकॉर्ड रखने में कोषाध्यक्ष की मदद करना
कोषाध्यक्ष के कर्तव्य
- पैसे की सुरक्षा करना
- बचत, ऋण सम्बन्धित लेन-देन का हिसाब-किताब देखना
- सदस्यों की पासबुक में प्राप्ति राशि की रसीद लिखना
(छ) रिकॉर्ड लिखना व देखरेख
- रजिस्टर का रख-रखाव व उसके लिखने की प्रक्रिया
(ज) विविध
- समूह नशाबंदी, दहेज-प्रथा और अन्य बुराइयों के
- इसी प्रकार अन्य बातें भी समूह द्वारा निर्धारित की जा सकती है-
गरीबों की आशा की किरण - स्वयं सहायता समूह
गरीबों के जीवन स्तर में सुधार का मार्ग स्वयं - स्वयं सहायता समूह
गरीबों में नेतृत्व विकास का मार्ग - स्वयं सहायता समूह
गरीबों में ऋण प्रबंधन का मार्ग - स्वयं सहायता समूह
6.5.13 समूह के मुख्य कार्यकलाप
1. बचत प्रबंधन (सामूहिक निधि)
बचत का महत्त्व
- बचत विकास का पहला कदम है। जैसे बूँद-बूँद पानी से घड़ा भरता है वैसे ही छोटी-छोटी बचत बड़ी राशि हो जाती है जिससे कि वह समूह के सदस्यों की आकस्मिक आवश्यकताओं के लिये ऋण दिया जाता है।
- समूह को स्थायित्व के लिये बचत आवश्यक है।
- छोटी-छोटी बचत करने से सदस्यों का आत्मबल बढ़ता है एवं साथ ही उनके परिवार की आवश्यकताएँ भी पूरी हो जाती है।
- न्यूनतम बचत का निर्धारण समूह में सबसे गरीब सदस्य की किफायत क्षमता को आधार मानकर किया जाए।
- सभी सदस्यों की बचत समान हो तथा बचत सभी के सामने मीटिंग में एकत्र की जाए।
- आकस्मिक जरूरत छोटे-मोटे खर्च हेतु कुछ राशि गुल्लक या संदूक में रखी जा सकती है।
- सदस्य समूह से ऋण लेकर अपनी आर्थिक उन्नति हेतु कोई लघु/ग्रामीण उद्योग चला सकते हैं।
- खेती के लिये खाद, बीज, कीटनाशक दवा का प्रबंध समूह से ऋण लेकर कर सकते हैं।
- साहूकार पर निर्भरता समाप्त। आत्मनिर्भर व स्वावलम्बन।
- अपनी और परिवार की खुशहाली के लिये।
2. ऋण प्रबंधन (आंतरिक ऋण का लेन-देन)
- समूह के सुदृढ़ीकरण व परिपक्वता के लिये ऋण का लेन-देन अति आवश्यक है। वास्तव में आंतरिक ऋण समूह संचालन की रीढ़ की हड्डी है। समूह के 2-3 महीने की बचत के पश्चात समूह द्वारा जरूरतमंद सदस्यों को ऋण देना आरम्भ कर देना चाहिए। सदस्य की ऋण वापसी की क्षमता देखते हुए ऋण देने का निर्णय बैठक में सर्वसम्मति से लिया जाना चाहिए। ऋण वापसी की किश्तें तथा ब्याज सदस्य को बता देना चाहिए। ऋण के मूलधन व ब्याज की वापसी मासिक तौर पर बैठक में ही करनी चाहिए।
3. ब्याज दर व प्राथमिकता निर्धारण
- आंतरिक ऋण पर ब्याज दर निर्धारण समूह की बैठक में किया जाए तथा रिकॉर्ड किया जाए। आम सहमति प्रायः ऋण पर मासिक ब्याज 2 या 3 रूपये प्रति सैकड़ा रखा जाता है। ध्यान रहे कि गाँवों में लोग मासिक ब्याज आसानी से समझते हैं, वार्षिक ब्याज नहीं। निर्णय समूह करेगा क्योंकि ब्याज आय समूह को प्राप्त होती है जिसका समान लाभ ऋण लेने अथवा न लेने वाले सदस्यों को बराबर होता है।
- ऋण माँगे समूह के सामने की जाएँ, चर्चा हो तथा आम चर्चा के बाद प्राथमिकता तय हो। ऋण किसी भी प्रयोजन के लिये जैसे कि उपभोग, आकस्मिक जरुरत, पुराना ऋण अदा करने, आयजनक गतिविधि, मार्जिन मनी की जरूरत, कार्यशील पूँजी की जरूरत
- समूह में पदाधिकारी को ऋण लेने में सामान्य सदस्य के ऊपर प्राथमिकता न हो।
- प्रति सदस्य अधिकतम ऋण राशि तय की जा सकती है।
- प्रारम्भ में कम राशि/कम अवधि का ऋण दिया जाए।
- ऋण स्वीकृत करते समय सदस्य की पूर्व आदत/पूर्व में लिये गये ऋण के विषय में जानकारी।
- डिफॉल्टर सदस्य को समूह अपने निजी फंड से ऋण दे सकता है, बैंक ऋण से नहीं।
6.5.14 बैठक कैसे करें?
- समूह के सफल संचालन के लिये नियमित बैठक निश्चित तिथि/दिन के अनुसार करें।
- बैठक का प्रारम्भ सामूहिक प्रार्थना से करें।
- पिछली बैठक की कार्यवाही पढ़ कर सुनाएँ।
- बैठक में सभी सदस्य बचत राशि को जमा करें।
- जिन सदस्यों ने उधार लिया है उनसे ऋण किश्त की वसूली (ब्याज सहित) करें।
- जिन सदस्यों को ऋण की आवश्यकता है, उन्हें सबकी सहमति से ऋण प्रदान करें।
- बैठक की कार्यवाही मीटिंगों में लिखें तथा पढ़कर सुनाएँ।
- सदस्य अपनी आकस्मिक आवश्यकताओं आय बढ़ाने के कार्यक्रमों, साक्षरता, स्वास्थ्य, स्वच्छता, कृषि सम्बन्धी व आपसी समस्याओं पर विचार करें जिससे समूह सुदृढ़, सशक्त और दीर्घायु होगा।
- ग्राम पंचायत में आई नई विकास योजनाओं तथा गाँव की समस्याओं पर विचार-विमर्श करें।
- बैठक में सभी सदस्यों को बोलने का समान अवसर व स्वतंत्रता होनी चाहिए तथा एक या दो व्यक्तियों द्वारा लिये गये निर्णय को अन्य सदस्यों पर नहीं थोपना चाहिए।
- छोटे-मोटे वाक्य युद्ध, झगड़े, विचार टकराव यदि होता है समूह विकास में सहायक हैं, खुली चर्चा, विचार के बाद आपस में बैठकर निपटारा करना चाहिए। यदि आवश्यक हो तो एन.जी.ओ. समूह प्रोत्साहक संस्था का मार्गदर्शन प्राप्त किया जा सकता है।
6.5.15 उत्प्रेरक/ NGO का रोल
- बैठक की कार्यवाही में हस्तक्षेप न करें।
- न तो बचत धनराशि और न ही ऋण धनराशि को हाथ लगाएँ।
- प्रेरक का काम प्रक्रिया देखना, तथा सलाह मार्गदर्शन करना है।
6.5.16 समूह को प्रोत्साहक संस्था, NGO और बैंक से सम्पर्क
- समूह का प्रोत्साहक संस्था, गैर सरकारी संगठन व बैंकों से निरंतर सम्पर्क आवश्यक
- गैर सरकारी संगठन द्वारा समूह पदाधिकारियों को समूह संचालन का प्रशिक्षण
- बैंक में बचत खाता खोलना
- समूह के कार्य परिपक्वता बिंदु व समस्याओं पर गैर सरकारी संगठन व प्रोत्साहक संस्था द्वारा मासिक चर्चा हो
