त्रिदोषशमनं पथ्यं स्वादु हृद्यं च जीवनम्।आम-ल्कम-पिपासान्धं दिव्यं वारि मनोहरम्।।
दिव्य जल मनोहर होता है। वह वात, पित और कफ नामक तीनों दोष शान्त करने वाला, पथ्य या स्वास्थ्य प्रदान करने वाला, स्वादिष्ट, रोचक, जीवन (रुप) होता है तथा अजीर्ण थकान और प्यास नष्ट करता है।
प्रावृड् जलनिर्मुक्तं अव्यक्तं स्वादुलक्षणम्।वारि स्फटिकसंकाशं आन्तरिक्षमिति स्मृतिम्।
बरसाती पानी से अछूता, अप्रकट या प्रच्छान्न, स्वादिष्ट, स्फटिक के समान जो जल होता है वह आन्तरिक्ष जल कहलाता है।
नत्वा पञ्चगुरुन भक्त्या वैद्यपुत्रहिताय च।सर्वशास्त्रानुसारेण लिख्यते द्रव्यनिश्चयः।।
भक्ति सहित पाँचों गुरुओं को प्रणाम करके वैद्य के पुत्रों के उपकार के लिए समस्त शास्त्रों के अनुसार द्रव्यनिश्चय लिखा जा रहा है।
जलवर्ग में जल के गुण
अथातः संप्रवक्ष्यामि तोयवर्गं सविस्तरम्।यतः प्राणस्तु सर्वेषां तस्मादादौ विलिख्यते।।
अब मै सर्वप्रथम विस्तार से जलवर्ग बताता हूँ। सर्वप्रथम इसलिए लिखा जा रहा है कि इससे ही सबके प्राण (धारण होते) हैं।
जलं तु द्विविधं प्रोक्तं गाङ्गं सामुद्रजं तथा।पानीयं बृह्मणं सौम्यं रसं जीवनमुच्यते।।
जल दो प्रकार का कहा गया है- गंगा का और समुद्र का। जल को पानीय (पानी), बृह्मण (पवित्र), सौम्य (रोचक या मनोहर), रस अथवा जीवन कहते हैं।
गुरु स्वभावतो युक्त्या सर्वरोगेषु तद्धितम्।स्वभाव से गुरु और युक्ति से (उपयोग करने पर) समस्त रोगों में हितकारी होता है।
मधुर जल के गुण
कौपं स्वादु त्रिदोषघ्नं लघुपथ्यं च सर्वदा।भौमं खातसमुद्भवं सुविमलं स्यादिन्द्रनीलप्रभम्कौपं शोषहरं हि दीपनकरं सर्वामयघ्नं परम।अन्यच्च-कषायमीषत्कठिनं कफघ्नं पित्तानिलघ्नं लघु दीपनञ्च। कौपोदकं वर्ष ऋतौ हितं च प्रसूतिभाजामिति शस्यमाहुः।।
कुएं का पानी त्रि (वात, पित्त और कफ) दोष नष्ट करता है और सदा हल्का और स्वास्थ्यकारी होता है।
भौमजल खोदने से निकलता है। यह अत्यन्त निर्मल और इन्द्रनील के समान कान्तिवाला होता है। कूप या कुएँ का पानी शोष या सूखे का रोग अथवा क्षयरोग को दूर करता है पाचनशक्ति को उत्तेजित करता है और समस्त रोगों को बिल्कुल नष्ट करता है और भी-
कुएँ का पानी कसैला, थोड़ा कठोर, कफनाशक, पित्त और वात का नाशक, हल्का और शीघ्र पाचक होता है। वर्षा ऋतु में यह हितकारी होता है। विशेषकर प्रसूति वाली नारियों के प्रशंसनीय कहा गया है।
खारे पानी के गुण
सक्षारं पित्तकृत्कौपं दीपनं नातिवातलम्।
मतान्तरे-
क्षारं तु कफवातघ्नं दीपनं पित्तकृत्परम्।
अन्य-
कूपोदकं क्षारमतीवपित्तलं श्लेष्मानिलघ्नं लघुवह्निदीपनम्।
कुएं का (हल्का) खारा पानी पित्त करता है। पाचक होता है और अधिक वात वाला नहीं होता है। मतान्तर में या दूसरे मत में-
खारा पानी कफ और वात नष्ट करता है, भूख बढ़ाता है और अधिक पित्त करता है। अन्य (का कहना है)-
कुएँ का खारा पानी अत्यधीक पित्त करता है, कफ और वात को नष्ट करता है और हल्का होता है और (जठर) अग्नि बढ़ाता है।
सरोवर या तालाब के पानी के गुण तृष्णाघ्नं सारसं बल्यं कषायं मधुरं लघु।
अन्य-
लघ्वम्भो यत्सारसं स्वादु बल्यं सद्यस्तृष्णानाशनं यत्कषायम्।
मतान्तरे-
भिनत्ति तृष्णातिशयं प्रसहृय कुर्याद्वलं सारसवारि शुद्धम्।ईषत्काषायं मधुरं वरेण्यं दोषत्रयाय प्रथितं लघुक्तम्।।सारं सारसवारि तच्च सुरसं सान्द्रं मरुच्छ्लेष्मकृत।पित्तघ्नं गुरुवस्तिशोधनकरं सांग्रहिकं शीतलम्।।