- कार्यशील पूँजी तथा मार्जिन मनी की आवश्यकताओं की प्रतिपूर्ति हेतु परिपक्व समूह का बैंक क्रेडिट लिंकेज उचित माध्यम है।
6.5.17 समूहों के आयजनक गतिविधियों के अवसर
- गतिविधि कृषि एवं गैर कृषि क्षेत्र, सेवा क्षेत्र, छोटा व्यवसाय कुछ भी स्थानीय मांग एवं संभावना पर आधारित हो
- मूल उद्देश्य ऋण/अनुदान की उपलब्धता के साथ आय संसाधन बढ़ाने के अवसर प्रदान कर जीवन स्तर में सुधार
- समूह के रूचि वाले क्षेत्र में प्रशिक्षण/क्षमता विकास का प्रावधान
- गतिविधि एक हो या अनेक, उसका चयन खूब चर्चा के उपरांत समूह को करना है तथा प्रस्ताव सभी के सामने पारित हो।
- परिसम्पत्ति/सामान क्रय में गुणवत्ता सर्वोपरि तथा क्रय में पारदर्शिता
- जोखिम हेतु बीमा, स्टॉक, आय व्यय रजिस्टर तथा हिसाब किताब का रख-रखाव
- कलस्टर विकास को प्रोत्साहन
- उत्पादन गुणवत्ता पैकिंग, वैल्यू एडिशन मार्केटिंग स्तर हेतु समय-समय पर उद्यमिता विकास कार्यक्रमों को प्रोत्साहन
6.5.18 समूह का रजिस्टर व खातों का रख-रखाव
समूह का लेन-देन व्यवहार आईने की तरफ साफ-साफ हो। रिकॉर्ड सही लिखने से सभी सदस्यों का विश्वास बना रहता है कि उसका पैसा सुरक्षित है तथा बैंक ऋण प्राप्ति में भी सुविधा रहती है।
भारतीय रिजर्व बैंक/नाबार्ड ने समूहों के लिये कोई विशेष लिखा पुस्तकें अथवा रिकॉर्ड निर्धारित नहीं किये हैं। सामान्यतः समूह निम्नलिखित साधारण रिकॉर्ड रखते हैं-
(i) सदस्यता व कार्यवाही रजिस्टर
(ii) सदस्यों की पासबुक
(iii) लेखा रजिस्टर (बचत, ऋण, बैंक से ऋण प्राप्ति का विवरण, वार्षिक आय, व्यय का खाता)
(iv) कैश बुक (प्राप्ति और भुगतान)
उप परियोजना संचालन में अन्य रजिस्टर
(क) प्रस्ताव रजिस्टर
(ख) लाभार्थी अंशदान
(ग) कैश बुक
(घ) स्टॉक रजिस्टर
समान रूचि समूहों के रिकॉर्ड रख-रखाव ऑडिट/वित्तीय/कार्यशैली में एकरूपता की जरूरत
- न्यूनतम रजिस्टर, फ़ॉर्मेट तथा वित्तीय अनुशासन हेतु कार्यशैली में एकरूपता की जरूरत
- हर बैठक में समूह के सदस्यों को समूह की सामूहिक बचत निधि, ऋण, ब्याज प्राप्ति, बैंक में जमा राशि इत्यादि की जानकारी अध्यक्ष/कोषाध्यक्ष द्वारा देना
- आन्ध्र प्रदेश राज्य के तर्ज पर Standard Accounting Procedure का अध्ययन किया जा सकता है।
- समान रूचि समूह में वर्ष का आय/व्यय व आॅडिट की आवश्यकता
- समान रूचि समूह के परिपक्व होने पर उनकी वित्तीय आवश्यकताओं (मार्जिन मनी, कार्यशील पूँजी इत्यादि) के लिये आवश्यक विवरण तैयार करना
- यदि समूह का एक भी सदस्य लेखा-बहियों के रख-रखाव में समर्थ नहीं है तो इस कार्य के लिये किसी अन्य की सहायता ली जा सकती है। गाँव के थोड़े-बहुत पढ़े-लिखे बड़े बच्चे भी यह काम उत्साह से करते देखे गये हैं। इसके लिये समूह द्वारा थोड़ा-बहुत पारितोषिक भी दिया जा सकता है।
- उत्प्रेरक भी सहायता कर सकते हैं। कई जगह NGO के मुंशी या प्रोत्साहक संस्था द्वारा प्रशिक्षित व्यक्ति भी हिसाब-किताब में मदद करते हैं।
- सभी रजिस्टरों और बही खातों को समूह की बैठक के दौरान ही लिखा जाना चाहिए। इससे यदि किसी सदस्य को लिखना-पढ़ना न भी आता हो तो उसे विश्वास हो जाता है कि समूह का हिसाब-किताब ठीक-ठाक तरह से रखा गया है, और उसका अपना जैसा भी सुरक्षित है।
6.5.19 समूह के रिकॉर्ड के रख-रखाव के लिये प्रशिक्षण के बिच्छू
समूह के रजिस्टर व खातों के सही रख-रखाव के लिये सदस्यों का प्रशिक्षण अत्यावश्यक है। निम्नांकित बिंदुओं पर सदस्यों को शिक्षा और मार्गदर्शन की आवश्यकता होगी-
1. प्राथमिक अंकगणित व ब्याज की गणना करना
2. बचत राशि को समूह के व सदस्य की पासबुक में लिखना
3. डीपीआईपी से प्राप्त राशि व अपने अंशदान को लिखना
4. बैठकों की कार्यवाही लिखना
5. बैंक में पैसा जमा करवाना व निकालना
6. आंतरिक ऋण, कर्ज की वापसी, बैंक से उधार लेना और हुई उधार रकम की चुकौती आदि
7. स्टॉक रजिस्टर व कैश बुक लिखना
8. उप-परियोजना में व्यय और आय का लेखा-जोखा
9. वार्षिक लाभ का लेखा-जोखा
समूह के सदस्यों के प्रशिक्षण का सबसे आसान और प्रभावी तरीका है कि उन्हें किसी अच्छे और सुचारु रूप से चलाए जा रहे समूह के पास ले चलें और इस समूह के सदस्यों के साथ उनका वार्तालाप होने दें। समय-समय पर गैर सरकारी संगठन के कार्यकर्ता व प्रोत्साहक संस्था द्वारा उनका मार्गदर्शन करने की आवश्यकता है।
6.5.20 स्वयं सहायता समूह का बैंक में खाता कैसे खोलें?
स्वयं सहायता समूह के गठन के बाद और एक-दो बैठकों के आयोजन के उपरान्त समूह के नाम पर (किसी सदस्य के नाम पर नहीं) बैंक में एक बचत खाता खोला जा सकता है।
भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशानुसार बैंक स्वयं सहायता समूह का बचत खाता खोल सकते हैं (परिपत्र संख्या डीवीबीओडी.सं.बीसी 63/13:01:08/92-93 दिनांक 4 फरवरी व 1993
(क) बचत खाता कब और कहाँ खुलवाए?
समूह के गठन के बाद जब समूह की बचत शुरू हो जाती है तो अपने नजदीक के वाणिज्यिक बैंक, क्षेत्रीय ग्रामीण बैंक अथवा केन्द्रीय सहकारी बैंक में समूह का बचत खाता खुलवा लें। भारतीय रिजर्व बैंक के निर्देशों के अनुसार स्वयं सहायता समूहों के लिये सेवा क्षेत्र अवधारणा लागू नहीं है।
समूह का बचत खाता बैंक शाखा में खुलने से बैंक से सम्पर्क बनेगा तथा समूह गठन के छः महीने पश्चात बैंक ऋण की प्राप्ति में भी सुविधा रहेगी।
(ख) बचत खाता कैसे खुलवाएँ?
बैंक में खाता खुलवाने के लिये निम्नलिखित कागजात के साथ में ले जाना जरूरी है-
- समूह की नियमावली
समूह का प्रस्ताव जिसमें प्रबन्धकीय समिति के सदस्यों को बचत खाता खोलने व खाता संचालन का अधिकार हो (प्रस्ताव का एक नमूना नीचे दिया गया है जिसे बैंक से विचार करके घटाया या बढ़ाया जा सकता है)
- समूह द्वारा खाता खोलने के प्राधिकृत सदस्यों के पदाधिकारियों नामांकित सदस्यों का फोटो
- जिस बैंक खाते में समूह का खाता खुलवाना है, उस शाखा में जिस व्यक्ति का बचत खाता हो, उससे समूह के पदाधिकारियों का परिचय खाता खोलने के फॉर्म पर करवा लें
- बैंक में बचत खाता गैर सरकारी संगठन के पदाधिकारी अथवा गाँव के सरपंच आदि से भी परिचय करवाकर खुलवाया जा सकता है
- समूह की मोहर (यदि हो तो बैंक के साथ खाता संचालन में सुविधा रहती है)
6.5.21 बैठक में बैंक बचत खाता खुलवाने के लिये प्रस्ताव पारित करने का नमूना
समूह का नाम व पता :
समूह के सदस्यों की संख्या :
बैठक दिनांक :
1. हम निम्नलिखित सदस्य उपर्युक्त स्वयं सहायता समूह चल रहे हैं जिसका गठन.................(तिथि) को किया गया है।
2. हम स्वयं सहायता समूह के सदस्य सर्वसम्मति से निम्न प्रतिनिधियों को विशेष रूप से प्राधिकृत करते हैं-
क. स्वयं सहायता समूह द्वारा अनुमोदित.........बैंक शाखा में बचत खाता खोलना और खाते को निम्नलिखित प्राधिकृत प्रतिनिधियों में से किन्हीं दो के हस्ताक्षर से संचालित करना।
श्री/श्रीमती/कुमारी...........(पदनाम)
श्री/श्रीमती/कुमारी............(पदनाम)
श्री/श्रीमती/कुमारी.............(पदनाम)
ख. स्वयं सहायता समूह को देय ब्याज/भुगतान प्राप्त करना और समूह की ओर से अपेक्षित रसीदें/पावलियाँ जारी करना।
सदस्य का नामः/हस्ताक्षर, अंगूठा निशानी (सभी सदस्य)
6.5.22 समूह बैंक ऋण सम्बद्धता
समूहों को बैंक से जोड़ने की जरूरत
जब समूह की अपनी सामूहिक निधि से विभिन्न प्रकार की आवश्यकताओं, कार्यशील पूँजी या अंशदान की पूर्ति न हो सकती है, हो तो बैंक ऋण की आवश्यकता पड़ती है। इसके साथ ही समूह को ऋण प्रबंधन का मार्गदर्शन भी मिलता है तथा बैंकिंग सुविधाओं की जानकारी मिलती है।
समूह बैंक लिंकेज योजना से बैंकों को लाभ
- भारत सरकार/रिजर्व बैंक/नाबार्ड द्वारा अनुमोदित योजना तथा प्राथमिक क्षेत्र के ऋणों में गणना
- लेन-देन लागत कम
- वसूली 95 प्रतिशत से अधिक
- बैंक व्यवसाय (जमा, ऋण) में वृद्धि
- ऋण के मूल्यांकन और अनुप्रवर्तन की अत्यंत कम लागत
- ग्रामीण क्षेत्र के सामाजिक आधार में वृद्धि
- पुराने ऋणों की वसूली
- भविष्य में अच्छे ग्राहक व सम्भावना
- निर्धन ग्राहकों को ऋण सुविधाएँ
समूह की लिंकेज पूर्व मूल्यांकन
सबसे महत्त्वपूर्ण यह जानना जरूरी है कि क्या स्वयं सहायता समूह ठीक तरह से कार्य कर रहा है तथा बैंक से ऋण प्राप्ति के लिये परिपक्व है।
आगे दी गई जाँच सूची प्रत्येक समूह का सरल और प्रभावी तरीके से आकलन करने में सहायक होगी। यह रेटिंग प्रोत्साहक/गैर सरकारी संगठन या स्वयं सहायता समूह द्वारा स्वयं की जा सकती है।
समूह के मूल्यांकन की जाँच सूची - कुल अंक 150
क्र.सं. |
मूल्यांकन का पैरामीटर |
उत्तम (10 अंक) |
मध्यम (5 अंक) |
संतोषजनक (2 अंक) |
1 |
एकरूपता/एकता की भावना |
बहुत अधिक |
मध्यम |
अधिक नहीं |
2 |
समूह गठन के उद्देश्यों के बारे में जागरूकता |
बहुत अधिक |
मध्यम |
अधिक नहीं |
3 |
समूह की नियमावली की जानकारी |
बहुत अधिक |
मध्यम |
अधिक नहीं |
4 |
बैठकों का आयोजन |
नियमित |
अनियमित |
कभीकभार |
5 |
सदस्यों की उपस्थिति |
90 प्रतिशत से ज्यादा |
70-90 प्रतिशत तक |
70 प्रतिशत से कम |
6 |
सदस्यों की मीटिंग में सहभागिता |
सभी सदस्यों द्वारा |
पदाधिकारियों द्वारा |
उत्प्रेरक/अन्य द्वारा |
7 |
बचत की नियमितता |
100 प्रतिशत सदस्यों द्वारा |
90 प्रतिशत सदस्यों द्वारा |
90 प्रतिशत से कम सदस्यों द्वारा |
8 |
आंतरिक ऋण की शुरुआत (समूह गठन के उपरान्त) |
2 माह के अन्दर |
6 माह के अन्दर |
6 माह के पश्चात |
9 |
समूह के सदस्यों में वितरित कर्ज पर मासिक ब्याज की दर |
कर्ज के उद्देश्य के अनुसार |
2-3 रूपए सैकड़ा |
3 रूपए सैकड़ा से अधिक |
10 |
आंतरिक ऋण का उपयोग |
सभी सदस्यों द्वारा |
आंशिक रूप से सदस्यों द्वारा |
बहुत ही कम सदस्यों द्वारा |
11 |
सदस्यों में वितरित ऋण की वसूली |
100 प्रतिशत |
90 प्रतिशत से कुछ अधिक |
90 प्रतिशत से कम |
12 |
लेखा किताबों का रख-रखाव |
नियमित रूप से तथा अद्यतन लिखे (20 अंक) |
कुछ रजिस्टर नियमित तथा अघटन लिखे (10 अंक) |
सभी रजिस्टर अनियमित तथा अप-टू-डेट नहीं (5 अंक) |
13 |
बैठकों में आंतरिक ऋण का निर्णय |
सभी सदस्यों द्वारा |
चुने हुए पदाधिकारियों द्वारा |
प्रोत्साहक एवं अन्यों द्वारा |
14 |
सरकार के कार्यक्रमों तथा योजनाओं की जानकारी |
सभी सदस्यों को |
ज्यादातर सदस्यों को |
कुछ सदस्यों को |
मूल्यांकन के निष्कर्ष
1. यदि किसी समूह को 120 अंक प्राप्त हो तो वह बैंक से तुरंत ऋण लेने के लिये पात्र माना जाएगा।
2. यदि किसी समूह को 90-119 अंक प्राप्त हुए हैं तो ऐसे स्वयं सहायता समूह को ऋण मंजूर करने से पहले, अपने में आवश्यक सुधार लाने के लिये 2-3 महीने का अतिरिक्त समय देना जरूरी है।
3. 90 से कम अंक प्राप्त करने वाले समूह को ऊपर लिखित चिन्हित उत्तम बिंदुओं के अनुसार सुधार करने का मार्गदर्शन देना आवश्यक है।
6.5.23 ऋण देते समय बैंक किन बातों की ओर देखते हैं?