सरोवर का पानी प्यास बुझाता है, वह कसैला, मधुर और हल्का होता है।
अन्य के अनुसार- जो सरोवर का पानी हल्का, स्वादिष्ट बलदायी और जो कसैला होता है वह तत्काल प्यास बुझा देता है।
अन्य मत में-
सरोवर का शुद्ध जल अत्यन्त प्यास को भी बरबस समाप्त कर देता है, बलकारी होता है। वह थोड़ा कसैला होता है, मधुर और सर्वोत्तम अपनाने योग्य होता है। तीनों दोषों के विनाश के लिए प्रसिद्ध और हल्का होता है। सरोवर का पानी सार सम्पन्न अच्छा रसीला, सघन और वात-कफ करने वाला होता है। पित्त समाप्त करता है, पेट और पेडू के भारीपन को ठीक कर देता है। पेचिस कर (सक) ता है और शीतल होता है।
तडाग के पानी के गुण
ताटाकं वातुलं स्वादु कषायं कटु पाकि च। ताटकम्भो मधुरं विशेषात् निहन्ति पित्तं कफवातकारि।प्राणप्रदं क्रान्तिहरं च रुच्यं वृष्यं मनोहारि च वृंहपाञ्च।।
मतान्तरे-
प्रशस्तं भूमिभागस्थं नैव संवत्सरोषितम्।कषायमधुरं स्वादु ताटाकं सलिलं स्मृतम्।।
तड़ाग का पानी वात करने वाला, स्वादिष्ट, कसैला, तीखा और पाचक होता है।
तड़ाग का पानी मधुर होता है और विशेष रुप से पित्त नष्ट करता है तथा कफ और वात करने वाला होता है। वह प्राण देता है, गतिशीलता का अपहरण कर लेता है (‘कान्तिहर’ शब्द होने पर अर्थ होगा-कान्ति हरण करने वाला), रोचक, बलकारी, मनोहर और पोषक होता है।
अन्य मत में-
भूभाग पर जो वर्षभर न (भरा) ठहरा हो, वह तड़ाग का पानी उत्तम होता है, वह कसैला, मधुर और स्वादिष्ट होता है।
भाप के पानी के गुण
शौण्डमग्निकरं रुक्षं मधुरं कफपित्तकृत।कफवातहरन्तु वारि शौण्डं खसनं पीतसमाशु कुर्यात्।गुरु पित्तकरं करोति जाड्यं जठराग्निं विनिहन्ति पीतमात्रम्।
शौण्ड (नाली द्वारा खींचा-बनाया गया भाफ रसायन मदिरादि) जल शरीर में आग बनाता है। वह रुखा, मधुर होता है तथा कफ और पित्त करने वाला होता है। शौण्ड जल कफ और वात दूर करता है, खुजली करता है, तत्काल पिए हुए के समान करता है। वह जल भारी होता है, पित्त करता है, जड़ता लाता है, पीते ही जठराग्नि नष्ट करता है अथवा भूख समाप्त कर देता है।
झरने के पानी के गुण
स्वादु प्रस्त्रवणं प्रसूत सलिलं हृद्यं परं तर्पणंपित्तघ्नं पवनप्रकोपशमनं श्लेष्माणमुन्मूलयेत्।गत्याति त्वरया लघुत्वकरणं पथ्यं परं बृंहणंशीतं जाठरपाकस्य तनुतां संसेवनान्नशयेत्हृद्यं स्वादु सतिक्तपित्तहरणं दुर्गन्धिकं पिच्छिलम्।।
मतान्तरे-
शैलसानू समुद्भूतं सृष्टं वारि हिमातपम्।लघुशीततमं स्वादु हितं प्रस्त्रवणोदकम्।।
झरने से प्रकट होता पानी स्वादिष्ट, मनोरम और तृप्ति देने वाला होता है। वह पित्त नष्ट करता है, वात को बढ़ने से रोकता है और कफ को जड़ से समाप्त कर देता है। बड़ी तेजी से हल्कापन ला देता है, स्वास्थ्य को सर्वथा बढ़ाता है। इस जल के सेवन से शीत, पेट की जलन या जठराग्नि की कमी नष्ट हो जाती है। पर्वत के ऊपर का पानी कफ और वात करता है। यह जल रोचक, स्वादिष्ट होता है। तीखा और पित्त दूर करता है। यह (थोड़ा) दुर्गन्ध वाला और चिपचिपा होता है।
अन्य मत में-
पर्वत की चोटी से उत्पन्न, बर्फ (पर) की धूप से बना झरने का जल हल्का, अत्यन्त शीतल, स्वादिष्ट और हितकारी होता है।
त्रिदोषशमनं पथ्यं जलं प्रास्त्रवणं विदुः।
झरने को पानी (खात, पित्त और कफ) तीनों दोषों को शान्ति करने वाला बताया जाता है।