बैंक समूह को ऋण देने से पहले उसकी परिपक्वता का मूल्यांकन करता है जिसमें 10-15 पैरामीटर होते हैं, जिनमें निम्न बिंदु अति आवश्यक है-
- समूह के सदस्यों की पृष्ठभूमि एवं विचार धारा में एकरूपता
- समूह सामान्यतः कम से कम 6 माह अवधि से सक्रिय हो तथा नियमित बचत कर रहा हो
- समूह अपनी एकत्रित बचत से आपस में सदस्यों को ऋण वितरण करने एवं ऋण वसूली करने में सक्षम हो
- नियमित बैठक व सभी सदस्यों द्वारा सहभागिता व अद्यतन
- लेखा किताबों का उचित रख-रखाव
- समूह गठन के उद्देश्यों व नियमावली की पूर्ण जानकारी
- समूह का लोकतांत्रिक स्वरूप हो जिसमें हर सदस्य यह महसूस करे कि समूह में उसकी आवाज का महत्त्व है तथा सभी निर्णय सर्वसम्मति से होते हैं।
- समूह के गठन में परस्पर सहायता और मिलकर काम करने की वास्तविक आवश्यकता प्रदर्शित होनी चाहिए।
6.5.24 बैंक द्वारा देय ऋण सुविधा
- बैंक ऋण लिंकेज द्वारा समूह की अनेक प्रकार की आवश्यकताओं जैसे उपभोग, उत्पादन, कार्यशील पूँजी तथा मार्जिन मनी इत्यादि की मांग पूरी की जाती है जो कि निम्न प्रकार से प्रदान की जा सकती है।
- मियादी ऋण (3 वर्ष या उससे अधिक)
- नकद ऋण सीमा
6.5.25 समूह को ऋण प्राप्ति के लिये बैंक को क्या दस्तावेज देने होंगे
- बैंक के बचत खाता (यदि नहीं खुला हो तो बचत खाता खुलवाना)
- ऋण के लिये समूह का बैंक को आवेदन पत्र
- स्वयं सहायता समूह के सभी सदस्यों द्वारा हस्ताक्षरित परस्पर करारनामा (यह करारनामा सदस्यों द्वारा बैंक के साथ किया जाता है जिसके अंतर्गत कम से कम 3 सदस्यों को बैंक खाते परिचालन हेतु प्राधिकृत किया जाता है)
- समूह को ऋण प्रदान करते समय बैंक के साथ करारनामा (यह करारनामा समूह के प्राधिकृत सदस्यों द्वारा निष्पादित किया जाएगा)
- समूह ऋण के लिये समूह द्वारा पारित प्रस्ताव के प्रति, जिसमें समूह के कम से कम 3 पदाधिकारियों को ऋण सम्बन्धी संचालन के लिये प्राधिकृत किया जाएगा
- गैर सरकारी संगठन/ स्वयं सहायता समूह प्रोत्साहक संस्था (एस.एच.पी.आई.) जिसके मार्गदर्शन में समूह गठित होते हैं, की ओर से स्वयं सहायता समूह को प्रायोजित करने सम्बन्धी पत्र
6.5.26 बैंक ऋण कैसे वितरित होते हैं?
- स्वयं सहायता समूह के प्राधिकृत कार्यकर्ता बैंक से नकदी या चेक के रूप में राशि निकालते हैं। समूह की बैठक में यह राशि सम्बन्धित उधार लेने वाले सदस्यों को दे दी जाती है।
- बैंक से प्राप्त ऋण का वितरण बैठक में परस्पर सहमति से सदस्यों की आवश्यकता और वापसी की क्षमता को देखते हुए करना चाहिए। ऋण को सभी सदस्यों में बराबर से बाँटना उचित नहीं है।
6.5.27 स्वयं सहायता समूह द्वारा ऋण की चुकौती की जिम्मेदारी
- बैंक स्वयं सहायता समूह द्वारा लिये गये ऋण की चुकौती की तालिका तैयार करता है और समूह को इसके अनुसार नियमित रूप से चुकौती करनी होती है।
- अपने सामूहिक अधिकार द्वारा समूह अपने सदस्यों में चूक की प्रवृत्ति को हतोत्साहित करता है। प्रत्येक सदस्य को यह महसूस कराया जाना जरूरी है कि धन न केवल उस सदस्य विशेष का है बल्कि उस पर समूह के अन्य सदस्यों का भी बराबर अधिकार है।
- समूह के सदस्य सामूहिक रूप से बैंक को ऋण चुकाने के लिये जिम्मेदार होते
- समूह की शत प्रतिशत वसूली से भविष्य में अधिक ऋण की प्राप्ति की सम्भावना होती है जिससे सभी सदस्यों की आवश्यकताओं की पूर्ति होगी तथा उनका परिवार उन्नति कर सकेगा। जिससे जीवन स्तर में उल्लेखनीय वृद्धि संभव है।
6.5.28 ऋण सम्बन्धी अन्य आवश्यक जानकारी
- बैंक द्वारा ऋण किसके, नाम पर जारी किया जाता है
- बैंक ऋण हमेशा समूह के नाम पर स्वीकृत एवं जारी किया जाता है, व्यक्तिगत सदस्यों के नाम पर नहीं।
- ऋण की राशि क्या हो? राशि का निर्धारण कैसे किया जाता है?
(क) बचत के आधार पर - सामान्यतः स्वयं सहायता समूह की सामूहिक बचत राशि के 1-4 गुणे तक ऋण दिया जा सकता है। कुछ बैंक बचत की 10 गुणा तक ऋण प्रदान करते हैं।
(ख) कार्यशील पूँजी के लिये - जिन समूहों को कार्यशील पूँजी के लिये आवश्यकता होती है बैंक उनको नकद ऋण सीमा स्वीकृत करते हैं।
- समूह की सामूहिक बचत निधि में क्या-क्या शामिल है?
(i) समूह के बचत खाते में शेष राशि
(ii) प्राधिकृत व्यक्ति के पास नकद जमा राशि
(iii) सदस्यों की कुल बचत में से दी गई ऋण राशि
(iv) ऋण पर प्राप्त ब्याज की राशि
- स्वयं सहायता समूहों को किस-किस प्रयोजन के लिये ऋण दिया जा सकता है बैंक स्वयं सहायता समूह को ऋण देता है, समूह के सदस्यों को अलग-अलग नहीं। समूह को मिले बैंक ऋण में से सदस्यों को किस तरह व्यक्तिगत ऋण दिये जाएँ, यह समूह तय करता है, बैंक नहीं। समूह अपने सदस्यों को आकस्मिक जरूरतों (जैसे बीमारी), काम धंधे में लगाने के लिये राशि, कार्यशील पूँजी, अंशदान आदि के लिये ऋण देता है।
6.5.29 बैंक के लिये प्रतिभूति क्या है?
भारतीय रिजर्व बैंक और नाबार्ड के अनुदेशों के अनुसार स्वयं सहायता समूह से कोई भी प्रतिभूति नहीं ली जानी चाहिए। वास्तव में स्वयं सहायता समूहों को ऋण मंजूर करने के लिये प्रतिभूति की आवश्यकता ही नहीं, क्योंकि
- स्वयं सहायता समूहों के सदस्य यह महसूस करते हैं कि बैंक ऋण भी उनकी बचतों के समान उनका ही पैसा है।
- वे जानते हैं कि बैंक ऋण की चुकौती के लिये वे संयुक्त रूप से जिम्मेदार हैं। इसी कारण वे उधारकर्ता सदस्यों पर चुकौती के लिये दबाव बनाये रखते हैं।
- इन कारणों से स्वयं सहायता समूहों से बैंकों को बहुत ही अच्छी चुकौती (लगभग शत प्रतिशत) प्राप्त होती है।
क्या स्वयं सहायता समूह के बचत खाते में जमा राशि को बैंक प्रतिभूति के रूप में रख सकता है?
नहीं, ऐसा करने पर स्वयं सहायता समूह अपनी आंतरिक बचत में से समूह के सदस्यों को ऋण प्रदान नहीं कर सकेगा तथा समूह ऋण प्रबंधन नहीं सीख पाएगा।
बैंक द्वारा स्वयं सहायता समूह के मंजूर ऋण पर ब्याज दर क्या होगी?
भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंकों को छूट दे रखी है कि वे स्वयं सहायता समूहों को दिये जाने वाले ऋणों पर ब्याज की दरें स्वयं तय करें।
स्वयं सहायता समूह अपने सदस्यों से किस दर से ब्याज लें?
भारतीय रिजर्व बैंक नाबार्ड के अनुदेशों के अनुसार स्वयं सहायता समूहों द्वारा अपने सदस्यों से ली जाने वाली ब्याज दरों का निर्णय समूह पर छोड़ दिया गया है, भले ही समूह मासिक या तिमाही आधार पर ब्याज की वसूली करे। आमतौर पर यह ब्याज दर 2 से 3 रूपये प्रति सैकड़ा प्रति माह होती हैं।
6.5.30 समूहों का सुदृढ़ीकरण व स्थायित्व
जिला गरीबी उन्मूलन परियोजना के अंतर्गत समान रूचि समूहों की गुणवत्ता की ग्रेडिंग के लिये विभिन्न पैरामीटर अनुबंध में राज्य इकाई द्वारा निर्धारित किये गये हैं। समूहों के स्थायित्व के लिये परियोजना में समूहों के बैंकों के साथ ऋण सहबद्धता पर भी जोर दिया गया है।
1. स्वयं सहायता समूहों के सुदृढ़ीकरण व स्थायित्व के लिये निम्न बिंदुओं के बारे में समूहों को मार्गदर्शन करना आवश्यक है।
समूह की प्रजातांत्रिक पद्धति - मन मुटाव का निपटारा
- कार्य पद्धति में खुलापन व पारदर्शिता बनाए रखने एवं खुली मीटिंग में निर्णय लेने से मनमुटाव कम होगा।
- बचत, ऋण प्राथमिकता, ऋण वापसी, अनुदान उपभेद किश्त निर्धारण, आर्थिक गतिविधि चयन आदि विषय पर आम सहमति
- मन मुटाव के निपटान में प्रोत्साहक संस्था 7 गैर सरकारी संगठन के कार्यकर्ता निष्पक्ष भूमिका निभाएँ और केवल मार्गदर्शन करें। समूह को निर्णय करने दें।
- गैर सरकारी संगठन अथवा समूह प्रोत्साहक संस्था को एक सलाहकार, मार्गदर्शक, मित्र एवं फैसीलिटेटर की भूमिका निभाना जरूरी है।
2. प्रभावशाली लीडरशिप/अच्छे लीडर के गुण/लीडरशिप में बदलाव
प्रभावशील लीडरशिप- सभी सदस्य को बात करने का मौका देना, सभी बात बिना पक्षपात के रखना, जिम्मेवारी लेना तथा सदस्यों को जिम्मेवारी देना, दूसरे सदस्यों में नेतृत्व विकसित करना, समूह के मध्य एकजुटता रखना, सूचना एकत्र कर सभी सदस्यों को देना
- एक अच्छे लीडर के गुण- ईमानदार, समर्पित, निष्पक्ष, साहसिक, सहभागी एवं दूरदर्शी।
- लीडरशिप में बदलाव- समूह में नेतृत्व विकास हेतु समूह के पदाधिकारियों का 1-2 साल बाद परिवर्तन किया जाना ठीक रहता है जिसके कई फायदे हैं, जैसे एकाधिकार प्रवृत्ति रोकना, सभी को जिम्मेवारी का अहसास दिलाना सभी को नेतृत्व क्षमता विकसित होनेे के लिये समान अवसर देना
3. समूह की परिपक्वता एवं सुदृढ़ीकरण के मानक
मार्गदर्शिका में पूर्व में निम्न बिंदुओं पर विस्तृत चर्चा की गई है, उन पर पूर्ण निष्ठा से अमल करें।
(क) नियमित बचत (ख) बैठक की सही विधि, (ग) आंतरिक ऋण का लेनदेन (घ) सही हिसाब-किताब, (ड) सभी सदस्यों द्वारा सहभागिता व सामूहिक निर्णय (च) समूह लिंकेज पूर्व रेटिंग (मूल्यांकन) में दर्शाये गये पैरामीटर
4. क्रेडिट प्लस गतिविधियाँ
- स्वयं सहायता समूह निम्न क्रेडिट प्लस गतिविधियों में भाग लेने पर विचार कर सकते हैं
- स्वास्थ्य सम्बन्धी बच्चों का टीकाकरण, जच्चा बच्चा की देखभाल, मौसमी बीमारियों तथा छूत की बीमारियों से बचाव, जन्म एवं मृत्यु रजिस्ट्रेशन, परिवार कल्याण तथा एड्स बचाव शिक्षा आदि।
- शिक्षा सम्बन्धी: साक्षरता, अक्षर ज्ञान, स्वच्छता, सामाजिक बुराइयों को दूर रखने पर विचार, पर्यावरण शुद्ध रखने पर विचार
- सरकारी कल्याणकारी योजनाओं का ज्ञान: वृद्धावस्था पेंशन, विकलांग सहायता, विधवा पेंशन, दवाई वितरण केन्द्र, सरकारी आवश्यक वस्तु वितरण, केन्द्र, पशु चिकित्सा केन्द्र, दुग्ध संग्रहण केन्द्र।
- सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रमः एसजीएसवाई, केवीआईसी/केवीआईसी/एससीएसटी प्लान/लघु सिंचाई सड़क/खरंजा/नाली निर्माण/पेयजल व्यवस्था/कृषि केंद्र केवीके/प्रधानमंत्री रोजगार योजना आदि के बारे में जानकारी
- गाँव की समस्याओंः सफाई व्यवस्था, पीने के पानी की कमी, विद्यालय, पशु अस्पताल की कमी।
- अन्य सामाजिक कुरीतियों के निदान करने के प्रयास करना तथा 5 अगस्त, 26 जनवरी को राष्ट्रीय पर्व आयोजित करना साथ मनाना
- उक्त सेवाओं से न केवल समूह सदस्य अपितु पूरे गाँव को लाभ होता है और समूह को स्थायित्व एवं निरंतरता मिलती है।
- समूह के इस प्रयास द्वारा गाँव की सामाजिक आर्थिक दशा में जबरदस्त सुधार की सम्भावनाएँ है।
5. बैंक से ऋण सहबद्धता
समूहों के सुदृढ़ीकरण व स्थायित्व के लिये बैंकों से ऋण सहबद्धता की आवश्यकता है क्योंकि इससे समूह अपनी आर्थिक आवश्यकताओं की पूर्ति करता है तथा समूह के बचत ऋण प्रबंधन व खातों के सही रख-रखाव मार्गदर्शन भी मिलता है।
6. प्रोत्साहन संस्था/गैर सरकारी संगठन के अलग होने की स्थिति
स्वयं सहायता समूह को अपने पैरों पर खड़ा होना आवश्यक है। अतः समूह के सभी सदस्यों के साथ-साथ उस गाँव के समाजसेवी व्यक्ति/रिटायर्ड अध्यापक इत्यादि को भी समूह संचालन का प्रशिक्षण दिया जाए ताकि समूह प्रोत्साहक/संस्था गैर सरकारी संगठन के अलग होने पर समूह विघटित न हो और अपने शक्तिकरण व स्थायित्व की ओर अग्रसर होते हुए अपने सदस्यों व उसके परिवार का सर्वांगीण विकास करने में सक्षम हो ऐसे सुदृढ़ समूह गाँव, समाज व देश के विकास में भी उल्लेखनीय भूमि निभाएँगे।
6.6 उत्कृष्ट स्वयं सहायता समूह के गुण
1. समान सामाजिक-आर्थिक पृष्ठभूमि के साक्षर साक्ष्य
2. समूह का आकार 15-20 साप्ताहिक बैठक, साप्ताहिक बचत
3. निश्चित समय, स्थान एवं तिथि पर नियमित बैठक सर्वसम्मति द्वारा निर्धारित बराबर बचत जो कि बैठक में सदस्य द्वारा स्वयं जमा की जाए।
4. समूह द्वारा नियम स्वयं बनाएँ जाए जिसकी सभी सदस्यों को पूर्ण जानकारी हो तथा उनका सुचारु रूप से पालन हो
5. सदस्यों के बीच आंतरिक ऋण व समय पर ऋण चुकौती
6. कर्ज के अनुसार ब्याज दर का निर्धारण तथा सामूहिक बचत निधि का प्रयोग सम्पूर्णतः सदस्यों को उनकी आवश्यकता के अनुसार ऋण देने के लिये
7. सभी अभिलेखों का रख-रखाव ठीक से नियमित एवं अद्यतन लिखे हुए
8. सदस्यों को समूह पर एक दूसरे पर पूर्ण विश्वास हो तथा सदस्य एक दूसरे की सहायता में तत्पर हो
9. पदाधिकारी निःस्वार्थ भाव से समूह में कार्य करते हो तथा आंतरिक ऋण प्रक्रिया में अन्य सदस्यों के बाद ऋण लेते हो
10. एक वर्ष बाद पदाधिकारियों में परिवर्तन होता रहे
11. आवश्यकतानुरुप बैंक से कम ऋण लिंकेज व शत प्रतिशत ऋण अदायगी
12. सभी सदस्यों द्वारा बैठक में सक्रिय सहभागिता तथा हर सदस्य यह अनुभव करे कि उसकी आवाज का महत्त्व है
13. स्वःअनुशासन हेतु बैठक में उपस्थिति बचत व अन्य नियमों के उल्लंघन हेतु दंड का प्रावधान
14. बैठक में आपसी मतभेदों की खुली चर्चा जिससे मतभेद का समूह द्वारा स्वयं निपटारा (समूह में मतभेद हो सकते हैं मतभेद नहीं होना चाहिए)
15. सामाजिक कुरीतियों को दूर करने, स्वास्थ्य, स्वच्छता, साक्षरता, कृषि सम्बन्धी तथा गाँव की समस्याओं आदि विषयों पर बैठक में चर्चा तथा उस ओर समूह द्वारा प्रयास करना
16. समय-समय पर राष्ट्रीय महत्त्व के कार्यक्रमों को आयोजित करना
17. स्वः विकास परिवार विकास, ग्राम विकास, समाज विकास एवं राष्ट्र विकास के क्रमिक सिद्धांत पर चलना
6.7 अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न एवं उत्तर
प्रश्न 1. स्वयं सहायता समूह का गठन कौन कर सकता है?
उत्तर- कोई भी सरकारी, गैर सरकारी व स्वैच्छिक संगठन, बैंक शाखा, वीवीवी क्लब के वालंटियर एवं गाँव के पढ़े लिखे व्यक्ति, जिन्हें समूह संचालन प्रक्रिया का सामान्य ज्ञान हो, समूह गठित कर सकता है।
प्रश्न 2. समूह पुरुषों का होता है, महिलाओं का मिश्रित होता है?
उत्तर- आम तौर पर पुरुष अथवा महिलाओं के अलग-अलग समूह होते हैं। मिश्रित समूह भी बनाए जा सकते हैं लेकिन अनुभव बताता है कि इनका संचालन कठिन होता है।
प्रश्न 3. समूह सदस्य संख्या कितनी होनी चाहिये और क्यों?
उत्तर- कम से कम 10 तथा अधिकतम 20 सदस्यों का समूह होना चाहिए। आमतौर पर 15(+) सदस्यों के समूह ठीक से समूह सम्बन्धी कार्य करते देखे गये हैं। आम स्थान पर बैठने, मीटिंग करने तथा विचार-विमर्श करने हेतु यह सदस्य संख्या उपयुक्त होती है। 20 से अधिक सदस्यों वाले समूहों का संचालन पंजीकरण तथा कानूनी औपचारिकताओं के कारण मुश्किल होता है।
प्रश्न 4. क्या समूह गरीबी की रेखा के नीचे (बीपीएल) जीवन यापन करने वाले व्यक्तियों का होता है? समूह में समान आर्थिक सामाजिक स्तर के व्यक्ति कहाँ से रखे जाएँ?
उत्तर- समूह गरीबों का होता है। इसमें बीपीएल की शर्तें अनिवार्य नहीं हैं। समूह में छोटे किसान, खेतीहर मजदूर, ग्रामीण कारीगर, छोटे दुकानदार तथा समान सामाजिक आर्थिक स्तर के गरीब, जिनकी आवश्यकताएँ छोटी तथा बार-बार होती हैं। समूह सदस्य बनने के पात्र हैं। समान सामाजिक आर्थिक परिवेश, आय-व्यय तथा एक समान समझ रखने वाले व्यक्तियों का समूह समरूप है।
प्रश्न 5. क्या गैर सरकारी संगठन के कार्यकर्ता समूह के सदस्य या पदाधिकारी हो सकते हैं?
उत्तर- नहीं।
प्रश्न 6. क्या एक व्यक्ति एक से अधिक समूहों का सदस्य हो सकता?
उत्तर- नहीं, क्योंकि ऐसी स्थिति स्वयं सहायता समूह के मूल सिद्धांत के विपरीत है।
प्रश्न 7. क्या कोई डिफॉल्टर समूह सदस्य हो सकता है।
उत्तर- भारतीय रिजर्व बैंक के दिनांक 2 अप्रैल 1996 के निर्देशों के अनुसार डिफॉल्टर को समूह सदस्य बनाया जा सकता है। लेकिन समूह द्वारा बैंक से लिये गये ऋण से डिफॉल्टर सदस्य ऋण लेने का तब तक पात्र नहीं होगा जब तक उसने अपनी बकाया धनराशि सम्बन्धित बैंक संस्था को अदा न की हो। बैंक इस बारे में समूह को ऋण देने से पहले अथवा बाद में कभी भी वचनबद्धता प्राप्त कर सकता है।
प्रश्न 8. क्या नाबालिक समूह सदस्य हो सकता है? क्या एक परिवार के दो सदस्य एक ही समूह में सदस्य हो सकता है?
उत्तर- नाबालिग अर्थात 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति समूह सदस्य नहीं होगा। एक परिवार से एक समूह में एक सदस्य होना चाहिए।
प्रश्न 9. क्या सभी सदस्य एक ही गाँव। एक ही जाति अथवा वर्ग विशेष से होने चाहिए?
उत्तर- राजस्थान में छोटे-छोटे गाँव हैं, जो ढाणी कहलाते हैं। समूह में सदस्यों की उपयुक्त संख्या को पूरा करने के लिये 2-3 ढाणियों के व्यक्तियों का भी समूह बनाया जा सकता है। सुगम संचालन की दृष्टि से एक ही गाँव अथवा आस-पास के क्षेत्र के व्यक्तियों का समूह बनाया जाना चाहिए। इस बारे में समूह संचालन बैंक शाख या फील्ड कार्यकर्ता से मार्गदर्शन लें अन्यथा एक ही गाँव के सदस्य समूह में रखे जाएँ।
प्रश्न 10. क्या समूह गठन के पश्चात नए सदस्य को समूह में शामिल किया जा सकता है?
उत्तर - हाँ। लेकिन इसका निर्णय समूह को सर्वसम्मति से करना होगा। नए सदस्य द्वारा सभी सदस्यों के द्वारा एकत्रित बचत धनराशि में समान हिस्सा जमा करना चाहिए ताकि सभी सदस्यों की बचत समान रखी जा सके।
प्रश्न 11. समूह में कितने पदाधिकारी होते हैं? इनका पदनाम क्या हो सकता है?
उत्तर - सुगम संचालन को ध्यान में रखकर समूह में दो या तीन पदाधिकारी होते हैं जो अध्यक्ष एवं कोषाध्यक्ष अथवा सचिव एवं कोषाध्यक्ष होते हैं।
प्रश्न 12. सरकारी विभागों द्वारा गठित समूह किस श्रेणी में है? डीपीआईपी, डी डब्ल्यूए, साक्षरता प्रकोष्ठ, भूमि-संरक्षण विभाग, आगनबाड़ी कार्याकर्ताओं द्वारा गठित समूह क्या स्वयं सहायता समूह है?
उत्तर - नियमित बचत, मीटिंग आंतरिक ऋण करने वाले व सही रिकॉर्ड रखने वाले समूह, स्वयं सहायता समूह अवधारणा पर बनाए गए हैं या पहले से बने हैं, व बाद में एसएचजी अवधारणा पर कार्य कर रहे हैं, स्वयं सहायता समूह हैं।
प्रश्न 13. क्या किसी अन्य विकासात्मक कार्य या पूर्व अवधारणा पर गठित समूह को स्वयं सहायता समूह में परिवर्तित किया जा सकता है?
उत्तर - हाँ, परन्तु समूह का परिवर्तन समूह सदस्यों को एसएचजी अवधारणा से अवगत कराकर तथा उनकी सहमति से ही किया जाना उपयुक्त है। तात्पर्य यह है कि किसी भी समूह का स्वयं सहायता समूह में परिवर्तन किसी दबाव, लालच अथवा बिना अवधारणा समझें और बताए बिना नहीं किया जाना चाहिए। जरूरत, समझ तथा सहभागिता समूह गठन के आधार स्तम्भ है।
प्रश्न 14. समूह के अपने निजी फंड का स्रोत क्या है? क्या सरकारी अनुदान अथवा किसी संस्था से प्राप्त सेविंग
उत्तर - फंड समूह की बचत में गिना जाता है? समूह सदस्यों की नियमित बचत, सदस्यों से प्राप्त सदस्यता शुल्क एवं दंड शुल्क, सदस्यों को दिए गए ऋण पर प्राप्त ब्याज समूह का निजी फंड है। बाहरी मदद, रिवाल्विंग फण्ड, दान आदि समूह का निजी फंड नहीं है।
प्रश्न 15. क्या बैंक अधिकारी समूह मीटिंग में भाग ले सकता है? क्या वह उनका हिसाब-किताब देख सकता है?
उत्तर - बैंक प्रबंधक/अधिकारी समूह बैठक में भाग ले सकता है लेकिन समूह के आंतरिक संचालन में दखल नहीं दे सकता। वह समूह को मार्गदर्शन तथा सहायता करने के लिये हिसाब-किताब देख सकता है लेकिन अपने निर्णयों को समूह के निर्णयों पर ज़बरदस्ती लागू नहीं कर सकता। बैंक अधिकारी समूह के संरक्षक, गाइड के रूप में बहुत ही अच्छे कार्य करते देखे गए हैं।
प्रश्न 16. क्या पदाधिकारियों के चयन में प्रजातांत्रिक पद्धति से चुनाव अनिवार्य है? क्या इसका कोई और विकल्प है?
उत्तर - समूह में पदाधिकारियों का चुनाव सदस्यों की आम सहमति से किया जाता है। यदि इसमें परेशानी हो तो चुनाव आम सहमति से क्षेत्र पद्धति द्वारा किया जा सकता है। इस पद्धति में उत्प्रेरक (एनजीओ/बैंक/विभाग) पदाधिकारी बनने योग्य 2-3 व्यक्तियों के नाम की पर्ची बनाकर भरते हैं तथा एक पर्ची के ड्रॉ द्वारा पदाधिकारी चयन हो जाता है। यह पद्धति चुनाव पद्धति से ज्यादा सशक्त एवं प्रभावकारी देखी गई है तथा सदस्यों के मध्य चुनाव से होने वाली वैमनस्यता को दूर रखने में भी सहायक होती है।
प्रश्न 17. समूह गठन के बाद सभी सदस्यों की भागीदारी तथा समूह सशक्तिकरण कैसे सम्भव है?
उत्तर - समूह गठन के बाद नियमित बैठक करने, नियमावली तय करने तथा सामूहिक चर्चा एवं विचार विमर्श के माध्यम से समूह में एकता की भावना विकसित होती है। सभी सदस्यों को मीटिंग में अपनी बात कहने का अधिकार होता है। सुस्त एवं अक्रियाशील सदस्यों की सहभागिता हेतु प्रत्येक मीटिंग में बारी-बारी से सदस्यों को मीटिंग का अध्यक्ष चुनकर भी सभी सदस्यों की सहभागिता सुनिश्चित करने का प्रयोग किया गया है, जो बहुत ही प्रभावकारी रही है।
प्रश्न 18. समूह का पेटी कैश/गुल्लक मनी/जेब खर्चे क्या हैं
उत्तर - आकस्मिक खर्चों एवं आवश्यकताओं की पूर्ति हेतु समूह कुछ राशि नकद में अपने पदाधिकारी कोषाध्यक्ष अथवा समूह के किसी भी सर्वमान्य व्यक्ति के पास रखते हैं, ताकि छोटे-छोटे खर्चे हेतु बैंक न जाना पड़े। कैश डबल लाॅक में छोटी संदूक में रखा जाता है। बेहतर है यदि गुल्लक एक पदाधिकारी व चाबी किसी दूसरे व्यक्ति के पास रखी जाए।
प्रश्न 19. समूह की बैठक कहाँ और कितनी बार होनी चाहिए?
उत्तर - समूह मीटिंग महीने में कम से कम एक बार और आवश्यकता अनुरूप ज्यादा बार भी की जा सकती है। मीटिंग आमतौर पर सार्वजनिक स्थान जैसे स्कूल, पंचायत भवन अथवा किसी भी सदस्य के घर पर आम सहमति से की जा सकती है।
प्रश्न 20. यदि समूह सदस्य अनपढ़ या कम पढ़े लिखे हों और लिखाई-पढ़ाई या हिसाब-किताब रखने में परेशानी हो तो क्या करें?
उत्तर - समूह सदस्य के पढ़े लिखे पुत्र-पुत्री अथवा गाँव के पढ़े लिखे व्यक्ति की मदद अथवा एनजीओ के कार्यकर्ता की मदद लेनी चाहिए। 3-4 महीनों में समूह के पदाधिकारियों को इस कार्य को स्वयं करना उचित होगा।
प्रश्न 21. क्या 6 माह बैंक बचत खाता खोलने के बाद से गिने जाते हैं?
उत्तर - नहीं, 6 माह समूह द्वारा शुरू की गई नियमित बचत से गिने जाते हैं, अर्थात समूह के गठन की तिथि से छः माह की अवधि मानी जाती है।
प्रश्न 22. किसी समूह में कुछ सदस्य डिफॉल्टर है तो लिंकेज कैसे हो?
उत्तर - भारतीय रिजर्व बैंक के दिनांक 2 अप्रैल 1996 के परिपत्र में निहित निर्देशों के तहत डिफॉल्टर सदस्यों वाले समूह को भी ऋण देने का प्रावधान है। बैंक समूहों को ऋण देना है, अतः बैंक ऋण से डिफॉल्टर सदस्यों को ऋण न देने तथा उनसे डिफॉल्ट राशि का भुगतान करने में सहायता करने का वचन पत्र बैंक समूह से प्राप्त करें। अनेक पुराने एवं संदिग्ध ऋण समूहों की सहायता से वसूल किये गये हैं। डिफॉल्टर से बैंक ऋण की वसूली उससे निकटता रखकर सम्भव है, दूरी बनाकर नहीं।
प्रश्न 23. किसी समूह में पदाधिकारी पुनर्नियुक्त होते हैं या बदल जाते हैं तो क्या किया जाए?
उत्तर - बैंक शाखा द्वारा समूह से नए पदाधिकारियों द्वारा बैंक बचत/ऋण खाता संचालित करने का प्रस्ताव प्राप्त किया जाना चाहिए।
प्रश्न 24. किसी समूह में कुछ सदस्य छोड़कर चले जाते हैं जिन पर समूह ऋण बकाया है, क्या किया जाए?
उत्तर - समूह अपने से अलग हुए सदस्यों से वसूली स्वयं करेगा। इस बारे में समूह का सामूहिक दबाव कार्य करेगा।
प्रश्न 25. क्या कोई भी समूह सदस्य बैंक से सीधे अथवा सरकार द्वारा प्रायोजित कार्यक्रम में ऋण प्राप्त कर सकता है?
उत्तर - हाँ, लेकिन समूह की सहमति के साथ
प्रश्न 26. कभी-कभी बैंक समूह द्वार प्रस्तुत ऋण आवेदन पत्र पर व्यक्तिगत ऋणी सदस्यवार मूल्यांकन करते हैं, क्या यह उचित है?
उत्तर - बैंक को ऋण आवेदन करते समय समूह सभी सदस्यों द्वारा मांगी गई ऋण आवश्यकता को दर्शाता है। सदस्यवार ऋण का प्रायोजन एवं राशि समूह के निर्णय पर आधारित है। बैंक द्वारा व्यक्तिगत सदस्य का ऋण मांग का मूल्यांकन करना ठीक नहीं है। वास्तव में बैंक समूह को ऋण देता है, भिन्न-भिन्न सदस्यों को नहीं।
प्रश्न 27. क्या बैंक द्वारा प्रदत्त समूह ऋण पर स्टॉफ ड्यूटी देय है?
उत्तर - राजस्थान सरकार के नोटिफिकेशन अनुरूप वर्तमान में रूपए 75,000 तक के समूह ऋण पर स्टॉफ ड्यूटी देय नहीं है। महिला समूह हेतु उक्त राशि रु. 1,00,000 निर्धारित की गई है।
प्रश्न 28. क्या समूह द्वारा आंतरिक ऋण प्रदान करना अनिवार्य है?
उत्तर - धन की जरूरत सभी को होती है। समूह सदस्यों द्वारा नियमित बचत करना तथा उसी में से सदस्यों को ऋण उपलब्ध कराना इसका मूल मंत्र है। इससे सदस्यों में मिलकर कार्य करने, सहयोग, विश्वास, ऋण का सदुपयोग व इसकी नियमित अदायगी की भावना विकसित होती है।
प्रश्न 29. क्या सदस्यों द्वारा जमा की गई बचत राशि का आहरण किया जा सकता है?
उत्तर - बचत करना अथवा आंतरिक ऋण प्रदान करना समूह का मूल मंत्र है, अतः बचत को आपसी लेनदेन (आंतरिक ऋण) हेतु आहरित किया जाना जरूरी है। जानकारी के अभाव में कुछ बैंक बचत खाते से आहरण पर अनियमित रोक लगाते हैं, जिससे समूह संचालन व स्थायित्व में बाधा उत्पन्न होती है।
प्रश्न 30. क्या बैंक लिंकेज के बाद भी समूह बचत खाते में अपनी जमा बचत राशि आहरित कर सकता है? क्या लिंकेज के बाद बचत राशि खाते में जमा हो सकती है, निकाली नहीं जा सकती?
उत्तर - बैंक से ऋण प्राप्त होने के बाद अर्थात लिंकेज के बाद आवश्यकता पड़ने पर समूह अपने बचत खाते से धनराशि आहरित कर सकते हैं, इस पर कोई रोक नहीं है। आदर्श एवं क्रियाशील समूह अर्थात नियमित बचत, मीटिंग, निर्धारित किश्तों का भुगतान कर रहे समूह को धन की आवश्यकता कभी भी हो सकती है। चूँकि समूह को बचत खाते पर कम ब्याज प्राप्त होता है और बैंक से आहरित किए गए ऋण पर अधिक ब्याज पड़ता है अतः समूह बैंक की देय किश्त को बचत खाते की धनराशि से एडजस्ट करवाते हैं, जिससे समूह और बैंक दोनों को लाभ होता है।
प्रश्न 31. क्या समूह के रिकॉर्ड का ऑडिट अनिवार्य है? ऑडिट कौन कर सकता है?
उत्तर - समूह को हिसाब किताब का सही ज्ञान देने तथा रिकॉर्ड ठीक प्रकार रखने के उद्देश्य से समूह की उत्प्रेरक संस्था (एनजीओ) समूह के रिकॉर्ड का ऑडिट कर सकती है। यदि समूह बैंक/सरकारी विभाग/वीवीवी क्लब द्वारा गठित है तब भी ऑडिट किया जा सकता है। ऑडिट सांकेतिक होता है। बैंक प्रबंधक अथवा किसी परिपक्व समूह के पदाधिकारी द्वारा समूह का ऑडिट किया जा सकता है। ऑडिट कराना वैधानिक बाध्यता नहीं अपितु समूह के सुगठित, परिपक्व एवं पारदर्शी बनने की प्रक्रिया है।
6.8 उपभोक्ता समूहों (यू.जी.) का संगठनः
उपभोक्ता समूहों में उन सदस्यों को सम्मिलित किया जाएगा जो कि चयनित जलग्रहण में आने वाले भूस्वामी है। ऐसे भू-स्वामी समुदायों को छोटे ‘होमोजिनियस’ समूहों में संगठित होने के लिये प्रेरित किया जाए। एस.एच.जी. की तरह ही उपभोक्ता समूहों को भी स्थानीय स्तर पर उपलब्ध प्रशिक्षित समुदाय संगठनकर्ता की सहायता से साख एवं मितव्ययी गतिविधियों के लिये संगठित होने हेतु अभिप्रेरित किया जाए। इन समूहों में उपलब्धता अनुसार महिला सदस्यों अथवा पुरूष सदस्यों अथवा महिला व पुरूष दोनों ही प्रकार के सदस्य हो सकते हैं। स्वयं सहायता समूहों के मामले की तरह ही समुदाय संगठनकर्ता समूह प्रतिनिधियों के एक्सपोजर विजिट एवं प्रशिक्षण पर होने वाले व्यय को प्रशिक्षण बजट में से पूरा किया जाएगा, जबकि समुदाय संगठनकर्ता को मानदेय सामुदायिक संगठन बजट मद में से उपलब्ध कराया जाएगा।
अनुभव यह दर्शाते हैं कि उपभोक्ता समूहों के गठन को वरियता उनकी सामाजिक सौहार्दता और संगतता के अनुसार दी जानी चाहिए। चाहे वे विशेष सामुदायिक परिसम्पत्ति का प्रबंधन करते हैं। इससे ऐसे सदस्य समूहगत कार्य का महत्त्व समझेंगे तथा जब कभी आवश्यकता उत्पन्न हो सम्बन्धित सदस्यों की सामाजिक बैठकों के आयोजन से सामुदायिक ढाँचों का प्रबंधन करने योग्य बन सकेंगे।
6.9 सारांश
जब तक जलग्रहण क्षेत्र के प्रत्येक परिवार के प्रत्येक सदस्य को क्षेत्र की पारिस्थितिकीय स्थिति, पर्यावरण का ज्ञान, प्राकृतिक संसाधनों की स्थिति एवं मांग इत्यादि की जानकारी नहीं होगी एवं कार्यक्रम के प्रारम्भिक चरण से अन्तिम चरण एवं परियोजना समाप्ति उपरांत रख-रखाव हेतु प्रबंधकीय व्यवस्थाओं में स्थानीय परिवारों की सक्रिय भागीदारी नहीं होगी, जब तक जलग्रहण विकास के उद्देश्यों की प्राप्ति किया जाना असंभव है।
स्वयं सहायता समूह 10 से 20 ग्रामीण गरीबों का समूह है जिनकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति लगभग एक जैसी है जो अपनी इच्छा व सहमति से तय की गई छोटी राशियों की बचत के लिये स्वैच्छिक रूप से बनाया जाता है तथा इससे समूह की सामान्य निधि निर्मित होती है जिसमें से सदस्यों को उनकी उत्पादन व आकस्मिक ऋण जरूरतों की पूर्ति के लिये ऋण दिया जाता है।
6.10 संदर्भ सामग्री
1. जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग के वार्षिक प्रतिवेदन
2. बारानी क्षेत्रों की राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना हेतु जारी वरसा-7 मार्गदर्शिका
3. प्रशिक्षण पुस्तिका - जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी
4. जलग्रहण मार्गदर्शिका - संरक्षण एवं उत्पादन विधियों हेतु दिशा निर्देश-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी
5. जलग्रहण विकास हेतु तकनीकी मैनुअल-जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी
6. कृषि मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा जारी राष्ट्रीय जलग्रहण विकास परियोजना के लिये जलग्रहण विकास पर तकनीकी मैनुअल
7. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - दिशा निर्देशिका
8. ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा जारी जलग्रहण विकास - हरियाली मार्गदर्शिका
9. Compendium of Circulars जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी
10. विभिन्न परिपत्र - राज्य सरकार जलग्रहण विकास एवं भू संरक्षण विभाग 156
11. जलग्रहण विकास एवं भू-संरक्षण विभाग द्वारा जारी स्वयं सहायता समूह मार्गदर्शिका
12. इंदिरा गांधी पंचायती राज एवं ग्रामीण विकास संस्थान द्वारा विकसित संदर्भ सामग्री - जलग्रहण प्रकोष्ठ
13. भारत सरकार? जारी वरसा जन सहभागिता मार्गदर्शिका
14. जलग्रहण प्रबंधन - श्री बिरदी चन्द जाट
जलग्रहण विकास - सिद्धांत एवं रणनीति, अप्रैल 2010 (इस पुस्तक के अन्य अध्यायों को पढ़ने के लिये कृपया आलेख के लिंक पर क्लिक करें।) |
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मिट्टी एवं जल संरक्षणः परिभाषा, महत्त्व एवं समस्याएँ उपचार के विकल्प |
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प्राकृतिक संसाधन विकासः वर्तमान स्थिति, बढ़ती जनसंख्या एवं सम्बद्ध समस्याएँ |
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जलग्रहण विकास में संस्थागत व्यवस्थाएँःसमूहों, संस्थाओं का गठन एवं स्थानीय नेतृत्व की पहचान |
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जलग्रहण विकासः दक्षता, वृद्धि, प्रशिक्षण एवं सामुदायिक संगठन |
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जलग्रण प्रबंधनः सतत विकास एवं समग्र विकास, अवधारणा, महत्त्व एवं सिद्धांत |
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